अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 32



काग़ज़ फाड़ दिया जाता है

इन हालात पर पूरे तीन साल गुज़र गए। इसके बाद मुहर्रम 10 नबवी’ में काग़ज़ फाड़े जाने और इस अत्याचारपूर्ण संकल्प को खत्म किए जाने की यह घटना घटी। इसकी वजह यह थी कि शुरू ही से कुरैश के कुछ लोग अगर इस संकल्प से प्रसन्न थे, तो कुछ नाराज़ भी थे और इन्हीं नाराज़ लोगों ने इस काग़ज़ को फाड़ देने की कोशिश की।

इनमें असल हौसला दिखाने वाला क़बीला बनू आमिर बिन लुई का हिशाम बिन अम्र नाम का एक व्यक्ति था। यह रात के अंधेरे में चुपके-चुपके शेबे अबी तालिब के भीतर अनाज भेजकर बनू हाशिम की मदद भी किया करता था—यह जुहैर बिन अबी उमैया मख्ज़ूमी के पास पहुंचा—जुहैर की मां आतिका, अब्दुल मुत्तलिब की बेटी यानी अबू तालिब की बहन थीं और उससे कहा-

‘जुहैर ! क्या तुम्हें यह पसन्द है कि तुम मज़े से खाओ, पियो और तुम्हारे मामूं का वह हाल है जिसे तुम जानते हो ?’

जुहैर ने कहा, मैं अकेला क्या कर सकता हूं? हां, अगर मेरे साथ कोई आदमी होता, तो मैं इस काग़ज़ को फाड़ने के लिए यक़ीनन उठ खड़ा होता। उसने कहा, अच्छा तो एक आदमी और मौजूद है।

पूछा, कौन है ?

कहा, मैं हूं ।

जुहैर ने कहा, अच्छा तो अब तीसरा आदमी खोजो ।

इस पर हिशाम, मुतअम बिन अदी के पास गया और बनू हाशिम और बनू मुत्तलिब से, जो कि अब्दे मुनाफ़ की औलाद थे, मुतइम के क़रीबी खानदानी ताल्लुक़ का ज़िक्र करके उसे मलामत की कि उसने इस जुल्म पर कुरैश की हां में हां कैसे मिलाया ? (याद रहे कि मुतइम भी अब्दे मुनाफ़ ही की नस्ल से था) मुतइम ने कहा, अफ़सोस ! मैं अकेला क्या कर सकता हूं ? हिशाम ने कहा, एक आदमी और मौजूद है।

1. इसकी दलील यह है कि अबू तालिब की वफ़ात काग़ज़ फाड़े जाने के छः महीने के बाद हुई और सही बात यह है कि उनकी मौत रजब के महीने में हुई थी और जो लोग यह कहते हैं कि उनकी वफ़ात रमज़ान में हुई थी, वे यह भी कहते हैं कि उनकी वफात काग़ज़ फाड़े जाने के छः महीने बाद नहीं, बल्कि आठ माह और कुछ दिन बाद हुई थी। दोनों शक्लों में वह महीना जिसमें काग़ज़ फाड़ा गया, मुहर्रम साबित होता है।

मुतइम ने पूछा, कौन है?

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हिशाम ने कहा, मैं ।

मुतइम ने कहा, अच्छा एक तीसरा आदमी खोजो ।

हिशाम ने कहा, यह भी कर चुका हूं।

पूछा, वह कौन है ?

कहा, जुहैर बिन अबी उमैया ।

मुतइम ने कहा, अच्छा तो अब चौथा आदमी खोजो ।

इस पर हिशाम बिन अम्र अबुल बख्तरी बिन हिशाम के पास गया और उससे भी इसी तरह की बात की, जैसी मुतइम से की थी ।

उसने कहा, भला कोई इसकी ताईद भी करने वाला ?

हिशाम ने कहा, हां।

है है

पूछा, कौन ?

कहा, जुहैर बिन अबी उमैया, मुतइम बिन अदी और मैं। उसने कहा, अच्छा तो अब पांचवां आदमी ढूंढो ।

इसके लिए हिशाम, ज़मआ बिन अस्वद बिन मुत्तलिब बिन असद के पास गए और उससे बातों-बातों में बनू हाशिम की रिश्तेदारी और उनके हक़ याद दिलाए ।

उसने कहा, भला जिस काम के लिए मुझे बुला रहे हो, उससे कोई और भी सहमत है ?

हिशाम ने हां में सर हिलाया और सबके नाम बता दिए ।

इसके बाद उन लोगों ने जहून के पास जमा होकर यह संकल्प लिया कि काग़ज़ फाड़ देना है। जुहैर ने कहा, मैं शुरूआत करूंगा, यानी सबसे पहले मैं ही ज़ुबान खोलूंगा ।

सुबह हुई तो सब लोग हर दिन की तरह अपनी-अपनी सभाओं में पहुंचे। जुहैर भी सज-धजकर पहुंचा, पहले बैतुल्लाह के सात चक्कर लगाए, फिर लोगों को संबोधित करके बोला-

‘मक्का वालो ! क्या हम खाना खाएं, कपड़े पहनें और बनू हाशिम तबाह व बर्बाद हों, न उनके हाथ कुछ बेचा जाए, न उनसे कुछ खरीदा जाए। ख़ुदा की क़सम ! मैं बैठ नहीं सकता, यहां तक कि इस ज़ुल्म भरे और रिश्तेदारियों के तोड़ने वाले काग़ज़ को फाड़ दिया जाए।’

अबू जहल, जो मस्जिदे हराम के एक कोने में मौजूद था, बोला, ‘तुम ग़लत कहते हो, खुदा की क़सम ! उसे फाड़ा नहीं जा सकता।’

इस पर ज़मआ बिन अस्वद ने कहा, खुदा की क़सम ! तुम ग़लत कहते हो जब यह काग़ज़ लिखा गया था, तब भी हम उससे राज़ी न थे।

इस पर अबुल बख्तरी ने गिरह लगाई, ज़मआ ठीक कह रहा है। इसमें जो कुछ लिखा गया है, उससे न हम राज़ी हैं, न इसे मानने को तैयार हैं।

इसके बाद मुतइम बिन अदी ने कहा, ‘तुम दोनों ठीक कहते हो और जो इसके खिलाफ़ कहता है, ग़लत कहता है। हम इस काग़ज़ से और जो कुछ इसमें लिखा गया है उससे अल्लाह के हुज़ूर अलग होने का एलान करते हैं।’

फिर हिशाम बिन अम्र ने भी इसी तरह की बात कही।

यह स्थिति देखकर अबू जहल ने कहा, ‘हुंह ! यह बात रात में तै की गई है और इसका मश्विरा यहां के बजाए कहीं और किया गया है।’

इस बीच अबू तालिब भी हरम पाक के एक कोने में मौजूद थे। उनके आने की वजह यह थी कि अल्लाह ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इस काग़ज़ के बारे में यह खबर दी कि उस पर अल्लाह ने कीड़े भेज दिए हैं, जिन्होंने ज़ुल्म व सितम और नातेदरी के काटने की सारी बातें चट कर ली हैं और सिर्फ़ अल्लाह का नाम बाक़ी छोड़ा है।

फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने चचा को यह बात बताई तो वह कुरैश से यह कहने आए थे कि उनके भतीजे ने उन्हें यह और यह ख़बर दी है, अगर वह झूठा साबित हुआ तो हम तुम्हारे और उसके बीच से हट जाएंगे, फिर तुम्हारा जो जी चाहे, करना, लेकिन अगर वह सच्चा साबित हुआ तो तुम्हें हमारे बाइकाट और ज़ुल्म से रुक जाना होगा।

इस पर कुरैश ने कहा था, आप इंसाफ़ की बात कर रहे हैं।

इधर अबू जहल और बाक़ी लोगों की नोक-झोंक खत्म हुई तो मुतइम बिन अदी काग़ज़ फाड़ने के लिए उठा। क्या देखता है कि वाक़ई कीड़ों ने उसका सफाया कर दिया है, सिर्फ़ ‘बिस्मिल्लाहुम-म’ बाक़ी रह गया है और जहां-जहां अल्लाह का नाम था, वह बचा है। कीड़ों ने उसे नहीं खाया था ।
इसके बाद काग़ज़ फट गया।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और बाक़ी तमाम लोग शेबे अबी ताबिल से निकल आए।

मुश्किों ने आपके नबी होने की एक शानदार निशानी देखी, लेकिन उनका

रवैया वही रहा, जिसका उल्लेख इस आयत में है-

‘अगर वे कोई निशानी देखते हैं तो रुख फेर लेते हैं और कहते हैं कि यह तो चलता-फिरता जादू है ।’ (542)

चुनांचे मुश्किों ने इस निशानी से भी रुख फेर लिया और अपने कुन की राह में कुछ क़दम और आगे बढ़ गए।’

1. बाइकाट का यह विस्तृत विवरण नीचे लिखे स्रोतों से लिया गया है—सहीह बुखारी बाब नुज़ूलुन्नबी सल्ल० बिमक्क-त 1/216, बाब तक़ासमुल मुश्किीन अलन्नबी सल्ल० 1/548, ज़ादुल मआद 2/46, इब्ने हिशाम 1/350, 351, 374-377 इन स्रोतों में कुछ-कुछ मतभेद हैं। हमने जांच-परख कर तर्जीही पहलू नोट किया है।


अबू तालिब की सेवा में कुरैश का आख़िरी प्रतिनिधि मंडल

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शेबे अबी तालिब से निकलने के बाद फिर पहले की तरह दीन के प्रचार-प्रसार का काम शुरू कर दिया और अब मुश्किों ने अगरचे बाइकार खत्म कर दिया था, लेकिन वे भी पहले की तरह मुसलमानों पर दबाव डालने और अल्लाह के रास्ते से रोकने का सिलसिला जारी रखे हुए थे और जहां तक अबू तालिब का ताल्लुक़ है, तो वह भी अपनी पुरानी परंपरा के मुताबिक़ पूरी तवज्जोह से अपने भतीजे की हिमायत और हिफ़ाज़त में लगे हुए थे, लेकिन अब उनकी उम्र अस्सी से भी ज़्यादा हो चुकी थी। कई साल से लगातार आ रही परेशानियों ने और ख़ास तौर से क़ैद व बंद ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था। उनके जिस्म की ताक़त जवाब दे चुकी थी और कमर टूट चुकी थी, चुनांचे घाटी से निकलने के बाद कुछ ही महीने बीते थे कि उन्हें बड़ी बीमारी ने आ पकड़ा।

इस मौक़े पर मुश्किों ने सोचा कि अगर अबू तालिब का इंतिक़ाल हो गया और उसके बाद हमने उसके भतीजे पर कोई ज़्यादती की, तो बड़ी बदनामी होगी, इसलिए अबू तालिब के सामने ही नबी सल्ल० से कोई मामला तै कर लेना चाहिए। इस सिलसिले में वे कुछ ऐसी रियायतें देने को तैयार हो गए जिस पर अभी तक राज़ी न थे। चुनांचे उनका एक दल अबू तालिब की सेवा में आया और यह उनका अन्तिम दल था ।

इब्ने इस्हाक़ वग़ैरह का बयान है कि जब अबू तालिब बीमार पड़ गए और कुरैश को मालूम हुआ कि उनकी हालत बहुत खराब होती जा रही है, तो उन्होंने आपस में कहा कि देखो हमज़ा और उमर रज़ि० मुसलमान हो चुके हैं और मुहम्मद (सल्ल०) का दीन हर क़बीले में फैल चुका है, इसलिए चलो, अबू तालिब के पास चलें कि वह अपने भतीजे को किसी बात का पाबंद करें और हम से भी उनके बारे में वचन ले लें, क्योंकि ख़ुदा की क़सम ! हमें डर है, लोग हमारे क़ाबू में न रहेंगे ।

एक रिवायत यह है कि हमें डर है कि वह बढ़ा मर गया और मुहम्मद सल्ल० के साथ कोई गड़बड़ हो गई, तो अरब हमें ताने देंगे, कहेंगे कि इन्होंने मुहम्मद (सल्ल०) को छोड़े रखा (और उनके खिलाफ़ कुछ करने की हिम्मत नकी) लेकिन जब उसका चचा मर गया तो उस पर चढ़ दौड़े।

बहरहाल कुरैश का यह दल अबू तालिब के पास पहुंचा और उनसे बातें कीं। दल के सदस्य कुरैश के प्रतिष्ठित जन थे यानी उत्वा बिन रबीआ, शैवा निव रबीआ, अबू जहल बिन हिशाम, उमैया बिन खल्फ, अबू सुफ़ियान बिन हर्ब और कुरैश के दूसरे बड़े लोग, जिनकी कुल तायदाद लगभग पचीस थी, उन्होंने कहा-

‘ऐ अबू तालिब ! हमारे बीच आपका जो पद और स्थान है, उसे आप अच्छी तरह जानते हैं और अब आप जिस हालत से गुज़र रहे हैं, वह भी आपके सामने है। हमें डर है कि ये आपकी उम्र के आखिरी दिन हैं। इधर हमारे और आपके भतीजे के बीच जो मामला चल रहा है, उसे भी आप जानते हैं। हम चाहते हैं कि आप उन्हें बुलाएं और उनके बारे में हम से कुछ वचन लें और हमारे बारे में उनसे वचन लें, यानी यह कि वे हमको हमारे दीन पर छोड़ दें और हम उनको उनके दीन पर छोड़ दें।’

इस पर अबू तालिब ने आपको बुलवाया और आप तशरीफ़ लाए कहा- तो

‘भतीजे ! ये तुम्हारी क़ौम के सरदार लोग हैं। तुम्हारे ही लिए जमा हुए हैं। ये चाहते हैं कि तुम्हें कुछ वचन दें और तुम भी इन्हें कुछ वचन दे दो ।’

इसके बाद अबू तालिब ने उनकी यह बात बताई कि कोई भी फ़रीक़ एक दूसरे से छेड़छाड़ न करे ।

जवाब में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने दल को सम्बोधित करके फ़रमाया, आप लोग यह बताएं कि अगर मैं एक ऐसी बात पेश करूं, जिसके अगर आप क़ायल हो जाएं, तो अरब के बादशाह बन जाएं और अजम आपके पैरों में आ जाएं, तो आपकी राय क्या होगी ?

कुछ रिवायतों में यह कहा गया है कि आपने अबू तालिब को सम्बोधित करके फ़रमाया, मैं उनसे एक ऐसी बात चाहता हूं जिसके ये क़ायल हो जाएं तो अरब इनके आज्ञाकारी बन जाएं और अजम इन्हें जिज़या अदा करें।

एक और रिवायत में इसका उल्लेख है कि आपने फ़रमाया, चचा जान ! आप क्यों न इन्हें एक ऐसी बात की ओर बुलाएं जो इनके हक़ में बेहतर है ? ?

उन्होंने कहा, तुम इन्हें किस बात की ओर बुलाना चाहते हो

आपने फ़रमाया, मैं एक ऐसी बात की ओर बुलाना चाहता हूं जिसके ये क़ायल हो जाएं तो अरब इनके आज्ञाकारी हो जाएं और अजम पर इनक ीबादशाही चले।

इब्ने इस्हाक़ की एक रिवायत यह है कि आपने फ़रमाया-

आप लोग सिर्फ एक बात मान लें जिसकी वजह से आप अरब के बादशाह बन जाएंगे और अजम आपके क़दमों में होगा।

बहरहाल जब आपने यह बात कही तो वे लोग कुछ संकोच में पड़ गए और सटपटा से गए। वे हैरान थे कि सिर्फ़ एक बात जो इतनी फ़ायदेमंद है, उसे रद्द कैसे कर दें ? आखिरकार अबू जहल ने कहा-

‘अच्छा तो बताओ वह बात है क्या? तुम्हारे बाप की क़सम ! ऐसी एक बात क्या, दस बातें भी पेश करो, जो हम मानने को तैयार हैं?’

आपने फ़रमाया, ‘आप लोग ला इला-ह इल्लल्लाहु कहें और अल्लाह के सिवा जो कुछ पूजते हैं उसे छोड़ दें।’

इस पर उन्होंने हाथ पीट-पीटकर और तालियां बजा-बजाकर कहा, ‘मुहम्मद (सल्ल०) ! तुम यह चाहते हो कि सारे खुदाओं की जगह बस एक ही ख़ुदा बना डालो, वाक़ई तुम्हारा मामला बड़ा अजीब है।’

फिर आपस में एक दूसरे से बोले, ‘खुदा की क़सम ! यह व्यक्ति तुम्हारी एक बात मानने को तैयार नहीं, इसलिए चलो और अपने बाप-दादों के दीन पर डट जाओ, यहां तक कि अल्लाह हमारे और इस व्यक्ति के बीच फ़ैसला कर दे।’

इसके बाद उन्होंने अपना-अपना रास्ता लिया। इस घटना के बाद इन्हीं लोगों के बारे में कुरआन मजीद की ये आयतें उतरीं—

‘साद, क़सम है नसीहत भरे कुरआन की, बल्कि जिन्होंने कुफ्फ़ किया, हेकड़ी और ज़िद में हैं। हमने कितनी ही क़ौमें इनसे पहले हलाक कर दीं और वे चीखे-चिल्लाए (लेकिन उस वक़्त) जबकि बचने का समय न था। उन्हें ताज्जुब है कि उनके पास खुद उन्हीं में से एक डराने वाला आ गया। काफ़िर कहते हैं कि यह जादूगर है, बड़ा झूठा है। क्या उसने सारे माबूदों की जगह बस एक ही माबूद बना डाला ! यह तो बड़ी अजीब बात है और उनके बड़े यह कहते हुए निकले कि चलो और अपने माबूदों पर डटे रहो। यह एक सोची-समझी स्कीम है। हमने किसी और मिल्लत में यह बात नहीं सुनी। यह सिर्फ़ गढ़ी हुई बात है।’ 1 (38: 1-7)

1. इब्ने हिशाम 1/417 से 419 तक, तिर्मिज़ी, हदीस न० 3232 (5/341) मुस्नद अबू याला हदीस न० 2583, (4/456) तफ्सीर इब्ने जरीर,