चौदह सितारे इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स) पार्ट- 1

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अबु अब्दुल्लाह हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ स)

इसी इजमाल की हैं शरह , गोया जाफ़रे सादिक़

लक़ब जिसका किताब अल्लाह में ख़त्मे नबूवत है

बनाये सब से पहले , फ़िक़हा के आईन मौला ने

इन्हीं के दम से क़ायम आज इस्लामी शरीअत है

साबिर थरयानी ‘‘ कराची ’’

सादिक़ आले मोहम्मद , वह इमामे सादस

ज़ेबे सर जिसके इमामत का है मौरूसी ताज

है यह मौलूदे जिगर बन्द , मोहम्मद बाक़र

ख़ाना ए हस्ती , जिदअत को करेगा ताराज

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के छठे जानशीन और सिलसिलाए अस्मत की आठवीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) थे और वालिदा माजिदा जनाबे उम्मे फ़रवा बिन्ते क़ासिम बिन मोहम्मद बिन अबी बक्र थीं। आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस , मासूम , आलिमें ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।

अल्लामा हजर लिखते हैं कि हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) अफ़ज़ल व अकमल थे। इसी बिना पर आपने अपने बा पके ख़लीफ़ा और वसी क़रार पाये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 ) अल्लामा इब्ने ख़ल्क़ान तहरीर फ़रमाते हैं कि आप सादात अहलेबैत से थे व फ़ज़लह ‘‘ अश्हरान यज़कर ’’ इनकी अफ़ज़लियत व करम मोहताज बयान नहीं।(दफ़ायात अल अयान जिल्द 1 पृष्ठ 105 )

इमाम फ़ख़रूद्दीन राज़ी की तफ़सीर कबीर जिल्द 5 पृष्ठ 429 व जिल्द 6 पृष्ठ 783 प्रकाशित मिस्र बहवाला ए आयाए ततहीर और आरिफ़ समदानी अली हमदानी की मुवदतुल क़ुर्बा पृष्ठ 34 प्रकाशित बम्बई 1310 ई 0 और शाह अब्दुल अज़ीज़ की अश्रया ताअन 13 पृष्ठ 439 प्रकाशित लखनऊ 1309 की इबारत से मुस्तफ़ाद होता है कि आप भी अपने आबाओ अजदाद की तरह मासूम और महफ़ूज़ थी। वरासतु लबीव पृष्ठ 200 में है कि आपने इब्तिदा ए उम्र से आखि़र तक कोई गुनाह नहीं किया और इसी को महफ़ूज़ कहे हैं। इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ख़ुद इरशाद फ़रमाते हैं कि (नहन क़ौम मासूमन) हम हैं वही ख़ुदा के तरजुमान , हम हैं इल्मे ख़ुदा के ख़ज़ीनादार और हम ही लोग मासूम हैं। ख़ुदा ने हमारी इताअत का हुक्म दिया है और हमारी मासीयत से दुनिया वालों को रोका है।(आलाम अल वरा पृष्ठ 169 )

अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ई लिखते हैं कि आप अहले बैत और रिसालत की अज़ीम तरीन फ़र्द थे और आप मुख़्तलिफ़ क़िस्म के उलूम से भर पूर थे। आप ही से क़ुरआन मजीद के मानी के चश्मे फूटते रहे हैं। आपके बहरे इल्म से उलूम के मोती रोले जाते हैं। आप ही से इल्मी अजाएब व कमालात का ज़हूर व इन्केशाफ़ हुआ।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 173 )

अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि उलमा ने आपसे इस दर्जा नक़ले उलूम किया जिसकी कोई हद नहीं। आपका आवाज़े इल्म तमाम अवसाद दयार में फैला हुआ था।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 )

मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपके उलूम का अहाता व फ़हमो इदराक से बुलन्द है।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 180 )

अल्लामा मिस्र शेख़ मोहम्मद ख़ज़री बक लिखते हैं कि इनसे इमाम मालिक बिन अन्स , इमाम अबू हनीफ़ा और अकसर उलेमा ए मदीना ने रवायत की है मगर इमाम बुख़ारी , सहाए सित्ता में सब से ज़्यादा मुताबर्रिक समझी जाती है। वाज़े हो कि दीगर सहाह में आले मोहम्मद (स. अ.) से भी रवायत ली गई हैं। ज़रूरत थी कि इन सहाह का बुख़ारी से बुलन्द दर्जा दिया जाता मगर ऐसा नहीं हुआ।

बरीं अक़ल व दानिश बेबायद गिरीस्त

आपकी विलादत ब सआदत आप बतारीख़ 17 रबीउल अव्वल 83 हिजरी मुताबिक़ 702 ई 0 यौमे दो शम्बा मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए।(इरशाद मुफ़ीद फ़ारसी पृष्ठ 413, आलाम अल वरा पृष्ठ 159, जामे अब्बासी पृष्ठ 60 वगै़राह) आपकी विलादत की तारीख़ को ख़ुदा वन्दे आलम ने बड़ी इज़्ज़त दे रखी है। अहादीस में है कि इस तारीख़ को रोज़ा रखना एक साल के रोज़े के बराबर है। विलादत के बाद एक दिन हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने फ़रमाया कि मेरा यह फ़रज़न्द इन चन्द मख़सूस अफ़राद में से है जिसनी वजह से ख़ुदा ने बन्दों पर एहसान फ़रमाया और यही मेरे बाद मेरा जानशीन होगा।(जन्नात अल ख़ुलूद पृष्ठ 27 )

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि जब आप बतने मादर में थे तब कलाम फ़रमाते थे। विलादत के बाद आपने कलमाए शहादतैन ज़बान पर जारी फ़रमाया आप भी नाफ़ बुरीदा और ख़तना शुदा पैदा हुए हैं।(जिला अल उयून पृष्ठ 265 ) आप तमाम नबूवतों के ख़ुलासा थे।


इस्मे गिरामी , कुन्नियत , अलक़ाब

आपका इस्में गेरामी जाफ़र , आपकी कुन्नियत अबू अब्दुल्लाह , अबू इस्माईल और आपके अलक़ाब सादिक़ , फ़ाज़िल , ताहिर वग़ैरा हैं। अल्लामा मजलिसी रक़म तराज़ हैं कि आं हज़रत ने अपनी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में हज़रत जाफ़र बिन मोहम्मद को लक़ब सादिक़ से मौसूम व मुलक़्क़ब फ़रमाया था और इसकी वजह बज़ाहिर यह थी कि अहले आसमान के नज़दीक़ आपका लक़ब पहले ही से ‘‘ सादिक़ ’’ था।(जिला अल उयून पृष्ठ 264 )

अल्लामा इब्ने ख़ल्क़ान का कहना है कि सिदक़ मक़ाल की वजह से आपके नामे नामी का जुज़ो ‘‘ सादिक़ ’’ क़रार पाया है।(वफ़यात उल अयान जिल्द 1 पृष्ठ 105 )

‘‘ जाफ़र ’’ के मुताअल्लिक़ उलेमा का बयान है कि जन्नत में जाफ़र नामी एक शीरी नहर है इसी की मुनासिबत से आपका यह लक़ब रखा गया है चूंकि आपका फ़ैज़े आम नहरे जारी की तरह था इसी लिये लक़ब से मुलक़्क़ब हुए।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 361 बहवाला तज़किरातुल उल ख़्वास उल उम्मता)

इमामे अहले सुन्नत अल्लामा वहीदुज़्ज़मा हैदराबादी तहरीर फ़रमाते हैं कि जाफ़र छोटी नहर या बड़ी वासेए (कुशादा) इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) मशहूर नाम हैं। बारह इमामों में से और बड़े सुक़्क़ा और फ़क़ीह और हाफ़िज़ थे। इमाम मालिक और इमामे अबू हनीफ़ा के शेख़ (हदीस) हैं और इमाम बुख़ारी को मालूम नहीं क्या शुबहा हो गया कि वह अपनी सही में इनसे रवायत नहीं करते और यहया बिन सईद क़तान ने बड़ी बेअदबी की है जो कहते हैं , ‘‘ फ़ी मनहू शैइनव मजालिद अहबा इला मिन्हा ’’ मेरे दिल में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की तरफ़ से ख़लिश है। मैं इनसे बेहतर मजालिद को समझता हूँ हालांकि मजालिद को इमाम साहब के सामने क्या रूतबा है। ऐसी ही बातों की वजह से अहले सुन्नत बदनाम होते हैं कि उनको आइम्मा अहले बैत (अ.स.) से मोहब्बत और ऐतिक़ाद नहीं। अल्लाह ताअला इमाम बुख़ारी पर रहम न करे कि मरवान और इमरान बिन ख़्तान और कई ख़्वारिज से तो उन्होंने रवाएत की और जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से जो इब्ने रसूल अल्लाह (स अ व व ) हैं इनकी रवाएत में शुब्हा करते हैं।(अनवारूल अलख़्ता पारा पृष्ठ 47 प्रकाशित हैदराबाद दकन)

अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल्लामा शिब्लंजी रक़म तराज़ हैं कि अयाने आइम्मा में से एक जमाअत मिस्ल यहया बिन सईद इब्ने हजर , इमाम मालिक , इमाम शैफ़ान सूरी , सुफ़यान बिन ऐनिया , अबू हनीफ़ा , अय्यूब सजसतानी ने आपसे हदीस अख़्ज़ की , अबू हातिम का कौल है कि इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ऐसे सुक़्क़ा हैं (लायस अल अन्हा मसलह) कि आप ऐसे शख़्सों की निस्बत कुछ तहक़ीक़ और इस्तेफ़सार व तफ़हुस की ज़रूरत ही नहीं। आप रियासत की तलब से बे नियाज़ थे और हमेशा इबादत गुज़ारी में बसर करते रहे। उमर इब्ने मक़दाम का कहना है कि जब मैं इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को देखता हूँ तो मुझे माअन ख़्याल होता है कि यह जौहरे रिसालत (स अ व व ) की असल बुनियाद हैं।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 नूरूल अबसार 131 हुलयतुल अबरार , तारीख़ आईम्मा पृष्ठ 433 )

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