
‘(नहीं) बल्कि आप लोगों का खून मेरा खून और आप लोगों की बर्बादी मेरी बर्बादी है। मैं आपसे हूं और आप मुझसे हैं। जिससे आप लड़ेंगे, उससे मैं लडूंगा, और जिससे आप सुलह करेंगे, उससे मैं सुलह करूंगा।’
बैअत की ख़तरनाकी की दोबारा याद देहानी
बैअत की शर्तों के बारे में बातचीत पूरी हो चुकी और लोगों ने बैअत शुरू करने का इरादा किया, तो पहली पंक्ति के दो मुसलमान जो 11 नबवी और 12 नबवी में मुसलमान हुए थे, एक-एक करके उठे, ताकि लोगों के सामने उनकी ज़िम्मेदारी और ख़तरनाकी को अच्छी तरह स्पष्ट करें और ये लोग मामले के सारे पहलुओं को अच्छी तरह समझ लेने के बाद ही बैअत करें। इससे यह भी मालूम करना था कि क़ौम किस हद तक कुर्बानी देने के लिए तैयार है |
इब्ने इस्हाक़ कहते हैं कि जब लोग बैअत के लिए जमा हो गए, तो हज़रत अब्बास बिन उबादा बिन नज़ला ने कहा-
‘तुम लोग जानते हो कि इनसे (इशारा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर था) किस बात पर बैअत कर रहे हो ?’
आवाज़ें : जी हां।
हज़रत अब्बास रज़ि० ने कहा, तुम इनसे लाल और काले लोगों से लड़ने पर बैअत कर रहे हो। अगर तुम्हारा यह ख्याल हो कि जब तुम्हारे मालों का सफाया कर दिया जाएगा, और तुम्हारे सज्जन क़त्ल कर दिए जाएंगे, तो तुम इनका साथ छोड़ दोगे, तो अभी से छोड़ दो, क्योंकि अगर तुमने उन्हें ले जाने के बाद छोड़ दिया, तो यह दुनिया और आखिरत की रुसवाई होगी और अगर तुम्हारा यह ख्याल है कि तुम माल की तबाही और सज्जनों के क़त्ल के बावजूद वायदा निभाओगे, जिसकी ओर तुमने उन्हें बुलाया है, तो फिर बेशक तुम इन्हें ले लो, क्योंकि खुदा की क़सम, यह दुनिया और आखिरत की भलाई है।’
इस पर सब ने एक आवाज़ होकर कहा-हम माल की तबाही और सज्जनों के क़त्ल का खतरा मोल लेकर इन्हें कुबूल करते हैं। हां, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! हमने यह वायदा निभाया, तो हमें इसके बदले में क्या मिलेगा ?
आपने फ़रमाया, जन्नत ।
लोगों ने अर्ज़ किया, अपना हाथ फैलाइए।
हिशाम 1/442
आपने हाथ फैलाया और लोगों ने बैअत की।
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि उस वक़्त हम बैअत करने उठे तो हज़रत असद बिन जुरारा ने, जो इन सत्तर आदमियों में सबसे कम उम्र थे—आपका हाथ पकड़ लिया और बोले-
‘यसरिब वालो! तनिक ठहर जाओ ।
हम आपकी सेवा में ऊंटों के कलेजे मार कर (यानी लम्बा-चौड़ा सफ़र करके) इस यक़ीन के साथ हाज़िर हुए हैं कि आप अल्लाह के रसूल हैं | आज आपको यहां से ले जाने का मतलब है, सारे अरब से दुश्मनी, तुम्हारे चुने सरदारों का क़त्ल और तलवारों की मार, इसलिए अगर यह सब कुछ बरदाश्त कर सकते हो, तब तो इन्हें ले चलो, और तुम्हारा बदला अल्लाह पर है और अगर तुम्हें अपनी जान प्यारी है, तो इन्हें अभी से छोड़ दो। यह अल्लाह के नज़दीक ज्यादा क़ाबिले कुबूल बहाना होगा। 2
बैअत पूरी हो गई
बैअत की धाराएं पहले ही तै हो चुकी थीं, एक बार इस नाजुक काम का स्पष्टीकरण भी हो चुका था। अब यह ताकीद आगे की गई तो लोगों ने एक आवाज़ होकर कहा-
असद बिन जुरारह ! अपना हाथ हटाओ, खुदा की क़सम ! हम इस बैअत को न छोड़ सकते हैं और न तोड़ सकते हैं 13
इस जवाब से हज़रत असद को अच्छी तरह मालूम हो गया कि क़ौम किस हद तक इस राह में जान देने को तैयार है।
वास्तव में हज़रत असद बिन जुरारह, हज़रत मुसअब बिन उमैर रज़ि० के साथ मिलकर मदीने में इस्लाम के सबसे बड़े प्रचारक थे, इसलिए स्वाभाविक रूप से ही वही इन बैअत करने वालों के धार्मिक नेता भी थे और इसीलिए सबसे पहले उन्हीं ने बैअत भी की।
चुनांचे इब्ने इस्हाक़ की रिवायत है कि बनू नज्जार कहते हैं कि अबू उमामा असद बिन जुरारह सबसे पहले आदमी हैं जिन्होंने आपसे हाथ मिलाया। और
1. इब्ने हिशाम 1/446
2. मुस्नद अहमद, हज़रत जाबिर से 3/322, बैहक़ी, सुनने कुब्रा 9/9 3. वही,
4. इब्ने इस्हाक़ का यह भी बयान है कि बनू अब्दुल अशहल कहते हैं कि सबसे पहले
इसके बाद आम बैअत हुई।
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि हम लोग एक-एक आदमी करके उठे और आपने हमसे बैअत ली और उसके बदले जन्नत की खुशखबरी दी । ‘
बाक़ी रहीं वे औरतें, जो इस मौक़े पर हाज़िर थीं, तो उनकी बैअत सिर्फ जुबानी हुई। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कभी किसी अनजानी औरत से मुसाफ़ा नहीं किया। 2
बारह नक़ीब
बैअत पूरी हो चुकी तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह प्रस्ताव रखा कि बारह सरदार चुन लिए जाएं, जो अपनी-अपनी क़ौम के ‘नक़ीब’ हों, और इस बैअत की धाराओं को लागू करने के लिए अपनी क़ौम की ओर से वही ज़िम्मेदार और मुकल्लफ़ हों।
आपका इर्शाद था कि आप लोग अपने भीतर से बारह नक़ीब पेश कीजिए, ताकि वही लोग आपकी अपनी-अपनी क़ौम के मामलों के ज़िम्मेदार हों। आपके इर्शाद पर तुरन्त ही नक़ीबों का चुनाव अमल में आ गया। नौ खज़रज से लिए गए और तीन औस से। नाम इस तरह हैं-
खज़रज के नक़ीब 1. असद बिन जुरारा बिन अदस,
2. साद बिन रबीअ बिन अम्र
3. अब्दुल्लाह बिन रुवाहा बिन सालबा,
4. राफ़ेअ बिन मालिक बिन अजलान,
5. बरा बिन मारूर बिन सख
6. अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन हराम,
7. उबादा बिन सामित बिन कैस.
अबुल हैसम बिन तैहान ने बैअत की और हज़रत काब बिन मालिक कहते हैं कि बरा बिन मारूर ने की (इब्ने हिशाम 1/447) मेरा विचार है कि संभव है बैअत से पहले नबी सल्ल० से हज़रत अबुल हैसम और बरा की जो बातें हुई थीं, लोगों ने उसी को बैअत मान लिया हो, वरना उस वक़्त आगे बढ़ाए जाने के सबसे ज़्यादा हक़दार हज़रत असद बिन जुरारह ही थे। वल्लाहु आलम ।
1. मुस्नद अहमद, 3/322
2. देखिए सहीह मुस्लिम बाब कैफीयतुबै अतिन्निसाइ 2/131

