हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) और इल्मुल अजसाम
मनाक़िबे शहरे आशोब और बेहारूल अनवार जिल्द 14 में है कि एक ईसाई ने हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से इल्मे तिब के बारे में सवालात करते हुए जिस्मे इन्सानी की तफ़सील पूछी। आपने इरशाद फ़रमाया कि ख़ुदा वन्दे आलम ने इन्सान के जिस्म में वसल , 248 हड्डियां और तीन सौ साठ रगें ख़ल्क़ फ़रमाई हैं। रगें तमाम जिस्म को सेराब करती हैं। हड्डियां जिस्म को , गोश्त हड्डियों को और आसाब गोश्त को रोके रखते हैं।
सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) ने जन्नत में घर बनवा दिया
यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि बेहिश्त पर अहले बैते रसूल (स अ व व ) का पूरा पूरा हक़ व इक़्तेदार है। मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) रवाना ए हज होते हुए कुछ दिरहम दिये और अर्ज़ की कि मैं हज को जाता हूँ मेहरबानी फ़रमा कर मेरी वापसी तक एक मकान मेरी रहाईश का बनवा दीजिए गा या ख़रीद फ़रमा दीजिए गा। जब वह लौट कर आया तो आपने फ़रमाया कि मैंने तेरे लिये जन्नत में एक घर ख़रीद लिया है। जिसके हुदूदे अरबा यह हैं। हुदूदे अरबा बताने के बाद आपने एक नविश्ता दिया और वह घर चल गया। वहां पहुँच कर बीमार हुआ और मरने लगा की कि नविश्ता मेरे कफ़न में रखा जाय। चुनान्चे लोगों ने रख दिया। जब दूसरा दिन हुआ तो क़ब्र पर वही परचा मिला। ‘‘ व बर पुश्त दे नविश्ता ’’ कि ‘‘ जाफ़र बिन मोहम्मद वफ़ा नमूद बा नचे वायदा करदा बूद। ’’ इस परचे की पुश्त पर लिखा हुआ था कि सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) ने जो वायदा किया था , दुरूस्त निकला और मुझे मकान मिल गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 192 )
दस्ते सादिक़ (अ.स.) में एजाज़े इब्राहीमी
पैग़म्बरे इस्लाम (स अ व व ) की मशहूर हदीस है कि मेरे अहले बैत मेरे अलावा तमाम अम्बिया से बेहतर हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जो मोजिज़ात अम्बिया कराम दिखाया करते थे वह आपके अहते बैत भी दिखा सकते थे। यह दूसरी बात है कि उन्हें तहद्दी के तौर पर असबाते नबूवत के लिये दुनिया वालों को दिखाना ज़रूरी था , लेकिन अहले बैत (अ.स.) को ऐसे मोजिज़ात दिखलाना ज़रूरी न हो , लेकिन अगर किसी वक़्त कोई इस क़िस्म का मोजेज़ा तलब करे तो वह शाने इस्लाम दिखलाने के लिये मोजेज़ा दिखला दिया करते थे।
मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक शख़्स ने सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) से पूछा कि हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने चार जानवरों को ज़िन्दा किया था तो वह परिन्दे हम जिन्स थे या मुख़्तलिफ़ अजनास के थे। हज़रत ने ताअज्जुबाना सवाल को सुन कर फ़रमाया , देखो हज़रत इब्राहीम (अ.स.) ने इस तरह ज़िन्दा किया था। यह फ़रमा कर आपने आवाज़ दी ताऊस यहां आ। ग़राब यहां आ। बाज़ यहां आ। कबूतर यहां आ। यह तमाम परिन्दे हज़रत के पास आ गये। आपने हुक्म दिया इन्हें ज़ब्हा कर के इनके गोश्त को ख़ूब पीस डालो। उसके बाद आपने सर हाथ में ले कर एक एक को आवाज़ दी। आवाज़ के साथ गोश्त उड़ा और अपने अपने सर से जा लगा और पहरन्दा फिर मुकम्मल हो गया। यह देख कर सायल हैरान रह गया।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 191 प्रकाशित लखनऊ 1905 ई 0 )


