चौदह सितारे हज़रत इमाम अली रज़ा(अ.स) पार्ट- 16

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मामून रशीद अब्बासी और हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की शहादत

यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि ग़ैर मासूम अरबाबे इक़्तेदार हवसे हुक्मरानी में किसी क़िस्म का सरफ़ा नहीं करते अगर हुसूले हुकूमत या तहफ़्फ़ुज़े हुक्मरानी में बाप बेटे , मां बेटी या मुक़द्दस से मुक़द्दस तरीन हस्तियों को भेंट चढा़ दे , तो वह उसकी परवाह नहीं करते। इसी बिना पर अरब में मिसाल के तौर पर कहा जाता है कि ‘‘ अल मुल्क अक़ीमुन ’’

अल्लामा वहीदुज़्ज़मा हैदार बादी लिखते हैं कि अल मुल्क अक़ीम बादशाहत बाझं है। यानी बादशाहत हासिल करने के लिये बाप बेटे की परवाह नहीं करता। बेटा बाप की परवाह नहीं करता बल्कि ऐसा भी हो जाता है कि बेटा बाप को मार कर खुद बादशाह बन जाता है।( अनवारूल लुग़त पारा 8 पृष्ठ 173) अब इस हवसे हुक्मरानी में किसी मज़हब और अक़ीदे का सवाल नहीं । हर वह शख़्स जो इख़्तेदार का भूखा होगा वह इस क़िस्म की हरकतें करेगा। मिसाल के लिये इस्लामी तवारीख़ की रौशनी में हुज़ूर रसूले करीम (स.अ.) की वफ़ात के फ़ौरन बाद के वाक़यात को देखिये। जनाबे सय्यदा (स.अ.) के मसाएब व आलाम और वजहे शहादत पर ग़ौर किजिये। इमाम हसन (अ.स.) के साथ बरताव पर ग़ौर फ़रमाईये। वाक़िया ए करबला और उसके पसे मंज़र , नीज़ दीगर आइम्मा ए ताहेरीन के साथ बादशाहाने वक़्त के सुलूक और उनकी क़ैदो बन्द और शहादत के वाक़ेयात को मुलाहेज़ा कीजिए। इन उमूर से यह बात वाज़े हो जायेगी कि हुक्मरानी के लिये क्या क्या मज़ालिम किए जा सकते हैं और कैसी कैसी हस्तियों की जानें ली जा सकती हैं और क्या कुछ किया जा सकता है। तवारीख़ में मौजूद है कि मामून रशीद अब्बासी की दादी ने अपने बेटे ख़लीफ़ा हादी को 26 साल की उम्र में ज़हर दिलवा कर मार दिया। मामून रशीद के बाप हारून रशीद अपने वज़ीरों के ख़ानदान बरामका को तबाह व बरबाद कर दिया।( अल मामून पृष्ठ 20) मरवान की बीवी ने अपने ख़ाविन्द को बिस्तरे ख़्वाब पर दो तकियों से गला घुटवा कर मरवा दिया। वलीद बिन अब्दुल मलिक ने फ़रज़न्दे रसूल इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को ज़हर से शहीद किया। हश्शाम बिन अब्दुल मलिक ने इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) को ज़हर दिया। इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को मन्सूर दवान्क़ी ने ज़हर से शहीद किया। इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) को हारून रशीद अब्बासी ने ज़हर से शहीद किया। इमाम अली रज़ा (अ.स.) को मामून अब्बासी ने ज़हर दे कर शहीद किया। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को मोतसिम बिल्लाह ने उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते मामून के ज़रिये से ज़हर दिलवाया। इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मोतमिद अब्बासी ने ज़हर से शहीद किया। ग़रज़ कि हुकूमत के सिलसिले में यह सब कुछ होता रहता है। औरंगज़ेब को देखिये , उसने अपने भाई को क़त्ल कराया और अपने बाप को सलतनत से महरूम कर के क़ैद कर दिया था। उसी ने शहीदे सालिस हज़रत नूरूल्लाह शुस्तरी (आगरा) की ज़बान गुद्दी से खिंचवाई थी। बहर हाल जिस तरह सब के साथ होता रहा। हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के साथ भी हुआ।


तारीख़े शहादत

हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की शहादत 23 ज़ीक़ाद 203 हिजरी मुताबिक़ यौमे जुमा बा मुक़ाम तूस वाक़ेए हुई है। (जिलाउल उयून पृष्ठ 280, अनवारूल ग़मानीह पृष्ठ 127, जन्नातुल ख़ुलूद पृष्ठ 31) आपके पास इस वक़्त अज़ीज़ अक़रबा औलाद वग़ैरा में कोई न था। एक तो आप खुद मदीना से ग़रीबुल वतन हो कर आए दूसरे यह कि दारूल सलतनत मर्व में भी आपने वफ़ात नहीं पाई बल्कि आप सफ़र की हालत में बा आलमे ग़ुरबत फ़ौत हुए। इसी लिये आपको ग़रीबुल ग़ुरबा कहते है।

वाक़िया ए शहादत के मुताअल्लिक़ मोवर्रिख़ लिखते हैं कि इमाम रज़ा (अ.स.) ने फ़रमाया था ‘‘ फ़मा यक़तलनी वल्लाह वग़ैरह ’’ ख़ुदा की क़सम मुझे मामून के सिवा कोई और क़त्ल नहीं करेगा और मैं सब्र करने पर मजबूर हूँ।( दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 71)

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि हर समा बिन अईन से आपने अपनी वफ़ात की तफ़सील बताई थी और यह भी बता दिया था कि अंगूर और अनार में मुझे ज़हर दिया जायेगा।( नूरूल अबसार पृष्ठ 144)

अल्लामा मआसिर लिखते हैं कि एक रोज़ मामून ने हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) को अपने गले से लगाया और पास बिठा कर उनकी खि़दमत में बेहतरीन अंगूरों का एक तबक़ रखा और उसमें से एक खोशा उठा कर आपकी खि़दमत में पेश करते हुए कहा , इब्ने रसूल अल्लाह यह अंगूर इन्तेहाई उम्दा हैं तनावुल फ़रमाईये। आपने यह कहते हुए इन्कार फ़रमाया कि जन्नत के अंगूर इससे बेहतर हैं। इसने शदीद इसरार किया औेर आपने उसमें से तीन दाने खा लिये। यह अंगूर के दाने ज़हर आलूद थे। अंगूर खाने के बाद आप उठ खड़े हुए। मामून ने पूछा कहां जा रहे हैं आपने इरशाद फ़रमाया जहां तूने भेजा है वहां जा रहा हूँ। क़याम गाह पर पहुँचने के बाद आप तीन दिन तक तड़पते रहे। बिल आखि़र इन्तेक़ाल फ़रमा गये।( तारीख़े आइम्मा पृष्ठ 476) इन्तेक़ाल के बाद हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) बा ऐजाज़ तशरीफ़ लाए और नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप वापस चले गए। बादशाह ने बड़ी कोशिश की मगर न मिल सका।( मतालेबुल सूऊल पृष्ठ 288)

इसके बाद आपको बा मुक़ाम तूस मोहल्ला सना बाद में दफ़्न कर दिया गया जो आज कल मशहदे मोक़द्दस के नाम से मशहूर है और अतराफ़े आलम के अक़ीदत मन्दों के हवाएज का मरक़ज़ है।


शहादते इमाम रज़ा (अ.स.) के मुताअल्लिक़ अबासलत हरवी का बयान

अल्लामा अब्दुर्रहमान जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू सलत हरवी का बयान है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) ने एक दिन मुझ से फ़रमाया कि हारून रशीद के पांयती की गिर्द की मिट्टी लाओ। जब मैं मिट्टी लाया तो आपने उसे सूंघ पर फेंक दिया और फ़रमाया कि अन्क़रीब मेरी क़ब्र के लिये इसी मुक़ाम की ज़मीन खोदेंगे और ऐसा पत्थर निकल आएगा कि उसे न कोई काट सकेगा और न उखाड़ सकेगा। फिर फ़रमाया कि हारून रशीद के सरहाने की मिट्टी लाओ मैं मिट्टी ले आया तो आपने उसे सूंघ कर फ़रमाया कि इसी मुक़ाम पर मेरी क़ब्र होगी। फिर फ़रमाया ऐ अबू सलत कल मुझे मामून तलब करेगा। सुनो जब मैं जाने लगूं तो तुम यह देख लेना कि मेरे सर पर कोई चादर वगै़रा है या नहीं। अगर हो तो मुझ से कलाम न करना और अगर न हो तो मुझसे बातें करना। अबू सलत कहते हैं कि सुबह के वक़्त इमाम (अ.स.) फ़राग़त के बाद मामून के पयाम का इन्तेज़ार करने लगे। इतने में मैंने देखा कि मामून रशीद का क़ासिद आ गया इमाम (अ.स.) इसके हमराह रवाना हो गये। जिस वक़्त आप जा रहे थे आपके सरे मुबारक पर अज़ा क़िस्म कोई तौलिया कोई कपड़ा था। मैंने हस्बे हुक्म आप से कोई कलाम नहीं किया और वह तशरीफ़ ले गए। इस वक़्त मामून के सामने अंगूरों का एक तबक़ रखा हुआ था। इसने मरासिमे ताजी़म अदा करने के बाद कहा , इब्ने रसूल (स.अ.) आपने इस से बेहतर अंगूर कभी नहीं देखा होगा। आपने फ़रमाया कि बेहिश्त के अंगूर इससे कहीं बेहतर हैं फिर मामून ने एक ख़ोशये अंगूर उठाते हुए कहा। लीजिए तनावुल फ़रमाइये। आपने फ़रमाया ऐ बादशाह इसे खाने को इस वक़्त मेरा जी नहीं चाहता , लेहाज़ा मुझे माफ़ करो। मैं इस वक़्त नहीं खाऊंगा। मामून ने शदीद इसरार करते हुए कहा ‘‘ मारमोहत्तम नी वारी ’’ आप क्यों नहीं तनावुल करते क्या आपको मुझ पर भरोसा नहीं है और क्या आप मुझ पर इत्तेहाम लगाते और मुझसे बदगुमानी करते हैं। यह कहते हुए मामून ने एक खा़ेशा उठाया और उसे खाना शुरू किया। फिर एक और खोशा उठाया और उसे इमाम (अ.स.) की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा लीजिए तनावुल कीजिए। इमाम (अ.स.) ने उसके शदीद इसरार पर उसे ले लिया और उसमें से तीन दाने तनावुल फ़रमाये । इन अंगूरों को खाते ही जौहरे वजूद में इन्के़लाब पैदा हो गया। बक़िया अंगूरों को फेंकते हुए आप उठ खड़े हुए। मामून ने कहा कहां तशरीफ़ लिये जा रहे हैं ? आपने फ़रमाया कि ‘‘ बेअन्जा के फरसतादी ’’ जहां तूने भेजा है वहां जा रहा हूँ। उसके बाद आप सरे मुबारक पर चादर डाल कर रवाना हो गये।

अबु सलत हरवी कहते हैं कि इमाम (अ.स.) दरबार से रवाना हो कर दाखि़ले ख़ाना हुए और आपने मुझे हुक्म दिया कि दरवाज़ा बन्द कर दो। मैंने दरवाज़ा बन्द कर दिया। फिर आप बिस्तर पर लेट गए। आपक बिस्तर पर लेटना था कि मुझे रंजो अलम ने आ घेरा। तरह तरह के ख़्यालात पैदा होने लगे और मैं सख़्त हैरान हो कर परेशान हो गया। इमाम (अ.स.) बिस्तरे अलालत पर थे और मैं रंजो ग़म की हालत में बैठा हुआ था। नागाह मैंने घर के अन्दर एक ख़ूब सूरत नौजवान को देख कर उस से पूछा की आप कौन हैं ? और जब कि दरवाज़ा बन्द है आपको अन्दर किसने पहुँचा दिया। आपने इरशाद फ़रमाया मैं हुज्जते ख़ुदा मोहम्मद तक़ी (अ.स.) हूँ। मुझे बन्द मकान में वही लाया है जिसने चश्मे ज़दन में मदीने से यहां पहुँचाया है। मैं अपने पदरे बुज़ुर्गवार की खि़दमत के लिये हाज़िर हुआ हूँ। यह कह कर आप इमाम रज़ा (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए। इमाम (अ.स.) ने जैसे ही आपको देखा फ़ौरन अपने सीने से लगाया। पेशानी का बोसा दिया और चुपके चुपके आप से कुछ बातें करने लगे। थोड़ी देर के बाद आपने देखा कि रूहे मुबारक मुफ़ारेक़त कर गई और इमाम (अ.स.) वफ़ात पा गए। आपके वफ़ात फ़रमाने के बाद हज़रत मोहम्मद बिन अली (अ.स.) ने ग़ुस्लो कफ़न और हुनूत का इन्तेज़ाम फ़रमाया। फिर क़ुदरती ताबूत मंगवा कर नमाज़ पढ़ने के बाद उसमे रखा। थोड़ी देर के बाद वह ताबूत आसमान की तरफ़ चला गया। अबू सलत कहते हैं कि यह देख कर मैंने अर्ज़ कि मौला अभी मामून वग़ैरा आते होंगे मैं उन्हें क्या जवाब दूंगा। आपने फ़रमाया यह ताबूत अभी वापस आ जायेगा। चुनान्चे मिस्ले साबिक़ छत शिग़ाफ़्ता हुई और ताबूत आ गया। आपने इमाम (अ.स.) को बदस्तूर बिस्तर पर लेटा दिया और मुझे हुक्म दिया कि अब दरवाज़ा खोल दो। मैंने दरवाज़ा खोल दिया तो मामून वग़ैरा दाखि़ले ख़ाना हुए और सब आहो बुका करने लगे। फिर तजहीज़ और तक़फ़ीन का अज़ सरे नौ इन्तेज़ाम हुआ और आप हारून रशीद के सरहाने दफ़्न कर दिये गए।( शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 212, रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 16 अलामुल वुरा पृष्ठ 198)

अल्लामा बिन तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि मामून ने हर चन्द चाहा कि इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से मिलें मगर आपके फ़ौरी चले जाने की वजह से मुलाक़ात न हो सकी।( मतालेबुल सूऊल पृष्ठ 288)

अल्लामा नेमत उल्लाह जज़ाएरी लिखते हैं कि इमाम (अ.स.) की शहादत के बाद जो ख़बर सब से पहले उड़ी वह यह थी कि इमाम रज़ा (अ.स.) को मामून ने धोखे से शहीद कर दिये।( तज़किरतुल मासूमीन )

अल्लामा नेमत उल्लाह जज़ाएरी तहरीर फ़रमाते हैं कि मामून रशीद ने आपको अनार और अंगूर के ज़रिए ज़हर दिया था। (अनवार नेमानी पृष्ठ 27) अल्लामा तबरसी फ़रमाते हैं कि अनार के अरक़ में ज़हर मिला कर इसमें धागा तर कर लिया और उस धागे को सोज़न के ज़रिए अंगूर में गुज़ार कर उन्हें मसमूम कर दिया था।( आलामुल वुरा पृष्ठ 199)

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