
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के पांचवें जा नशीन , हमारे पांचवें इमाम और सिलसिला ए अस्मत की सातवीं कड़ी थे। आपके वालिदे माजिद सय्यदुस साजेदीन हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) थे और वालेदा माजेदा उम्मे अब्दुल फातेमा बिन्ते हज़रत इमाम हसन (अ.स.) थीं। उलमा का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बाप और मां दोनों की तरफ़ से अलवी और नजीबुत तरफ़ैन हाशमी थे। नसब का यह शरफ़ किसी को भी नहीं मिला।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269 ) आप अपने आबाओ की तरह इमाम मन्सूस , मासूम , इल्मे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे यानी ख़ुदा की तरफ़ से आप इमाम मासूम और अपने अहदे इमामत में सब से बडे़ आलिम और काएनात में सब से अफ़ज़ल थे।
अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि आप इबादत इल्म और ज़ोहद वग़ैरा में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जीती जागती तस्वीर थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 120 ) अल्लामा मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि आप इल्म ज़ोहद , तक़वा तहारत सफ़ाए क़ल्ब और दीगर महासिन व फ़ज़ाउल में इस दर्जा पर फ़ाएज़ थे कि यह सिफ़ात खुद इनकी तरफ़ इन्तेसाब से मुम्ताज़ क़रार पाया।(मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269 )
अल्लामा इब्ने साद का कहना है कि आप ताबेईन के तीसरे तबक़े में से थे और बहुत बड़े आलम , आबिद और सुक़्क़ा थे। इब्ने शाहब ज़हरी और इमाम निसाई ने आपको सुक़्क़ा फ़क़ीह लिखा है। फ़कु़हा की बड़ी जमाअत ने आप से रवायत की है। अता का बयान है कि उलमा को अज़रूए इल्म किसी के सामने इस क़दर अपने आप का झूठा समझते हुए नहीं देखा जिस तरह कि वह अपने आपको इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के रू ब रू समझते थे। मैंने हाकिम जैसे आलिम को उनके सामने सिपर अन्दाख़्ता देखा है।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 446 )
साहबे रौज़तुल पृष्ठ का कहना है कि हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) के फ़ज़ाएल लिखने के लिये एक अलाहेदा किताब दरकार है। ख़्वाजा मोहम्मद पारसा लिखते हैं कि ‘‘ इमाम बारआ मजमुए जलालहू व कमालहू ’’ आप अज़ीमुश्शान इमाम व पेशवा और जामेए सफ़ात जलाल व कमाल थे।(फ़सल अल ख़ताब)
अल्लामा शेख़ मोहम्मद खि़ज़री लिखते हैं कि इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) अपने ज़माने में बनी हाशिम के सरदार थे।(तारीख़े फ़क़ा पृष्ठ 179 प्रकाशित कराची)
आपकी विलादत बा सआदत
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ब तारीख़ यकुम रजबुल मुरज्जब 57 हिजरी यौमे जुमा मदीना ए मुनव्वरा में पैदा हुए।(अल्लामा अलवरी पृष्ठ 155 व जलाल उल उयून पृष्ठ 26 व जनातुल ख़लूद पृष्ठ 25 )
अल्लामा मजलिसी फ़रमाते हैं कि जब आप बतने मादर में तशरीफ़ लाए तो आबाओ अजदाद की तरह आपके घर में आवाज़े गै़बी आने लगी और जब नौ माह के हुए तो फ़रिश्तों की बेइन्तेहा आवाज़ें आने लगीं और शबे विलादत एक नूर साते हुआ। विलादत के बाद क़िबला रूख़ हो कर आसमान की तरफ़ रूख़ फ़रमाया और(आदम की मानिन्द) तीन बार छींकने के बाद हम्दे खुदा बजा लाए , एक शबाना रोज़ दस्ते मुबारक से नूर साते रहा। आप ख़तना करदा , नाफ़ बुरीदा , तमाम अलाइशों से पाक और साफ़ मुतवल्लिद हुए थे।(जलाल अल उयून पृष्ठ 259 )
इस्मे गिरामी ,कुन्नियत और अलक़ाब
आपका इस्मे गिरामी ‘‘ लौहे महफ़ूज़ ’’ के मुताबिक़ और सरवरे काएनात (स. अ.) की ताय्युन के मुआफ़िक़ ‘‘ मोहम्मद ’’ था। आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू जाफ़र ’’ थी और आपके अलक़ाब कसीर थे जिनमें बाक़िर , शाकिर , हादी ज़्यादा मशहूर हैं।(मतालेबुस सूऊल शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 181 )
बाक़िर की वजह तसमिया
बाक़िर बक़रह से मुशतक और इसी का इस्म फ़ाएल है इसके मानी शक करने और वसअत देने के हैं।(अलमन्जिद पृष्ठ 41 ) हज़रत इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) को इस लक़ब से इस लिये मुलक़्क़ब किया गया था कि आपने उलूम व मआरिफ़ को नुमाया फ़रमाया और हक़ाएक़ अहकाम व हिकमत व लताएफ़ के वह सरबस्ता ख़ज़ाने ज़ाहिर फ़रमाए जो लोगों पर ज़ाहिरो हुवैदा न थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 10, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 269, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 181 )
जौहरी ने अपनी सहाह में लिखा है कि ‘‘ तवससया फ़िल इल्म ’’ को बक़रह कहते है। इसी लिये इमाम मोहम्मद बिन अली को बाक़िर से मुलक़्क़ब किया जाता है। अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी का कहना है कि कसरते सुजूद की वजह से चुंकि आपकी पेशानी वसी थी इस लिये आपको बाक़िर कहा जाता है और एक वजह यह भी है कि जामिय्यत इलमिया की वजह से आपको यह लक़ब दिया गया है। शहीदे सालिस अल्लामा नूर उल्लाह शुश्तरी का कहना है कि आँ हज़रत (स. अ.) ने इरशाद फ़रमाया है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) उलूमो मारिफ़ को इस तरह शिग़ाफ़ता करेंगे जिस तरह ज़ेराअत के लिये ज़मीन शिग़ाफ़ता की जाती है।(मजालिस अल मोमेनीन पृष्ठ 117 )
बादशाहाने वक़्त
आप 57 हिजरी में मावीया इब्ने अबी सुफ़ियान के अहद में पैदा हुए 60 हिजरी में यज़ीद बिन मावीयाा बादशाहे वक़्त रहा 64 हिजरी में मावीया बिन यज़ीद और मरवान बिन हकम बादशाह रहे। 65 हिजरी से 86 हिजरी तक अब्दुल्ल मलिक बिन मरवान ख़लीफ़ा ए वक़्त रहा। फिर 86 से 96 हिजरी तक वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हुक्मरानी की। इसी ने 95 हिजरी में आपके वालिदे माजिद को दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ कर दिया। इसी 95 हिजरी से आपकी इमामत का आग़ाज़ हुआ और 114 हिजरी तक आप फ़राएज़े इमामत अदा फ़रमाते रहे। इसी दौरान वलीद अब्दुल मलिक के बाद सलमान बिन अब्दुल मलिक , उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ , यज़ीद इब्ने अब्दुल मलिक और हश्शाम बिन अब्दुल मलिक बादशाहे वक़्त रहे।(अलाम अल वरा पृष्ठ 156 )
वाक़ेए करबला में इमाम मोहम्मदे बाक़िर (अ.स.) का हिस्सा
आपकी उमर अभी ढाई साल की थी कि आपको हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के हम्राह वतने अज़ीज़ मदीना ए मुनव्वरा छोड़ना पड़ा। फिर मदीना से मक्का और वहां से करबला तक की सऊबते सफ़र बरदाश्त करना पड़ी। इसके बाद वाक़ेए करबला के मसाएब देखे , कूफ़ाओ शाम के बाज़ारों और दरबारों का हाल देखा। एक साल शाम में क़ैद रहे फिर वहां से छूट कर 8 रबीउल अव्वल 62 हिजरी को मदीना ए मुनव्वरा वापस हुए। जब आपकी उमर चार साल की हुई तो आप एक दिन कुंए में गिर गए। ख़ुदा ने आपको डूबने से बचा लिया और जब आप पानी से बरामद हुए तो आपके कपड़े और आपका बदन तक भीगा हुआ न था।(मुनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 109 )

