चौदह सितारे हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स) पार्ट- 1

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हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ स . )

पैग़म्बरे इस्लाम रसूले करीम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के सातवें जांनशीन , हमारे सातवें इमाम और सिलसिलाए अस्मत की नवीं कड़ी हैं। आपके वालिद माजिद हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) थे और आपकी वालदा माजदा जनाबे हमीदा ख़ातून जो बरबर या इन्दलिस की रहने वाली थीं। आपके मुताअल्लिक़ हज़रत इमामे बाक़र (अ.स.) ने इरशाद फ़रमाया है कि आप दुनिया में हमीदा और आख़ेरत में महमूदा हैं।

(शवाहिद अल नबूवत पृष्ठ 186 )

अल्लामा मोहम्मद रज़ा लिखते हैं कि आप साहेबे जमाल कमाल और निहायत दियानत दार थीं।

(जेनातुल ख़ुलूद पृष्ठ 29 )

अल्लामा मजलिसी का कहना है कि वह हर निसवानी आलाईश से पाक थीं।

(जिलाउल उयून पृष्ठ 270 )

अल्लामा शहर आशोब लिखते हैं कि जनाबे हमीदा के वालिद माजिद साएद बसरी थे। हमीदा ख़ातून की कुन्नियत लोलो (मोती) थी।

(मनाकि़ब जिल्द 5 पृष्ठ 76 )

हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस आलमे ज़माना अफ़ज़ले काएनात थे। आप जुमला सिफ़ात हसना से भर पूर थे , आप दुनिया की तमाम ज़बाने जानते और इल्में ग़ैब से आगाह थे। आपके मुताअल्लिक़ इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के इल्म , मारेफ़त कमाल और अफ़ज़लीयत में वारिस व जांनशीन थे। आप दुनिया के आबिदों में से सब से बड़े इबादत गुज़ार सब से बड़े आलिम और सब से बड़े सख़ी थे।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 121 ) और इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि आप बहुत बड़ी इज़्ज़त व क़द्र के मालिक इमाम और इन्तेहाई शान व शौकत के मुजतहिद थे। आपका इजतेहाद में नज़ीर न था। आप इबादत व ताअत में मशहूर ज़माना और करामत में मशहूरे कायनात थे। उन चीज़ों में आपकी कोई मिसाल न मिलती थी। आप सारी रात रूकु व सुजूद और क़याम व क़यूद में गुज़ारते और सारा दिन सदक़ा और रोज़े में बसर करते थे।

(मतालेबुस सुऊल 308 )

अल्लामा शिब्ली लिखते हैं कि आप बहुत बड़ी क़द्र व मंजि़लत के दुनिया में मुन्फ़रिद इमाम और ज़बर दस्त हुज्जते ख़ुदा थे। नमाज़ों की वजह से हमेशा सारी रात जागते थे और दिन भर रोज़ा रखते थे।(अनवारूल अख़्बार पृष्ठ 134 )

अल्लामा इब्ने सबाग़ मालिकी लिखते हैं कि आप अपने ज़माने के लोगों में सब से ज़्यादा आबिद और सब से ज़्यादा इल्म वाले और सब से ज़्यादा सख़ी और बुज़ुर्ग नफ़्स थे।(फ़ुसूल मोहम्मद व अरजहुल मतालिब पृष्ठ 451 )

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि आप आबिद तरीन अहले ज़माना और करीम तरीन अहले आलिम थे। आपके फ़ज़ाएल व करामात बे शुमार हैं।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 432 )

किताब रौज़तुल अहबाब में है कि आप व रूए क़द्र मंजि़लत बुज़ुर्ग तरीन अहले आलिम थे और अपने पदरे बुज़ुर्गवार की नस के मुताबिक़ उनके बाद वली अमरे इमामत हुये।


आपकी विलादत ब सआदत

हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) बतारीख़ 7 सफ़रूल मुज़फ़्फ़र 128 हिजरी मुताबिक़ 10 नवम्बर 745 ई0 यौमे शम्बा ब मुक़ाम अबवा जो मक्का व मदीने के बीच वाक़े है पैदा हुए।

(अनवारे नोमानिया पृष्ठ 126 व आलामुल वरा पृष्ठ 171 व जिलाउल उयून पृष्ठ 269 व शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 192 रौज़तुल शौहदा पृष्ठ 436 )

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि पैदा होते ही आपने हाथों को ज़मीन पर टेक कर आसमान की तरफ़ रूख़ किया और कलमाए शहादतैन ज़बान पर जारी फ़रमाया। आपने यह अमल बिलकुल उसी तरह किया जिस तरह हज़रत रसूले ख़ुदा स. ने विलादत के बाद किया था। आपके दाहिने बाज़ू पर ‘‘ कलमाए तम्मत कल्मता रब्बेका सदक़ा व अदलन ’’ लिखा हुआ था। आप इल्मे अव्वलीन व आख़ेरीन से बहरावर मुतावल्लिद हुए थे। आपकी विलादत से हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) को बे हद मसर्रत हुई थी आपने मदीना जा कर अहले मदीना को दावते ताअम दी थी।(जिलाउल उयून पृष्ठ 270 ) आप दीगर आइम्मा की तरह मख़तून और नाफ़ बुरीदा मुतावल्लिद हुये थे।


इस्मे गिरामी कुन्नियत ,अल्क़ाब

आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने ख़ुदा वन्दे आलम के मुअय्यन कर्दा नाम मूसा से मौसूम किया। अल्लामा मोहम्मद रज़ा लिखते हैं कि मूसा क़ब्ती लफ़्ज़ है और ‘‘ मू ’’ और ‘‘ सी ’’ से मुरक्कब है। मू के मानी पानी आर सी के मानी दरख़्त है। इस नाम से सब से पहले हज़रत कलीम अल्लाह मौसूम किये गये थे और इसकी वजह यह थी कि ख़ौफ़े फि़रऔन से मादरे मूसा ने आपको उस सन्दूक़ में रख कर दरिया में बहाया था जो ‘‘हबीब नजार ’’ का बनाया हुआ था और बाद में ताबूते सकीना क़रार पाया तो वह सन्दूक बह कर फि़रऔन और जबाने आसिया तक पानी के ज़रिये से उन दरख़्तों से टकराता हुआ जो ख़ास बाग़ में थे पहुँचा था लेहाज़ा पानी और दरख़्त के सबब से उनका नाम मूसा क़रार पाया था।(जन्नातुल ख़ुलूद पृष्ठ 29 ) आपकी कुन्नियत अबुल हसन , अबू इब्राहीम , अबु अली , अबु अब्दुल्लाह थी और आपके अल्क़ाब काजि़म , अब्दे सालेह , नफ़्से ज़किया , साबिर , अमीन , बाबुल हवाएज वग़ैरह थे। शोहरते आम्मा काजि़म को है और उसकी वजह यह है कि आप बद सुलूक के साथ एहसान करते और सताने वाले को माफ़ फ़रमाते और ग़ुस्से को पी जाते थे। बड़े हलीम बुर्दबार और अपने पर ज़ुल्म करने वाले को माफ़ कर दिया करते थे।

(मतालेबुस सुऊल पृष्ठ 273, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 192, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 432, तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 पृष्ठ 32 )