Safar e Imam Husain AlaihisSalam Rawangi Madina to Karbala 28-Rajab

Today in Islamic history the 28th of Rajab marks a day that the journey of Imam Hussain (as) from Madina towards Karbala began.

Two days remaining until the end of the month of Rajab, on the night of Sunday, Imam Hussain (AS) left Madina for Makkah with a most simple caravan together with his family and a few companions. As he left, this verse of Quran was on his lips, a verse which relates the story of Moses (pbuh) as he fled from Pharaoh’s Egypt: He therefore got away there from, looking about, in a state of fear. He prayed “O my Lord! Save me from people given to wrong-doing.” Holy Quran (28:21)

Before his departure, Hussain Ibn Ali (AS) visited the Holy graves of his grandfather Prophet Muhammad (SAWW), his mother Sayeda Fatima Az-Zahra (SA) and brother Al-Hasan Al-Mojtaba (AS) weeping bitterly.

This was the day, the Prophet (SAWW) had foretold: “A day will soon came when my dearest Hussain Will leave Medinah, in indescribable grief and pain to meet his fateful destiny, in a far off land With his family and a few friends.

60 हिजरी, 28 रज्ब, इतवार की सब सय्यदना इमाम हुसैन ع काअपने अहल ओ इयाल के साथ मदीना मुनव्वराह से मक्का मुकर्रामा तशरिफ ले जाना…

अहलेबैत عपर आने वाली मुसीबतों के मुतालिक हुज़ूर मुहम्मद ﷺ ने जो इशारा फरमाया था उन में से वो जिला वतनी की मुसीबत भी आ
पहोचीं …
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(अल्लामा अहमद बिन मुहम्मद बिन अहमद बिन हाजर हायतमी मक्की अल-मुतावाफा
873 ने अपनी किताब “अलसवाइकअलमहरी काह” में बयान फ़रमाई है की ::)
हुजूर मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ने फरमाया ::
“मेरी उम्मत की तरह से मेरे अहलेबैत عको कत्ल व जिला
-वतनी (देश निकाल) की तकलीफ़ पहूचायगी ओर हमारी कोम से सबसे जियादा बुग्ज रखने वाली बनूं उमय्या बनूं मुगीरा ओर बनूं मकजूम हैं.”
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इमाम हाकिम ر ने इसे शाही करार दिया है …
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संदर्भ ::
[इब्ने हाजर मक्की फी अल-सवाइक अल-मुहरीक अलाअहल अल
-रफ्द वह अल-दाला व अल
-जनदाकह बाब-10,/793.] ______________________________
ख़तरे की जद में आयेगा कुरआन का वजूद ,
शब्बीर ع घर से आयत ले कर निकल पड़े

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ سَيِّدِنَا مُحَمَّد 💚

*आज रजब माह की २८ तारीख को मौला हुसैन* अपने आख़ेरत की सफ़र के लिए मदीना से कूच कर रहे है ! आपको बचपन में अपने नाना को दिया हुआ वादा याद है ! नाना की उम्मत के मग़फ़िरत की फ़िक्र आपको है , साथ ही ईस्लाम के दीन की लाज भी हुसैन अ स को बचानी है ! ये सफ़र कोई मामूली सफ़र नहीं है बल्कि दुनिया की हिस्ट्री का सबसे कठिन व कष्टप्रद सफ़र होने वाला है जिसकी मिसाल हुसैन के पहले के दौर में नहीं है व आइंदा भी ऐसा कुछ घटित नहीं होने वाला है !

सारी तैयारी हो चुकी है बस रवानगी की देर है ! आप मौला हुसैन सरवर ए कायनात नाना साहब की क़ब्र पर है झपकी लगने पर देख रहे है कि नाना रसूलुल्लाह आपको फ़रमा रहे है कि ए प्यारे नवासे कूच करो मेरी उम्मत मेरे दीन दोनों को आपसे उम्मीदें है !

नानी साहेबा उम्मे सलमा आपको रोक रही है , कहती है कि बेटा  सफ़र को मुल्तवी कर दो मुझे बहुत खटका हो रहा है ! आप मौला हुसैन तो निकलने का इरादा पुख्ता कर चुके है ! नानी कहती है ठहरो बेटा मैं  तुम्हारे नाना की मस्जिद में रखे हुए कुरआन ए पाक में फ़ाल देखकर आती हूँ ! ईमाम हुसैन अ स थोड़ा रुक जाते है ! आप नानी साहिबा मस्जिद से रोते  हुए आती है और मौला को फ़रमाती है कि बेटा क़ुरान में ये आयत आई है – *इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन !*

अब ईमाम नानी से कहते है कि मुझे जाना ही होगा ! कुरआन भी मेरे सफ़र की ओर इशारा कर रहा है ! फिर मौला अपने भाई अब्बास से पूछते है कि क्या सारे लोग आ गए ? तफ्तीश करने से पता चलता है कि अभी अली असग़र क़ाफ़िले में शुमार नहीं हुए है ! अभी वे मात्र 01 महीने के छोटे से फ़रज़न्द है कर्बला पहुंचकर 06 माह के हो जाएंगे ! अभी तो वे फ़ातेमा सुगरा की गोद में है और किसी के पास भी नहीं आ रहे है ! बारी बारी से मौला ज़ैनबे अ स , अब्बास अलमदार , अली अकबर कोशिश कर चुके है लेकिन अली असग़र फ़ातेमा सुग़रा की गोद नहीं छोड़ रहे है ! आप ईमाम हुसैन अ स आख़िर में सबसे नन्हे शहज़ादे के पास आकर कान में फ़रमाते है कि – चलो बेटा , कर्बला जाना है ! वहां 72 शोहदाओं की फेहरिस्त में आपका भी नाम शुमार है ! इतना सुनते ही एक माह के नन्हे अली असग़र फ़ौरन फ़ातेमा सुग़रा की गोद छोड़कर ईमाम हुसैन अ स की और अपने दोनों छोटे छोटे हाथ आगे बड़ा देते है मानो कह रहे हो कि चलिए आक़ा मैं भी आपके साथ शहादत खरीदूंगा !

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