अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 34

तीसरा मरहला

मक्का के बाहर इस्लाम की दावत

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तायफ़ में

शव्वाल सन् 10 नबवी (मई का अन्त या जून 619 ई० का शुरू) में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ताइफ़ तशरीफ़ ले गए। यह मक्के से एक सौ तीस किलोमीटर से ज़्यादा दूर है। आपने यह दूरी आते-जाते पैदल तै फ़रमाई थी। आपके साथ आपके आज़ाद किए हुए दास हज़रत ज़ैद बिन हारिसा थे।

रास्ते में जिस क़बीले से गुज़र होता, उसे इस्लाम की दावत देते, लेकिन किसी ने भी यह दावत कुबूल नहीं की। जब ताइफ़ पहुंचे तो क़बीला सक़ीफ़ के तीन सरदारों के पास तशरीफ़ ले गए, जो आपस में भाई थे और जिनके नाम ये थे—

अब्दिया लैल, मस्ऊद और हबीब ।

इन तीनों के पिता का नाम अम्र बिन उमैर सक़फ़ी था।

आपने उनके पास बैठने के बाद उन्हें अल्लाह की इताअत और इस्लाम की मदद की दावत दी। जवाब में एक ने कहा—

‘वह काबे का परदा फाड़े अगर अल्लाह ने तुम्हें रसूल बनाया हो। “

अल्लाह को तुम्हारे अलावा और कोई न मिला ?’ तीसरे ने कहा, ‘मैं तुमसे हरगिज़ बात न करूंगा। अगर तुम वाक़ई पैग़म्बर हो तो तुम्हारी बात रद्द करना मेरे लिए बहुत ही खतरनाक है और अगर तुमने अल्लाह पर झूठ गढ़ रखा है, तो फिर मुझे तुमसे बात करनी ही नहीं चाहिए।’ यह जवाब सुनकर आप वहां से उठ खड़े हुए और सिर्फ इतना कहा—

दूसरे ने कहा, ‘क्या

‘तुम लोगों ने जो कुछ किया, बहरहाल इसे छिपाए रखना।’

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ताइफ़ में दस दिन ठहरे रहे। इस बीच आप उनके एक-एक सरदार के पास तशरीफ ले गए और हर एक से बात की, लेकिन सबका एक ही जवाब था कि तुम हमारे शहर से निकल जाओ, बल्कि

1. यह उर्दू के उस मुहावरे से मिलता-जुलता है कि ‘अगर तुम पैग़म्बर हो, तो अल्लाह मुझे ग़ारत करे।’ अभिप्राय यह विश्वास व्यक्त करना है कि तुम्हारा पैग़म्बर होना नामुम्किन है, जैसे काबे के परदे पर हाथ डालना नामुम्किन है।

उन्होंने अपने गुंडों को उभार दिया।

चुनांचे जब आपने वापसी का इरादा किया, तो ये गुंडे गालियां देते, तालियां पीटते और शोर मचाते आपके पीछे लग गए और देखते-देखते इतनी भीड़ जमा हो गई कि आपके रास्ते के दोनों ओर लाइन लग गई। फिर गालियों और अपशब्दों के साथ-साथ पत्थर भी चलने लगे, जिससे आपकी एड़ी पर इतने घाव अए कि दोनों जूते खून में तर ब तर हो गये 1

इधर हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रजि० ढाल बनकर पत्थरों को रोक रहे थे, जिससे उनके सर में कई जगह चोट आई। बदमाशों ने यह सिलसिला बराबर जारी रखा, यहां तक कि आपको रबीआ के बेटों उत्बा और शैबा के एक बाग़ में पनाह लेने पर मजबूर कर दिया। यह बाग़ ताइफ़ से तीन मील की दूरी पर स्थित था।

जब आपने यहां पनाह ली तो भीड़ वापस चली गई और आप एक दीवार से टेक लगाकर अंगूर की बेल के साए में बैठ गए। कुछ इत्मीनान हुआ तो दुआ फ़रमाई, जो ‘कमज़ोरों की दुआ’ के नाम से मशहूर है। इस दुआ के एक-एक वाक्य से अन्दाज़ा किया जा सकता है कि ताइफ़ में इस दुष्टता को भोगने के बाद और किसी एक भी व्यक्ति के ईमान न लाने की वजह से आपका दिल कितना टूटा होगा और आपका मन दुख और अफ़सोस की भावनाओं से कितना भर गया होगा। आपने फ़रमाया-

‘ऐ अल्लाह ! मैं तुझी से अपनी कमज़ोरी, बेबसी और लोगों के नज़दीक अपनी बे-क़द्री का शिकवा करता हूं, ऐ दया करने वालों में सबसे बड़े दया करने वाले ! तू कमज़ोरों का रब है और तू ही मेरा भी रब है, तू मुझे किसके हवाले कर रहा है? क्या किसी बेगाने के, जो मेरे साथ दुव्यर्वहार करे या किसी दुश्मन के, जिसको तूने मेरे मामले का मालिक बना दिया है? अगर मुझ पर तेरा ग़ज़ब नहीं है तो मुझे कोई परवाह नहीं। लेकिन मेरी कुशलता का द्वार मेरे लिए ज़्यादा खुला हुआ है। मैं तेरे चेहरे के उस नूर की पनाह चाहता हूं जिससे अंधेरे जगमगा उठें और जिस पर दुनिया व आखिरत के मामले ठीक हुए कि तू मुझ पर अपना ग़ज़ब नाज़िल करे या तेरा गुस्सा मुझ पर उतरे। तेरी ही रज़ा मुझे चाहिए, यहां तक कि तू खुश हो जाए और तेरे बिना कोई ज़ोर और ताक़त नहीं।’

इधर आपको रबीआ के बेटों ने इस हालत में देखा तो उनकी रिश्तेदारी की भावना ने जोश मारा और उन्होंने अपने एक ईसाई दास को, जिसका नाम अदास था, बुलाकर कहा कि इस अंगूर से एक गुच्छा लो और उस व्यक्ति को दे

आओ । जब उसने अंगूर आपको दिया, तो आपने ‘बिस्मिल्लाह’ कहकर हाथ बढ़ाया और खाना शुरू किया।

अदास ने कहा, ‘यह वाक्य तो इस क्षेत्र के लोग नहीं बोलते ?’

रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया, तुम कहां के रहने वाले हो ? और तुम्हारा दीन क्या है ?

उसने कहा, ‘मैं ईसाई हूं और नैनवा का रहने वाला हूं।’

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, अच्छा, तुम भले व्यक्ति यूनुस बिन मत्ती की बस्ती के रहने वाले हो ।

उसने कहा, आप यूनुस बिन मत्ती को कैसे जानते हैं ?

हूं । रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया, वह मेरे भाई थे, वह नबी थे और मैं भी नबी

यह सुनकर अदास नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर झुक पड़ा और आपके सर और हाथ-पांव को बोसा दिया।

यह देखकर रबीआ के दोनों बेटों ने आपस में कहा, लो, अब इस व्यक्ति ने हमारे दास को बिगाड़ दिया।

इसके बाद जब अदास वापस आया तो दोनों ने उससे कहा, अजी ! यह क्या मामला था ?

उसने कहा, मेरे मालिक ! धरती पर इस व्यक्ति से बेहतर और कोई नहीं। उसने मुझे एक ऐसी बात बताई है जिसे नबी के सिवा कोई नहीं जानता ।

इन दोनों ने कहा, देखो अदास, कहीं यह व्यक्ति तुम्हें दीन से फेर न दे, क्योंकि तुम्हारा दीन इसके दीन से बेहतर है
थोड़ा ठहर कर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बाग़ से निकले तो मक्का के रास्ते पर चल पड़े। दुख व पीड़ा से तबियत निढाल और दिल टुकड़े-टुकड़े था। क़र्नेमनाज़िल पहुंचे तो अल्लाह के हुक्म से हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए। उनके साथ पहाड़ों का फ़रिश्ता था । वह आपसे यह निवेदन करने आया था कि आप हुक्म दें तो वह मक्का वालों को दो पहाड़ों के बीच पीस डाले ।

इस घटना को सविस्तार सहीह बुखारी में हज़रत आइशा रज़ि० से रिवायत किया गया है। उनका बयान है कि उन्होंने एक दिन अल्लाह के रसूल

खुलासा इब्ने हिशाम 1/419, 421
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मालूम किया कि क्या आप पर कोई दिन ऐसा भी आया है जो उहुद के दिन से ज़्यादा संगीन रहा हो ?

आपने फ़रमाया, हां। तुम्हारी क़ौम से मुझे जिन-जिन मुसीबतों का सामना करना पड़ा, उनमें सबसे संगीन मुसीबत वह थी, जिसमें मैं घाटी के दिन दो चार हुआ, जब मैंने अपने आपको अब्दिया लैल बिन अब्दे कुलाल के लड़के पर पेश किया, मगर उसने मेरी बात न मानी, तो मैं दुख और पीड़ा से निढाल अपने रुख पर चल पड़ा और मुझे क़नें सआलिब पहुंचकर ही सुकून हुआ। वहां मैंने सर उठाया तो क्या देखता हूं कि बादल का एक टुकड़ा मुझ पर छाया हुआ है। मैंने ध्यान से देखा तो उसमें हज़रत जिबील थे। उन्होंने मुझे पुकारकर कहा-

आपकी क़ौम ने आपको जो बात कही, अल्लाह ने उसे सुन लिया है। अब उसने आपके पास पहाड़ों का फ़रिश्ता भेजा है, ताकि आप उनके बारे में उन्हें जो चाहें हुक्म दें।

इनके बाद पहाड़ों के फ़रिश्ते ने मुझे आवाज़ दी और सलाम करने के बाद कहा—

… ऐ मुहम्मद सल्ल० ! बात यही है। अब आप जो चाहें… मैं इन्हें दो पहाड़ों के बीच कुचल दूं, तो ऐसा ही होगा । अगर चाहें कि

नबी सल्ल० ने फ़रमाया, नहीं, बल्कि मुझे उम्मीद है कि अल्लाह उनकी पीठ से ऐसी नस्ल पैदा करेगा जो सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत करेगी और उसके साथ किसी चीज़ को शरीक न ठहराएगी 12

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस जवाब में आपकी महानता और चरित्र की श्रेष्ठता की झलक देखी जा सकती है। बहरहाल अब सात आसमानों के ऊपर से आने वाली इस ग़ैबी (अप्रत्यक्ष) मदद की वजह से आपका दिल सन्तुष्ट हो गया और दुख व कष्ट के बादल छंट गये। चुनांचे आप मक्के के रास्ते पर और आगे बढ़े और नख्ला की घाटी में ठहरे।

1. इस मौके पर सहीह बुखारी में शब्द ‘अख़्शबीन’ इस्तेमाल किया गया है, जो मक्का के दो मशहूर पहाड़ों अबू क़बीस और कैक्रआन के लिए बोला जाता है। ये दोनों पहाड़ क्रमवार हरम के दक्षिण-उत्तर में आमने-सामने स्थित हैं। उस वक्त मक्के की आम आबादी इन्हीं दो पहाड़ों के बीच में थी।

2. सहीह बुखारी किताब ब-दअल खल्क 1/458, मुस्लिम बाब मालक़ियन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मन अज़ल मुश्किीन वल मुनाफ़िक़ीन 2/109

यहां दो जगहें ठहरने लायक हैं—एक अस्सैलुल कबीर और दूसरे जैमा, क्योंकि दोनों ही जगह पानी और हरियाली मौजूद हैं, लेकिन किसी स्रोत से यह न मालूम हो सका कि आप इनमें से किस जगह ठहरे थे।

नख्ला की घाटी में आप कुछ दिन ठहरे रहे। इस बीच अल्लाह ने आपके पास जिन्नों का एक दल भेजा जिसका उल्लेख कुरआन मजीद में दो जगह हुआ है। एक सूरः अहक़ाफ़ में दूसरे सूरः जिन्न में सूरः अहक़ाफ़ की आयतें ये हैं-

‘और जबकि हमने आपकी ओर जिन्नों के एक गिरोह को फेरा कि वे कुरआन सुनें, तो जब वे क़ुरआन (की तिलावत) की जगह पहुंचे तो उन्होंने आपस में कहा कि चुप हो जाओ। फिर जब उसकी तिलावत पूरी की जा चुकी, तो वे अपनी क़ौम की ओर अज़ाबे इलाही से डराने वाले बनकर पलटे । उन्होंने कहा, ऐ हमारी क़ौम ! हमने एक किताब सुनी है जो मूसा के बाद उतारी गई है, अपने से पहले की तस्दीक़ करने वाली है, हक़ और सीधे रास्ते की ओर रहनुमाई करती है। ऐ हमारी क़ौम ! अल्लाह की ओर बुलाने वाले की बात मान लो और उस पर ईमान ले आओ, अल्लाह तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से बचाएगा ।’ (46: 29-31)

सूरः जिन्न की आयतें ये हैं-

‘आप कह दें, मेरी ओर यह वह्य की गई है कि जिन्नों की एक जमाअत ने कुरआन सुना, और आपस में कहा कि हमने एक विचित्र कुरआन सुना है जो सीधी रहनुमाई करता है। हम उस पर ईमान लाए हैं और हम अपने रब के साथ किसी को हरगिज़ शरीक नहीं कर सकते।’ (सूरः जिन्न की 15 आयतों तक)

ये आयतें जो इस घटना का उल्लेख कर रही हैं, इनके आगे-पीछे पढ़ने से लगता है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को शुरू में जिन्नों के इस दल के आने का ज्ञान न हो सका था, बल्कि जब इन आयतों के ज़रिए अल्लाह की ओर से आपको खबर दी गई तब आप जान सके। यह भी मालूम होता है कि जिन्नों का यह आना पहली बार हुआ था और हदीसों से पता चलता है कि इसके बाद उनका आना-जाना होता रहा।

जिन्नों के आने और उनके इस्लाम स्वीकार करने की घटना वास्तव में अल्लाह की ओर से दूसरी मदद थी, जो उसने अपने परदे की तहों में छिपे खज़ाने से इस

1. देखिए सहीह बुखारी, किताबुस्सलात, बाबु अल जहरु बिकिराति सलातिल फुज्रि 1/195
दल के ज़रिए फ़रमाई थी, जिसका ज्ञान अल्लाह के सिवा किसी को नहीं। फिर इस घटना के ताल्लुक़ से जो आयतें उतरीं, उनके बीच में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दावत की कामियाबी की खुशखबरियां भी हैं और इस बात की व्याख्या भी कि सृष्टि की कोई भी ताक़त इस दावत की कामियाबी के रास्तों में रुकावट नहीं हो सकती, चुनांचे इर्शाद है-

‘जो अल्लाह की ओर बुलाने वाले की दावत न कुबूल करे, वह ज़मीन में (अल्लाह को) बेबस नहीं कर सकता और अल्लाह के सिवा उसका कोई कर्त्ता-धर्त्ता है भी नहीं और ऐसे लोग खुली हुई गुमराही में हैं।’ (46:32) “हमारी समझ में आ गया है कि हम अल्लाह को ज़मीन में बेबस नहीं कर

सकते और न हम भाग कर ही उसे (पकड़ने में) विवश कर सकते हैं।’

(72:12)

इस मदद और इन खुशखबरियों के सामने दुख, कष्ट और निराशा के वे सारे बादल छट गए जो ताइफ़ से निकलते वक़्त गालियां और तालियां सुनने और पत्थर खाने की वजह से आप पर छाए गए थे। आपने पक्का इरादा कर लिया कि अब मक्का पलटना है और नए सिरे से इस्लाम की दावत और रिसालत की तब्लीग़ के काम में चुस्ती और मुस्तैदी के साथ लग जाना है। यही मौका था जब हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ि० ने आपसे कहा कि आप मक्का कैसे जाएंगे, जबकि वहां के रहने वालों ने यानी कुरैश ने आपको निकाल दिया है ?

जवाब में आपने फ़रमाया, ऐ ज़ैद ! तुम जो हालत देख रहे हो, अल्लाह उससे बचाने और नया रास्ता बनाने की कोई शक्ल ज़रूर पैदा करेगा। अल्लाह यक़ीनन अपने दीन की मदद करेगा और अपने नबी को ग़ालिब फरमाएगा ।

आखिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम वहां से रवाना हुए और मक्के के क़रीब पहुंच कर हिरा पहाड़ी के दामन में ठहर गए। फिर खुज़ाआ के एक आदमी के ज़रिए अखनस बिन शुरैक़ को यह सन्देश भेजा कि वह आपको पनाह दे दे, पर अखनस ने यह कहकर विवशता दिखाई कि मैं कुरैश का मित्र हूं और मित्र पनाह देने का अधिकार नहीं रखता ।

इसके बाद आपने सुहैल बिन अम्र के पास यही सन्देश भेजा, पर उसने भी यह कहकर विवशता दिखाई कि बनू आमिर की दी हुई पनाह बनू काब पर लागू नहीं होती ।

इसके बाद आपने मुतइम बिन अदी के पास पैग़ाम भेजा ।

मुतइम ने कहा, हां। और फिर हथियार पहनकर अपने बेटों और क़ौम के
लोगों को बुलाया और कहा कि तुम लोग हथियार बांध कर खाना कावा के कोनों में जमा हो जाओ, क्योंकि मैंने मुहम्मद सल्ल० को पनाह दे दी है।

इसके बाद मुतइम ने रसूलुल्लाह सल्ल० के पास पैग़ाम भेजा कि मक्के के अन्दर आ जाओ ।

आप पैग़ाम पाने के बाद हज़रत जैद बिन हारिसा रजि० को साथ लेकर मक्का तशरीफ लाए और मस्जिदे हराम में दाखिल हो गए। इसके बाद मुतइम बिन अदी ने अपनी सवारी पर खड़े होकर एलान किया कि कुरैश के लोगो ! मैंने मुहम्मद को पनाह दे दी है, अब उसे कोई न छेड़े।

इधर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सीधे हजरे अस्वद के पास पहुंचे, उसे चूमा, फिर दो रक्अत नमाज़ पढ़ी और अपने घर को पलट आए। इस बीच मुतइम बिन अदी और उनके लड़कों ने हथियार बन्द होकर आपके चारों ओर हलका उस वक़्त तक बांधे रखा, जब तक कि आप अपने मकान के अन्दर तशरीफ़ न ले गए।

कहा जाता है कि इस मौके पर अबू जहल ने मुतइम से पूछा था, तुमने पनाह दी है या पैरवी करने वाले (यानी मुसलमान) बन गए हो ?

मुतइम ने जवाब दिया था, पनाह दी है।

इस जवाब को सुनकर अबू जहल ने कहा था, जिसे तुमने पनाह दी, उसे हमने भी पनाह दी।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुतइम बिन अदी के सद्व्यवहार को कभी न भुलाया, चुनांचे बद्र में जब मक्का के कुफ्फार की एक बड़ी तायदाद क़ैद होकर आई और कुछ क़ैदियों की रिहाई के लिए हज़रत जुबैर बिन मुतइम रजि० आपकी सेवा में आए, तो आपने फ़रमाया-

‘अगर मुतइम बिन अदी ज़िंदा होता, फिर मुझसे इन बदबूदार लोगों के बारे में बातें करता, तो उसके लिए मैं इन सबको छोड़ देता। 2

1. इब्ने हिशाम 1/381 (संक्षिप्त), जादुल मआद 2/46, 47 2. सहीह बुखारी 2/573

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