
मुहाजिरों को क़ुरैश की धमकी
ऐसा लगता है कि कुरैश इससे अधिक दुष्टताई और झगड़े का इरादा किए बैठे थे और खुद मुसलमानों, मुख्य रूप से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की समाप्ति का उपाय सोच रहे थे और यह सिर्फ सोच और विचार न था, बल्कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इतने ताकीदी तरीक़े पर कुरैश की चालों और बुरे इरादों की जानकारी हो चुकी थी कि आप या तो जागकर रात गुजारते थे या सहाबा किराम के पहरे में सोते थे।
चुनांचे सहीह बुखारी व मुस्लिम में हज़रत आइशा रजि० से रिवायत किया गया है कि मदीना आने के बाद एक रात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जाग रहे थे कि फ़रमाया, काश! आज रात मेरे सहाबा में से कोई भला आदमी मेरे यहां पहरा देता। अभी हम इसी हालत में थे कि हमें हथियार की झंकार सुनाई पड़ी।
आपने फ़रमाया, कौन है ?
जवाब आया, साद बिन अबी वक़्क़ास ।
फ़रमाया, कैसे आना हुआ ?
बोले, मेरे दिल में आपके बारे में ख़तरे का अंदेशा हुआ, तो मैं आपके यहां पहरा देने आ गया ।
इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें दुआ दी, फिर सो गए।
यह भी याद रहे कि पहरे की यह व्यवस्था कुछ रातों के लिए खास न थी, बल्कि बराबर रहती थी। चुनांचे हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि रात को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए पहरा दिया जाता था, यहां तक कि यह आयत उतरी-
1. बुखारी, किताबुल 2. सहीह बुखारी, बाबुल हिरासति फ़िल ग़ज़लि फ्री सबी लिल्लाहि 1/404 मुस्लिम बाब फ़ज़्लु साद बन अबी वक़्क़ास 2/180
मग़ाज़ी, 2/563
‘अल्लाह आपको लोगों से सुरक्षित रखेगा।’
तब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुब्बे से सर निकाला और फ़रमाया-
‘लोगो ! वापस जाओ, अल्लाह ने मुझे सुरक्षित कर दिया है।
फिर यह ख़तरा सिर्फ़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज्ञात तक सीमित न था, बल्कि सारे ही मुसलमानों को था ।
चुनांचे हज़रत उबई बिन काब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथी मदीना तशरीफ़ ले गए और अंसार ने उन्हें अपने यहां पनाह दी, तो सारे अरब ने उन्हें एक कमान से मारा। चुनांचे ये लोग न हथियार के बग़ैर रात गुजारते थे और न हथियार के बग़ैर सुबह करते थे। 1.
लड़ाई की इजाज़त
ऐसे खतरों से भरे हालात में जो मदीना में मुसलमानों के वजूद के लिए चुनौती बने हुए थे और जिनसे साफ़ था कि कुरैश किसी तरह होश के नाखून लेने और अपनी सरकशी से बाज़ आने के लिए तैयार नहीं, अल्लाह ने मुसलमानों को लड़ाई की इजाज़त दे दी, लेकिन इसे फ़र्ज़ नहीं क़रार दिया। इस मौक़े पर अल्लाह का जो इर्शाद आया, वह यह था-
‘जिन लोगों से लड़ाई लड़ी जा रही है, उन्हें भी लड़ाई की इजाज़त दी गई, क्योंकि वे मज़लूम हैं और यक़ीनन अल्लाह उनकी मदद की कुदरत रखता है।’
फिर इस आयत के साथ कुछ और आयतें भी उतरीं, जिनमें बताया गया कि यह इजाज़त सिर्फ लड़ाई बराए लड़ाई नहीं है, बल्कि इससे मक्सूद बातिल (असत्य) का अन्त और अल्लाह की पहचान का क़ायम करना है, चुनांचे आगे चलकर इर्शाद हुआ-
‘जिन्हें हम अगर ज़मीन में सत्ता दे दें, तो वे नमाज़ क़ायम करेंगे, ज़कात अदा करेंगे, भलाई का हुक्म देंगे और बुराई से रोकेंगे।’ (22:41)
लड़ाई की यह इजाज़त पहले पहल कुरैश तक सीमित थी। फिर हालात बदलने के साथ इसमें भी तब्दीली आई। चुनांचे आगे चलकर यह इजाज़त अनिवार्यता में बदल गई और कुरैश से आगे बढ़कर ग़ैर-क़ुरैश को भी शामिल हो गई। उचित होगा कि घटनाओं के उल्लेख से पहले इसके अलग-अलग
1. जामेअ तिर्मिज़ी, अबवाबुत्तफ़्सीर 2/130
मरहलों को संक्षेप में प्रस्तुत कर दिया जाए।
(1) पहला मरहला : क़ुरैश को युद्ध का आरंभ करने वाला समझा गया, क्योंकि उन्होंने जुल्म की शुरुआत की थी, इसलिए मुसलमानों का हक़ पहुंचता था कि उनसे लड़ें और उनके माल ज़ब्त कर लें, लेकिन अरब के दूसरे मुश्किों के साथ यह बात सही न थी।
(2) दूसरा मरहला : ग़ैर-क़ुरैश में से हर वह फ़रीक़ जिसने कुरैश का साथ दिया और उससे हाथ मिलाया या जिसने स्वतः मुसलमानों पर जुल्म किया, उनसे लड़ना ।
अर-रहीकुल मख़्तूम
(3) तीसरा मरहला : जिन यहूदियों के साथ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अहद व पैमान था, मगर उन्होंने खियानत की और मुश्किों का साथ दिया, ऐसे यहूदियों के अहद व पैमान को उनके मुंह पर दे मार दिया जाए और उनसे लड़ाई लड़ी जाए।
(4) चौथा मरहला : अहले किताब, जैसे ईसाइयों में से, जिन्होंने मुसलमानों के साथ दुश्मनी की शुरुआत की और मुक़ाबले में आ गए, उनसे लड़ा जाए, यहां तक कि वे छोटे बनकर अपने हाथों जिज़या अदा करें।
(5) पांचवां मरहला : जो इस्लाम में दाखिल हो जाए उससे हाथ रोक लेना, भले ही वह मुश्कि रहा हो, या यहूदी या ईसाई या कुछ और। अब उसके जान या माल से इस्लाम के हक़ के मुताबिक़ ही छेड़ की जा सकती है और उसका हिसाब अल्लाह पर है ।
लड़ाई की इजाज़त मिली तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह तदबीर मुनासिब समझी कि अपने ग़लबे का दायरा कुरैश के उस कारोबारी राजमार्ग तक फैला दें जो मक्का से शाम तक आती जाती है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ग़लबे के इस फैलाव के लिए दो योजनाएं बनाईं—
1. एक, जो क़बीले इस राजमार्ग के चारों ओर या इस राजमार्ग से मदीना तक के बीच के इलाक़े में आबाद थे, उनके साथ दोस्ती और सहयोग और लड़ाई न करने का समझौता। चुनांचे इसी तरह का एक समझौता आपने जुहैना के साथ किया। उनकी आबादी मदीने से तीन मरहले पर, यानी 45-50 मील की दूरी पर, वाक़े थी। इसके अलावा मुहिम के दौरान भी आपने कई समझौते किए, जिनका उल्लेख आगे किया जाएगा।
2. दूसरी योजना यह थी कि उस रास्ते पर लगातार फ़ौजी मुहिमें रवाना की जाएं।



