अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 48

मदीना के रास्ते में

जब खोज की आग बुझ गई, दौड़-भाग रुक गई और तीन दिन की लगातार और बेनतीजा दौड़-धूप के बाद कुरैश की उमंग और उत्साह ठंडा पड़ गया तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और हज़रत अबूबक्र रज़ि० ने मदीना के लिए निकलने का इरादा कर लिया। अब्दुल्लाह बिन उरैक़त लैसी से, जो वीरानों और जंगलों के गुज़रने वाले रास्तों का माहिर था, पहले ही मुआवज़े पर मदीना पहुंचाने का मामला तै हो चुका था। यह आदमी अभी कुरैश ही के धर्म पर था, लेकिन इत्मीनान के क़ाबिल था, इसलिए सवारियां उसके हवाले कर दी गई थीं और तै हुआ था कि तीन रातें गुज़रने के बाद वह दोनों सवारियां लेकर सौर ग़ार को पहुंच जाएगा।

चुनांचे जब पीर का दिन (सोमवार) आया, जो रबीउल अव्वल सन 01 हि० की चांद रात थी (मुताबिक 16 दिसम्बर सन् 622 ई०) तो अब्दुल्लाह बिन उरैकृत सवारियां लेकर आ गया और उसी मौके पर अबूबक्र रज़ि० ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में सबसे बेहतर ऊंटनी पेश करते हुए गुज़ारिश की कि आप मेरी इन दो सवारियों में से एक क़ुबूल फ़रमा लें।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, क़ीमत के साथ ।

इधर अस्मा बिन्त अबूबक्र रज़ि० भी रास्ते का सामान लेकर आईं, मगर उसमें लटकाने वाला बंधन लगाना भूल गईं। जब रवानगी का वक़्त आया और हज़रत अस्मा ने तोशा लटकाना चाहा, तो देखा उसमें बन्धन ही नहीं है ।

उन्होंने अपना पटका खोला और दो हिस्सों में फाड़ कर एक में तोशा लटका दिया और दूसरा कमर में बांध लिया। इसी वजह से उनकी उपाधि ‘ज्ञातुन्नताक़तैन’ (दो पटकों वाली) पड़ गया। 1

आदमी हूं, लेकिन अगर आप क़त्ल कर दिए गए, तो पूरी उम्मत ही नष्ट हो जाएगी और इसी मौक़े पर उनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया था कि ग़म न करो, यक़ीनन अल्लाह हमारे साथ है। देखिए मुख्तसरुस्सीरत लेख : शेख अब्दुल्लाह पृ० 168 “

1. सहीह बुखारी 1/553-555, इब्ने हिशाम 1/486

कूच इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया। आमिर बिन फुहैरा रज़ियल्लाहु अन्हु भी साथ थे। रास्ता बताने वाले अब्दुल्लाह बिन उरैक़त ने तट का रास्ता अपनाया।

ग़ार से रवाना होकर उसने सबसे पहले यमन के रुख पर चलाया और दक्षिण की ओर खूब दूर तक ले गया फिर पश्चिम की ओर मुड़ा और समुद्र तट का रुख किया, फिर एक ऐसे रास्ते पर पहुंचकर, जिसे आम लोग जानते न थे, उत्तर की ओर मुड़ गया। यह रास्ता लाल सागर के तट के क़रीब ही था और उस पर बहुत ही कम कोई चलता था ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस रास्ते में जिन स्थानों से गुज़रे, इब्ने इस्हाक़ ने उनका उल्लेख किया है।

वह कहते हैं कि जब राहनुमा (रास्ता बताने वाला) आप दोनों को साथ लेकर निकला, तो मक्का के नीचे से ले चला, फिर तट के साथ-साथ चलता हुआ अस्फ़ान के नीचे से रास्ता काटा, फिर नीचे इमिज से गुज़रता हुआ आगे बढ़ा और क़दीद पार करने के बाद फिर रास्ता काटा और वहीं से आगे बढ़ता हुआ खरार से गुज़रा, फिर सनीयतुल मर्रा से, फिर लक़्फ़ से, फिर लक़्फ़ के वीराने से गुज़रा, फिर मजाह के वीरानों में पहुंचा और वहां से होकर मजहा के मोड़ से गुज़रा, फिर ज़िलग़ज़वैन के मोड़ से नीचे को चला, फिर ज़ीकश्र की घाटी में दाखिल हुआ फिर जदाजद का रुख किया, फिर अजरद पहुंचा और उसके बाद ताहन के वीरानों से होता हुआ ज़ूसलम घाटी से गुज़रा। वहां से अबाबीद और उसके बाद फ़ाजा का रुख किया, फिर अर्ज में उतरा, फिर रक़्बा के दाहिने हाथ सनीयतुल आहर में चला, यहां तक कि रोम की घाटी में उतरा और उसके बाद कुबा पहुंच गया।

आइए, अब रास्ते की कुछ घटनाएं भी सुनते चलें ।

1. सहीह बुखारी में हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ि० से रिवायत किया गया है कि उन्होंने फ़रमाया-

‘हम लोग (ग़ार से निकलकर) रातभर और दिन में दोपहर तक चलते रहे। जब ठीक दोपहर का वक़्त हो गया, रास्ता खाली हो गया और कोई गुज़रने वाला न रहा, तो हमें एक लंबी चट्टान दिखाई पड़ी, जिसके साए पर घूप नहीं आई थी। हम वहीं उतरं पड़े। मैंने अपने हाथ से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सोने के लिए एक जगह बराबर की और उस पर एक पोस्तीन बिछाकर गुज़ारिश की कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! आप सो जाएं और मैं आपके

इब्ने हिशाम 1/491-492

चारों ओर की देखभाल किए लेता हूं।

आप सो गए और मैं आपके आस-पास की देखभाल के लिए निकला। अचानक क्या देखता हूं कि एक चरवाहा अपनी बकरियां लिए चट्टान की ओर चला आ रहा है। वह भी उस चट्टान से वही चाहता था, जो हमने चाहा था ।

मैंने उससे कहा, ‘ऐ जवान ! तुम किसके आदमी हो ?

उसने मक्का या मदीना के किसी आदमी का उल्लेख किया। 1

मैने कहा, तुम्हारी बकरियों में कुछ दूध है?

उसने कहा, हां।

मैंने कहा, दूह सकता हूं।

उसने कहा, हां।

फिर उसने एक बकरी पकड़ ली।

मैंने कहा, ज़रा थन को मिट्टी, बाल और तिनके वग़ैरह से साफ़ कर लो।

उसने एक बर्तन में थोड़ा-सा दूध दूहा ।

मेरे पास एक चमड़े का लोटा था, जो मैंने अल्लाह के रसूल सल्ल० के पीने और वुजू करने के लिए रख लिया था।


फिर मैने उसे डांटा, तो उसने उठना चाहा, लेकिन वह अपने पांव मुश्किल से निकाल सका।

बहरहाल जब वह सीधा खड़ा हुआ तो उसके पांव के निशान से आसमान की ओर धुंएं जैसी गर्द उड़ रही थी। मैंने पांसे के तीर से क़िस्मत मालूम की और फिर वही तीर निकला जो मुझे नापसन्द था ।

इसके बाद मैंने अमान के साथ उन्हें पुकारा तो वे लोग ठहर गए और मैं अपने घोड़े पर सवार होकर उनके पास पहुंचा। जिस वक़्त मैं उनसे रोक दिया गया था, उसी वक़्त मेरे दिल में यह बात बैठ गई थी कि रसूलुल्लाह सल्ल० का मामला ग़ालिब आकर रहेगा।

चुनांचे मैंने आपसे कहा कि आपकी क़ौम ने आपके बदले दियत (इनाम) का एलान कर रखा है और साथ ही मैंने लोगों के निश्चयों से आपको आगाह किया और तोशा और साज़ं व सामान की भी पेशकश की, मगर उन्होंने मेरा कोई सामान नहीं लिया और न मुझसे कोई सवाल किया, सिर्फ इतना कहा कि हमारे बारे में राज़दारी बरतना ।

मैंने आपसे गुज़ारिश की कि आप मुझे अम्न का परवाना लिख दें।

आपने आमिर बिन फ़ुहैरा को हुक्म दिया और उन्होंने चमड़े के एक टुकड़े पर लिखकर मेरे हवाले कर दिया, फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम आगे बढ़ गए । ‘

इस घटना के बारे में ख़ुद अबूबक्र रजि० की भी एक रिवायत है। उनका बयान है कि हम लोग रवाना हुए, तो क़ौम हमारी ही खोज में थी, पर सुराक़ा बिन मालिक बिन जासम के सिवा, जो अपने घोड़े पर आया था, और कोई हमें न पा सका ।

मैंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! यह पीछा करने वाला हमें आ लेना चाहता है ?

आपने फ़रमाया, ‘ग़म न करो, अल्लाह हमारे साथ है। 2

बहरहाल सुराक़ा वापस हुआ तो देखा कि लोग खोजने में लगे हुए हैं। कहने लगा-

1. सहीह बुखारी 1/554, बनीं मुदलिज का वतन राबिन के क़रीब था और सुराक़ा ने उस वक़्त आपका पीछा किया था, जब आप क़दीद से ऊपर जा रहे थे। (ज़ादुल मआद 2/53), इसलिए ग़ालिब गुमान यह है कि ग़ार से रवाना होने के बाद तीसरे दिन पीछा करने की यह घटना घटी थी। 2. है

सहीह बुखारी 1/516

मैं नबी सल्ल० के पास आया, लेकिन गवारा न हुआ कि आपको जगाऊं ।

चुनांचे जब आप बेदार हुए तो मैं आपके पास आया और दूध पर पानी उंडेला, यहां तक कि उसका निचला हिस्सा ठंडा हो गया।

इसके बाद मैंने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! पी लीजिए।

आपने पिया, यहां तक कि मैं खुश हो गया।

फिर आपने फरमाया, क्या अभी कूच का वक़्त नहीं हुआ ?

मैंने कहा, क्यों नहीं ?

इसके बाद हम लोग चल पड़े 12

अर-रहीकुल मख़्तूम

  1. इस सफ़र में अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु का तरीक़ा यह था कि वह नबी सल्ल० के पीछे रहा करते थे, यानी सवारी पर हुज़ूर सल्ल० के पीछे बैठा करते थे। चूंकि उन पर बुढ़ापे की निशानियां पाई जा रही थीं, इसलिए लोगों की तवज्जोह उन्हीं की ओर जातीं थी। नबी सल्ल० पर अभी जवानी के चिह्न नुमायां
  2. एक रिवायत में है कि उसने कुरैश के एक आदमी को बतलाया।
  3. सहीह बुखारी 1/510

थे, इसलिए आपकी ओर तवज्जोह कम जाती थी। इसका नतीजा यह था कि किसी आदमी से वास्ता पड़ता तो वह अबूबक्र रज़ि० से पूछता कि यह आपके आगे कौन-सा आदमी है ?

(हज़रत अबूबक्र उसका बड़ा खूबसूरत जवाब देते) फ़रमाते, ‘यह आदमी मुझे रास्ता बताता है।’ इससे समझने वाला समझता कि वह यही रास्ता मुराद ले रहे हैं, हालांकि वह ‘खैर’ (भलाई) का रास्ता मुराद लेते थे। 1

3. इसी सफ़र में दूसरे या तीसरे दिन आपका गुज़र उम्मे माबद खुज़ाईया के खेमे से हुआ। यह खेमा क़दीद के बाहरी हिस्से में मुशल्लल के भीतर स्थित था। इसका फ़ासला मक्का मुर्करमा से एक सौ तीस (130) किलोमीटर है। उम्मे माबद एक नुमायां और तवाना औरत थीं। हाथ में घुटने डाले खेमे के आंगन में बैठी रहतीं और आने-जाने वाले को खिलाती-पिलाती रहतीं। आपने उनसे पूछा कि पास में कुछ है ?

बोली, अल्लाह की क़सम, हमारे पास कुछ होता, तो आप लोगों की मेज़बानी में तंगी न होती, बकरियां भी दूरी पर हैं। यह अकाल का ज़माना था।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने देखा कि खेमे के एक कोने में एक बकरी है, फ़रमाया, उम्मे माबद ! यह कैसी बकरी है ?

बोलीं, इसे कमज़ोरी ने रेवड़ से पीछे छोड़ दिया है।

आपने मालूम किया, इसमें कुछ दूध है ?

बोली, वह इससे कहीं ज़्यादा कमज़ोर है।

आपने फ़रमाया, इजाज़त है कि इसे दूह लूं ?

बोली, हां, मेरे मां-बाप तुम पर कुर्बान ! अगर तुम्हें दूध इसमें दिखाई दे रहा है, तो ज़रूर दूह लो ।

इस बातचीत के बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस बकरी के थन पर हाथ फेरा, अल्लाह का नाम लिया और दुआ की। बकरी ने पांव फैला दिए, थन में भरपूर दूध उतर आया। आपने उम्मे माबद का एक बड़ा बरतन लिया जो एक ग्रुप का पेट भर सकता था और उसमें इतना दूहा कि झाग ऊपर आ गया। फिर उम्मे माबद को पिलाया, उन्होंने इतना पिया कि पेट भर गया, तो अपने साथियों को पिलाया। उनके भी पेट भर गए, तो खुद पिया। फिर उसी बरतन में इतना दूध दूहा कि बरतन भर गया और उसे उम्मे माबद के पास

1. सहीह बुखारी 1/556

छोड़कर आगे चल पड़े।

थोड़ी ही देर हुई थी कि उनके पति अबू माबद अपनी कमजोर बकरियों को, जो दुबलेपन की वजह से मरियल चाल चल रही थीं, हांकते हुए आ पहुंचे। दूध देखा तो हैरत में पड़ गए, पूछा, यह तुम्हारे पास कहां से आया, जबकि बकरियां बहुत दूर चली गई थीं और घर में दूध देनेवाली बकरी न थी ?

बोली, अल्लाह की क़सम, कोई बात नहीं, अलावा इसके कि हमारे पास से एक बरकत वाला आदमी गुज़रा, जिसकी ऐसी और ऐसी बात थी और यह और यह हाल था।

अबू माबद ने कहा, यह तो कुरैश का वही आदमी मालूम होता है, जिसे क़ुरैश खोज रहे हैं। अच्छा, ज़रा उसकी हालत तो बयान करो।

इस पर उम्मे माबद ने बड़े ही सुन्दर ढंग से आपकी खूबियों और आपके कमालों का ऐसा नक़्शा खींचा कि गोया सुनने वाला आपको अपने सामने देख रहा है। (किताब के अन्त में ये खूबियां लिखी जाएंगी)

ये गुण सुनकर अबू माबद बोला, ख़ुदा की क़सम ! यह तो वही कुरैश का आदमी है, जिसके बारे में लोगों ने क़िस्म-किस्म की बातें गढ़ रखी हैं। मेरा इरादा है कि मैं आपका साथ दूं और कोई रास्ता मिला तो मैं ऐसा ज़रूर करूंगा।

उधर मक्के में एक आवाज़ उभरी जिसे लोग सुन रहे थे, पर उसका बोलने वाला दिखाई नहीं पड़ रहा था। आवाज़ यह थी-

‘अर्श का रब अल्लाह उन दो साथियों को बेहतरीन बदला दे जो उम्मे माबद के खेमे में उतरे ।

वे दोनों खैर (भलाई) के साथ उतरे और ख़ैर के साथ रवाना हुए और जो मुहम्मद सल्ल० का साथी हुआ, वह कामियाब हुआ।

हाय कुसई ! अल्लाह ने उसके साथ कितने अपूर्व कारनामे और सरदारियां तुमसे समेट लीं।

बनू काब को उनकी महिलाओं की निवास स्थली और ईमान वालों की देखभाल का पड़ाव मुबारक हो।

तुम अपनी महिला से उसकी बकरी और बरतन के बारे में पूछो। तुम अगर बकरी से पूछोगे, तो वह भी गवाही देगी। (अरबी पदों का अनुवाद)

हज़रत अस्मा रजि० कहती हैं, हमें मालूम न था कि अल्लाह के रसूल सल्ल० ने किधर का रुख फ़रमाया है कि एक जिन्न मक्का के निचले भाग से ये पद पढ़ता हुआ आया। लोग उसके पीछे-पीछे चल रहे थे, उसकी आवाज़ सुन

मालूम रहे थे, लेकिन खुद उसे नहीं देख रहे थे, यहां तक कि वह मक्का के ऊपरी भाग से निकल गया। वह कहती हैं कि जब हमने उसकी बात सुनी, तो हमें हुआ कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किधर का रुख फ़रमाया है। यानी आपका रुख मदीने की ओर है।

4. रास्ते में सुराका बिन मालिक ने पीछा किया और इस घटना को सुराक़ा ने बयान किया है। वह कहते हैं- खुद

मैं अपनी क़ौम बनी मुदलिज की एक मज्लिस में बैठा था कि इतने में एक आदमी आकर हमारे पास खड़ा हुआ और हम बैठे थे। उसने कहा- ऐ सुराक़ा ! मैंने अभी तट पर कुछ लोगों को देखा है। मेरा ख्याल है कि यह मुहम्मद सल्ल० और उनके साथी हैं।

सुराक़ा कहते हैं कि मैं समझ गया कि वही लोग हैं, लेकिन मैंने उस आदमी से कहा कि ये वह लोग नहीं है, बल्कि तुमने फ़्लां और फ़्लां को देखा है, जो हमारी आंखों के सामने से गुजरकर गए हैं। फिर मैं मज्लिस में कुछ देर तक ठहरा रहा। इसके बाद उठकर अन्दर गया और अपनी लौंडी को हुक्म दिया कि वह मेरा घोड़ा निकाले और टीले के पीछे रोक कर मेरा इन्तिज़ार करे ।

इधर मैंने अपना नेजा लिया और घर के पिछवाड़े से बाहर निकला। लाठी का एक सिरा ज़मीन पर घसीट रहा था और दूसरा ऊपरी सिरा नीचे कर रखा था। इस तरह मैं अपने घोड़े के पास पहुंचा और उस पर सवार हो गया।

मैंने देखा कि वह पहले की तरह मुझे लेकर दौड़ रहा है, यहां तक कि उनके क़रीब आ गया। इसके बाद घोड़ा मुझ समेत फिसला और मैं उससे गिर गया ।

मैंने उठ कर तिरकश की ओर हाथ बढ़ाया और पांसे के तीर निकाल कर यह जानना चाहा कि मैं इन्हें नुक्सान पहुंचा सकूंगा या नहीं, तो वह तीर निकला जो मुझे नापसन्द था। लेकिन मैंने तीर की नाफरमानी की और घोड़े पर सवार हो गया। वह मुझे लेकर दौड़ने लगा, यहां तक कि जब मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़िरात (कुरआन-पाठ) सुन रहा था और आप तवज्जोह नहीं दे रहे थे, जबकि अबूबक्र रजि० बार-बार मुड़ कर देख रहे थे, तो मेरे घोड़े के अगले दोनों पांव ज़मीन में धंस गए, यहां तक कि घुटनों तक जा पहुंचे और मैं उससे गिर गया।

1. जादुल मआद 2/53-54, मुस्तदरक हाकिम 3/9, 10, हाकिम ने इसे सही कहा है और जस्वी ने इनका साथ दिया है। इसे बग़वी ने भी शरहुस्सनुन्नः 13/264 में रिवायत किया है।

‘इधर की खोज-खबर ले चुका हूं। यहां तुम्हारा जो काम था, वह किया जा चुका है। (इस तरह लोगों को वापस ले गया) यानी दिन के शुरू में तो चढ़ा आ रहा था और आखिर में पासवान (देखभाल करने और निगरानी करने वाला) बन गया।

5. रास्ते में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बुरैदा बिन हुसैब अस्लमी मिले। इनके साथ अस्सी घराने थे। सभी मुसलमान हो गए और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इशा की नमाज़ पढ़ी, ते सबने आपके पीछे नमाज़ पढ़ी। बुरैदा अपनी ही क़ौम की धरती पर ठहरे रहे और उहुद के बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में तशरीफ़ लाए।

अब्दुल्लाह बिन बुरैदा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़ाल लेते थे, अपशकुन न्हीं लेते थे ।

बुरैदा अपने खानदान बनू सम के सत्तर सवारों के साथ सवार होकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मिले तो आपने मालूम किया कि तुम किनसे हो ? उन्होंने कहा, क़बीला अस्लम से। आपने अबूबक्र से कहा, हम सालिम रहे। फिर पूछा किनकी औलाद से हो ? कहा, बनू सहम से। आपने फ़रमाया, तुम्हारा सम (नसीब) निकल आया 12

6. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अन्दर जोहफ़ा और हर्शी के दर्मियान क़हदारात में अबू औस तमीम बिन हज्र या अबू तमीम औस बिन हज्र अस्लमी के पास से गुज़रे। आपका कोई ऊंट पीछे रह गया था। चुनांचे आप और अबूबक्र एक ही ऊंट पर सवार थे। औस ने अपने एक नर ऊंट पर दोनों को सवार किया और उनके साथ मस्ऊद नामी अपने एक ग़ुलाम को भेज दिया और कहा कि जो सुरक्षित रास्ते तुमको मालूम हैं, उनसे इनको लेकर जाओ और इनका साथ न छोड़ना। चुनांचे वह साथ लेकर रास्ता चला और मदीना पहुंचा दिया। फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्ऊद को उसके मालिक के पास भेज दिया और उसे हुक्म दिया कि औस से कहे कि वह अपने ऊंटों की गरदन पर घोड़े की क़ैद का निशान लगाए यानी दो हलक़े या दायरे बनाए और उनके बीच लकीर खींच दे। यही उनकी निशानी होगी। जब उहुद के दिन मुश्किीन न आए तो औस ने अपने उस गुलाम मस्ऊद बिन हुनैदा को उनकी ख़बर देने के लिए अर्ज से पैदल अल्लाह के रसूल

1. जादुल मआद 2/53 2. असदुल ग़ाबा 1/209

सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में रवाना किया। यह बात इब्ने माकोला ने तबरी के हवाले से ज़िक्र की है। औस ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना आ जाने के बाद इस्लाम कुबूल कर लिया, मगर अर्ज ही में ठहरे रहे।

7. रास्ते में बले एम के अन्दर नबी सल्ल० को हज़रत ज़ुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु मिले । यह मुसलमानों के एक तिजारती गिरोह के साथ शामदेश से वापस आ रहे थे। हज़रत जुबैर रज़ि० ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और हज़रत अबूबक्र रज़ि० को सफ़ेद कपड़े दिए