अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 53

समाज का नया रूप

इस सूझ-बूझ, हिक्मत और इस दूरदर्शिता से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक नए समाज की बुनियादें मज़बूत कीं, लेकिन सच तो यह है कि समाज का प्रत्यक्ष रूप उन अप्रत्यक्ष शिक्षाओं के प्रभाव में था, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की संगति से सहाबा किराम की ज़िंदगियों में देखा जा सकता था ।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें संवारने सजाने, उनकी शिक्षा-दीक्षा और उन्हें आदर्श चरित्र के अनुसार ढालने की बराबर कोशिशें करते रहते थे और उन्हें मुहब्बत, भाईचारा, इबादत व इताअत के आदाब बराबर सिखाते और बताते रहते थे ।

एक सहाबी ने आपसे पूछा कि कौन-सा इस्लाम बेहतर है ? (यानी इस्लाम में कौन-सा अमल बेहतर है ?)

आपने फ़रमाया, तुम खाना खिलाओ और पहचान वाले और बे-पहचान वाले सबको सलाम करो 11

हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना तशरीफ़ लाए, तो मैं आपकी सेवा में हाज़िर हुआ। जब मैंने आपका मुबारक चेहरा देखा, तो अच्छी तरह समझ गया कि वह किसी झूठे आदमी का चेहरा नहीं हो सकता।

फिर आपने पहली बात जो इर्शाद फ़रमाई, वह यह थी, ऐ लोगो ! सलाम फैलाओ, खाना खिलाओ, रिश्तों-नातों को जोड़ो और रात में जब लोग सो रहे हों, नमाज़ पढ़ो। जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे 12

आप फ़रमाते थे, वह व्यक्ति जन्नत में दाखिल न होगा, जिसका पड़ोसी, उसकी शरारतों और तबाहकारियों से बचा न रहे ।

और फ़रमाते थे, मुसलमान वह है जिसकी ज़ुबान और हाथ से मुसलमान बचे रहें’,

और फ़रमाते थे, ‘तुम में से कोई व्यक्ति ईमान वाला नहीं हो सकता, यहां तक

1. सहीह बुखारी 1/6, 9 2. तिर्मिज़ी, इब्ने माजा, दारमी, मिश्कात 1/168 3. सहीह मुस्लिम, मिश्कात, 2/422 4. सहीह बुखारी 1/6

चीज़ पसन्द करे जो खुद अपने लिए पसन्द करता है।

कि अपने भाई के लिए वही और फ़रमाते थे, सारे ईमान वाले एक आदमी की तरह हैं कि अगर उसकी आंख में तक्लीफ़ हो तो सारे जिस्म को तक्लीफ़ महसूस होती है और अगर सर में तक्लीफ़ हो तो सारे जिस्म को तकलीफ महसूस होती है।

और फ़रमाते, मोमिन (ईमान वाला) मोमिन के लिए इमारत की तरह है, जिसका कुछ कुछ को ताक़त पहुंचाता है। 3

और फ़रमाते, आपस में बुज़ न रखो, आपस में एक दूसरे से जलो नहीं, एक दूसरे से पीठ न फेरो और अल्लाह के बन्दे और भाई-भाई बनकर रहो। किसी मुसलमान के लिए हलाल नहीं है कि अपने भाई को तीन दिन से ऊपर छोड़े रहे

और फ़रमाते, मुसलमान मुसलमान का भाई है, न उस पर जुल्म करे और न उसे दुश्मन के हवाले करे और जो व्यक्ति अपने भाई की ज़रूरत पूरी करने में लगा रहेगा, अल्लाह उसकी ज़रूरतें पूरी करेगा और जो व्यक्ति किसी मुसलमान से कोई ग़म और दुख दूर करेगा, अल्लाह उस व्यक्ति से क़ियामत के दिन के दुखों में से कोई दुख दूर करेगा और जो व्यक्ति किसी मुसलमान की परदापोशी करेगा, अल्लाह क़ियामत के दिन उसकी परदापोशी करेगा ।

और फ़रमाते, तुम लोग ज़मीन वालों पर मेहरबानी करो, तुम पर आसमान वाला मेहरबानी करेगा 16

और फ़रमाते, वह व्यक्ति मोमिन नहीं, जो खुद पेट भरकर खा ले और उसके बग़ल में रहने वाला पड़ोसी भूखा रहे ।

और फ़रमाते, मुसलमान से गाली-गलोच करना फ़िस्क़ है और उससे मार-काट करना कुन है।

इसी तरह आप रास्ते से तक्लीफ़ पहुंचाने वाली चीज़ हटाने को सदक़ा क़रार

1. सहीह बुखारी 1/6 2. मुस्लिम, मिश्कात 2/422 3. मुस्लिम, मिश्कात 2/422, सहीह बुखारी 2/890 4. सहीह बुखारी 2/896 5. बुखारी-मुस्लिम, मिश्कात 2/422 6. सुनने अबू दाऊद 2/335, जामेअ तिर्मिज़ी 2/14 7. शोबुल ईमान (बैहक़ी) मिश्कात 2/424 8. सहीह बुखारी 2/893,
देते थे, और इसे ईमान की शाखाओं में से एक शाखा गिना करते थे।’

साथ ही आप सदक़े और खैरात पर उभारते थे, उसकी ऐसी-ऐसी बड़ाइयां बयान करते थे कि उसकी ओर दिल अपने आप खिंचते चले जाएं, चुनांचे आप फ़रमाते कि सदक़ा गुनाहों को ऐसे ही बुझा देता है, जैसे पानी आग को बुझाता है

और आप फ़रमाते कि जो मुसलमान किसी नंगे मुसलमान को कपड़ा पहना दे, अल्लाह उसे जन्नत का हरा कपड़ा पहनाएगा और जो मुसलमान किसी भूखे मुसलमान को खाना खिला दे, अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जो मुसलमान किसी प्यासे मुसलमान को पानी पिला दे, अल्लाह उसे जन्नत की मुहर लगी हुई शराबे तहूर पिलाएगा। 3

आप फ़रमाते, आग से बचो, अगरचे खजूर का एक टुकड़ा ही सदक़ा करके और अगर वह भी न पाओ तो पाकीज़ा बोल ही के ज़रिए 14

और इसी के पहलू-ब-पहलू दूसरी ओर आप मांगने से परहेज़ की भी बहुत ज़्यादा ताकीद फ़रमाते, सब व क़नाअत की फ़ज़ीलतें सुनाते और सवाल करने को सवाल करने वाले के चेहरे के लिए नोच, खरोंच और घाव क़रार देते । अलबत्ता उससे उस व्यक्ति को अपवाद क़रार दिया जो बहुत ज़्यादा मजबूर होकर सवाल करे ।

इसी तरह आप यह भी बयान फ़रमाते कि किन इबादतों की क्या फ़ज़ीलतें हैं और अल्लाह के नज़दीक उनका क्या अज्र व सवाब है ? फिर आप पर आसमान से जो वह्य आती, आप उससे मुसलमानों को बड़ी मज़बूती से जोड़े रखते। आप वह वह्य मुसलमानों को पढ़कर सुनाते और मुसलमान आपको पढ़कर सुनाते, ताकि इस अमल से उनके अन्दर सूझ-बूझ के अलावा दावत का हक़ और पैग़म्बराना ज़िम्मेदारियों का शऊर भी पैदा हो।

इस तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों के अन्दर को झिंझोड़ा, उनकी ख़ुदा की बख्शी सलाहियतों को तरक़्क़ी दी और उन्हें उच्चतम मूल्यों का और चरित्र का मालिक बनाया, यहां तक कि वे नबियों की

1. इस विषय की हदीसें बुखारी-मुस्लिम में रिवायत की गई हैं, मिश्कात 1/12, 167 2. अहमद, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा, मिश्कात, 1/14

3. सुनने अबू दाऊद, जामेअ तिर्मिज़ी, मिश्कात 1/169

4. सहीह बुखारी 1/190, 2/890

5. देखिए अबू दाऊद, तिर्मिज़ी, नसई, इब्ने माजा, दारमी, मिश्कात 1/163

तारीख में नबियों के बाद फ़ज़्ल व कमाल की सबसे ऊंची चोटी का नमूना बन गए।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि जिस व्यक्ति को तरीक़ा अख्तियार करना हो, वह गुज़रे हुए लोगों का तरीक़ा अख्तियार करे, क्योंकि जिंदा के बारे में फ़िले का अंदेशा है। वे लोग नबी के साथी थे, इस उम्मत में सबसे अफ़ज़ल, सबसे नेकदिल, सबसे गहरे इल्म के मालिक और सबसे ज़्यादा बे-तकल्लुफ़ अल्लाह ने उन्हें अपने नबी का साथी बनने और अपने दीन के क़ायम करने के लिए चुना, इसलिए उनका फ़ज़्ल पहचानो और उनके पदचिह्नों पर चलो और जितना मुम्किन हो उनके चरित्र और आचरण से चिमटे रहो, क्योंकि वे लोग हिदायत के सीधे रास्ते पर थे ? 1

फिर हमारे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खुद भी ऐसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष गुणों, कमालों, अल्लाह की दी हुई क्षमताओं, बड़ाइयों और चरित्र और आचरण के आदर्श को पहुंचे हुए थे कि दिल अपने आप आपकी ओर खिंचे जाते थे और जानें कुर्बान हुआ चाहती थीं, चुनांचे आपकी ज़ुबान से ज्योंही कोई शब्द निकलता, सहाबा किराम उसे पूरा करने के लिए दौड़ पड़ते और हिदायत व रहनुमाई की जो बात आप इर्शाद फ़रमाते, उसे दिल में बिठाने के लिए, गोया एक दूसरे से आगे निकलने की बाज़ी लग जाती ।

इस तरह की कोशिशों से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ऐसे समाज के गठन में कामियाब हो गए, जो इतिहास का सबसे ज़्यादा कमाल वाला और शरफ़ से भरा-पूरा समाज था और उस समाज की समस्याओं का ऐसा सुन्दर हल निकाला कि मानवता ने एक लम्बे समय तक ज़माने की चक्की में पिसने और अथाह अंधियारियों में हाथ-पांव मारकर थक जाने के बाद पहली बार चैन की सांस ली।

इस नए समाज के तत्व ऐसी उच्च और श्रेष्ठ शिक्षाओं द्वारा निखरे-संवरे और पूरे हुए, जिसने पूरी हिम्मत और बहादुरी के साथ ज़माने के हर झटके का मुक़ाबला करके उसका रुख फेर दिया और इतिहास की धारा बदल दी ।

रजीन, मिश्कात 1/32



Leave a comment