अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 56


सरीया और ग़ज़वे’ (झड़पें और लड़ाइयां )

लड़ाई की इजाजत मिल जाने के बाद इन दोनों योजनाओं को लागू करने के लिए मुसलमानों की फ़ौजी मुहिमों का सिलसिला अमली तौर पर शुरू हुआ। जांच-पड़ताल के लिए फौजी दस्ते गश्त करने लगे। इसका मक्र्सूद वही था जिसकी ओर इशारा किया जा चुका है—

• मदीने के पास-पड़ोस के रास्तों पर आमतौर से और मक्का के रास्ते पर खास तौर से नज़र रखी जाए और उसके हालात का पता लगाया जाता रहे • इन रास्तों पर वाक्रे क़बीलों से समझौते किए जाएं

• यसरिब के मुश्किों, यहूदियों और आस-पास के बहुओं को यह एहसास दिलाया जाए कि मुसलमान ताक़तवर हैं और अब उन्हें अपनी पुरानी कमज़ोरी से निजात मिल चुकी है,

कुरैश को उनके बेजा गुस्से और बदले की भावना के खतरनाक नतीजे से डराया जाए, ताकि जिस मूर्खता की दलदल में अब तक धंसते चले जा रहे हैं, उससे निकल कर होश में आएं और अपनी अर्थव्यवस्था और आर्थिक साधनों को खतरे में देखकर समझौते की ओर झुक जाएं और मुसलमानों के घरों में घुसकर उन्हें खत्म करने का जो संकल्प लिया है और अल्लाह की राह में जो रुकावटें खड़ी कर रहे हैं और मक्के के कमज़ोर मुसलमानों पर जो ज़ुल्म व सितम ढा रहे हैं, इन सबसे बाज़ आ जाएं और मुसलमान अरब प्रायद्वीप में अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाने के लिए आज़ाद हो जाएं।

इन झड़पों और लड़ाइयों के संक्षिप्त हालात नीचे दिए जा रहे हैं

1. सरीया सीफ़ुल बह’ – रमज़ान सन् 01 हि० मुताबिक़ मार्च सन् 623 ई०

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ियल्लाहु अन्हु को इस सरीया (झड़प) का अमीर बनाया और तीस मुहाजिरों को उनकी कमान में देकर शाम से आने वाले एक कुरैशी क़ाफ़िले

1. सीरत की परिभाषा में ग़ज़वा (लड़ाई) उस फ़ौजी मुहिम को कहते हैं जिसमें नबी सल्ल० स्वतः तशरीफ़ ले गए हों, चाहे लड़ाई हुई हो या न हुई हो और सरीया (झड़पें) वह फ़ौजी मुहिम है जिसमें आप खुद तशरीफ़ न ले गए हों। 2. यानी समुद्र-तट

का पता लगाने के लिए रवाना फ़रमाया। इस क़ाफ़िले में तीन सौ आदमी थे, जिनमें अबू जहल भी था ।

ईस’ के आस-पास समुद्र तट पर पहुंचे तो क़ाफ़िले का सामना हो मुसलमान गया और दोनों फ़रीक़ लड़ाई के लिए तैयार हो गए, लेकिन क़बीला जुहैना के सरदार मज्दी बिन अम्र ने, जो दोनों फ़रीक़ का मित्र था, दौड़-धूप करके लड़ाई न होने दी।

हज़रत हमज़ा रज़ि० का यह झंडा पहला झंडा था, जिसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने मुबारक हाथों से बांधा था। इसका रंग सफ़ेद था और इसके झंडाबरदार हज़रत अबू मुरसद कनाज बिन हुसैन ग़नवी रज़ियल्लाहु अन्हु थे । ।

2. सरीया राबिग़- शव्वाल 01 हि०, अप्रैल सन् 623 ई०

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत उबैदा बिन हारिस बिन मुत्तलिब को मुहाजिरों के साथ सवारों की टुकड़ी देकर रवाना फ़रमाया। राबिग़ की घाटी में अबू सुफ़ियान का सामना हुआ। उसके साथ दो सौ आदमी थे। दोनों फ़रीक़ों ने एक-दूसरे पर तीर चलाए, लेकिन इससे आगे कोई लड़ाई न हुई ।

इस झड़प में मक्की फ़ौज के दो आदमी मुसलमानों से आ मिले- एक हज़रत मिक़दाद बिन अम्र बहरानी, और
दूसरे उत्बा बिन ग़ज़वान अल माज़नी रज़ियल्लाहु अन्हुमा ।
ये दोनों मुसलमान थे और कुफ्फ़ार के साथ निकले ही इस मक्सद से थे कि इस तरह मुसलमानों से जा मिलेंगे।
हज़रत अबू उबैदा का झंडा सफ़ेद था और झंडाबरदार हज़रत मिस्तह बिन असासा बिन मुत्तलिब बिन अब्दे मुनाफ़ थे I

3. सरीया खर्रार’, ज़ीक़ादा सन् 01 हि०, मई 623 ई०

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस सरीया का अमीर साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ि० को मुक़र्रर फ़रमाया और उन्हें बीस आदमियों की कमान देकर कुरैश के एक क़ाफ़िले का पता लगाने के लिए रवाना फ़रमाया और यह ताकीद फ़रमा दी कि खर्रार से आगे न बढ़ें।

1. लाल सागर के पड़ोस में यम्बुअ और मर्वः के बीच एक जगह है। 2. जोहफा के क़रीब एक जगह का नाम है।

ये लोग पैदल रवाना हुए। रात को सफ़र करते और दिन में छिपे रहते थे। पांचवें दिन सुबह खर्रार पहुंचे तो मालूम हुआ कि क़ाफ़िला एक दिन पहले जा चुका है।
इस सरीए का झंडा सफ़ेद था और झंडा बरदार हज़रत मिक़दाद बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु थे ।

4. ग़ज़वा अबवा या वद्दान’, सफ़र 02 हि०, अगस्त सन् 623 ई०

इस मुहिम में सत्तर मुहाजिरों के साथ अल्लाह के रसूल स्वत: भी गए थे और मदीने में हज़रत साद बिन उबादा रज़ि० को अपना स्थानापन्न नियुक्त कर दिया था। मुहिम का मक्सद कुरैश के एक क़ाफ़िले की राह रोकना था। आप वद्दान तक पहुंचे, लेकिन कोई मामला पेश न आया।

इसी लड़ाई में आपने बनू जमरा के उस वक़्त के सरदार अम्र बिन मख्शी ज़मरी से मैत्रीपूर्ण समझौता किया समझौता इस तरह था-

‘यह बनू ज़मरा के लिए मुहम्मद रसूलुल्लाह का लेख है। ये लोग अपनी जान और माल के बारे में सुरक्षित रहेंगे और जो इन पर धावा करेगा, उसके खिलाफ़ उनकी मदद की जाएगी, अलावा इसके कि ये खुद अल्लाह के दीन के खिलाफ लड़ाई लड़ें। (यह समझौता उस वक़्त तक के लिए है) जब तक समुद्र ऊन को तर करे । (यानी हमेशा के लिए है) और जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी मदद के लिए उन्हें आवाज़ देंगे, तो उन्हें आना होगा। 2

यह पहली फ़ौजी मुहिम थी, जिसमें अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम स्वतः शरीक हुए थे और पन्द्रह दिन मदीने से बाहर रहकर वापस आए। इस मुहिम के झंडे का रंग उजला था और हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु झंडाबरदार थे।

5. ग़ज़वा बुवात, रबीउल अव्वल सन् 02 हि०, सितम्बर 623 ई० इस मुहिम में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो सौ सहाबा को साथ लेकर रवाना हुए। मक्र्सूद कुरैश का एक क़ाफ़िला था, जिसमें उमैया बिन

1. वद्दान मक्का और मदीना के बीच एक जगह का नाम है। यह राबिग़ से मदीना जाते हुए 29 मील की दूरी पर पड़ता है। अबवा वद्दान के क़रीब ही एक दूसरी जगह का नाम है।

2. अल-मवाहिबुल लद निया 1/75 मय शरह ज़रकानी

खल्फ़ सहित कुरैश के एक सौ आदमी और ढाई हज़ार ऊंट थे। आप रिज्वा से करीबी जगह बुवात’ तक तशरीफ़ ले गए, लेकिन कोई मामला पेश न आया।

इस लड़ाई के दौरान हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीने का अमीर बनाया गया था। झंडा सफ़ेद था और झंडा बरदार हज़रत साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हु थे ।

  1. ग़ज़वा सफ़वान, रबीउल अव्वल 02 हि०, सितम्बर 623 ई०

इस ग़ज़वा की वजह यह थी कि कर्ज़ बिन जाबिर प्रहरी ने मुश्किों की एक छोटी-सी सेना के साथ मदीने की चरागाह पर छापा मारा और कुछ मवेशी लूट लिए। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सत्तर सहाबा के साथ उसका पीछा किया और बद्र के पड़ोस में स्थित सफ़वान घाटी तक तशरीफ़ ले गए, लेकिन कर्ज़ और उसके साथियों को न पा सके और किसी टकराव के बिना वापस आ गए। इस ग़ज़वे को कुछ लोग ‘पहली बद्र की लड़ाई’ भी कहते हैं।

इस ग़ज़वे के दौरान मदीने का अमीर जैद बिन हारिसा रज़ि० को बनाया गया था। झंडा सफ़ेद था और झंडा बरदार हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु थे ।

  1. ग़ज़वा जुल उशैरा, जुमादल ऊला व जुमादल आखर 02 हि०, नवम्बर, दिसम्बर 623 ई०

इस मुहिम में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ डेढ़ या दो सौ मुहाजिर थे, लेकिन आपने किसी को चलने पर मजबूर नहीं किया था । सवारी के लिए सिर्फ़ तीस ऊंट थे, इसलिए लोग बारी-बारी सवार होते थे। निशाने पर कुरैश का एक क़ाफ़िला था जो शाम देश जा रहा था और मालूम हुआ था कि यह मक्के से चल चुका है। इस क़ाफ़िले में कुरैश का खासा माल था। आप उसकी तलाश में जुल उशैरा’ तक पहुंचे। लेकिन आपके पहुंचने से कई दिन पहले ही क़ाफ़िला जा चुका था।

यह वही क़ाफ़िला है जिसे शाम से वापसी पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने गिरफ़्तार करना चाहा, तो यह क़ाफ़िला तो बच निकला, लेकिन बद्र की लड़ाई हो गई।

  1. बुवात और रिज्वा कोहिस्तान जुहैना के सिलसिले के दो पहाड़ हैं जो सच तो यह है कि एक ही पहाड़ की दो शाखाएं हैं। यह मक्का से शाम जाने वाले राजमार्ग से मिला हुआ है और मदीना से 48 मील की दूरी पर है।
  2. इसे उसैरा भी कहते हैं। यम्बूअ के पड़ोस में एक जगह है।

इस मुहिम पर इब्ने इस्हाक़ के अनुसार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जुमादल ऊला के अन्त में रवाना हुए और जुमादल उखरा में वापस आए। शायद यही वजह है कि इस ग़ज़वे के महीने के तै करने में सीरत लिखने वालों में मतभेद हो गया है।

इस ग़ज़वे में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बनू मुदलिज और उनके मित्र बनू ज़मरा से लड़ाई न करने का समझौता किया।

सफ़र के दिनों में मदीने के नेतृत्व का काम हज़रत अबू सलमा बिन असद मख्ज़मी रज़ि० ने अंजाम दिया। इस बार भी झंडा सफेद था और झंडा बरदारी हज़रत हमज़ा फ़रमा रहे थे।