अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 18

वह्य की शुरूआत, तारीख़, दिन और महीना

तमाम घटनाओं पर भरपूर निगाह डालकर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम के आने की इस घटना की तारीख निश्चित की जा सकती है। हमारी खोज के अनुसार यह घटना रमज़ान की 21 तारीख को सोमवार की रात में हुई। उस दिन अगस्त की 10 तारीख थी और 610 ईस्वी थी। चांद के हिसाब से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्र चालीस वर्ष छः महीने बारह दिन और ईसवी हिसाब से 39 साल तीन महीने 22 दिन थी।

आइए, अब तनिक हज़रत आइशा रज़ि० की जुबानी इस घटना का विवरण सुनें जो नबूवतं का आरंभ-बिन्दु था और जिससे कुक्न और गुमराहियों की अंधियारियां छटती चली गईं, यहां तक कि ज़िंदगी की रफ़्तार बदल गई और इतिहास का रुख पलट गया। हज़रत आइशा रज़ि० फ़रमाती हैं, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वह्य की शुरूआत नींद में अच्छे सपने से हुई। आप जो भी सपने देखते थे, वह सुबह के उजाले की तरह स्पष्ट होता था ।


फिर आपको अकेलापन अच्छा लगने लगा, चुनांचे आप हिरा की गुफा में एकान्त वास करने लगे और कई-कई रात घर वापस आए बिना इबादत में लगे रहते। इसलिए आप खाने-पीने का सामान ले जाते, फिर (सामान खत्म होने पर) हज़रत खदीजा के पास वापस आते और लगभग उतने ही दिनों के लिए फिर सामान ले जाते, यहां तक कि आपके पास हक़ आया और आप हिरा की गुफा में थे, अर्थात आपके पास फ़रिश्ता आया  कहा-

‘पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया, इंसान को लोथड़े से पैदा किया, पढ़ो और तुम्हारा रब बड़ा ही करीम है।”

इन आयतों के साथ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पलटे । आप का दिल धक-धक कर रहा था। हज़रत खदीजा बिन्त खुवैलद के पास तशरीफ़ लाए और फ़रमाया, मुझे चादर ओढ़ा दो, मुझे चादर ओढ़ा दो। उन्होंने आपको चादर ओढ़ा दी ।

इसके बाद आपने हज़रत खदीजा रज़ि० को घटना की सूचना देते हुए फ़रमाया, यह मुझे क्या हो गया है?  हज़रत खदीजा रज़ि० ने कहा, क़तई तौर पर नहीं, खुदा की क़सम ! आपको अल्लाह रुसवा न करेगा। आप नातेदारों से रिश्ते जोड़ते हैं। बेसहारों का सहारा बनते हैं, ज़रूरतमंदों की ज़रूरत पूरी करते हैं, मेहमानों का सत्कार करते हैं और परेशानियों में काम आते हैं।

इसके बाद हज़रत खदीजा रज़ि० आपको अपने चचेरे भाई वरका बिन नौफुल बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा के पास ले गईं। वरका अज्ञानता-युग में ईसाई हो गये थे और इबरानी में लिखना जानते थे। चुनांचे इबरानी भाषा में ख़ुदा की तौफ़ीक़ के मुताबिक़ इंजील लिखते थे। उस वक़्त बहुत बूढ़े और अंधे हो चुके थे। उनसे हज़रत खदीजा रज़ि० ने कहा, भाई जान ! आप अपने भतीजे की बात सुनें ।
वरक़ा ने कहा, भतीजे ! तुम क्या देखते हो ?

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो कुछ देखा, बयान फ़रमा दिया।



मैं इस पर वरका ने आपसे कहा, यह तो वही नामूस (पवित्रात्मा) है, जिसे अल्लाह ने मूसा पर उतारा था। काश, उस वक़्त मैं ताक़तवर होता, काश, उस वक़्त ज़िंदा होता, जब आपकी क़ौम आपको निकाल देगी।

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