हदीस ए सुलह इमाम हसन से माविया की कोई फजीलत साबित नहीं होता..

हदीस ए सुलह इमाम हसन से माविया की कोई फजीलत साबित नहीं होता..
माविया मुनाफिक की रुहानी औलादें जो दिन रात माविया  का दिफा करने और अहले बैत शान ओ मंजिलत का रद्द करने में नाकाम कोशिश करते रहते हैं- जो हकीकत में नासबी हैं।
जब फरमान ए मुस्तफा सल्ल के मुताबिक माविया को बागी और जहन्नमी कहा जाता है तो नासबी लोग सही बुखारी से यह दिखाते हैं कि नबी करीम सल्ल० ने माविया और माविया के गिरोह को मोमिन और अजीम गिरोह कहा है.. फिर सवाल करते हैं कि जब माविया मोमिन और अजीम शख्स ठहरा तो इसे बागी, जहन्नमी या मुनाफिक कहना दुरुस्त नहीं है..😅
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आज हम सही बुखारी में माविया के गिरोह के लिए इस्तेमाल ‘अजीम’ और ‘मुसलमान’ लफ्ज का तहकीकी जायजा लेते हैं कि क्या वाकाई में इन दोनों लफ़्ज़ों से माविया की फजीलत या माविया के बागी और मुनाफिक ना होने की दलील बनता है .???
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सही बुखारी शरीफ में इंटरनेशनल हदीस नंबर 2704 में है कि-
… فَقَالَ الحَسَنُ: وَلَقَدْ سَمِعْتُ أَبَا بَكْرَةَ يَقُولُ: رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَلَى المِنْبَرِ وَالحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ إِلَى جَنْبِهِ، وَهُوَ يُقْبِلُ عَلَى النَّاسِ مَرَّةً، وَعَلَيْهِ أُخْرَى وَيَقُولُ: «إِنَّ ابْنِي هَذَا سَيِّدٌ وَلَعَلَّ اللَّهَ أَنْ يُصْلِحَ بِهِ بَيْنَ فِئَتَيْنِ عَظِيمَتَيْنِ مِنَ المُسْلِمِينَ».

हजरत हसन (बसरी) फरमाते हैं- मैंने हज़रत अबू बकरा से सुना कि वो फरमाते हैं कि – मैंने रसूल-अल्लाह ﷺ को मेंबर पर देखा जबकि हजरत हसन बिन अली अलैहिस्सलाम आपके बगल में बैठे थे।
आप ﷺ कभी लोगों की तरफ देखते और कभी इन [हजरत हसन बिन अली। रजि.] की तरफ देखते और फरमाते कि – ‘ मेरा यह बेटा सय्यद [सरदार] है, और उम्मीद है कि अल्लाह इसके जरिए मुसलमान की दो अजीम जमाआतों के दरमियान सुलह कराएगा।’

👆 हर अहले इल्म को यह पता है कि हजरत हसन रजि. ने जब अपने दौरे खिलाफत में एक बहुत बड़ा लश्कर लेकर माविया के खिलाफ जंग के लिए निकले तो अम्र बिन आस ने माविया मलून से कहा कि ‘मैं अपनी तरफ एक ऐसा बड़ा लश्कर आते देख रहा हूं कि वो जब तक हम लोगों को मैदान से खदेड़ ना देगा तब तक वापस नहीं होगा’ फिर जब माविया को अपने हारने का एहसास हुआ तो माविया ने जंग से पहले ही अब्दुल्ला बिन आमिर और अब्दुर्रहमान बिन समरह को यह पैगाम देकर इमाम हसन की तरफ भेजा कि ‘हम सुलह करना चाहते है और आप जो शर्त कहेंगे उसे हम मानने के लिए तैयार हैं.. आखिरकार कुछ शर्तों के साथ इन दोनों बड़े गिरोहों में सुलह हो गया।
इस हदीस का इशारा इसी सुलह की तरफ है।
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अब बुखारी की इस हदीस में लफ्ज ‘अजीम’ और लफ्ज ‘मुसलमान’ पर जवाब देता हूं जो दो जमाआतों में से एक माविया के गिरोह के लिए भी इस्तेमाल हुआ है…

           1) लफ्ज “अजीम” का जवाब-

इस हदीस में इस लफ्ज अजीम का होना इख्तिलाफी है, जरुरी नहीं है नबी करीम ﷺ
ने इस हदीस को सुनाते हुए माविया जैसे मुनाफिक के गिरोह के लिए लफ्ज ‘अजीम’ कहा हो, क्योंकि यही हदीस इसी बुखारी शरीफ में दूसरी जगह रकम नंबर 7109 के तहत भी आया है जिसमें है कि-
قَالَ الْحَسَنُ وَلَقَدْ سَمِعْتُ أَبَا بَكْرَةَ قَالَ بَيْنَا النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَخْطُبُ جَاءَ الْحَسَنُ فَقَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ابْنِي هَذَا سَيِّدٌ وَلَعَلَّ اللَّهَ أَنْ يُصْلِحَ بِهِ بَيْنَ فِئَتَيْنِ مِنْ الْمُسْلِمِينَ.

यानि ‘हजरत हसन बसरी ने कहा कि मैंने अबू बकरा को यह कहते हुए सुना कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया कि – बेशक मेरा यह बेटा सय्यद [सरदार] है और यकीनन अल्लाह इसके जरिए मुसलमानों के दो लश्करों के दरमियान सुलह करा देगा’।

👆 इसमें कहीं भी लफ्ज़ अजीम का जिक्र नहीं है और रह रिवायत भी अबू बकरा से ही है, पता चला कि यह लफ्ज ‘अजीम’ इख्तिलाफी है।
दूसरी बात ये कि सुलह हुदैबिया के बाद नबी करीम ﷺ ने मिस्र और काई देशों के काफिर बादशाहों के नाम खत लिखकर उन्हें इस्लाम की दावत दी.. उन खतों में नबी करीम ﷺ  ने काफिर बादशाह को ‘अजीम’ कहा है।
इमाम इब्ने हजर अस्कलानी के शागिर्द और सही बुखारी की सरह ‘इरशाद उस् सारी सरह सही बुखारी’ के मुसन्निफ “इमाम क़ुस्तलानी” ने नबी करीम ﷺ की सीरत “अल मवाहिबुद् दुनिया” में लिखा है कि जब मिस्र के काफिर हुकमरान मक़ोकस के नाम खत लिखकर उन्हें इस्लाम की दावत दी तो उस खत के इब्तिदाई अल्फाज इस तरह थे-
من محمد عبد الله ورسوله، إلى المقوقس عظيم القبط..
यानि ‘मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बंदे और अल्लाह के रसूल का खत, मक़ोकस जो क़िब्तियों की अजीम शख्सियत है- के नाम..।’

देखें अल मवाहिबुद् दुनिया की दूसरी जिल्द में सफा नंबर 143 पर 👇

इसी तरह आप ﷺ ने ईरान के मौजूदा काफिर हुक्मरान क़िसरा के नाम खत लिखा कि-
من محمد رسول الله إلى كسرى عظيم فارس.
यानि ‘ अल्लाह के रसूल मुहम्मद ﷺ का खत क़िसरा जो ईरान की अजीम शख्सियत है- के नाम..।’

देखें अल मवाहिबुद् दुनिया की दूसरी जिल्द में सफा नंबर 139 पर

अगर लफ्ज अजीम से माविया जैसे मुनाफिक की फजीलत साबित होता है तो फिर इसी अजीम लफ्ज से इन काफिर हुक्मरानों की कौन सी फजीलत साबित होता है ? क्योंकि नबी करीम ﷺ ने इन काफिर हुक्मरानों के लिए भी लफ्ज़ अजीम का इस्तेमाल किया था।
याद रहे कि यह लफ्ज़ किसी चीज की कैफियत , अजमत या कभी बहुत ज्यादा तादाद के लिए भी इस्तेमाल होता है।

हदीस ए सुलह इमाम हसन में लफ्ज अजीम का इशारा इस तरफ है कि जो लश्कर होगा वो तादाद में बहुत बड़ा होगा..

अब आते हैं दूसरे लफ्ज़ की तरफ कि हदीस ए सुलह इमाम हसन में जो लफ्ज ‘मुसलमान’ आया है- उससे माविया मलून की कोई फजीलत साबित होता है या नहीं ?

          2) लफ्ज ‘मुसलमान’ का जवाब-
जिस तरह बुखारी की हदीस नंबर 2704 में माविया के गिरोह के लिए भी लफ्ज़ मुसलमान का इस्तेमाल हुआ है वैसे इसी बुखारी शरीफ में मुनाफिकों के सरदार के लिए भी इस्तेमाल हुआ है, अंतर सिर्फ इतना है कि एक को नबी करीम ﷺ ने मोमिन या मुसलमान कहा है तो दूसरी तरफ अल्लाह ने मुनाफिक के सरदार को मोमिन कहा है, देखें-
बुखारी शरीफ में इंटरनेशनल हदीस नंबर 2691 में है कि-
حَدَّثَنَا مُسَدَّدٌ، حَدَّثَنَا مُعْتَمِرٌ، قَالَ: سَمِعْتُ أَبِي، أَنَّ أَنَسًا رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: قِيلَ لِلنَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: لَوْ أَتَيْتَ عَبْدَ اللَّهِ بْنَ أُبَيٍّ، «فَانْطَلَقَ إِلَيْهِ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَرَكِبَ حِمَارًا، فَانْطَلَقَ المُسْلِمُونَ يَمْشُونَ مَعَهُ وَهِيَ أَرْضٌ سَبِخَةٌ»، فَلَمَّا أَتَاهُ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَقَالَ: إِلَيْكَ عَنِّي، وَاللَّهِ لَقَدْ آذَانِي نَتْنُ حِمَارِكَ، فَقَالَ رَجُلٌ مِنَ الأَنْصَارِ مِنْهُمْ: وَاللَّهِ لَحِمَارُ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَطْيَبُ رِيحًا مِنْكَ، فَغَضِبَ لِعَبْدِ اللَّهِ رَجُلٌ مِنْ قَوْمِهِ، فَشَتَمَهُ، فَغَضِبَ لِكُلِّ وَاحِدٍ مِنْهُمَا أَصْحَابُهُ، فَكَانَ بَيْنَهُمَا ضَرْبٌ بِالْجَرِيدِ وَالأَيْدِي وَالنِّعَالِ، فَبَلَغَنَا أَنَّهَا أُنْزِلَتْ: {وَإِنْ طَائِفَتَانِ مِنَ المُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا} [الحجرات: 9].

यानि ‘हजरत अनस रजिअल्लाह अन्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा- नबी करीम ﷺ से अर्ज किया गया : अगर आप अब्दुल्लाह बिन अबी [रईस उल मुनाफिकीन] के पास तशरीफ़ ले जाएं तो बेहतर होगा चुनांचे आप  ﷺ गधे पर सवार होकर उसके पास तशरीफ़ ले गयें। कुछ मुसलमान भी आप ﷺ के साथ गयें। जिस रास्ते से आप जा रहे थे वो बहुत खराब था। जब नबी करीम ﷺ उसके पास गयें तो अब्दुल्लाह बिन अबी कहने लगा : आप ﷺ मुझसे दूर रहें ! अल्लाह की कसम, आप के गधे की बू ने मुझे बहुत अजीयत पहुंचायी है।
उनमें से एक अन्सारी [सहाबी] रजिअल्लाह अन्हु ने कहा : अल्लाह की कसम, रसूल अल्लाह ﷺ का गधा तुझसे खुशबूदार है।
अब्दुल्लाह [मुनाफिक] की तरफ से उसकी कौम का एक शख्स इन सहाबी की इस बात पर गुस्सा हो गया और दोनों ने एक दूसरे को बुरा भला कहा और इस तरह हर एक की तरफ से उनके साथी झगड़ने लगे और इनके दरमियान डंडों, हाथों और जूतों से मारपीट शुरू हो गयी।
हमें मालूम हुआ है कि यह आयत उसी मौके पर नाजिल हुआ था कि-
وَ اِنۡ طَآئِفَتٰنِ مِنَ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ اقۡتَتَلُوۡا فَاَصۡلِحُوۡا بَیۡنَہُمَا..
‘अगर मोमिनीन के दो गिरोह आपस में लड़ें तो उनके दरमियान सुलह करा दो’।.

बुखारी में सफा 131 पर रकम 2691 देखें 👇

👆 बुखारी शरीफ की इस हदीस के मुताबिक सूरह हुजरात की आयत नंबर 9 में ‘मोमिनीन के दो गिरोह ‘ से मुराद मुहम्मद मुस्तफा ﷺ का एक गिरोह और दूसरा अब्दुल्लाह बिन अबी मुनाफिक का गिरोह है।
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पता चला कि हदीस ए सुलह इमाम हसन से माविया की कोई फजीलत साबित नहीं होता और ना ही माविया के मुनाफिक ना होने पर यह बुखारी की हदीस नंबर 2704 दलील बन सकता है।
नबी करीम ﷺ की जिंदगी में जिसने भी कलमा पढ़ लिया और नबी करीम सल्ल० को देख लिया उसे सहाबी और मुसलमान कहा जाता है और बुखारी के रकम 2704 में माविया के लिए और रकम 2691 में अब्दुल्लाह बिन अबी के लिए लफ्ज़ मुसलमान इसलिए इस्तेमाल हुआ है कि वो लोग जाहिरी तौर पर कलमा पढ़ते थे.. लेकिन इनके कारनामें हकीकी मुसलमान से बिल्कुल उल्टा और मुनाफिकों की तरह था।
मिशाल के तौर पर हमारे तीन औलादें हैं लेकिन जब तक यह ना बताऊं कि कितने बेटें हैं और कितनी बेटियां- तब तक किसी को नहीं मालूम- क्योंकि लफ्ज़ औलाद में लड़का और लड़की दोनों शामिल हैं, सिर्फ लड़के के लिए भी औलाद और सिर्फ लड़कियों के लिए भी औलाद कह सकते हैं इसी तरह लफ्ज़ सहाबा या मुसलमान में मुनाफिक और मोमिन- दोनों शामिल हैं।
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