
घर से ग़ार (गुफा) तक
अल्लाह के रसूल 27 सफ़र 14 नबवी मुताबिक़ 12-13 सितंबर 622 ई०२ की बीच की रात अपने मकान से निकल कर जान व माल के सिलसिले में अपने सबसे विश्वसनीय साथी अबूबक्र रज़ि० के घर तशरीफ़ लाए थे और वहां से पिछवाड़े की एक खिड़की से निकल कर दोनों ने बाहर की राह ली थी, ताकि मक्का से जल्द से जल्द यानी भोर से पहले-पहले बाहर निकल जाएं।
चूंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मालमू था कि कुरैश पूरी जान लगाकर आपकी खोज में जुट जाएंगे और जिस रास्ते पर पहले हल्ले में नज़र उठेगी, वह मदीने का कारवानी रास्ता होगा जो उत्तर के रुख पर जाता है, इसलिए आपने वह रास्ता अपनाया, जो इसके बिल्कुल उलट था, यानी यमन जाने वाला रास्ता जो मक्का के दक्षिण में स्थित है।
आपने उस रास्ते पर कोई पांच मील का रास्ता तै किया और उस पहाड़ के दामन में पहुंचे, जो सौर के नाम से विख्यात है
यह बहुत ऊंचा, पेचदार और मुश्किल चढ़ाई वाला पहाड़ है। यहां पत्थर भी बहुत पाए जाते हैं, जिनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दोनों पांव घायल हो गए और कहा जाता है कि आप क़दम के निशान छिपाने केलिए पंजों के बल चल रहे थे, इसलिए आपके पांव घायल हो गए।
बहरहाल वजह जो भी रही हो, हज़रत अबूबक्र रजि० ने पहाड़ के दामन में पहुंचकर आपको उठा लिया और दौड़ते हुए पहाड़ की चोटी पर एक गार के पास जा पहुंचे जो तारीख में सौर के ग़ार के नाम से मशहूर है।
ग़ार में
ग़ार के पास पहुंचकर अबूबक्र रजि० ने कहा, ख़ुदा के लिए अभी आप इसमें दाखिल न हों। पहले मैं दाखिल होकर देख लेता हूं। अगर उसमें कोई चीज़ हुई तो आपके बजाए मुझे उससे वास्ता पड़ेगा।
चुनांचे हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु अन्दर गए और ग़ार को साफ़ किया। एक ओर कुछ सूराख थे, जिन्हें अपना तहबन्द फाड़ कर बन्द किया, लेकिन वे सूराख बाक़ी बचे रहे। हज़रत अबूबक्र रजि० ने इन दोनों में अपने पांव डाल दिए, फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया कि अन्दर तशरीफ़ लाएं।
आप अन्दर तशरीफ़ ले गए और हज़रत अबूबक्र रजि० की गोद में सर रखकर सो गए।
इधर अबूबक्र रजि० के पांव में किसी चीज़ ने डस लिया, मगर इस डर से हिले भी नहीं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जाग न जाएं, लेकिन उनके आंसू अल्लाह के रसूल सल्ल० के चेहरे पर टपक गए (और आपकी आंख खुल गई) ।
आपने फ़रमाया, अबूबक्र ! तुम्हें क्या हुआ ?
अर्ज़ किया, मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान ! मुझे किसी चीज़ ने डस लिया है। अल्लाह के रसूल सल्ल० ने उस पर होंठों का लुआब लगा दिया और तक्लीफ़ जाती रही 12
यहां दोनों हज़रात ने तीन रातें यानी शुक्रवार, शनिवार और रविवार की रातें ग़ार में छिप कर गुज़ारी 13
1. मुख्तसरुस्सीर, लेख शेख अब्दुल्लाह, पृ० 167
2. यह बात रज़ीन ने हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ि० से रिवायत की है। इस रिवायत में यह भी है कि फिर यह ज़हर फूट पड़ा (यानी मौत के वक़्त उसका असर पलट आया) और यही मौत की वजह बना। देखिए मिश्कात 2/556, बाब मनाक़िब अबी बक्र 3. फत्हुल बारी 7/336
थे । इस बीच अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे अब्दुल्लाह भी यहीं रात गुज़ारते
हज़रत आइशा रज़ि० का बयान है कि वह गहरी सूझ-बूझ के मालिक, बात समझने वाले नवजवान थे। सुबह के अंधेरे में इन दोनों हज़रात के पास से चले जाते और मक्का में कुरैश के साथ यों सुबह करते मानो उन्होंने यहीं रात गुज़ारी है। फिर आप दोनों के खिलाफ षड्यंत्र की जो कोई बात सुनते, उसे अच्छी तरह याद कर लेते और अंधेरा गहरा हो जाता तो उसकी खबर लेकर ग़ार में पहुंच जाते।
उधर हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के दास आमिर बिन फ़ुहैरा बकरियां चराते रहते थे और जब रात का एक हिस्सा गुज़र जाता तो बकरियां लेकर उनके पास पहुंच जाते। इस तरह दोनों रात को पेट भरकर दूध पी लेते, फिर सुबह तड़के ही आमिर बिन फुहैरा बकरियां हांक कर चल देते। तीनों रात उन्होंने यही किया।
(साथ ही यह भी कि) आमिर बिन फुहैरा, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अबूबक्र को मक्का जाने के बाद उन्हीं के क़दमों के निशान पर बकरियां हांकते थे, ताकि निशान मिट जाएं। 2
कुरैश की दौड़-भाग
उधर कुरैश का यह हाल था कि जब क़त्ल की योजना वाली रात गुज़र गई और सुबह को यक़ीनी तौर पर मालूम हो गया कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके हाथ से निकल चुके हैं, तो उन पर मानो जुनून तारी हो गया और वे पागल जैसे हो गए।
उन्होंने अपना गुस्सा सबसे पहले हज़रत अली रज़ि० पर उतारा। आपको घसीट कर खाना काबा तक ले गये और एक घड़ी क़ैद में रखा कि मुम्किन है इन दोनों की ख़बर लग जाए। 3
लेकिन जब हज़रत अली रज़ि० से कुछ न पता चला तो अबूबक्र रज़ि० के घर आए और दरवाज़ा खटखटाया। हज़रत असमा बिन्त अबूबक्र निकलीं । उनसे पूछा, तुम्हारे बाप कहां हैं?
उन्होंने कहा, खुदा की क़सम, मुझे मालूम नहीं कि मेरे बाप कहां हैं?
1. सहीह बुखारी, 1/553-554 2. इब्ने हिशाम 1/486 3. तारीख तबरी 2/374
इस पर कमबख्त खबीस अबू जहल ने हाथ उठा कर इस जोर का थप्पड़ उनके गाल पर मारा कि उनके कान की बाली गिर गई।
इसके बाद कुरैश ने एक आपात्कालीन मीटिंग बुलाकर यह तै किया कि इन दोनों को गिरफ्तार करने के लिए तमाम संभव साधनों का उपयोग किया जाए। चुनांचे मक्का से निकलने वाले तमाम रास्तों पर, चाहे वह किसी भी दिशा में जा रहा हो, बड़ा सशस्त्र पहरा बिठा दिया गया। इसी तरह यह आम एलान भी किया गया कि जो कोई अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को या इनमें से किसी एक को ज़िंदा या मुर्दा हाजिर करेगा, उसे हर एक के बदले सौ ऊंटों का इनाम दिया जाएगा।2
इस एलान के नतीजे में सवार और पैदल और क़दम के निशानों के माहिर खोजी बड़ी सरगर्मी से खोज में लग गए और पहाड़ों, घाटियों और ऊंच-नीच हर ओर फैल गए, लेकिन नतीजा और हासिल कुछ न रहा।
खोजने वाले ग़ार के मुंह तक भी पहुंचे, लेकिन अल्लाह अपने काम पर ग़ालिब है, चुनांचे सहीह बुखारी में हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया-‘
हूं ‘मैं नबी के साथ ग़ार में था, सर उठाया तो क्या देखता हूं कि लोगों के पांव नज़र आ रहे हैं।’
मैंने कहा, ऐ अल्लाह के नबी ! अगर इनमें से कोई आदमी सिर्फ अपनी निगाह नीची कर दे तो हमें देख लेगा ।
है । आपने फ़रमाया, अबूबक्र ! खामोश रहो। (हम) दो हैं जिनका तीसरा अल्लाह
एक रिवायत के शब्द ये हैं-
‘अबूबक्र ! ऐसे दो आदमियों के बारे में तुम्हारा क्या विचार है, जिनका तीसरा अल्लाह है। 3
इब्ने हिशाम 1/487
1.
सहीह बुखारी 1/554
2.
3. सहीह बुखारी, 1/516, 558, ऐसा ही मुस्नद अहमद 114 में है। यहां यह बात भी याद रखने की है कि अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु की बेचैनी अपनी जान के डर से न थी, बल्कि एक ही वजह थी जो इस रिवायत में बयान की गई है कि अबूबक्र रज़ि० ने जब खोजी दस्तों को देखा तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए आपका दुख बढ़ गया और आपने कहा कि अगर मैं मारा गया तो मैं सिर्फ एक
सच तो यह है कि यह एक मोजज्ञा था, जिसे अल्लाह ने अपने नबी को प्रदान किया था। चुनांचे खोजी दस्ते उस वक़्त वापस लौट गये, जब आपके और उनके दर्मियान कुछ क़दम से ज़्यादा दूरी न रह गई थी।

