चौदह सितारे इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स) पार्ट- 5

img-20241102-wa00394075244233049011885

आपके बाज़ करामात

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) के करामात और ख्वारिक़ आदात और इल्मी मालूमाती वाक़ेआत से किताबें भरी पड़ी हैं। अल्लामा अरबली लिखते हैं कि अबू बसीर एक दिन हमाम ख़ाने के लिये अपने घर से बरामद हुए। रास्ते में चन्द ऐसे हज़रात मिले जो इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की ज़्यारत के लिये जा रहे थे। अबू बसीर साहबी सोच कर साथ हो गए कि अगर मैं हमाम से वापसी में जाऊंगा तो सआदते ज़ियारत में पीछे रह जाऊंगा। जब वहां पहुँचे तो इमाम (अ.स.) ने इशारतन फ़रमाया कि नबी और इमाम के घर में हालते जनाबत में दाखि़ल नहीं होना चाहिए। अबू बसीर ने माज़रत की और हमाम चले गए। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 97)

यूनुस बिन ज़िबयान कहते हैं कि हम लोग एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुए तो आपने दौराने गुफ़्तुगू में फ़रमाया कि ज़मीन के ख़ज़ाने हमारे इख़्तेयार मे हैं। यह कह कर आपने पैर से ज़मीन पर एक ख़त खींचा और एक बालिश्त का डब्बा उठा कर हमें दिखलाया। इसमें बेहतरीन सोने की ईटें थीं। मैंने अर्ज़ की मौला , आपके क़ब्ज़े में सब कुछ है मगर आपके मानने वाले तकलीफ़ उठा रहे हैं। आपने फ़रमाया उनके लिये जन्नत है।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 183 )


आपका अख़्लाक़ और आदात व औसाफ़

अल्लामा इब्ने शहर आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) ने अपने एक ग़ुलाम को किसी काम से बाज़ार भेजा। जब उसकी वापसी में बहुत देर हुई तो आप उसको तलाश करने के लिये निकल पड़े , देखा एक जगह लेटा हुआ सो रहा है। आप उसे जगाने के बजाए उसके सरहाने बैठ गए और पंखा झलने लगे। जब वह बेदार हुआ तो आपने फ़रमाया यह तरीक़ा अच्छा नहीं है। रात सोने के लिये और दिन काम काज के लिये है। आइन्दा ऐसा न करना।(मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 52 )

अल्लामा मआसिर मौलाना अली नक़ी मुजतहिदुल असर रक़म तराज़ हैं , आप इसी सिलसिला ए असमत की एक कड़ी थे जिसे ख़ुदा वन्दे आलम ने नवए इन्सानी के लिए नमूना ए कामिल बना कर पैदा किया। उनके इख़्लाक़ व अवसाफ़ , ज़िन्दगी के हर शोबे में मेआरी हैसीयत रखते थे। ख़ास ख़ास अवसाफ़ जिनके मुताअल्लिक़ मुवर्रेख़ीन ने मख़्सूस तौर पर वाक़ेयात नक़ल किये हैं। मेहमां नवाज़ी , ख़ैरो ख़ैरात , मख़फ़ी तरीक़े पर ग़ुरबा की ख़बर गीरी , अज़ीज़ों के साथ हुस्ने सुलूक , अफ़ो जराएम , सब्र व तहम्मुल वग़ैरा हैं।

एक मरतबा एक हाजी मदीने में वारिद हुआ और मस्जिदे रसूल (स अ व व ) में सो गया आंख खुली तो उसे शुबा हुआ कि उसकी एक हज़ार की थैली मौजूद नहीं। उसने इधर उधर देखा किसी को न पाया। एक गोशा ए मस्जिद में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) नमाज़ पढ़ रहे थे। वह आपको बिल्कुल न पहचानता था। आपके पास आ कर कहने लगा कि मेरी थैली तुम ने ले ली है। हज़रत ने पूछा उसमें क्या था ? उसने कहा एक हज़ार दीनार। हज़रत ने फ़रमाया मेरे साथ मेरे मकान तक आओ , वह आपके साथ हो गया। बैत उस शरफ़ में तशरीफ़ ला कर एक हज़ार दीनार इसके हवाले कर दिये। वह मस्जिद में वापस चला गया और अपना असबाब उठाने लगा , तो ख़ुद उसके दीनारो की थैली असबाब में नज़र आई , यह देख कर बहुत शर्मिन्दा हुआ और दौड़ता हुआ फिर इमाम (अ.स.) की खि़दमत में आया , उज़्र ख़्वाही करते हुए हज़ार दीनार वापस करना चाहा। हज़रत ने फ़रमाया , हम जो कुछ दे देते हैं वह फिर वापस नहीं लेते।

मौजूदा ज़माने में यह हालात सभी की आंखों से देखे हुए हैं कि जब यह अन्देशा मालूम होता है कि अनाज मुश्किल से मिलेगा तो जिसको जितना मुम्किन हो वह अनाज ख़रीद कर रख लेता है मगर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के किरदार का एक वाक़ेया यह है कि एक मरतबा आप से आपके एक वकील माक़िब ने कहा कि हमें इस गरानी और क़हत की तकलीफ़ का कोई अन्देशा नहीं है। हमारे पास ग़ल्ले का इतना ज़ख़ीरा है जो बहुत अर्से तक के लिये काफ़ी होगा। हज़रत ने फ़रमाया यह तमाम ग़ल्ला फ़रोख़्त कर डालो इसके बाद जो हाल सब का होगा वह हमारा भी होगा , और जब ग़ल्ला फ़रोख़्त कर दिया गया तो फ़रमाया अब ख़ालिस गेहूँ की रोटी न पका करे , बल्कि आधे गेहूँ और आधे जौ की रोटी पकाई जाए। जहां तक मुम्किन हो हमें ग़रीबों का साथ देना चाहिये।

आपका क़ायदा था कि आप मालदारों से ज़्यादा ग़रीबों की इज़्ज़त करते थे। मज़दूरों की बड़ी क़दर फ़रमाते थे। ख़ुद भी तिजारत फ़रमाते थे और अकसर अपने बाग़ों में ब नफ़्से नफ़ीस मेहनत भी करते थे।

एक मरतबा आप बेलचा हाथ में लिये बाग़ में काम कर रहे थे और पसीने से तमाम जिस्म तर हो गया था। किसी ने कहा ये बेलचा मुझे इनायत फ़रमाइये कि मैं यह खि़दमत अन्जाम दूं। हज़रत (अ.स.) ने फ़रमाया , तलबे माश में धूप और गर्मी की तकलीफ़ सहना ऐब की बात नहीं। ग़ुलामों और कनीज़ों पर वही मेहरबानी रहती थी जो इस घराने की इम्तेआज़ी सिफ़त थी। इसका एक हैरत अंगेज़ नमूना यह है कि जिसे सफ़यान सूरी ने बयान किया है कि मैं एक मरतबा इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुआ देखा कि चेहरा ए मुबारक का रंग मुताग़य्यर है। मैंने सबब दरयाफ़्त किया तो फ़रमाया मैंने मना किया था कि कोई मकान के कोठे पर न चढ़े इस वक़्त जो मैं घर आया तो क्या देखा कि एक कनीज़ जो एक बच्चे की परवरिश पर मुतअय्यन थी उसे गोद में लिये ज़िने से ऊपर जा रही थी। मुझे देखा तो ऐसा ख़ौफ़ तारी हुआ कि बद हवासी में बच्चा उसके हाथ से छूट गया और इस सदमे से जान बाहक़ तसलीम हो गया। मुझे बच्चे के मरने का इतना सदमा नहीं जितना इसका रंज है कि इस कनीज़ पर इतना रोब हेरास क्यों तारी हुआ। फिर हज़रत ने इस कनीज़ को पुकार कर फ़रमाया , डर नहीं , मैंने तुमको राहे ख़ुदा में आज़ाद कर दिया। इसके बाद हज़रत बच्चे की तजहीज़ की तरफ़ मोतवज्जा हुए। (सादिके आले मोहम्मद (अ.स.) पृष्ठ 12, मुनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 54)

किताब मजानी अल अदब जिल्द 1 पृष्ठ 67 में है कि हज़रत के यहां कुछ महमान आए थे। हज़रत ने खाने के मौक़े पर अपनी कनीज़ को खाना लाने का हुक्म दिया। वह सालन का बड़ा प्याला ले कर जब दस्तरख़्वान के क़रीब पहुँची तो इत्तेफ़ाक़न प्याला उसके हाथ से छूट कर गिर गया। इसके गिरने से इमाम (अ.स.) और दीगर महमानों के कपड़े ख़राब हो गए। कनीज़ कांपने लगी और आपने ग़ुस्से के बजाए उसे राहे ख़ुदा में यह कह कर आज़ाद कर दिया कि तू जो मेरे ख़ौफ़ से कांपती है शायद यही आज़ाद करना कफ़्फ़ारा हो जाए। फिर उसी किताब के सफ़े 69 में है कि एक ग़ुलाम आपका हाथ धुला रहा था कि दफ़तन लोटा छूट कर तश्त में गिरा और पानी उड़ कर हज़रत के मुंह पर पड़ा। ग़ुलाम घबरा उठा हज़रत ने फ़रमाया डर नहीं जा मैंने तुझे राहे ख़ुदा में आज़ाद कर दिया।

किताब तोहफ़तुल अलज़राएर अल्लामा मजलिसी में है कि आपकी आदात में इमाम हुसैन (अ.स.) की ज़्यारत के लिये जाना दाखि़ल था। आप अहदे सफ़ाह और ज़मानाए मन्सूर में भी ज़ियारत के लिये तशरीफ़ ले गए थे। करबला की आबादी से तक़रीबन चार सौ क़दम शुमाल की जानिब , नहरे अलक़मा के किनारे बाग़ों में शरीए सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) इसी ज़माने से बना हुआ है।(तसवीरे अज़ा 10 पृष्ठ 60 प्रकाशित देहली 1919 0 )

इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की इल्मी बुलन्दी

यह ज़ाहिर है कि इल्म ही इन्सान का वह जौहरे फ़ानी है जिसके बग़ैर हक़ीक़ी इम्तेआज़ हासिल नहीं होता। हज़रत आदम (अ.स.) ने इल्म के ज़रिये मलाएका पर फ़ज़ीलत हासिल की और आपके इस तरज़े अमल के ना ग़ुज़ीर तौर पर यह वाज़े हो गया कि मनसूस मिन अल्लाह को आलिमे जैय्यद होना लाज़मी है। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) चूंकि सही तौर पर मनसूस थे लेहाज़ा आपका आलमे ज़माना होना लाज़मी था और यही वजह है कि आप इल्म के उन मदारिज पर फ़ाएज़ थे जिनके अर्श ए बुलन्द के पाए को परिन्दा पर नहीं मार सकता था।


सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) की तसानीफ़

आपकी तसानीफ़ का शुमार नहीं किया जा सकता। तवारीख़ से मालूम होता है कि आप ने बेशुमार किताबें व रिसाले और मक़ालात से दुनियां वालों को फ़ैज़याब फ़रमाया है। आप चूंकि उलूम में ग़ैर महदूद थे। इस लिये आपकी किताबें हर इल्म में मिलती हैं। आपने इल्में दीन , इल्मे कीमिया , इल्मे रजज़ , इल्मे फ़ाल , इल्मे फ़लसफ़ा , इल्मे तबीइयात , इल्मे हैय्यत , इल्मे मन्तिक़ , इल्मे तिब , इल्मे समीयात , इल्मे तशरीह अल अजसाम व अफ़आल अल आज़ा , इल्म अल हयात वमा बाद अल तबयात वग़ैरा वग़ैरा पर ख़ामा फ़रसाई की है और लेक्चर दिये हैं। हम इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो किताबों को ज़िक्र करना चाहते हैं। 1. किताबे जफ़रो जामोआ , 2. किताब अहले लिजिया।

Leave a comment