
विरोध के नित नए रूप
जब कुरैश ने देखा कि मुहम्मद सल्ल० को दीन की तब्लीग़ (धर्म-प्रचार) से रोकने का कोई उपाय सफल नहीं हो रहा है, तो एक बार फिर उन्होंने सोच-विचार किया और आपकी दावत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अलग-अलग तरीक़े अपनाए, जिनका सार यह है-
1. हंसी, ठठ्ठा, झुठलाना, और अपमानित करना
इसका उद्देश्य यह था कि मुसलमानों को बद-दिल करके उनके हौसले तोड़
1. इब्ने हिशाम 1/271
2. मुस्नद अहमद, 3/492, 4/341 में उसकी यह हरकत रिवायत की गई है, साथ ही देखिए अल-बिदाया वन्निहाया 5/75, कंजुल उम्माल 13/449, 450,
दिए जाएं। इसके लिए मुश्किों ने नबी सल्ल० पर निराधार आरोप लगाए और बेहूदा गालियां भी दीं।
चुनांचे वे कभी आपको पागल कहते, जैसा कि इर्शाद है-
‘इन दुश्मनों ने कहा कि ऐ वह व्यक्ति, जिस पर कुरआन उतरा, तू यक़ीनी तौर पर पागल है।’ (15:6)
और कभी आप पर जादूगर और झूठे होने का आरोप लगाते। चुनांचे इर्शाद है-
‘उन्हें हैरत है कि खुद उन्हीं में से एक डराने वाला आया और दुश्मन कहते हैं कि यह जादूगर है, झूठा है।’ (384)
ये दुश्मन आपके आगे-पीछे आक्रोश से भरे हुए, बदले की भावना से ओत-प्रोत और उत्तेजित होकर चलते थे। कहा गया-
‘और जब दुश्मन इस कुरआन को सुनते हैं, तो आपको ऐसी निगाहों से देखते हैं, मानो आपके क़दम उखाड़ देंगे और कहते हैं कि यह निश्चय ही पागल है।’ (68: 51)
और जब आप किसी जगह पधार रहे होते और आपके आस-पास कमज़ोर और मज़्लूम सहाबा किराम रज़ि० मौजूद होते, तो उन्हें देखकर ये मुश्कि मज़ाक़ उड़ाते हुए कहते-
‘अच्छा, यही लोग हैं, जिन पर अल्लाह ने हमारे बीच से चुनकर एहसान किया है।’ (6:53)
जवाब में अल्लाह ने फ़रमाया-
‘क्या अल्लाह शुक्रगुज़ारों को सबसे ज़्यादा नहीं जानता ?’ (6:53) आम तौर से मुश्किों की मनोदशा वही थी, जिसका चित्र नीचे लिखी आयतों में खींचा गया है-
‘जो अपराधी थे, वे ईमान लाने वालों का उपहास करते थे और जब उनके पास से गुज़रते तो आंखें मारते थे और जब अपने घरों को पलटते थे तो मज़ा लेते हुए पलटते थे और जब उन्हें देखते तो कहते कि यही गुमराह है, हालांकि वे उन पर निगरां बनाकर नहीं भेजे गए थे।’ (83: 29-33)
उन्होंने हंसी, ठठ्ठा, उपहास में हद कर दी और ताने देने और अपमानित करने में धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए, यहां तक कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तबियत पर उसका असर पड़ा, जैसा कि अल्लाह का इर्शाद है—
‘हम जानते हैं कि ये लोग जो बातें करते हैं, उससे आपका सीना तंग होता
है, लेकिन फिर अल्लाह ने आपको जमाव अता किया और बताया कि सीने यह तंगी किस तरह जा सकती है, चुनांचे फ़रमाया-
‘तो अपने रब की हम्द के साथ उसकी तस्बीह करो और सज्दागुज़ारों में से हो जाओ। और अपने परवरदिगार की इबादत करे जाओ, यहां तक कि मौत आ जाए।’ और इससे पहले यह भी बतला दिया कि इन उपहास करने वालों से निमटने के लिए अल्लाह ही काफ़ी है। चुनांचे फ़रमाया-
‘हम आपके लिए उपहास करने वालों से (निमटने को) काफ़ी हैं, जो अल्लाह के साथ दूसरे माबूद ठहारते हैं। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा।’
(अल-हिज्र : 95-96)
अल्लाह ने यह भी बतलाया कि उनकी यह हरकत जल्द ही वबाल बनकर उन पर पलटेगी। चुनांचे इर्शाद हुआ-
‘आपसे पहले पैग़म्बरों का भी उपहास किया गया, तो उनकी हंसी उड़ाने वाले, जो उपहास कर रहे थे, उसने उन्हीं को घेर लिया।’ (अल-अंबिया 41 )
विरोध का दूसरा तरीक़ा
सन्देह पैदा कर देना और ज़बरदस्त झूठा प्रोपगंडा करना, यह काम उन्होंने इतना अधिक किया और ऐसे-ऐसे ढंग से किया कि आम लोगों को दावत व तब्लीग़ पर सोच-विचार का मौक़ा ही न मिल सका। चुनांचे वे कुरआन के बारे में कहते कि ये उलझे सपने हैं, जिसे मुहम्मद रात में देखते और दिन में तिलावत कर देते हैं। कभी कहते, ‘बल्कि इसे उन्होंने खुद ही गढ़ लिया है। कभी कहते, इन्हें कोई इंसान सिखाता है। कभी कहते, यह कुरआन तो सिर्फ झूठ है, इसे मुहम्मद (सल्ल०) ने गढ़ लिया है और कुछ दूसरे लोगों ने इस पर इनकी मदद की है, यानी आपने और आपके साथियों ने मिलकर इसे गढ़ लिया है और यह भी कहा कि ये पिछलों की कहानियां हैं, जिन्हें उसने लिखवा लिया है, अब ये उसे सुबह व शाम पढ़े जाते हैं।
कभी यह कहते हैं कि काहिनों की तरह आप पर भी कोई जिन्न या शैतान उतरता है। अल्लाह ने उनको रद्द करते हुए फ़रमाया-
‘आप कह दें मैं बतलाऊं किस पर शैतान उतरते हैं, हर झूठ गढ़ने वाले गुनाहगार पर उतरते हैं।’
तुम यानी शैतान तो झूठे और गुनाहों में लथ-पथ लोगों पर उतरता है और लोगों ने मुझसे न कभी कोई झूठ सुना और न मुझमें कभी कोई फ़िस्क़ (नाफरमानी के काम) देखें, फिर कुरआन को शैतान का उतारा हुआ कैसे क़रार दे सकते हो ?
कभी उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में यह कहा कि आप एक क़िस्म के जुनून में पड़े हुए हैं जिसकी वजह से आप विचारों में उड़ते हैं और उन्हें अच्छे और नए क़िस्म के कलिमों में ढाल लेते हैं, जिस तरह कवि लोग अपने विचारों को शब्द के नए परिधान में प्रस्तुत करते हैं, इसलिए वह भी कवि हैं और उनकी वाणी काव्य है। अल्लाह ने इनको रद्द करते हुए फ़रमाया-
‘कवियों के पीछे तो गुमराह लोग चलते हैं। तुम देखते नहीं कि वे हर वादी का चक्कर काटते हैं और ऐसी बातें कहते हैं जिन्हें करते नहीं।’ अर्थात इन कवियों की तीन विशेषताएं हैं और उनमें से कोई भी विशेषता नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम में मौजूद नहीं। चुनांचे जो लोग आपकी पैरवी करने वाले हैं, वे हिदायत पाने वाले हैं। अपने धर्म, चरित्र, ईमान और कामों, हर चीज़ में भले, नेक और अल्लाह का डर रखने वाले हैं। उन पर उनकी ज़िंदगी के किसी भी मामले में गुमराही का नाम व निशान नहीं। फिर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कवियों की तरह हर वादी का चक्कर नहीं काटते, बल्कि एक रब, एक दीन और एक रास्ते की दावत देते हैं। इसके अलावा आप वही कहते हैं जो करते हैं और वही करते हैं, जो कहते हैं, इसलिए आपको कवियों और उनके वाक्य से क्या वास्ता ? और कवियों और उनके काव्य को आपसे क्या वास्ता ?
यों वे लोग, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खिलाफ़, कुरआन व इस्लाम के खिलाफ जो शक भी पैदा करते थे अल्लाह उसका भरपूर और सन्तोषजनक जवाब देता था।
उनको अधिकतर सन्देह, तौहीद, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रिसालत और मरने के बाद क्रियामत के दिन दोबारा उठाए जाने से मुताल्लिक़ हुआ करते थे। कुरआन ने तौहीद के बारे में उनके हर सन्देह का खंडन किया है, बल्कि आगे बढ़कर कुछ ऐसी बातें भी बयान की हैं जिनसे इस विवाद का हर पहलू स्पष्ट हो गया है और उसका कोई पहलू बाक़ी नहीं छोड़ा है। इस सिलसिले में उनके माबूदों (उपास्यों) की आजिज़ी व मजबूरी इस तरह खोलकर बयान की है कि उस पर कुछ आगे कहने की गुंजाइश नहीं और शायद इसी बात पर उनका गुस्सा भड़क उठा और फिर जो कुछ पेश आया वह मालूम है।
जहां तक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैग़म्बरी के बारे में उनके सन्देहों का ताल्लुक़ है, तो वे तो इसे मानते थे कि आप सच्चे, अमानतदार और नेक और परहेज़गार आदमी हैं, लेकिन वे समझते थे कि नबूवत व रिसालत का पद इससे कहीं ज़्यादा महान है कि किसी इंसान को दिया जाए। यानी उनका मानना था कि जो इंसान है, वह रसूल नहीं हो सकता और जो रसूल हो, वह
इंसान नहीं हो सकता। इसलिए जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी नबूवत का एलान किया और अपने ऊपर ईमान लाने की दावत दी तो उन्हें आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा, ‘यह कैसा रसूल है कि खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘अल्लाह ने किसी इंसान पर कोई चीज़ नहीं उतारी है।
दे अल्लाह ने इनका खंडन करते हुए फ़रमाया, ‘आप कह दें, वह किताब किसने उतारी है जिसे मूसा अलैहिस्सलाम लेकर आए थे और जो लोगों के लिए नूर और हिदायत है।’ वे चूंकि जानते और मानते थे कि मूसा अलैहिस्सलाम इंसान हैं, इसलिए कोई जवाब न दे सके। अल्लाह ने उनके रद्द में यह भी फ़रमाया कि हर क़ौम ने अपने पैग़म्बरों की पैग़म्बरी का इंकार करते हुए यही कहा था कि ‘तुम लोग तो हमारे ही जैसे इंसान हो।’ और उसके जवाब में पैग़म्बरों ने उनसे कहा था कि हम लोग यक़ीनन तुम्हारे ही जैसे इंसान हैं, लेकिन अपने बन्दों में से जिस पर वह चाहता है, एहसान करता है।’ मतलब यह है कि नबी और रसूल हमेशा इंसान ही हुआ करते हैं। इंसान होने और रसूल होने में कोई टकराव नहीं है ।
चूंकि उन्हें इक़रार था कि इब्राहीम और इस्माईल और मूसा अलैहिस्सलाम पैग़म्बर थे और इंसान भी थे, इसलिए वे अपने इस सन्देह पर अधिक आग्रह न कर सके, इसलिए उन्होंने पैंतरा बदला और कहने लगे, अच्छा अगर ऐसा है, यानी इंसान पैग़म्बर हो सकता है, तो क्या अल्लाह को अपनी पैग़म्बरी के लिए यही यतीम व मिस्कीन इंसान मिला था ? यह कैसे हो सकता है कि अल्लाह मकका और तायफ़ के बड़े-बड़े लोगों को छोड़कर इस मिस्कीन को पैग़म्बर बना ले। ‘यह कुरआन इन दोनों आबादियों में से किसी बड़े आदमी पर क्यों न उतारा गया ? अल्लाह ने इनका रद्द करते हुए फ़रमाया, ‘क्या ये लोग तेरे रब की रहमत का विभाजन न करते हैं?’ मतलब यह है कि वह्य व रिसालत तो अल्लाह की रहमत है और ‘अल्लाह ज़्यादा जानता है कि उसे अपनी पैग़म्बरी कहां रखनी चाहिए।’
रौब इन जवाबों के बाद मुश्किों ने एक और पहलू बदला, कहने लगे कि दुनिया के बादशाहों के एलची धूम-धाम से पूरी फ़ौज के साथ चलते हैं, उनका बड़ा व दबदबा हुआ करता है और उनके लिए ज़िंदगी के हर तरह के सामान जुटाए रहते हैं, फिर मुहम्मद का क्या मामला है कि वह अल्लाह के रसूल होने का दावा करते हैं और उन्हें पेट भरने के लिए बाज़ारों के चक्कर भी काटना पड़ते हैं। ‘उन पर कोई फ़रिश्ता क्यों न उतारा गया जो उनके साथ डराने वाला होता या उन कीतरफ़ खज़ाना क्यों न डाल दिया गया या उनका कोई बाग़ ही होता जिससे वह खाते और जालिमों ने कहा कि तुम लोग तो एक जादू किए हुए आदमी की पैरवी कर रहे हो।
अल्लाह ने इस सारी कठहुज्जती का एक छोटा-सा जवाब दिया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं, यानी आपकी मुहिम यह है कि आप हर छोटे-बड़े, कमज़ोर और ताक़तवर, शरीफ़ और पस्त, आज़ाद और ग़ुलाम तक अल्लाह का पैग़ाम पहुंचा दें। इसलिए अगर ऐसा होता कि आप भी बादशाहों के एलचियों की धूम-धाम, नौकरों-चाकरों की फ़ौज के साथ चलने वालों के साथ भेजे जाते तो कमज़ोर और छोटे लोग तो आप तक पहुंच ही नहीं सकते थे कि आपसे फ़ायदा उठा सकें, हालांकि यही आम लोग हैं, इसलिए ऐसी शक्ल में पैग़म्बर बनाने का मक़सद ही खत्म हो जाता और इसका कोई उल्लेखनीय लाभ न होता ।
जहां तक मरने के बाद दोबारा उठाए जाने के मामले का ताल्लुक़ है, तो उसके इंकार के लिए मुश्किों के पास, स्तब्धता और बे-अक़्ली के अलावा कोई दलील न थी। वे आश्चर्य से कहते थे, ‘क्या जब हम मर जाएंगे और मिट्टी और हड्डी हो जाएंगे तो फिर उठा दिए जाएंगे ? क्या हमारे पहले बाप-दादा भी ? (अस्साफ़्फ़ात : 17) फिर वे खुद ही कहते थे ‘यह दूर की वापसी है।’ वे ताज्जुब से कहते, ‘क्या हम तुम्हें एक ऐसा आदमी न बताएं जो ख़बर देता है कि जब तुम लोग बिल्कुल रेज़ा-रेज़ा हो जाओ, तो फिर तुम्हारा एक नया जन्म होगा ? मालूम नहीं उसने अल्लाह पर झूठ गढ़ा है या उसको पागलपन है।’ कहने वाले ने यह भी कहा, ‘क्या मौत, उसके बाद ज़िंदगी, उसके बाद हथ ? उम्मे अम्र ! यह तो पागल की बड़ है।’
अल्लाह ने इसके खंडन के लिए दुनिया में पेश आने वाले हालात पर उनकी नज़र डलवाई कि एक ज़ालिम अपने ज़ुल्म की सज़ा पाए बग़ैर दुनिया से गुज़र जाता है और मज़्लूम भी ज़ालिम से अपना हक़ वसूल किए बग़ैर मौत से दोचार हो जाता है। उपकार करने वाले और भले लोग अपने उपकार और सुधार का बदला पाए बग़ैर फ़ौत हो जाते हैं और फ़ाजिर और बदकार अपनी बदअमली की सज़ा पाए बग़ैर मर जाते हैं। अब अगर इंसान को मरने के बाद दोबारा न उठाया जाए और उसके अमल का बदला न दिया जाए तो दोनों फ़रीक़ बराबर हो जाएंगे, बल्कि ज़ालिम और फ़ाजिर, मज़्लूमों और नेकों से ज़्यादा खुशकिस्मत होंगे और यह बात बिल्कुल ही नामाकूल है और अल्लाह के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि वह अपनी सृष्टि-व्यवस्था की बुनियाद ऐसे बिगाड़ कर रखेगा।
अल्लाह फ़रमाता है, ‘क्या हम आज्ञाकारियों को अपराधियों जैसा ठहराएंगे ?
तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसे फ़ैसले कर रहे हो ?’ साथ ही फ़रमाया, ‘क्या हम ईमान लाने वालों और भले काम करने वालों को ज़मीन के अन्दर फ़साद पैदा करने वालों जैसा बनाएंगे या क्या हम परहेज़गारों को फ़ाजिरों जैसा ठहारएंगे ?’ और फ़रमाया, ‘क्या बुराइयां करने वाले यह समझते हैं कि हम उन्हें ईमान लाने वालों और भले काम करने वालों जैसा बनाएंगे कि इन (दोनों गिरोहों) की ज़िंदगी और मौत बराबर हो ? बुरा फ़ैसला है जो ये करते हैं ?
जहां तक ‘बड़ की बकवास’ के आरोप का ताल्लुक़ है, तो अल्लाह ने इसको रद्द करते हुए फ़रमाया, ‘क्या तुम पैदाइश में ज़्यादा सख्त हो या आसमान ?’ और फ़रमाया, ‘क्या यह नज़र नहीं आता कि जिस अल्लाह ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उनको पैदा करने से नहीं थका, वह इस पर भी क़ुदरत रखता है कि मुर्दों को जिंदा कर दे ? क्यों नहीं ? यक़ीनी तौर पर वह हर चीज़ पर कुदरत रखता है? साथ ही फ़रमाया, ‘तुम पहली पैदाइश तो जानते ही हो, फिर हक़ीक़त क्यों नहीं मानते ?’ अल्लाह ने वह बात भी याद दिलाई जो अक़्ल के पहलू से भी और चलन के पहलू से भी जानी-पहचानी है कि किसी चीज़ को दोबारा करना पहली बार करने से ज़्यादा आसान होता है। फ़रमाया, ‘जैसे हमने पहली बार पैदा करने की शुरुआत की थी, उसी तरह पलटा भी लेंगे।’ और फ़रमाया, क्या पहली बार पैदा करने से हम थक गए हैं?
यों अल्लाह ने उनके एक-एक सन्देह का बड़े ही सन्तोषजनक ढंग से जवाब दिया, जिससे हर सूझ-बूझ वाला आदमी सन्तुष्ट हो सकता है, लेकिन मक्का के विरोधी हंगामा पसंद करते थे, उनमें अहंकार था, वे ज़मीन में बड़े बनकर रहना चाहते थे और सृष्टि पर अपनी राय लागू करना चाहते थे, इसलिए अपनी सरकशी में भटकते रहे।

