
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की शाने इबादत जिस तरह आपकी इबादत गुज़ारी में पैरवी ना मुम्किन है इसी तरह आपकी शाने इबादत की रक़मतराजी भी दुश्वार है। एक वह हस्ती जिसका मक़सद माबूद की इबादत और ख़ालिक की मारेफ़त हो और जो अपनी हयात का मक़सद इताअते ख़ुदा वन्दी ही को समझता हो और इल्मो मारेफ़त में हद दरजा कमाल रखता हो उसकी शाने इबादत को सतह क़िरतास ( क़लम से नहीं लिखा जा सकता) पर क्यों कर लाया जा सकता है और ज़बाने क़लम इसकी तरजुमानी में किस तरह कामयाबी हासिल कर सकती है। यही वजह है कि उलेमा की बे इन्तेहा काहिशो काविश के बा वजूद आपकी शाने इबादत का मुज़ाहेरा नहीं हो सका । ” ८८ क़द बलिग मिनल इबादतः मअलम बलीग़ः अहादो आप इबादत की उस मंज़िल पर फ़ायज़ थे जिस पर कोई भी फ़ायज़ नहीं हुआ। (दमए साकेबा पृष्ठ 439)
इस लिससिले में अरबाबे इल्म और साहेबाने क़लम जो कुछ कह और लिख सके हैं उनमें से बाज़ वाकेयात व हालात यह हैं ।
आपकी हालत वज़ू के वक़्त
वज़ू नमाज़ के लिये मुक़द्दमे की हैसियत रखता है और इसी पर नमाज़ का दारो मदार होता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) जिस वक़्त वज़ू का इरादा फ़रमाते थे आपके रगो पै में ख़ौफ़े ख़ुदा के असरात नुमायां हो जाते थे। अल्लामा मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप वज़ू का क़ज़्द फ़रमाते थे और वज़ू के लिये बैठते थे तो आपके चेहरे मुबारक का रंग ज़र्द हो जाया करता था। यह हालत बार बार देखने के बाद उनके घर वालों ने पूछा कि वज़ू के वक़्त आपके चेहरे का रंग ज़र्द क्यों पड़ जाता है तो आपने फ़रमाया कि उस वक़्त मेरा तसव्वुरे कामिल अपने ख़ालिक़ व माबूद की तरफ़ होता है। इस लिये उसकी जलालत के रोब से मेरा यह हाल हो जाया करता है। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 262)
आलमे नमाज़ में आपकी हालत
अल्लामा तबरेसी लिखते हैं कि आपको इबादत गुज़ारी में इम्तियाज़े कामिज हासिल था। रात भर जागने की वजह से आपका सारा बदन ज़र्द रहा करता था और ख़ौफ़े ख़ुदा में रोते रोते आपकी आंखें फूल जाया करती थीं और नमाज़ में खड़े ख़ड़े आपके पांव सूज जाया करते थे। ( आलाम अल वरा पृष्ठ 153) और पेशानी पर घट्टे रहा करते थे और आपकी नाक का सिरा ज़ख़्मी रहा करता था । (दमए साकेबा पृष्ठ 439)
अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि जब आप नमाज़ के लिये मुसल्ले पर खड़े हुआ करते थे तो लरज़ा बर अन्दाम हो जाया करते थे। लोगों ने बदन में कपकपी और जिस्म में थरथरी का सबब पूछा तो इरशाद फ़रमाया कि मैं उस वक़्त ख़ुदा की बारगाह में होता हूँ और उसकी जलालत मुझे अज़ खुद रफ़्ता कर देती और मुझ पर ऐसी हालत तारी कर देती है। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 226)
एक मरतबा आपके घर में आग लग गई और आप नमाज़ में मशगूल थे। अहले महल्ला और घर वालों ने बे हद शोर मचाया और हज़रत को पुकारा “ हुज़ूर आग लगी हुई है मगर आपने सरे नियाज़ सजदे बे नियाज़ से न उठाया। आग बुझा दी गई। नमाज़ ख़त्म होने पर लोगों ने आप से पूछा कि हुज़ूर आग का मामला था, हम ने इतना शोर मचाया लेकिन आपने कोई तवज्जो न फ़रमाई। आपने ” ” इरशाद फ़रमाया हाँ मगर जहन्नम की आग के डर से नमाज़ तोड़ कर उस आग की तरफ़ मुतवज्जे न हो सका। (शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 177)
अल्लामा शेख़ सब्बान मालकी लिखते हैं कि जब आप वज़ू के लिये बैठते थे तब की से कांपने लगते थे और जब तेज़ हवा चलती थी तो आप ख़ौफ़े ख़ुदा से लाग़र हो जाने की वजह से गिर कर बेहोश हो जाया करते थे। (असआफ़ अल राग़बीन बर हाशिया ए नुरूल अबसार पृष्ठ 200)
इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि हज़रत इमाम जैनुल आबेदीन (अ. स.) नमाज़े शब सफ़र व हज़र दोनों में पढ़ा करते थे और कभी उसे क़ज़ा नहीं होने देते थे। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 263)
अल्लामा मोहम्मद बाक़र बेहारूल अनवार के हवाले से तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम जैनुल आबेदीन (अ.स.) एक दिन नमाज़ में मसरूफ़ व मशगूल थे कि इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) कुएं में गिर पड़े। बच्चे के गेहरे कुएं में गिरने से उनकी मां बेचैन हो कर रोने लगीं और कुएं के गिर्द पीट पीट कर चक्कर लगाने लगीं और कहने लगीं इब्ने रसूल (अ.स.) मोहम्मद बाक़र (अ. स.) ग़र्क़ हो गये हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने बच्चे के कुएं में गिरने की कोई परवाह न की और इतमीनान से नमाज़ तमाम फ़रमाई । उसके बाद आप कुएं के क़रीब आए और पानी की तरफ़ देखा फिर हाथ बढ़ा कर बिला रस्सी के गहरे कुएं से बच्चे को निकाल लिया। बच्चा हंसता हुआ बरामद हुआ। कुदरते ख़ुदा वन्दी देखिये उस वक़्त न बच्चे के कपड़े भीगे थे और न बदन तर था । (दमए साकेबा पृष्ठ 430, मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 109)
इमाम शिब्लन्जी तहरीर फ़रमाते हैं कि ताऊस रावी का बयान है कि मैंने एक शब हजरे असवद के क़रीब जा कर देखा कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बारगाहे ख़ालिक़ में मुसलसल सजदा रेज़ी कर रहे हैं। मैं उसी जगह खड़ा हो गया । मैंने देखा कि आपने एक सजदे को बेहद तूल दे दिया है, यह देख कर मैंने कान
लगाया तो सुना कि आप सजदे में फ़रमा रहे हैं, अब्देका बे फ़सनाएक ” मिसकीनेका बेफ़ासनाएक साएलेका बेफ़नाएक फ़क़ीरेका बेफ़नाएक यह सुन कर मैंने भी इन्ही कलेमात के ज़रिए ये दुआ माँगनी शुरू कर दी, फ़वा अल्लाह। ख़ुदा की क़सम मैंने जब भी उन कलामात के ज़रिये से दुआ मांगी फ़ौरन कुबूल हुई। (नूरूल अबसार पृष्ठ 126 प्रकाशित मिस्र इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 296)





