
अबु मोहम्मद हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन ( अ ( . स .
बन के सज्जादे की ज़ीनत आये सज्जाद हज़ी चूमती है जिनके क़दमों को, इबादत की जबीं दोस्त का क्या ज़िक्र है मूज़ी को यह कहना पड़ा अनता ज़ैनुल आबेदीन व अनता जैनुल आबेदीन (साबिर थरयानी, कराचीं)
मिसाले जद ख़ुद इमामे अवलिया चूँ पदर मशहूर, दर सबरे रज़ा दर इबादत ईं क़दर सर गर्म बूद अन्ता ज़ैनुल आबेदीन आमद निदा
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ.) के चोथे जां नशीन, हमारे चौथे इमाम और चाहरदा मासूमीन (अ.स.) की छटे मोहतरम फ़र्द हैं। आपके वालिदे माजिद शहीदे करबला हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) थे और वालेदा माजेदा जनाबे शाहे ज़नान उर्फ़ शहर बानो थीं। आप अपने आबाओ अजदाद की तरह इमामे मन्सूस, मासूम, आलमे ज़माना और अफ़ज़ले कायनात
थे। उलेमा का बयान है कि आप इल्म, जोहद, इबादत में हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) की जीती जागती तस्वीर थे। (सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 119)
इमाम ज़हरी इब्ने अयनिया और इब्ने मुसय्यब का बयान है कि हम ने आपसे ज़्यादा किसी को अफ़ज़ले इबादत गुज़ार और फ़क़ीह नहीं देखा । ( नूरूल अबसार पृष्ठ 126)
एक शख़्स ने सईद बिन मुसय्यब से किसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि वह बड़ा मुत्तक़ी है। इब्ने मुसय्यब ने पूछा, तुम ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को देखा है? उसने कहा नहीं। उन्होंने जवाब दिया “ मा रायता अहदन अवरा मिनहा मैंने उनसे ज़्यादा मुत्तक़ी और परहेज़गार किसी को नहीं देखा । (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 267) “
66 ” इब्ने अबी शेबा का कहना है कि असहा इलासा नीद वह रवायत है जो ज़हरी इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) मन्सूब करे । ( तबक़ात अल हफ़्फ़ाज़ ज़हबी अरजहुल मतालिब पृष्ठ 435) अल्लामा दमीरी फ़रमाते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) हदीस बयान करने में निहायत मोतमिद इलैहे और सादिकुल रवायत थे। आप बहुत बड़े आलिम और फ़िक़हे अहलेबैत में बे मिस्ल व बे नजीर थे । ( हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 121 तारीख़ इब्ने ख़ल्कान जिल्द 1 पृष्ठ 320 ) आप ऐसे पुर जलाल व जमाल थे कि जो भी आपको देखता था ताज़ीम करने पर मजबूर हो जाता था । ( वसीलतुन जात पृष्ठ 319)
आपकी विलादत बा सआदत
आप बतारीख़ 15 जमादिउस सानी 38 हिजरी यौमे जुमा बक़ौले 15 जमादिल अव्वल 38 हिजरी यौमे पन्चशम्बा बा मक़ाम मदीनाए मुनव्वरा पैदा हुए। (आलामुल वुरा पृष्ठ 141 व मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 131)
अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि जब जनाबे शहर बानो ईरान से मदीने के लिये रवाना हो रही थीं तो जनाबे रिसालत मआब (स. अ.) ने आलमे ख़्वाब में उनका अक़्द हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ में पढ़ दिया था । (जिलाउल उयून पृष्ठ 256) और जबा आप वारिदे मदीना हुईं तो हज़रत अली (अ.स.) ने इमाम हुसैन (अ.स.) के सिपुर्द कर के फ़रमाया कि वह असमत परवर बीवी है कि जिसके बतन से तुम्हारे बाद अफ़ज़ले अवसिया और अफ़ज़ले कायनात होने वाला बच्चा पैदा होगा। चुनान्चे हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पैदा हुए लेकिन अफ़सोस यह है कि आप अपनी मां की आगोश में परवरिश पाने का लुत्फ़ उठा न सके। मातत फ़ी नफ़ासहा बेही ” आपके पैदा होते ही ” मुद्दते नेफ़ास ” में जनाबे शहर फ़ी ” 66 बानो की वफ़ात हो गई। (क़मक़ाम जलाल अल उयून, उयून अख़बारे रज़ा, दमए साकेबा जिल्द 1 पृष्ठ 426)
कामिल मुबरद में है कि जनाबे शहर बानो, मारूफ़तुल नसब और बेहतरीन औरतों में थीं।
” शेख़ मुफीद तहरीर फ़रमाते हैं कि जनाबे शहर बानो, बादशाहे ईरान यज़द जरद बिन शहरयार बिन शेरविया इब्ने परवेज़ बिन हरमज़ बिन नौशेरवाने आदि किसरा ” की बेटी थीं। (इरशाद पृष्ठ 391 व फ़ज़लुल ख़त्ताब)
अल्लामा तरयिही तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) ने शहर बानो से पूछा ” कि तुम्हारा नाम क्या है तो उन्होंने कहा शाहे जहां ” हज़रत ने फ़रमाया नहीं अब “” शहर बानो ” है । (मजमउल बहरैन पृष्ठ 570)
नाम, कुन्नियत, अल्काब
आपका इस्मे गेरामी ” अली ” कुन्नियत अली ” कुन्नियत ” अबू मोहम्मद ” “ अबुल हसन ” ” और अबुल क़ासिब था। “”
आपके अल्काब बेशुमार थे जिनमें ज़ैनुल आबेदीन सय्यदुस साजेदीन, जुल शफ़नात, सज्जाद व आबिद ज़्यादा मशहूर हैं। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 261, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 176, नूरूल अबसार पृष्ठ 126, अल फ़रा अल नामी, नवाब सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 158)
लक़ब ज़ैनुल आबेदीन की तौज़ीह
अल्लामा शिब्लन्जी का बयान है कि इमाम मालिक का कहना है कि आपको ज़ैनुल आबेदीन कसरते इबादत की वजह से कहा जाता है। नूरूल अबसार पृष्ठ
126 उलेमाए फ़रीक़ैन का इरशाद है कि हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) एक शब नमाज़े तहज्जुद में मशगूल थे कि शैतान अज़दहे की शक्ल में आपके क़रीब आ गया और आपके पाए मुबारक के अंगूठे को मुंह में ले कर काटना शुरू किया, इमाम जो अमातन मशगूले इबादत थे और आपका रूजहाने कामिल बारगाहे ईज़दी की तरफ़ था। वह ज़रा भी उसके अमल से मुताअस्सिर न हुए और बदस्तूर नमाज़ में मुन्हमिक व मसरूफ़ व मशगूल रहे बिल आखिर वह आजिज़ आ गया और इमाम ने अपनी नमाज़ भी तमाम कर ली। उसके बाद आपने शैतान मलऊन को तमाचा मार कर दूर हटा दिया। उस वक़्त हातिफ़े गैबी ने अनतः ज़ैनुल आबेदीन की तीन बार आवाज़ दी और कहा बे शक तुम इबादत गुज़रों की जीनत हो। उसी वक़्त से आपका यह लक़ब हो गया। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 262 शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 177)
अल्लामा शहरे आशोब लिखते हैं कि इस अजदहे के दस सर थे और उसके दांत बहुत तेज़ और उसकी आंखें सुख थीं और वह मुसल्ले के क़रीब से ज़मीन फाड़ के निकला था। (मनाक़िब जिल्द 4 पृष्ठ 108)
एक रवायत में इसकी वजह यह भी बयान कि गई है कि क़यामत में आपको इसी नाम से पुकारा जायेगा। (दएम साकेबा पृष्ठ 426)



