अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 44

हिजरत का दौर शुरू

जब अक़बा की दूसरी बैअत पूरी हो गई, इस्लाम, कुक्न और जिहालत के फैले हुए निर्जन मरुस्थल में अपने एक वतन की बुनियाद रखने में सफल हो गया और यह सबसे महत्वपूर्ण सफलता थी, जो इस्लाम ने अपनी दावत के आरंभ से अब तक प्राप्त की थी, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों को इजाज़त दे दी कि वे अपने इस नए वतन की ओर हिजरत कर जाएं।

हिजरत का मतलब यह था कि सारे हितों और स्वार्थों को त्याग कर और माल की कुर्बानी देकर सिर्फ़ अपनी जान बचा ली जाए और वह भी यह समझते हुए कि यह जान भी ख़तरे के निशाने पर है और पूरे रास्ते में, शुरू से लेकर आखिर तक कहीं भी खत्म की जा सकती है। फिर सफ़र भी एक अस्पष्ट भविष्य की ओर है। मालूम नहीं आगे चलकर अभी कौन-कौन सी मुसीबतों और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

मुसलमानों ने यह सब कुछ जानते हुए हिजरत की शुरूआत कर दी। उधर मुश्रिकों ने भी उनकी रवानगी में रुकावटें खड़ी करनी शुरू कीं, क्योंकि वे समझ रहे थे कि इसमें ख़तरे बहुत हैं।

हिजरत के कुछ नमूने पेश किए जाते हैं-

1. सबसे पहले मुहाजिर हज़रत अबू सलमा रज़ि० थे। उन्होंने इब्ने इस्हाक़ के अनुसार अक़बा की बड़ी बैअत से एक साल पहले हिजरत की थी। उनके साथ उनके बीवी-बच्चे भी थे।

जब उन्होंने रवाना होना चाहा, तो उनकी ससुराल वालों ने कहा कि यह रही आपकी जान, इसके बारे में आप हम पर ग़ालिब आ गए, लेकिन यह बताइए कि यह हमारे घर की लड़की, आखिर किस बुनियाद पर हम आपको छोड़ दें कि आप इसे शहर-शहर घुमाते फिरें ?

चुनांचे उन्होंने उनसे उनकी बीवी छीन ली। इस पर अबू सलमा के घरवालों को ताव आ गया और उन्होंने कहा-

‘जब तुम लोगों ने इस औरत को हमारे आदमी से छीन लिया, तो हम अपना बेटा उस औरत के पास नहीं रहने दे सकते।’

चुनांचे दोनों फ़रीक़ ने उस बच्चे को अपनी-अपनी ओर खींचा, जिससे उसकाहाथ उखड़ गया और अबू सलमा रजि० के घर वाले उसको अपने पास ले गए। खुलासा यह कि अबू सलमा रजि० ने अकेले मदीने का सफ़र किया।

इसके बाद उम्मे सलमा रजि० का हाल यह था कि वह अपने शौहर के चले जाने और अपने बच्चे से महरूमी के बाद हर दिन सुबह-सुबह अबतह पहुंच जातीं। (जहां यह घटना घटी थी) और शाम तक रोती रहतीं।

इसी हाल में एक साल गुज़र गया। अन्ततः उनके घराने के किसी आदमी को तरस आ गया और उसने कहा कि इस बेचारी को जाने क्यों नहीं देते ? इसे खामखाही इसके शौहर और बेटे से जुदा कर रखा है।

इस पर उम्मे सलमा से उनके घरवालों ने कहा कि अगर तुम चाहो तो अपने शौहर के पास जाओ ।

हज़रत उम्मे सलमा रज़ि० ने बेटे को उसके ददिहाल वालों से वापस लिया और मदीना चल पड़ीं।

अल्लाहु अक्बर ! कोई पांच सौ किलोमीटर की दूरी का सफ़र और साथ में अल्लाह का कोई बन्दा नहीं। जब तनईम पहुंचीं तो उस्मान बिन अबी तलहा मिल गया। उसे हालत का विवरण मालूम हुआ तो साथ-साथ चलकर मदीना पहुंचाने ले गया और जब कुबा की आबादी नज़र आई तो बोला-

‘तुम्हारा शौहर इसी बस्ती में है। इसी में चली जाओ। अल्लाह बरकत दे।’ इसके बाद वह मक्का पलट गया।

2. हज़रत सुहैब रजि० ने जब हिजरत का इरादा किया, तो उनसे कुरैश के कुफ्फार ने कहा, तुम हमारे पास आए थे तो दीन-हीन थे, लेकिन यहां आकर तुम्हारा माल बहुत ज़्यादा हो गया और तुम बहुत आगे पहुंच गए। अब तुम चाहते हो कि अपनी जान और अपना माल दोनों लेकर चल दो, तो ख़ुदा की क़सम, ऐसा नहीं हो सकता ।

हज़रत सुहैब रज़ि० ने कहा, अच्छा यह बताओ, अगर मैं अपना माल छोड़ दूं तो तुम मेरी राह छोड़ दोगे ?

उन्होंने कहा, हां ।

हज़रत सुहैब रज़ि० ने कहा, अच्छा तो फिर ठीक है। चलो, मेरा माल तुम्हारे हवाले ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह बात मालूम हुई तो

इब्ने हिशाम 1/468, 469, 470

आपने फ़रमाया, सुहैब ने नफ़ा उठाया, सुहैब ने नफ़ा उठाया।’

3. हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु, अय्याश बिन अबी रबीआ और हिशाम बिन आस बिन वाइल ने आपस में तै किया कि फ़्लां जगह सुबह-सुबह इकट्ठे होकर वहीं से मदीना को हिजरत की जाएगी। हज़रत उमर और अय्याश तो निर्धारित समय पर आ गए, लेकिन हिशाम को क़ैद कर लिया गया।

फिर जब ये दोनों मदीना पहुंचकर कुबा में उतर चुके तो अय्याश के पास अबू जहल और उसका भाई हारिस पहुंचे। तीनों की मां एक थी। इन दोनों ने अय्याश से कहा-

‘तुम्हारी मां ने मन्नत मानी है कि जब तक वह तुम्हें देख न लेगी, सर में कंघी न करेगी और धूप छोड़कर साए में न आएगी।’

यह सुनकर अय्याश को अपनी मां पर तरस आ गया।

हज़रत उमर रजि० ने यह स्थिति देखकर अय्याश से कहा, ‘अय्याश ! देखो, ख़ुदा की क़सम, ये लोग तुमको सिर्फ तुम्हारे दीन से फ़िले में डालना चाहते हैं। इसलिए इनसे होशियार रहो। खुदा की क़सम ! अगर तुम्हारी मां को जुओं ने पीड़ा पहुंचाई, तो वह कंघी कर लेगी और उसे मक्का की कड़ी धूप लगी, तो वह साए में चली जाएगी, पर अय्याश न माने।

उन्होंने अपनी मां की क़सम पूरी करने के लिए इन दोनों के साथ निकलने का फ़ैसला कर लिया। हज़रत उमर रजि० ने कहा, अच्छा जब यही करने पर तैयार हो तो मेरी यह ऊंटली ले लो। यह बड़ी उम्दा और तेज़ रफ़्तार है, इसकी पीठ न छोड़ना और लोगों की ओर से कोई शक महसूस हो, तो निकल भागना ।

अय्याश ऊंटनी पर सवार इन दोनों के साथ निकल पड़े। रास्ते में एक जगह अबू जहल ने कहा, भाई ! मेरा यह ऊंट तो बड़ा सख्त निकला, क्यों न तुम मुझे भी अपनी इस ऊंटनी पर पीछे बिठा लो।

अय्याश ने कहा, ठीक है और उसके बाद ऊंटनी बिठा दी।

इन दोनों ने भी अपनी-अपनी सवारियां बिठाई ताकि अबू जहल अय्याश की ऊंटनी पर पलट आए।

लेकिन जब तीनों ज़मीन पर आ गए तो ये दोनों अचानक अय्याश पर टूट पड़े और उन्हें रस्सी से जकड़ कर बांध दिया और इसी बंधी हुई हालत में दिन के वक़्त मक्का लाए और कहा कि ऐ मक्का वालो ! अपने मूर्खों के साथ ऐसा

1. इब्ने हिशाम, 1/477

ही करो जैसा हमने अपने इस मूर्ख के साथ किया है।’

हिजरत के लिए पर तौलने वालों के बारे में अगर मुश्किों को मालूम हो जाता तो उनके साथ जो व्यवहार करते थे, उसके ये तीन नमूने हैं। लेकिन इन सबके बावजूद लोग आगे-पीछे निकलते ही रहे।

चुनांचे अक्रबा की बड़ी बैअत के केवल दो माह कुछ दिन बाद मक्का में अल्लाह के रसूल सल्ल०, हज़रत अबूबक्र रजि० और हज़रत अली रजि० के अलावा एक भी मुसलमान बाक़ी न रहा। ये दोनों अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कहने पर रुके हुए थे ।

अलबत्ता कुछ ऐसे मुसलमान ज़रूर रह गए थे जिन्हें मुश्रिकों ने ज़बरदस्ती रोक रखा था।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी अपना साज़ व सामान तैयार करके रवाना होने के लिए ख़ुदा के हुक्म का इन्तिज़ार कर रहे थे। हज़रत अबूबक्र रजि० के सफ़र का सामान भी बंधा हुआ था ।”

सहीह बुखारी में हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया गया है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों से फ़रमाया’मुझे तुम्हारी हिजरत की जगह दिखलाई गई है। यह लावे की दो पहाड़ियों के बीच वाक़े एक मरुद्यान है।’

इसके बाद लोगों ने मदीने की ओर हिजरत की।

हब्शा के आम मुहाजिर भी मदीना ही आ गए।

हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी मदीना के सफ़र के लिए साज़ व

1. हिशाम और अय्याश कुफ्फार की क़ैद में पड़े रहे। जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व मल्लम हिजरत फ़रमा चुके तो आपने एक दिन कहा- कौन है जो मेरे लिए हिशाम और अय्याश को छुड़ा लाए ? वलीद बिन वलीद ने कहा, मैं आपके लिए उनको लाने का ज़िम्मेदार हूं। फिर वलीद खुफिया तौर पर मक्का गए और एक औरत (जो इन दोनों के पास खाना ले जा रही थी) के पीछे जाकर उनका ठिकाना मालूम किया। ये दोनों एक बिना छत के मकान में क़ैद थे। रात हुई तो हज़रत वलीद दीवार फांद कर इन दोनों के पास पहुंचे और बेड़ियां काट कर अपने ऊंट पर बिठाया और मदीना भाग गए। इब्ने हिशाम 1/474-476 और हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने बीस सहाबा की एक जमाअत के साथ हिज़रत की थी। सहीह बुखारी 1/558 2. जादुल मआद 2/52


सामान तैयार कर लिया, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे फ़रमाया,

‘जरा रुके रहो, क्योंकि उम्मीद है मुझे भी इजाज़त दे दी जाएगी।’

हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, मेरे बाप आप पर फिदा, ‘क्या आपको इसकी उम्मीद है ?’

आपने फ़रमाया, हां।

इसके बाद अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु रुके रहे, ताकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ सफ़र करें।

उनके पास दो ऊंटनियां थीं। उन्हें भी चार महीने तक बबूल के पत्तों का खूब चारा खिलाया।

1. सहीह बुखारी, बाब हिजरतुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम व अस्हाबुहू 1/553