क़र्बला के शहीद जनाब जॉन बिन हुवाई

#कर्बला_मै_जंग_नहीं_जुल्म_हुआ_था_धोखा_किया_गया_था_गद्दारी_की_गई_थीं❗क़र्बला के शहीद जनाब जॉन बिन हुवाई,
ये मौला अली के दोस्त जनाब अबुजर अल गफ्फारी के ग़ुलाम थे, तीसरे खलीफा उस्मान बिन अफफान ने जब अबुज़र गफ्फारी को शहर बदर किया तो अबुजर गफ्फारी ने जॉन से कहा जॉन मे तुम्हे आज़ाद करता हूँ क्योकि अब मे खुद बेघर हो चुका तो मे नही चाहता तुम भी दर बदर फिरो,तो जॉन ने रोकर कहा हज़रत अब मेरा क्या होगा मे किसके सहारे रहूंगा तो जनाबे गफ्फारी ने हज़रत जॉन को मौला अली के पास चले जाने कि ताकीद कि , फिर मौला अली कि शहादत के बाद आप इमाम हसन और इमाम हसन कि शहादत के बाद आप इमाम हुसैन के साथ रहने लगे,फिर वो वक़्त भी आया जब आप क़र्बला इमाम हुसैन के हमराह आये , क़र्बला मे कई शहादतों के बाद आप भी शहादत पाने को बेकरार हुए और इमाम हुसैन से हाथ जोड़कर अर्ज़ किया आक़ा अब इस् ग़ुलाम को भी जंग कि इजाज़त दे, इमाम हुसैन ने ये कहते हुए मना फरमाया ए जॉन आप तो मेरे बाबा के साथ रहे, मेरे भाई के साथ रहे , मे आपको जंग कि इजाज़त केसे दे दु आप चले जाओ, ये सुनकर जॉन उदास हुए और फरमाया ए हुसैन इब्ने अली मे समझ गया चुंकि मे हबशी ग़ुलाम हूँ मेरा रंग काला है मेरे जिस्म से बदबू आती है आप नही चाहते मेरा खून आपके खून से मिले, इसलिए मुझें शहादत कि इजाज़त नही देते और रोने लगे बस इतना सुनना था इमाम हुसैन भी रोये और गले लगाकर जंग कि इजाज़त दी , हज़रत जॉन मैदान मे गये यज़ीदियों से जंग कि और शही्द हुए , इमाम हुसैन ने जॉन का सर अपने जानू पा रखा और दुआ कि ए अल्लाह तु जॉन के बदन को पाक़ीज़ा फरमा इसके खून को खुशबू से मुआत्तर कर दे , जॉन शहीद हुए , तवारीख मे है जब शहीदों को दफनाया गया तो जॉन के बदन से अजीब खुशबु आ रही थी!
किसी शायर ने क्या खूब कहा ,
जॉन को हैरती नज़रो से ना देखो युसूफ,
दिल के बाजार मे क़ीमत नही देखी जाती!

अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 49


क़बा पहुंचे

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सोमवार 8 रबीउल अव्वल सन् 14 नबवी यानी सन् 01 हिजरी मुताबिक़ 23 सितम्बर सन् 622 ई० को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़बा में दाखिल हुए।

हज़रत उर्व: बिन जुबैर रज़ि० का बयान है कि मदीना के मुसलमानों ने मक्का से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रवाना होने की खबर सुन ली थी, इसलिए लोग हर दिन सुबह ही सुबह हर्रा की ओर निकल जाते और आपकी राह तकते रहते। जब दोपहर को धूप तेज़ हो जाती तो वापस पलट जाते ।

एक दिन लम्बे इन्तिज़ार के बाद वापस पलट कर लोग अपने-अपने घरों को पहुंच चुके थे कि एक यहूदी अपने किसी टीले पर कुछ देखने के लिए चढ़ा । क्या देखता है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथी सफ़ेद कपड़े पहने हुए, जिनसे चांदनी छिटक रही थी, तशरीफ़ ला रहे हैं।

उसने बे-अख्तियार बड़ी ऊंची आवाज़ में कहा, अरब के लोगो ! यह रहा तुम्हारा भाग्य, जिसका तुम इन्तिज़ार कर रहे थे।

ऐसा सुनते ही मुसलमान हथियारों की ओर दौड़ पड़े’ (और हथियार सज-

1. उसदुल ग़ाबा 1/173, इब्ने हिशाम 1/491,

2. सहीह बुखारी, उर्वः बिन जुबैर रज़ि० की रिवायत 1/554 3. रहमतुल लिल आलमीन 1/102। उस दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्र बग़ैर किसी कमी-बेशी के ठीक त्रिपन साल हुई थी और जो लोग आपकी नुबूवत का आरंभ 9 रबीउल अव्वल सन् 41 हाथी वर्ष से मानते हैं, उनके कहने के मुताबिक़ बारह साल पांच महीना अठारह दिन या बाईस दिन हुए थे। 4. सहीह बुखारी 1/555

धज कर स्वागत के लिए उमंड पड़े ।) और हर्रा के पीछे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का स्वागत किया।

इब्ने कय्यिम कहते हैं कि इसके साथ ही बनी अम्र बिन औफ (क़बा के रहने वालों) में शोर उठा और ‘अल्लाहु अक्बर’ के नारे सुने गए।

मुसलमान आपके आने की खुशी में अल्लाहु अक्बर का नारा बुलन्द करते हुए स्वागत के लिए निकल पड़े। फिर आपका अभिनन्दन किया और आपके चारों ओर परवानों की तरह जमा हो गए। उस वक़्त आप शान्त थे और यह वह्य उतर रही थी—

‘अल्लाह आपका मौला है और जिबील और भले ईमान वाले भी और इसके बाद फ़रिश्ते आपके मददगार हैं।”

हज़रत उर्व: बिन जुबैर रजि० का बयान है कि लोगों से मिलने के बाद आप उनके साथ दाहिनी ओर मुड़े और बनी अम्र बिन औफ़ में तशरीफ़ लाए। यह सोमवार का दिन और रबीउल हव्वल का महीना था। अबूबक्र आनेवालों के स्वागत के लिए खड़े थे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम चुपचाप बैठे थे। अंसार के जो लोग आते, जिन्होंने अल्लाह के रसूल सल्ल० को देखा न था, वे सीधे अबूबक्र रज़ि० को सलाम करते, यहां तक कि रसूलुल्लाह सल्ल० पर धूप आ गई और अबूबक्र रज़ि० ने चादर तानकर आप पर साया किया। तब लोगों ने पहचाना कि यह रसूलुल्लाह सल्ल० हैं । 2

आपके स्वागत और दर्शन के लिए सारा मदीना उमंड पड़ा था। यह एक ऐतिहासिक दिन था, जिसकी नज़ीर मदीना की धरती ने कभी न देखी थी। आज यहूदियों ने भी हबकूक़ नबी की उस खुशखबरी का मतलब देख लिया था कि

‘अल्लाह दक्षिण से और वह जो कुद्दूस है, फ़ारान की चोटी से आया । “

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़बा में बदम (और कहा जाता है कि साद बिन खैसमा) के मकान में निवास किया। कुलसूम बिन पहला कथन ज़्यादा मज़बूत है।

इधर हज़रत अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहु अन्हु ने मक्का में तीन दिन रहकर और लोगों की जो अमानतें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास थीं, उन्हें अदा करके पैदल ही मदीने का रुख किया और क़बा में अल्लाह

1. जादुल मआद 2/54 2. सहीह बुखारी 1/555 3. किताब बाइबिल, सहीफा हबकूक 303

के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से आ मिले और कुलसूम बिन बदम के यहां निवास किया।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़बा में कुल चार दिन (सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार) या दस से ज़्यादा दिन या पहुंच और रवानगी के अलावा 24 दिन ठहरे। इसी दौरान मस्जिदे क़बा की बुनियाद रखी ‘और उसमें नमाज़ भी पढ़ी।

यह आपकी रखी गई। नुबूवत के बाद पहली मस्जिद है जिसकी बुनियाद तक्वा पर

पांचवें दिन (या बारहवें दिन या छब्बीसवें दिन शुक्रवार को आप अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ सवार हुए। हज़रत अबूबक्र रज़ि० आपके पीछे थे। आपने बनू नज्जार को जो आपके मामुओं का क़बीला था, सूचना भेज दी थी, चुनांवे वे तलवारें लटकाए हाज़िर थे। आपने (उनके साथ) मदीने का रुख किया।

बनू सालिम बिन औफ़ की आबादी में पहुंचे तो जुमा का वक़्त आ गया। आपने बीच घाटी में उस जगह जुमा पढ़ी, जहां अब मस्जिद है। कुल एक सौ आदमी थे। 3

मदीना में दाख़िला

जुमा के बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना तशरीफ़ ले गए और उसी दिन से इस शहर का नाम यसरिब के बजाए मदीनतुर्रसूल (रसूल का शहर) पड़ गया जिसे संक्षेप में मदीना कहा जाता है।

यह अतिप्रमुख ऐतिहासिक दिन था। गली-गली, कूचे-कूचे में अल्लाह के

1. जादुल मआद 2/54, इब्ने हिशाम 1/493,

2. यह इब्ने इस्हाक़ की रिवायत है। देखिए इब्ने हिशाम 1/494। सहीह बुखारी की एक रिवायत है कि आपने क़बा में 24 रात निवास किया (1/61) मगर एक और रिवायत में दस दिन से कुछ ज़्यादा (1/555) और एक तीसरी रिवायत में चौदह रात (1/560) बताया गया है। इब्ने कय्यिम ने इसी आखिरी रिवायत को अपनाया है, मगर खुद इब्ने कय्यिम ने स्पष्ट किया है कि आप क़बा में सोमवार को पहुंचे थे और वहां से जुमा को रवाना हुए थे। (जादुल मआद 2/54-55) और मालूम है कि सोमवार और शुक्रवार को अलग-अलग सप्ताहों का लिया जाए तो पहुंच और रवानगी का दिन छोड़कर कुल मुद्दत दस दिन की होती है और रवानगी का दिन शामिल करके 12 दिन होती है, इसलिए कुल मुद्दत 14 दिन कैसे हो सकेगी ? इब्ने हिशाम 1/494,

3. सहीह बुखारी 1/555-560, जादुल मआद 2/55,

इधर हज़रत असद बिन ज़रारह रज़ियल्लाहु अन्हु ने आकर ऊंटनी की नकेल

पदों का यह अनुवाद अल्लामा मंसूरपुरी ने किया है। अल्लामा इब्ने क़य्यिम ने लिखा है कि ये पद तबूक से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वापसी पर पढ़े गए थे और जो यह कहता है कि मदीना में आपके दाखिले के मौक़े पर पढ़े गए थे, उसे भ्रम हुआ। (जादुल मआद 3/10 लेकिन अल्लामा इब्ने क़य्यिम ने इसके भ्रम होने का कोई सन्तोषजनक तर्क नहीं दिया है। इसके विपरीत अल्लामा मंसूरपुरी ने इस बात को प्रमुखता दी है कि ये पद मदीने में दाखिले के वक़्त पढ़े गए। उन्होंने सुहुफ़े बनी इस्राईल के इशारों और व्याख्याओं से यह नतीजा निकाला है (देखिए रहमतुल्लिल आलमीन 1/106) संभव है ये पद दोनों अवसरों पर पढ़े गए हों।

गुणों का बखान हो रहा था और अंसार की बच्चियां खुशी-खुशी गीत गा रही थीं-

‘इन पहाड़ों से जो हैं दक्षिण तरफ़, चौदहवीं का चांद है हम पर चढ़ा।’ कैसा उम्दा दीन और तालीम है, शुक्र वाजिब है हमें अल्लाह का । है इताअत फ़र्ज़ तेरे हुक्म की, भेजने वाला है तेरा किबिया ।1

अंसार अगरचे बड़े धनी न थे, लेकिन हर एक की यही आरज़ू थी कि अल्लाह के रसूल सल्ल० उसके यहां निवास करें। चुनांचे आप अंसार के जिस मकान या मुहल्ले से गुज़रते, वहां के लोग आपकी ऊंटनी की नकेल पकड़ लेते और अर्ज करते कि तायदाद व सामान और हथियार और हिफ़ाज़त आपका इन्तिज़ार कर रहे हैं, तशरीफ़ लाइए। मगर आप फ़रमाते कि ऊंटनी की राह छोड दो। यह अल्लाह की ओर से नियुक्त है।

चुनांचे ऊंटनी लगातार चलती रही और वहां पहुंचकर बैठी जहां आज मस्जिदे नबवी है, लेकिन आप नीचे नहीं उतरे, यहां तक कि वह उठकर थोड़ी दूर गई, फिर मुड़कर देखने के बाद पलट आई और अपनी पहली जगह बैठ गई । इसके बाद आप नीचे तशरीफ़ लाए। यह आपके ननिहाल वालों यानी बनू नज्जार का मुहल्ला था और यह ऊंटनी के लिए सिर्फ़ ख़ुदा की तौफ़ीक़ थी, क्योंकि आप ननिहाल में निवास करके उनकी इज्जत बढ़ाना चाहते थे।

अब बनूं नज्जार के लोगों ने अपने-अपने घर ले जाने के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहना शुरू किया, लेकिन अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु ने लपक कर कजावा उठा लिया और अपने घर लेकर चले गए। इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़रमाने लगे- ‘आदमी अपने कजावे के साथ है।’

पकड़ ली। चुनांचे यह ऊंटनी उन्हीं के पास रही। सहीह बुखारी में हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबो सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, हमारे किस आदमी का घर ज़्यादा क़रीब है ?

हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रज़ि० ने कहा, मेरा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! यह रहा मेरा मकान और यह रहा मेरा दरवाज़ा।

आपने फ़रमाया, जाओ और हमारे लिए आराम की जगह तैयार कर दो।

उन्होंने अर्ज़ किया, आप दोनों तशरीफ़ ले चलें। अल्लाह बरकत दे 12 कुछ दिनों बाद आपकी बीवी उम्मुल मोमिनीन हज़रत सौदा रज़ि० और आपकी दोनों बेटियां हज़रत फ़ातिमा रज़ि० और उम्मे कुलसूम रज़ि० और हज़रत उसामा बिन ज़ैद और उम्मे ऐमन भी आ गईं। इन सबको हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबूबक्र रज़ि० अपने घर वालों के साथ, जिनमें हज़रत आइशा रज़ि० भी थीं, लेकर आए थे, अलबत्ता नबी सल्ल० की एक बेटी, हज़रत ज़ैनब, हज़रत अबुल आस के पास बाक़ी रह गईं। उन्होंने आने नहीं दिया और वह बद्र की लड़ाई के बाद तशरीफ़ ला सकीं। 3

हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि हम मदीना आए तो यह अल्लाह की ज़मीन में सबसे ज़्यादा बीमारियों वाली जगह थी। बतहान घाटी सड़े हुए पानी से बहती थी। उनका यह भी बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना तशरीफ़ लाए तो हज़रत अबूबक्र और हज़रत बिलाल रज़ि० को बुखार आ गया। मैंने उनकी खिदमत में हाज़िर होकर मालूम किया कि अब्बा जान ! आपका क्या हाल है ? और ऐ बिलाल ! आपका क्या हाल है ?

वह फ़रमाती हैं कि जब हज़रत अबूबक्र रज़ि० को बुखार आता तो यह पद पढ़ते-

‘हर व्यक्ति से उसके अहल (घर) के अन्दर बखैर कहा जाता है, हालांकि मौत उसके जूते के फीते से भी ज़्यादा क़रीब है।’

और हज़रत बिलाल रजि० की हालत कुछ संभलती, तो वह अपनी दर्दनाक आवाज़ ऊंची करते और कहते-

1. जादुल मआद 2/55, इब्ने हिशाम 1/494-496

2. सहीह बुखारी 1/556

3. जादुल मआद 2/55



‘काश, मैं जानता कि कोई रात घाटी (मक्का) में बिता सकूंगा और मेरे आस-पास इज़खर और जलील (घासें) होंगी और क्या किसी दिन मजना के सोते पर आ सकूंगा और मुझे शामा और तफ़ील (पहाड़) दिखलाई पड़ेंगे।’

हज़रत आइशा रज़ि० कहती हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर होकर उसकी ख़बर दी तो आपने फ़रमाया-

‘ऐ अल्लाह ! हमारे नज़दीक मदीना को वैसे ही प्रिय कर दे जैसे मक्का प्रिय था या उससे भी ज़्यादा और मदीना की फ़िज़ा सेहत बख्श बना दे और इसके साअ और मुद्द (अनाज के पैमानों) में बरकत दे और इसका बुखार यहां से हटाकर जोहफ़ा पहुंचा दे।”-

अल्लाह ने आपकी दुआ सुन ली, चुनांचे आपको सपने में दिखाया गया कि एक बिखरे बालों वाली काली औरत मदीना से निकली और जहीआ यानी जोहफ़ा में जा उतरी। इसका स्वप्न फल यह था कि मदीना की वबा (बीमारी) जोहफ़ा मुंतक़िल कर दी गई और इस तरह मुहाजिरों को मदीना की आब व हवा की सख्ती से राहत मिल कई ।

नोट : यहां तक आपकी पाक ज़िंदगी की एक क़िस्म और इस्लामी दावत का एक दौर (यानी मक्की दौर) पूरा हो जाता है। आगे संक्षेप में मदनी दौर पेश किया जा रहा है। व बिल्लाहित्तौफ़ीक़

1. सहीह बुखारी 1/588-589

The beautiful voice Ali Al Akbar (AS)

Having the beautiful voice Ali Al Akbar (AS) was known for, he got asked by his father Imam Hussain (AS) to recite the adhan on the day of Ashura. Imam Hussain, and the women in their tents, cried when Ali Akbar began calling out the adhan, knowing that it may be the last time they heard Ali Akbar gave adhan.

Ali Akbar stood in front of Hussain ibn Ali after Zuhr prayers and asked him for permission to go and fight the enemies.
Ali Akbar went into the tent of his mother. Every time he wanted to come out of the tent his mother, aunts, and sisters would pull his cloak and say, “O Akbar, How will we live without you?”

Hussain ibn Ali helped his son mount his horse. As Akbar began to ride towards the battlefield he heard footsteps behind him. He looked back and saw his father. He said: “Father, we have said goodbye. Why are you walking behind me?” Hussain ibn Ali replied, “My son, if you had a son like yourself then you would have surely understood!”

Ali killed many strong warriors. Umar ibn Sa’ad ordered his soldiers to kill him, saying, “When he dies, Hussain will not want to live!” While a few soldiers attacked Ali Akbar, Murrah ibn Munqad threw a spear through Ali Akbar’s chest.
As Ali fell from his horse, he said, “O Father, my last Salaams to you!”

When Imam Hussain heard Akbar’s Salam, he looked at Euphrates river where the body Abbas was laying and asked, “‘Abbas, now that your brother needs you the most, where have you gone?” He ran towards the battlefield. When he went to Ali, Ali placed his right hand on his wounded chest and his left arm over the shoulder of his father. Hussain asked, “Ali, why do you embrace me with only one arm?” Ali did not reply. Hussain tried to move Ali’s right hand, but Akbar resisted.

Then Hussain forcefully moved the hand, and saw the blade of the spear. He laid Ali on the ground and sat on his knees, placing both of his hands on the blade of the spear. Hussain looked at Najaf, where his father was buried, and said, “Father, I too have come to my Khaybar!” He pulled out the blade, with it came the heart of Ali. Ali sent his last Salam and died.

Inna lillahi wa inna ilayhi rajioon

10 Muharram Yaum e Shahdat Imam Hussain AlaihisSalam

*10 Muharram ul Haraam*

*1386th Yaume Shahadat*

*Shaheed e Aazam Sayyed ush Shohada Sayyed ush Shabaabi Ahlil Jannah Sultan e Karbala Aaftab e Karbala Fatah e Karbala Sayyed ul Mazloomeen Imaam e Aali’maqaam Imaam e Arsh Maqaam Imaam e Tishna Kaam Hazrat Sayyedna Sarkar Maula Imaam Hussain Alaihis Salam*

*Aapki Wiladat 5 Shaban ul Muazzam 4 Hijri Mutabik 8 January 626 Esvi Baroz Mangal Madina Pak Me Hui, Aapki Shahadat 10 Muharram 61 Hijri Mutabik 10 October 680 Esvi Baroz Juma Hui, Aap Huzoor Nabi e Kareem Hazrat Muhammad Mustufa ﷺ Ke Nawase Aur Maula e Kaynat Maula Imaam Ali Alaihis Salam wa Sayyeda e Kaynat Sayyeda Fatima Zahra Salamullah Alaiha Ke Shahzade Hain, Aapki Shan Me Huzoor e Nabi e Kareem ﷺ Ne Farmaya :- Hasan Aur Hussain Jannati Jawano Ke Sardar Hain, Hasan Aur Hussain Hi To Mere Gulshane Duniya Ke Phool Hain, Hussain Mujh Se Hain Me Hussain Se Hu, Jisne Hussain Se Muhabbat Ki Usne Mujh Se Muhabbat Ki Jisne Hussain Se Bughz Rakha Usne Mujh Se Bugz Rakha, Huzoor ﷺ Aapke Liye Apna Sajda Taweel Fama Diya Karte The, Huzoor ﷺ Aapke Liye Khutba Chor Kar Mimbar Se Neeche Tashrif Liyaya Karte The, Huzoor ﷺ Apko Apni Dosh Mubarak Par Bedha Kar Sawari Karate The, Aapki Shahadat Ki Khabar Hazrat Jibraeel Alaihis Salam Ne Aapke Nana Huzoor ﷺ Ko Aapke Bachpan Me Hi Dedi Thi, Aapne 25 Martaba Paidal Hajj Ada Kiya, Aap Aa’imma e Ahle Baith Ke Teesre Imaam Hain, Aapne 28 Rajab 60 Hijri Ko Madina Pak Ko Chora, 8 Zil Hajj Ko Aapne Makka Sharif Ko Chora Aur Karbala Ki Taraf Rawana Hue, 2 Muharram 61 Hijri Ko Aap Karbala Pouche, 7 Muharram Ko Yazeedi Fauj Ne Apke Qafile Ka Pani Band Kar Diya Aur 10 Muharram Ko Aapko Badi Hi Bedardi Ke Sath Shaheed Kar Diya Gaya, Aapke Sath Karbala Me 72 Shohada Shaheed Hue, Jinme Mashoor Aapke Bhai Hazrat Abbas Alamdar, Aapke Shahzade Hazrat Ali Akbar, Hazrat Ali Asghar, Aapke Bahanje Hazrat Aun, Hazrat Muhammad, Aapke Bhatije Hazrat Qasim Shaheed Hue, Maula Imaam Hussain Ki Shahadat Ke Bad Jab Yazeedi Fauj Ne Aapke Sar Mubarak Ko Neze Par Buland Kiya To Apne Neze Par Bhi Quran Sharif Ki Tilawat Farmayi, Aapki Shahadat Ke Din Suraj Girhan Me Aa Gya, Aapki Shahadat Ke Din Se 6 Mah Tak Aasman Ke Kinare Surkh Rahe Bad Me Rafta Rafta Wo Surkhi Jati Rahi, Albatta Aafaq Ki Surkhi Jisko Shafaq Kha Jata Hain Aaj Tak Mojood Hain Ye Surkhi Shahadat e Imaam Hussain Se Pehle Moujood Na Thi, Aapka Mazar Mubarak Karbala e Mu’alla, Iraq Me Marjai Khalaik Hain.*

*Imaam e Hussain Ki Shahadat Par Hazrat e Umme Salma Ka Girya*

Shahr Bin Hawshab Bayan Karte Hain Ke Me Sayyeda Umme Salma Salamullah Alaiha Ke Pas Tha Hamne Ek Aawaz Suni Me Aawaz Ki Simt Bhada Yahan Tak Ki Umme Salma Ke Pas Aa Poucha To Aapne Farmaya Hussain Alahis Salam Ko Shaheed Kar Diya Gaya Hai Mazeed Farmaya Kya Waqai Unhone Aesa Kar Diya Hai ? Allah Unki Qabro’n Ko Aag Se Bhar De Phir Wo Behosh Hokar Gir Gayi.

📚 *Reference* 📚
*1.* Tarikh Dimashq, Safa 238.
*2.* Tahzib Al Kamal, Safa 439.
*3.* Al Bidayah wan Nihaya, Safa 201.

*Rasool e Khuda ﷺ Ko Imaam e Hussain Ki Shahadat Ki Khabar*

Jab Huzoor Nabi e Kareem Sallallahu Alaihi wa Wala Aalehi wa Sallam Ko Sayyed ush Shohada Hazrat Imaam Hussain Alahis Salam Ki Shahadat Ki Khabar Di Gayi To Aap ﷺ Aabdida Ho Gaye Aur Imaam Hussain Alahis Salam Ko Apne Seene Ke Sath Chipka Liya.

📚 *Reference* 📚
*1.* Muajjam Al Kabeer, Safa No 108.
*2.* Tarikh Dimashq, Safa 192.

*Imaam e Hussain Ki Shahadat Ki Khabar Par Rasool Allah ﷺ Ka Hichki Ke Sath Rona*

Ummul Momineen Hazrat Umme Salma Salamullah Alaiha Farmati Hai Ke Ek Din Rasool Allah ﷺ Mere Ghar Me Tashrif Farma The Aapne Farmaya Abhi Mere Pas Koi Na Aaye Isliye Mene Nazar Rakhi Lekin Hazrat Imaam Hussain Alahis Salam Hujra e Mubarak Me Dakhil Ho Gaye Phir Mene Rasool Allah ﷺ Ki Hichki Ke Sath Rone Ki Aawaz Suni Mene Hujre Me Jhanka To Dekha Ke Hussain Aapki God Mubarak Me Hain Aur Rasool Allah ﷺ Unki Peshani Ponch Rahe Hain Aur Aapki Aankho’n Se Aansu Rawa Hain Mene Arz Kiya Allah Ki Qasam! Me Nahi Janti Ye Kab Dakhil Hue, Rasool Allah ﷺ Ne Farmaya Jibraeel Hamare Sath Ghar Me Maujood The Jibraeel Ne Kaha Beshak Aapki Ummat Ise Aesi Zar Zameen Par Shaheed Karegi Jise Karbala Kaha Jata Hai, Phir Jibraeel Us Zar Zameen Ki Mitti Bhi Laye Aur Use Rasool Allah ﷺ Ko Dikhaya Jab Hazrat Imaam Hussain Ko Shahadat Ke Waqt Ghere Me Liya Gaya To Aapne Poucha Ye Kaunsi Jagah Hai ? Logo Ne Kaha Karbala To Aapne Farmaya Allah Ta’ala Aur Uske Rasool ﷺ Ne Sach Farmaya Ye Karb o Bala Dukh Aur Aazmaish Ki Sar Zameen Hai.

📚 *Reference* 📚
*1.* Muajjam Al Kabeer, Hadees No 2719.
*2.* Fazail e Sahaba, Hadees No 1391.
*3.* Kitab Al Shariah, Hadees No 1662.

*Shahadat e Imaam e Hussain Aur Hazrat Ibne Abbas Ka Khuwab*

Hazrat Ibne Abbas Razi Allahu Tala Anhu Ne Farmaya Mene Dupher Ke Waqt Rasool Allah ﷺ Ko Khuwab Me Dekha Ke Aap ﷺ Ke Baal Mubarak Bikhre Hue Aur Jisme Athar Ghubar Aalud Hain Aur Aap ﷺ Ke Hath Me Khoon Ki Shishi Hai Mene Arz Kiya Ya Rasool Allah ﷺ Mere Maa Baap Aap Par Qurban Hon Ye Kya Cheez Hai ? To Rasool Allah ﷺ Ne Farmaya :- Mere Bete Hussain Aur Unke Saathiyon Ka Khoon Hain Me Aaj Subah Se Isko Jama Kar Raha Hun, Hazrat Ibne Abbas Kehte Hain Ke Mene Wo Waqt Yaad Kar Liya Bad Me Mujhe Maloom Hua Ke Theek Usi Waqt Hazrat Sayyedna Imaam Hussain Alahis Salam Ko Shaheed Kiya Gaya Tha.

📚 *Reference* 📚
*1.* Al Musnad, Imaam Ahmad Ibn Hanbal, Hadees No 2165.
*2.* Fazail e Sahaba, Imaam Ahmad Ibn Hanbal, Hadees No 1381.
*3.* Mustadrak Ala Al Sahihain, Hadees No 8201.
*4.* Tabaqat Ibn Saad, Hadees No 415.
*5.* Mishtak Al Masabih, Hadees No 6172.
*6.* Siyar Al Salaf Al Saliheen, Imaam Asbahani, Hadees No 539.
*7.* Al Bidayah wan Nihaya, Jild 11, Safa 573.
*8.* Majma Al Zawaid, Hadees No 15135.
*9.* At Tazkirah, Imaam Qurtubi, Safa 1120.
*10.* Al Muntakhab Min Musnad Abd Bin Humayd, Hadees No 709.

*Hazrat Imaam Hussain Ke Shahzade Hazrat Imaam Zainul Aabideen Aur Gham e Hussain*

Logo Ne Bayan Kiya Hain Ke Hazrat Ali Bin Hussain Alahis Salam Ya’ani (Imaam Zainul Aabideen) Aksar Rote Rehte The Jab Log Unse Iski Wajah Dariyafat Karte The To Wo Kehte The :- Hazrat Yaqoob Alahis Salam Hazrat Yousuf Alahis Salam Ke Gham Me Rote Rote Nabina Ho Gaye The, Mere Khandan Ke Beesiyo Aadmi Ek Din Me Zibah Kiye Jate Hain Kiya Tum Log Ye Samjte Ho Mere Qalb Par Inka Koi Gham Nahi.

📚 *Reference* 📚
Ibne Kaseer, Al Bidaya wan Nihaya, Jild 9, Safa 189.