
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) के बचपन का एक वाकैया अल्लामा मजलिसी रक़मतराज़ है कि एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) जब कि आपका बचपन था बीमार हुये। हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) ने फ़रमाया, बेटा ! अब तुम्हारी तबीयत कैसी है और तुम कोई चीज़ चाहते हो तो बयान करो ताकि मैं तुम्हारी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उसे फ़राहम करने की कोशिश करूँ। आप ने अर्ज़ कि बाबा जान अब ख़ुदा के फ़ज़ल से अच्छा हूँ। मेरी ख़्वाहिश सिर्फ़ यह है कि ख़ुदा वन्दे आलम मेरा शुमार उन लोगों में करे जो परवरदिगारे आलम के क़ज़ा व क़दर के ख़िलाफ़ कोई ख़्वाहिश नहीं रखते। यह सुन कर इमाम हुसैन (अ.स.) खुश व मसरूर हो गये और फ़रमाने लगे बेटा तुम ने बड़ा मसर्रत अफ़ज़ा और मारेफ़त ख़ेज़ जवाब दिया है। तुम्हारा जवाब बिल्कुल हज़रत इब्राहीम (अ.स.) के जवाब से मिलता जुलता है। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) को जब मिनजनीक़ में रख कर आग की तरफ़ फेंका गया था और आप फ़ज़ा में होते हुए आग की तरफ़ जा “E ” रहे थे तो हज़रत जिब्राईल (अ. स.) ने आप से पूछा था हल्लक हाजतः आपकी 66 कोई हाजत व ख़्वाहिश है? उस वक़्त उन्होंने जवाब दिया था, नाअम इमा इलैका फ़ला ” बेशक मुझे हाजत है लेकिन तुम से नहीं, अपने पालने वाले से है। (बेहारूल अनवार जिल्द 11 पृष्ठ 21 प्रकाशित ईरान)
आपके अहदे हयात के बादशाहाने वक़्त
आपकी विलादत बादशाहे दीनो ईमान हज़रत अली (अ.स.) के अहदे असमत में हुई। फिर इमाम हसन (अ.स.) का ज़माना रहा, फिर बनी उमय्या की ख़ालिस दुनियावी हुकूमत हो गई। सुलेह इमाम हसन (अ.स.) के बाद फिर 60 हिजरी तक माविया बिन अब सुफ़ियान बादशाह रहा। उसके बाद उसका फ़ासिक़ व फ़ाजिर बेटा यज़ीद 64 हिजरी तक हुक्मरां रहा। 64 हिजरी में माविया बिन यज़ीद बिन माविया और मरवान बिन हकम हाकिम रहे। 64 हिजरी में वलीद बिन अब्दुल मलिक ने हुक्मरानी की और उसी ने 94 हिजरी में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) को ज़हरे दग़ा से शहीद कर दिया। (तारीखे आइम्मा पृष्ठ 392 व सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 12 व नूरूल अबसार पृष्ठ 128)
इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) का अहदे तफ़ूलियत और हज्जे बैतुल्लाह
अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इब्राहीम बिन अदहम का बयान है कि मैं एक मरतबा हज के लिये जाता हुआ क़ज़ाए हाजत की ख़ातिर क़ाफ़िले से पीछे रह गया। अभी थोड़ी ही देर गुज़री थी कि मैंने एक नौ उम्र लड़के को इस जंगल में सफ़रे पामा देखा। उसे देख कर फिर ऐसी हालत में कि वह पैदल चल रहा था और उसके साथ कोई सामान न था और न उसका कोई साथी था। मैं हैरान हो गया फ़ौरन उसकी खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुआ। 66 साहब ज़ादे ” यह लक़ो दक़ सहरा और तुम बिल्कुल तने तन्हा, यह मामेला क्या है ज़रा मुझे बताओ? तो सही कि तुम्हारा ज़ादे राह और तुम्हारा राहेला कहां है और तुम कहां जा रहे हो? इस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया ।
ज़ादी तक़वा व राहलती रजाली व क़सादी मौलाया
मेरा ज़ादे राह तक़वा और परहेज़गारी है मेरी सवारी मेरे दोनों पैर हैं और मेरा मक़सूद मेरा पालने वाला है और मैं हज के लिये जा रहा हूँ। मैंने कहा कि आप तो बिल्कुल कमसिन हैं, हज आप पर वाजिब नहीं है। उस नौ ख़ेज़ ने जवाब दिया। बेशक तुम्हारा कहना दुरूस्त है लेकिन ऐ शेख मैं देखता हूँ कि मुझसे छोटे छोटे बच्चे भी मर जाते हैं इस लिये हज को ज़रूरी समझता हूँ कि कहीं ऐसा न हो कि इस फ़रीज़े की अदाएगी से पहले मर जाऊँ । मैंने पूछा ऐ साहब जादे तुम ने
खाने का क्या इंतेज़ाम किया है देख रहा हूँ कि तुम्हारे साथ खाने का कोई इन्तेज़ाम नहीं है। उसने जवाब दिया । ऐ शेख जब तुम किसी के यहां मेहमान जाते हो तो खाना अपने हमराह ले जाते हो? मैंने कहा नहीं। फिर उसने फ़रमाया सुनो, मैं तो ख़ुदा का मेहमान हो कर जा रहा हूँ खाने का इन्तेज़ाम उसके ज़िम्मे है। मैंने कहा इतने लम्बे सफ़र को पैदल क्यो कर तय करोगे। उसने जवाब दिया कि मेरा काम कोशिश करना है और ख़ुदा का काम मंज़िले मक़सूद तक पहुँचाना है।
हम अभी बाहमी गुफ़्तुगू में ही मसरूफ़ थे कि नागाह एक ख़ूब सूरत जवान सफ़ैद लिबास पहने हुये आ पहुँचा और उसने इस नौ ख़ेज़ को गले से लगा लिया। यह देख कर मैंने उस जवाने राना से दरयाफ़्त किया यह नौ उम्र फ़रज़न्द कौन है? उस नौजवान ने कहा कि यह हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) बिन इमाम हुसैन (अ.स.) बिन अली इब्ने अबी तालिब (अ. स.) हैं। यह सुन कर मैं उस जवाने राना के पास से इमाम की खिदमत में हाज़िर हुआ और माज़रत ख़्वाही के बाद उनसे पूछा कि यह खूब सूरत जवान जिन्होंने आपको गले से लगाया यह कौन हैं ? उन्होंने फ़रमाया यह हज़रते खिज्र नबी (अ. स.) हैं। उनका फ़र्ज़ है कि रोज़ाना हमारी ज़्यारत के लिये आया करें। उसके बाद मैंने फिर सवाल किया और कहा कि आखिर आप इस अज़ीम और तवील सफ़र को बिला ज़ाद और राहेला क्यों कर तय करेंगे। तो आपने फ़रमाया कि मैं ज़ाद और राहेला सब कुछ रखता और वह यह चार चीज़े हैं। 1. दुनिया अपनी तमाम मौजूदात समेत खुदा की
ममलेकत है। 2. सारी मख़्लूक़ अल्लाह के बन्दे हैं। 3. असबाब और अरज़ाक़ ख़ुदा के हाथ में हैं। 4. क़ज़ाए खुदा हर ज़मीन में नाफ़िज़ है। यह सुन कर मैंने कहा ख़ुदा की क़सम आप ही का ज़ाद व राहेला सही तौर पर मुक़द्दस हस्तियों का सामाने सफ़र है। (दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 437 )
उलेमा का बयान है कि आपने सारी उम्र में 25 ( पच्चीस) हज पा पियादा किये हैं। आपने सवारी पर जब भी सफ़र किया है अपने जानवर को एक कोड़ा भी नहीं मारा।
आपका हुलिया ए मुबारक
इमाम शिब्लंजी लिखते हैं कि आपका रंग गन्दुम गूँ (सांवला) और क़द मियाना था। आप दुबले पतले क़िस्म के इंसान थे। (नूरूल अबसार पृष्ठ 126 व अख़बारूल अव्वल पृष्ठ 109)
मुल्ला मुबीन तहरीर फ़रमाते हैं कि आप हुसनो जमाल, सूरतो कमाल में निहायत ही मुम्ताज़ थे। आपके चेहरे मुबारक पर जब किसी की नज़र पड़ती थी तो वह आपका एहतेराम करने और आपकी ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था। (वसीलतुन नजात पृष्ठ 219)
मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई रक़मतराज़ हैं कि आप साफ़ कपड़े पहनते थे और जब रास्ता चलते थे तो निहायत ख़ुशू के साथ राह रवी में आपके हाथ ज़ानू से बाहर नहीं जाते थे। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 226 व पृष्ठ 264)








