चौदह सितारे इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स) पार्ट- 4

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इमाम अबू हनीफ़ा की शार्गिदी का मसला

यह तारीख़ी मुसल्लेमात से है कि जनाबे अबू हनीफ़ा हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के शार्गिद थे लेकिन अल्लामा तक़ीउद्दीन इब्ने तैमिया ने हम असर होने की वजह से इसमें कुन्केराना शुब्हा ज़ाहिर किया है। इनके शुब्हे को शम्सुल उलेमा अल्लामा शिब्ली नोमानी ने रद करने हुए तहरीर फ़रमाया है , ‘‘ अबू हनीफ़ा एक मुद्दत तक इस्तेफ़ादे की ग़र्ज़ से इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर रहे और फ़िक़ा व हदीस के मुताअल्लिक़ बहुत बड़ा ज़ख़ीरा हज़रत मम्दूह का फ़ैज़े सोहबत था। इमाम साहब ने उनके फ़रज़न्दे रशीद हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की फ़ैज़े सोहबत से भी कुछ फ़ायदा उठाया , जिसका ज़िक्र उमूमन तारीख़ों में पाया जाता है। ’’ इब्ने तैमिया ने इससे इन्कार किया है और उसकी वजह यह ख़्याल है कि इमाम अबू हनीफ़ा इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के माअसर और हम असर थे। इस लिये उनकी शार्गिदी क्यों कर इख़्तेयार करते लेकिन इब्ने तैमिया की गुस्ताख़ी और ख़ीरा चश्मी है। इमाम अबू हनीफ़ा लाख मुजतहिद और फ़क़ीह हों लेकिन फ़ज़लो कमाल में उनको हज़रत जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से क्या निसबत। हदीस व फ़िक़ा बल्कि तमाम मज़हबी उलूमे अहले बैत (अ.स.) के घर से निकले हैं। ‘‘ वा साहेबुल बैत अदरा बेमा फ़ीहा ’’ घर वाले ही घर की तमाम चीज़ों से वाक़िफ़ होते हैं।(सीरतुन नोमान पृष्ठ 45 तबआ आगरा)

जनाबे अबू हनीफ़ा का इम्तेहान तारीख़ में है कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की खि़दमत में अकसर हज़रत अबू हनीफ़ा नोमान बिन साबित हाज़िर हुआ करते थे और यह होता रहता था कि आप उनका इम्तेहान ले कर उन्हें फ़ायदा पहुँचा दिया करते थे। एक दफ़ा का ज़िक्र है कि जनाबे अबू हनीफ़ा हज़रत की खि़दमत मे हाज़िर हुए , तो आपने पूछा कि ऐ अबू हनीफ़ा मैंने सुना है कि तुम मसाएले दीनिया मे ‘‘ क़यास ’’ से काम लिया करते हो। अर्ज़ कि जी हां है तो ऐसा ही। आपने फ़रमाया कि ऐसा न किया करो क्यों कि ‘‘ अव्वल मन क़यास इब्लीस ’’ दीन में क़यास करना इब्लीस का काम है और उसी ने क़यास की पहल की है।

एक दफ़ा आपने पूछा कि ऐ अबू हनीफ़ा यह बताओ कि ख़ुदा वन्दे आलम ने आखों में नमकीनी , कानों में तल्ख़ी , नाक के नथनों में रूतूबत और लबों पर शीरीनी क्यों पैदा की ? उन्होंने बहुत ग़ौरो ख़ौज़ के बाद कहा , या हज़रत इसका इल्म मुझे नहीं है। आपने फ़रमाया , अच्छा मुझ से सुनो , आंखें चरबी का ढेला हैं , अगर उनमें शूरियत और नमकीनी न होती तो पिघल जातीं , कानों में तल्ख़ी इस लिये है कि कीड़े मकोड़े न घुस जायें। नाक में रूतूबत इस लिये है कि सांस की आमदो रफ़्त में सहूलियत हो और ख़ुशबू और बदबू महसूस हो , लबों में शीरीनी इस लिये है कि खाने पीने मे लज़्ज़त आये।

फिर आपने पूछा कि वह कौन सा कलमा है जिसका पहला हिस्सा कुफ़्र और दूसरा ईमान है ? उन्होंने अर्ज़ की मुझे इल्म नहीं। आपने फ़रमाया कि वह वही कलमा है जो तुम रात में पढ़ा करते हो , सुनो ! ला इलाहा कुफ्ऱ और इल्लल्लाह ईमान है।

फिर आपने पूछा कि औरत कमज़ोर है या मर्द , नीज़ यह कि हालते हमल में औरत को ख़ूने हैज़ क्यों नहीं आता ? उन्होंने कहा कि यह तो मालूम है कि औरत कमज़ोर है लेकिन यह नहीं मालूम कि इसे आलमे हमल में हैज़ क्यों नहीं आता। आपने फ़रमाया कि अच्छा अगर औरत कमज़ोर है तो क्या वजह है कि मीरास में उसको एक हिस्सा और मर्द को दो हिस्सा दिया जाता है। उन्होंने जवाब दिया मुझे मालूम नहीं। आपने फ़रमाया कि औरत का नफ़क़ा मर्द पर है और हुसूले आज़ूक़ा उसी के ज़िम्मे है इस लिये उसे दोहरा दिया गया और औरत को आलमे हमल में ख़ूने हैज़ इस लिये नहीं आता कि वह बच्चे के पेट में दाखि़ल हो कर ग़िज़ा बन जाता है।

इब्ने ख़ल्क़ान लिखते हैं कि एक दिन हज़रत की खि़दमत में जनाबे अबू हनीफ़ा साहब तशरीफ़ लाये तो आपने पूछा , ऐ अबू हनीफ़ा तुम इस मुजरिम के बारे में क्या फ़तवा देते हो , जिस ने हज के लिये एहराम बांधने के बाद हिरन के वह दांत तोड़ डाले हों जिनको रूबाई कहते हैं। ‘‘ फ़क़ाला या बिन रसूल मा आलमा मा फ़ीहा ’’ अर्ज़ की फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.) मुझे इसका हुक्म मालूम नहीं ‘‘ फ़क़ाला अनता तदाहिर वला तालम ’’ आपने फ़रमाया कि इसी इल्मीयत पर फ़ख़्र करते और लोगों को धोका देतो हो , तुम्हें यह तक मालूम नहीं कि हिरन के रूबाईया होते ही नहीं।(अल मसाएद पृष्ठ 202 )

फिर आपने पूछा कि यह बताओ कि अक़्ल मन्द कौन है ? उन्होंने अर्ज़ कि जो अच्छे बुरे की पहचान करे और दोस्त दुश्मन में तमीज़ कर सके। आपने फ़रमाया कि यह सिफ़त और तमीज़ तो जानवरों में भी होती है। वह भी प्यार करते और मारते हैं। यानी अच्छे बुरे को जानते हैं। उन्होंने कहा फिर आप ही फ़रमायें। आपने इरशाद किया कि अक़्ल मन्द वह है जो दो नेकियों और दो बुराईयों में यह इम्तियाज़ कर सके कि कौन सी नेकी तरजीह देने के क़ाबिल और दो बुराईयों में कौन सी बुराई कम और कौन ज़्यादा है।(हयातुल हैवान , दमीरी जिल्द 2 पृष्ठ 85, 86 तारीख़ इब्ने ख़ल्क़ान जिल्द 1 पृष्ठ 105 मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब पृष्ठ 41 नूरूल अबसार पृष्ठ 131 )

इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बाज़ नसीहते व इरशादात

अल्लामा शिब्ली तहरीर फ़रमाते हैः

1. सईद वह है जो तन्हाई में अपने को लोगों से बे नियाज़ और ख़ुदा की तरफ़ झुका हुआ पाये।

2. जो शख़्स किसी बरादरे मोमिन का दिल ख़ुश करता है ख़ुदा वन्दे आलम उसके लिये एक फ़रिश्ता पैदा करता है जो उसकी तरफ़ से इबादत करता है और क़ब्र में मूनिसे तन्हाई , क़यामत में साबित क़दमी का बाएस , मन्ज़िले शफ़ाअत में और जन्नत में पहुँचाने में रहबर होगा।

3. नेकी का तकमेला यानी कमाल यह है कि इसमें जल्दी करो और उसे कम समझो और छुपा के करो।

4. अमले ख़ैर नेक नीयती से करने को सआदत कहते हैं।

5. तवाज़ो में ताख़ीर नफ़्स का धोखा है।

6. चार चीज़ें ऐसी हैं जिनकी क़िल्लत को कसरत समझना चाहिए। ( 1) आग , ( 2) दुश्मनी , ( 3) फ़क़ीरी , ( 4) मर्ज़।

7. किसी के साथ बीस दिन रहना अज़ीज़दारी के मुतारादिफ़ है।

8. शैतान के ग़ल्बे से बचने के लिये लोगों पर एहसान करो।

9. जब अपने किसी भाई के वहां जाओ तो सदरे मजलिस में बैठने के अलावा इसकी हर नेक ख़्वाहिश को मान लो।

10. लड़की रहमत नेकी और लड़का नेअमत है। ख़ुदा हर नेकी पर सवाब देता है और नेअमत पर सवाल करेगा।

11. जो तुम्हें इज़्ज़त की निगाह से देखे तो तुम भी उसकी इज़्ज़त करो , जो ज़लील समझे उससे ख़ुद्दारी बरतो। 12. बख़शिश से रोकना ख़ुदा से बदज़नी है।

1 3. दुनियां में लोग बाप दादा के ज़रिये से मुतअर्रिफ़ होते हैं और आख़ेरत में आमाल के ज़रिये से पहचाने जायेंगे।

14. इन्सान के बाल बच्चे उसके असीर और क़ैदी हैं नेअमत की वुसअत पर उन्हें वुसअत देनी चाहिये वरना ज़वाले नेअमत का अन्देशा है।

15. जिन चीज़ों से इज़्ज़त बढ़ती है इनमें तीन यह हैं , ( 1) ज़ालिम से बदला न लो। ( 2) उस पर करम गुस्तरी जो मुख़ालिफ़ हो। ( 3) जो इसका हमर्दद न हो उसके साथ हमदर्दी करे।

16. मोमिन वह है जो जादए हक़ से न हटे और ख़ुशी में बातिल की पैरवी न करे।

17. जो ख़ुदा की दी हुई नेअमत पर क़िनाअत करेगा , मुस्तग़नी रहेगा।

18. जो दूसरों की दौलत मंदी पर लल्चाई हुई नज़र डालेगा , वह हमेशा फ़क़ीर रहेगा।

19. जो राज़ी ब रज़ा ख़ुदा नहीं वह ख़ुदा पर इत्तेहाम तक़दीर लगा रहा है।

20. जो अपनी लग़ज़िश को नज़र अन्दाज़ करेगा वह दूसरों की लग़ज़िश को भी नज़र में न लायेगा।

21. जो किसी को बे पर्दा करने की सई करेगा ख़ुद बरहना हो जायेगा।

22. जो किसी पर ना हक़ तलवार खींचेगा तो नतीजे में ख़ुद मक़तूल होगा।

23. जो किसी के लिये कुआं खोदेगा ख़ुद उसमें गिरेगा। ‘‘ चाह कुन रा चाह दरपेश ’’।

24. जो शख़्स बे वकूफ़ों से राह रस्म रखेगा ज़लील होगा।

25. हक़ गोई करनी चाहिये ख़्वाह वह अपने लिये मुफ़ीद हो या मुज़िर।

26. चुग़ल ख़ोरी से बचो क्यों कि यह लोगों के दिलों में दुश्मनी और अदावत का बीज बोती है।

27. अच्छों से मिलो , बुरों के क़रीब न जाओ क्यों कि वह ऐसे पत्थर हैं जिनमें जोंक नहीं लगती , यानी उनसे फ़ायदा नहीं हो सकता।(नूरूल अबसार पृष्ठ 134 )

28. जब कोई नेअमत मिले तो बहुत ज़्यादा शुक्र करो ताकि इज़ाफ़ा हो।

29. जब रोज़ी तंग हो तो अस्तग़फ़ार ज़्यादा करो कि अब्वाबे रिज़्क़ खुल जाएं।

30. जब हुकूमत या ग़ैर हुकूमत की तरफ़ से कोई रंज पहुँचे तो ‘‘ ला हौल वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीअल अज़ीम ’’ ज़्यादा कहो कि रंज दूर हो , ग़म काफ़ूर हो और ख़ुशी का वफ़ूर हो।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 274 से पृष्ठ 275 )

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