
Karbala Imam Hussain AS | Sayyeda Zainab SA | Allama Anwar Ali Najafi Podcast|M Talha Alvi



कुरैश की पार्लियामेंट ‘दारुन्नदवा’ में
जब मुश्किों ने देखा कि सहाबा किराम रजि० तैयार हो-होकर निकल गए और बाल-बच्चों और माल व दौलत को लाद-फांद कर औस व खज़रज के इलाक़े में जा पहुंचे, तो उनमें बड़ा कोहराम मचा। दुख के पहाड़ टूट पड़े और उन्हें ऐसा रंज हुआ कि ऐसा रंज कभी न हुआ था।
अब उनके सामने एक ऐसा बड़ा और भयानक खतरा सामने आ खड़ा हुआ था जो उनकी बुतपरस्ती पर आधारित जीवन और व्यापारिक समाज के लिए किसी चुनौती से कम न था ।
मुश्रिकों को मालूम था कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में ज़बरदस्त नेतृत्व और मार्गदर्शन की क्षमता मौजूद है, साथ ही उनका कर्म-वचन भी बड़ा प्रभावी है। साथ ही यह भी मालूम था कि आपके सहाबा (साथी) में धैर्य, दृढ़ता और त्याग भाव बहुत ज़्यादा है, फिर यह कि औस व खज़रज के क़बीलों में से कितनी ताक़त, कुदरत और जंगी सलाहियत है और इन दोनों क़बीलों के बड़ों में सुलह व सफ़ाई की कैसी पाक भावनाएं हैं और वे कई वर्ष तक फैले हुए गृहयुद्ध की कडुवाहट चखने के बाद अब आपसी रंज और दुश्मनी को ख़त्म करने पर कितने तैयार हैं।
उन्हें इसका भी एहसास था कि यमन से शाम तक लाल सागर के तट से उनका जो व्यापारिक मार्ग गुज़रता है, उस दृष्टि से मदीना सैनिक महत्व की कितनी अहम जगह पर स्थित है, जबकि शाम देश से मक्का वालों का वार्षिक व्यापार ढाई लाख दीनार सोने के हिसाब से हुआ करता था। ताइफ़ वालों का व्यापार इसके अलावा था और मालूम है कि इस कारोबार का पूरा आश्रय इस पर था कि यह रास्ता शान्तिपूर्ण रहे ।
इन बातों से आसानी से अन्दाज़ा किया जा सकता है कि यसरिब में इस्लामी दावत के जड़ पकड़ने और मक्का वालों के खिलाफ़ यसरिब वालों का मोर्चा क़ायम कर लेने की स्थिति में मक्के वालों के लिए कितने ख़तरे थे ।
चूंकि मुश्रिकों को इस गम्भीर खतरे का पूरा-पूरा एहसास था, जो उनके वजूद के लिए चैलेंज बन रहा था, इसलिए उन्होंने इस खतरे का कामियाब से कामियाब इलाज सोचना शुरू किया और मालूम है कि इस खतरे की असल बुनियाद इस्लामी दावत के अलमबरदार हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ही थे ।
मुश्किों ने इस मक्सद के लिए अक्रबा की बड़ी बैअत के लगभग ढाई माह बाद 26 सफ़र सन् 14 नबवी, तद० 12 सितम्बर सन् 622 ई०, वृहस्पतिवार को दिन के पहले पहर में मक्के की पार्लियामेंट दारुन्नदवा में इतिहास की सबसे खतरनाक मीटिंग हुई और उसमें कुरैश के तमाम क़बीलों के नुमाइन्दे जमा हुए। एजेंडा था एक ऐसे प्लान की तैयारी, जिसके मुताबिक़ इस्लामी दावत के अलमबरदार का क़िस्सा जल्द से जल्द पाक कर दिया जाए और इस दावत की रोशनी पूरे तौर पर मिटा दी जाए।
इस खतरनाक मीटिंग में कुरैशी क़बीलों के विख्यात प्रतिनिधि इस तरह थे— 1. अबू जहल बिन हिशाम, क़बीला बनी मख्ज़ूम से,
2. जुबैर बिन मुतइम, तईमा बिन अदी और हारिस बिन आमिर बनी नौफ़ल बिन अब्दे मुनाफ़ से,
3. शैबा बिन रबीआ, उत्बा बिन रबीआ और अबू सुफ़ियान बिन हर्ब, बनी अब्द शम्स बिन अब्द मुनाफ़ से,
4. नज्ज्र बिन हारिस, बनी अब्दुद्दार से,
5. अबुल बख्तरी बिन हिशाम, ज़मआ बिन अस्वद और हकीम बिन हिजाम, बनी असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा से,
6. नबीह बिन हिजाज और मुनब्बह बिन हिजाज, बनी सहम से,
7. उमैया बिन खल्फ़, बनी जम्ह से।
निर्धारित समय पर ये प्रतिनिधि दारुन्नदवा पहुंचे, तो इब्लीस भी एक बूढ़े-बुजुर्ग की शक्ल में इबा ओढ़े, रास्ता रोके, दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ । लोगों ने कहा, यह कहां का शेख है ?
इब्लीस ने कहा, यह नज्द वालों का एक शेख है, आप लोगों का प्रोग्राम
1. यह तारीख अल्लामा मंसूरपुरी की खोज के अनुसार है जो अंकित है। देखिए रहमतुल लिल आलमीन 1/95, 97, 102, 2/471
2. पहले पहर में इस मीटिंग की दलील इब्ने इस्हाक़ की वह रिवायत है, जिसमें बयान किया गया है कि हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में इस मीटिंग की ख़बर लेकर आए और आपको हिजरत की इजाज़त दी। इसके साथ सहीह बुखारी में दर्ज हज़रत आइशा रज़ि० की इस रिवायत को मिला लीजिए कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ठीक दोपहर के वक़्त हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के पास तशरीफ लाए और फ़रमाया कि ‘मुझे हिजरत की इजाज़त दे दी गई है।’ रिवायत सविस्तार आगे आ रही है।
सुनकर हाज़िर हो गया है। बातें सुनना चाहता है और कुछ असंभव नहीं कि आप लोगों को हितैषितापूर्ण मश्विरों से भी महरूम न रखे। लोगों ने कहा, बेहतर है, आप भी आ जाइए।चुनांचे इब्लीस भी उनके साथ अन्दर गया ।
चुनांचे इब्लीस भी उनके साथ अन्दर गया ।
पार्लियामेंट में नबी सल्ल० के क़त्ल के प्रस्ताव से सब सहमत
मीटिंग खत्म हो गई तो प्रस्ताव आने शुरू हुए, ताकि समस्या हल की जा सके। देर तक इसी पर बहस चलती रही।
पहले अबुल अस्वद ने यह प्रस्ताव रखा कि हम इस व्यक्ति को अपने बीच से निकाल दें और देश निकाला दे दें। फिर हमें इससे मतलब नहीं कि वह कहां जाता और कहां रहता है। बस हमारा मामला ठीक हो जाएगा और हमारे भीतर पहले की तरह एकाग्रता और एकरूपता पैदा हो जाएगी।
मगर शेख नज्दी ने कहा, नहीं, खुदा की क़सम, यह मुनासिब राय नहीं है । तुम देखते नहीं कि उस व्यक्ति की बात कितनी अच्छी और बोल कितने मीठे हैं और जो कुछ लाता है, उसके ज़रिए से किस तरह लोगों का दिल जीत लेता है ख़ुदा की क़सम ! अगर तुमने ऐसा किया, तो कुछ भरोसा नहीं कि वह अरब के किस क़बीले में जाए और उन्हें अपना पैरवी करने वाला बना लेने के बाद तुम पर धावा बोल दे और तुम्हें तुम्हारे शहर के अन्दर रौंदकर जैसा व्यवहार चाहे करे । इसकी जगह कोई और उपाय सोचो। 1
अबुल बख्तरी ने कहा, उसे लोहे की बेड़ियों में जकड़ कर क़ैद कर दो और बाहर से दरवाज़ा बन्द कर दो, फिर उसी अंजाम (मौत) का इन्तिज़ार करो, जो इससे पहले और दूसरे कवियों जैसे जुहैर और नाबग़ा वग़ैरह का हो चुका है।
शेख नज्दी ने कहा, नहीं, खुदा की क़सम, यह भी मुनासिब राय नहीं है। ख़ुदा की क़सम ! अगर तुम लोगों ने इसे क़ैद कर दिया, जैसा कि तुम कह रहे हो, तो इसकी ख़बर बन्द दरवाज़े से बाहर निकलकर उसके साथियों तक ज़रूर पहुंच जाएगी। फिर कुछ असंभव नहीं कि वे लोग तुम पर धावा बोलकर तुम्हारे क़ब्ज़े से निकाल ले जाएं, फिर उसकी मदद से अपनी तायदाद बढ़ाकर तुम्हें पस्त कर दें। इसलिए यह भी मुनासिब राय नहीं, कोई और प्रस्ताव सोचो।
ये दोनों प्रस्ताव पार्लियामेंट रद्द कर चुकी, तो एक तीसरा अपराधपूर्ण प्रस्ताव रखा गया, जिससे तमाम मेम्बरों ने सहमति दिखाई। इसे प्रस्तुत करने वाला मक्के का सबसे बड़ा अपराधी अबू जहल था। उसने कहा-
‘उस व्यक्ति के बारे में मेरी एक राय है। मैं देख रहा हूं कि अब तक तुम लोग वहां तक नहीं पहुंचे।’
लोगों ने कहा, अबुल हकम ! वह क्या है ?
अबू जहल ने कहा, मेरी राय यह है कि हम हर क़बीले से एक मज़बूत, ऊंचे खानदान का और बांका जवान चुन लें, फिर हर एक को तेज़ तलवार दें। इसके बाद सबके सब उस व्यक्ति का रुख करें और इस तरह एक साथ तलवार मार कर क़त्ल कर दें, जैसे एक ही आदमी ने तलवार मारी हो । यों हमें उस व्यक्ति से रहात मिल जाएगी और इस तरह क़त्ल करने का नतीजा यह होगा कि उस व्यक्ति का खून सारे क़बीलों में बिखर जाएगा और अबू अब्द मुनाफ़ सारे क़बीलों से लड़ाई न लड़ सकेंगे। इसलिए दियत (खून बहा) लेने पर राज़ी हो जाएंगे और हम दियत अदा कर देंगे।1
शेख नज्दी ने कहा, बात यह रही जो इस जवान ने कही। अगर कोई प्रस्ताव और राय हो सकती है, तो यही है। इसके अलावा सब बेकार 1
इसके बाद मक्का की पार्लियामेंट ने इस अपराधपूर्ण प्रस्ताव को पास कर दिया और सभी इस दृढ़ संकल्प के साथ अपने घरों को वापस गए कि इस प्रस्ताव को तुरन्त लागू करना है ।
इब्ने हिशाम 1/480-482


