अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 35



इब्ने इस्हाक़ ने कुछ क़बीलों पर इस्लाम की पेशी और उनके जवाब का भी उल्लेख किया है। नीचे संक्षेप में उनका बयान नकल किया जा रहा है—


1. बनू कल्व-नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस क़बीले की एक शाखा बनू अब्दुल्लाह के पास तशरीफ ले गए। उन्हें अल्लाह की ओर बुलाया और अपने आपको उन पर पेश किया। बातों-बातों में यह भी फ़रमाया कि ऐ बनू अब्दुल्लाह ! अल्लाह ने तुम्हारे परदादा का नाम बहुत अच्छा रखा था, लेकिन उस कबीले ने आपकी दावत कुबूल न की।

2. बनू हनीफ़ा – आप इनके डेरे पर तशरीफ ले गए। इन्हें अल्लाह की ओर बुलाया और अपने आपको उन पर पेश किया, लेकिन उनके जैसा बुरा जवाब अरबों में से किसी ने भी न दिया।

3. आमिर बिन सासआ— इन्हें भी आपने अल्लाह की ओर दावत दी और अपने आपको उन पर पेश किया। जवाब में उनके एक आदमी बुहैरा बिन फरास ने कहा, ख़ुदा की कसम ! अगर मैं कुरैश के इस जवान को ले लूं, तो इसके जरिए पूरे अरब को खा जाऊंगा।

फिर उसने पूछा, अच्छा यह बताइए, अगर हम आपसे आपके इस दीन पर बैअत (वचन) कर लें, फिर अल्लाह आपको विरोधियों पर ग़लबा दे दे, तो क्या आपके बाद सत्ता हमारे हाथ में होगी ?

आपने फ़रमाया, सत्ता तो अल्लाह के हाथ में है, वह जहां चाहेगा, रखेगा।

इस पर उस व्यक्ति ने कहा, खूब, आपकी रक्षा में तो हमारा सीना अरबों के निशाने पर रहे, लेकिन जब अल्लाह आपको गलबा दे, तो सत्ता किसी और के हाथ में हो। हमें आपके दीन की जरूरत नहीं, ग़रज़ उन्होंने इंकार कर दिया।

इसके बाद जब क़बीला बनू आमिर अपने इलाक़े में वापस गया, तो अपने एक बूढ़े आदमी को, जो बुढ़ापे की वजह से हज में शरीक न हो सका था, सारा किस्सा सुनाया, और बताया कि हमारे पास कुरैश क़बीले के खानदान बनू अब्दुल मुत्तलिब का एक जवान आया था, जिसका ख्याल था कि वह नबी है। उसने हमें दावत दी कि हम उसकी हिफाज़त करें और उसका साथ दें और अपने इलाके में ले आएं।

यह सुनकर उस बूढ़े ने दोनों हाथों से सर थाम लिया और बोला-

ऐ बनू आमिर ! क्या अब इस क्षतिपूर्ति का कोई रास्ता है ? और क्या उस व्यक्ति को ढूंढा जा सकता है ? उस ज्ञात की क़सम ! जिसके हाथ में फ़्लां कीजान है, किसी इस्माईली ने कभी इस (नुबूवत का झूठा दावा नहीं किया। यह यक़ीनन हक़ है, आखिर तुम्हारी अक़्ल कहां चली गई थी ?1

ईमान की किरणें मक्के से बाहर

जिस तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़बीलों और समूहों पर इस्लाम पेश किया, उसी तरह व्यक्तियों को भी इस्लाम की दावत दी और कुछ ने अच्छा जवाब भी दिया। फिर हज के इस मौसम के कुछ ही दिनों बाद कई लोगों ने इस्लाम कुबूल किया। नीचे उनकी एक छोटी सी झलक पेश की जा रही है 1

1. सुवैद बिन सामित—यह कवि थे, गहरी सूझ-बूझ वाले, यसरिब के रहने वाले, इनके उच्चकोटि के कवि होने और श्रेष्ठ वंश के व्यक्ति होने की वजह से इनकी क़ौम ने इन्हें ‘कामिल’ की उपाधि दी थी। यह हज या उमरा के लिए तशरीफ़ ले आए। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन्हें इस्लाम की दावत दी, कहने लगे-

‘शायद आपके पास जो कुछ है, वह वैसा ही है, जैसा मेरे पास है !’ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, तुम्हारे पास क्या है ?

सुवैद ने कहा, ‘लुक़मान की हिक्मत !’

आपने फ़रमाया, पेश करो।

उन्होंने पेश किया। आपने फ़रमाया-

‘यह कलाम यक़ीनन अच्छा है, लेकिन मेरे पास जो कुछ है, वह इससे भी अच्छा है। वह कुरआन है, जो अल्लाह ने मुझ पर उतारा है, वह हिदायत और नूर है।’ इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें कुरआन पढ़कर सुनाया और इस्लाम की दावत दी ।

उन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया और बोले, यह तो बहुत ही अच्छा कलाम है। इसके बाद वह मदीना पलट कर आए ही थे कि बुआस की लड़ाई से पहले औस व खज़रज की एक लड़ाई में क़त्ल कर दिए गए। उन्होंने सन्

11 नबवी के शुरू में इस्लाम कुबलू किया था।

इब्ने हिशाम 1/424-425 इब्ने हिशाम 1/425-427, अल-इस्तीआब 2/677, असदुल ग़ाबा 2/337



2. इयास बिन मुआज़—यह भी यसरिब के रहने वाले थे और थे नवयुवक । सन् 11 नबवी में बुआस की लड़ाई से कुछ पहले औस का एक प्रतिनिधि मंडल खज़रज के खिलाफ कुरैश से मिताई करने मक्का आया था। आप भी उसके साथ तशरीफ़ लाए थे। उस वक़्त यसरिब में इन दोनों क़बीलों के दर्मियान दुश्मनी की आग भड़क रही थी और औस की तायदाद खज़रज से कम थी।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्रतिनिधि मंडल के आने का ज्ञान हुआ, तो आप उनके पास तशरीफ़ ले गए और उनके बीच बैठकर यों कहा-

‘आप लोग जिस मक़सद के लिए तशरीफ़ लाए हैं, क्या इससे बेहतर चीज़ कुबूल कर सकते हैं?’

उन सबने कहा, वह क्या चीज़ है ?

आपने फ़रमाया, ‘मैं अल्लाह का रसूल हूं। अल्लाह ने मुझे अपने बन्दों के पास इस बात की दावत देने के लिए भेजा है कि वे अल्लाह की इबादत करें और उसके साथ किसी चीज़ को शरीक न करें। अल्लाह ने मुझ पर किताब भी उतारी है।’

फिर आपने इस्लाम का ज़िक्र किया और क़ुरआन की तिलावत फ़रमाई ।

इयास बिन मुआज़ बोले, ‘ऐ क़ौम ! यह अल्लाह की क़सम, उससे बेहतर है जिसके लिए आप लोग यहां तशरीफ़ लाए हैं, लेकिन दल के एक सदस्य अबुल हैसर अनस बिन राफ़ेअ ने एक मुट्ठी कंकड़ी उठाकर इयास के मुंह पर दे मारी और बोला-

‘यह बात छोड़ो, मेरी उम्र की क़सम ! यहां हम इसके बजाए दूसरे मक्सद से आए हैं।’

इयास चुप हो गये और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी उठ गए। दल कुरैश के साथ मैत्री समझौता करने में सफल न हो सका और यों ही नाकाम मदीना वापस हो गया।

मदीना पहुंचने के थोड़े दिनों बाद इयास इंतिक़ाल कर गए। वह अपनी वफ़ात के वक़्त तक्बीर व तहलील और हम्द व तस्बीह (रब के गुणगान वाले शब्द हैं) कर रहे थे। इसलिए लोगों को यक़ीन है कि उनकी वफ़ात इस्लाम पर हुई 12

1. इब्ने हिशाम 1/427-428, मुस्नद अहमद, 5/427



3. अबूज़र ग़िफ़ारी—यह यसरिब के बाहरी भाग के रहने वाले थे। जब सुवैद बिन सामित और इयास बिन मुआज़ के ज़रिए यसरिब में नबी के आने की खबर पहुंची, तो शायद यह खबर अबूजर रज़ियल्लाहु अन्हु के कान से भी टकराई और यही उनके इस्लाम लाने की वजह बनी।

इनके इस्लाम लाने की घटना का सहीह बुखारी में सविस्तार उल्लेख हुआ है। इब्ने अब्बास रज़ि० का बयान है कि अबूजर रजि० ने फ़रमाया-

मैं क़बीला ग़िफ़ार का एक आदमी था। मुझे मालूम हुआ कि मक्के में एक आदमी जाहिर हुआ है, जो अपने आपको नबी कहता है। मैंने अपने भाई से कहा, तुम उस आदमी के पास जाओ, उससे बात करो और मेरे पास उसकी ख़बर लाओ ।

वह गया, मुलाक़ात की और वापस आया। मैंने पूछा, ‘क्या ख़बर लाए हो ?’

बोला, ख़ुदा की क़सम ! मैंने एक ऐसा आदमी देखा है, जो भलाई का हुक्म देता है और बुराई से रोकता है।

मैंने कहा, तुमने सन्तोषजनक ख़बर नहीं दी।

आखिर मैंने खुद रास्ते का खाना लिया और डंडा उठाया और मक्का के लिए चल पड़ा। (वहां पहुंच तो गया) लेकिन आपको पहचानता न था और यह भी पसन्द न था कि आपके बारे में किसी से मालूम करूं ।

चुनांचे मैं ज़मज़म का पानी पीता और मस्जिदे हराम में पड़ा रहता। आखिर मेरे पास से अली रज़ि० का गुज़र हुआ, कहने लगे, आदमी अनजाना मालूम होता है ।

मैंने कहा, जी हां।

उन्होंने कहा, अच्छा तो घर चलो।

मैं उनके साथ चल पड़ा। न वह मुझसे कुछ पूछ रहे थे, न मैं उनसे कुछ पूछ रहा था और न उन्हें कुछ बता ही रहा था।

सुबह हुई तो मैं इस इरादे से फिर मस्ज्देि हरााम गया कि आपके बारे में मालूम करूं। लेकिन कोई न था जो मुझे आपके बारे में कुछ बताता। आखिर मेरे पास से फिर हज़रत अली रजि० गुज़रे (देखकर) बोले, लगता है इस आदमी को अभी अपना ठिकाना न मालूम हो सका ।

मैंने कहा, नहीं।

उन्होंने कहा, अच्छा तो मेरे साथ चलो।

अर-रहीकुल मख़्तूम

इसके बाद उन्होंने कहा, अच्छा तुम्हारा मामला क्या है ? और तुम इस शहर में क्यों आए हो ?

मैंने कहा, आप राज़दारी से काम लें, तो बताऊं ?

उन्होंने कहा, ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा।

मैंने कहा, मुझे मालूम हुआ है कि यहां एक आदमी ज़ाहिर हुआ है, जो अपने आपको अल्लाह का नबी बताता है। मैंने आपने भाई को भेजा कि वह बात करके आए, मगर उसने पलटकर कोई सन्तोषजनक बात न बताई। इसलिए मैंने सोचा कि खुद ही मुलाक़ात कर लूं ।

हज़रत अली रज़ि० ने कहा, भाई ! तुम सही जगह पहुंचे। देखो, मेरा रुख उन्हीं की ओर है। जहां मैं घुसूं वहां तुम भी घुस जाना और हां, अगर मैं किसी ऐसे आदमी को देखूंगा, जिससे तुम्हारे लिए खतरा है, तो दीवार की ओर इस तरह जा रहूंगा, मानो अपना जूता ठीक कर रहा हूं, लेकिन तुम रास्ता चलते रहना ।

इसके बाद हज़रत अली रज़ि० रवाना हुए और मैं भी साथ-साथ चल पड़ा, यहां तक कि वह अन्दर दाखिल हुए और मैं भी उनके साथ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जा दाखिल हुआ और बोला-

‘आप मुझ पर इस्लाम पेश करें।’

आपने इस्लाम पेश फ़रमाया और मैं वहीं मुसलमान हो गया। इसके पास आपने मुझसे फ़रमाया-

‘ऐ अबूज़र ! इस मामले को अभी छिपाए रखो और अपने इलाक़े में वापस चले जाओ ! जब हमारे ज़ाहिर होने की खबर मिले, तो आ जाना ।’

मैंने कहा, उस ज्ञात की क़सम, जिसने आपको हक़ के साथ भेजा है, मैं तो उनके बीच खुल्लम खुल्ला इसका एलान करूंगा ।

इसके बाद मैं मस्जिदे हराम आया। कुरैश मौजूद थे। मैंने कहा—

नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं।’

‘कुरैश के लोगो ! मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई माबूद

लोग चिल्लाए, उठो, इस बेदीन (विधर्मी) की ख़बर लो।

लोग उठ खड़े हुए और मुझे इतना मारा कि मर जाता, लेकिन हज़रत अब्बास रज़ि० ने आकर बचाया।

उन्होंने मुझे झुककर देखा, फिर कुरैश की ओर पलटकर कहा-

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