चौदह सितारे पार्ट 91

सुबह आशूर

( तुलूए सुबहे महशर थी तुलूए सुबह आशूरा )

दस मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी यौमे जुमा रात गुज़री, सुबह काज़िब का ज़ुहूर हुआ तो यज़ीदी काज़िबो और झूठों ने अपने लश्कर की तरतीब दे ली और सुबह सादिक़ का तुलू हुआ तो सादक़ैन ने नमाज़े सुबह का तहय्या किया। हज़रत अली अकबर (अ.स.) ने अज़ान कही और इमाम हुसैन (अ.स.) ने नमाज़े जमाअत पढ़ाई। अल्लाह के सच्चे बन्दे अभी मुस्से पर ही थे कि अस्सी हज़ार 80,000 के लशकर में हमला वर होने के आसार ज़ाहिर होने लगे। इमाम (अ.स.) मुसल्ले से उठ खड़े हुए और अपने 72 जांबाज़ों पर मुश्तमिल लशकर की तंज़ीम यूं फ़रमा दी। मैमना 20 बहादुर, मैसरा 20 बहादुर बाक़ी क़ल्बे लश्कर । मैमना के सरदार जुहैरे क़ैन, मैसरा के हबीब इब्ने मज़ाहिर और अलमदारे लशकर हज़रत अब्बास (अ.स.) को क़रार दे दिया। (जलाल अल उयून पृष्ठ 201, अख़बारूल तवारीख़ पृष्ठ 203) इसके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) से फ़रमाया कि जंग छिड़ी ही चाहती है। भय्या एक दफ़ा पानी की और कोशीश कर लो, और सुनो सिर्फ़ अपने भाई भतीजों को जमा कर के कुआं खोदो, यानी असहाब को ज़हमत न दो। हज़रत अब्बास (अ.स.)

ने कमाले जाफिशानी से कुआं खोदा लेकिन कोई नतीजा न निकला, फिर दूसरा कुआं खोदा वह भी बे सूद ही रहा । (दमउस साकेबा पृष्ठ 329 हालाते सुबह आशूर) इमाम हुसैन (अ.स.) ख़ेमे में थे और बक़ौले अब्दुल हमीद ऐडीटर रिसाला मौलवी देहली, ठीक 10 बजे लश्कर वालों को उमरे साद का अर्जन्ट हुक्म मिलता है कि हुसैन को क़त्ल करने के लिये आगे बढ़ो, टिड्डी दल फ़ौज ने हरकत की और तीन दिन के भूखे प्यासे थोड़े से मुसाफ़िरों को क़त्ल करने दुश्मनाने इस्लाम आगे बढ़े। (शहीदे आज़म पृष्ठ 166 प्रकाशित देहली) हज़रत ने घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी। रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) की ज़िरह ज़ेब तन की और खन्दक में आग देने का हुक्म दे कर आप असहाब की फ़हमाईश करने लगे । ( नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 245 ) इतने में दुश्मनों ने खेमों को घेर लिया। बुरैर इब्ने ख़ज़ीर ने बाहर निकल कर उन्हें समझाया लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर आप ख़ुद दुश्मनों के सामने आए और अपना ताअर्रुफ़ कराया और बरवाएते यह भी फ़रमाया कि मुझे छोड़ दो, मैं यहां से हिन्द (1) या किसी और तरफ़ चला जाऊँ। मगर उन्होंने एक न सुनीं, फिर आपने फ़रमाया कि यह बता दो कि मुझे किस जुर्म की बिना पर क़त्ल करना चाहते हो? उन्होंने जवाब दिया नक़ तलक़ बुग़ज़न ले अबीका हम तुम्हें तुम्हारे बाप की दुश्मनी में क़त्ल कर रहे हैं। ( नयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 246) फिर आपने क़ुरआन मजीद को हकम क़रार दिया। लेकिन उन्होंने एक न मानी। ( नासिख़ल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 250) फिर आपने बारगाहे ख़ुदा वन्दी में दस्ते दुआ बलन्द किया और आखिर में

बरवायते ” दमउस साकेबा पृष्ठ 328 ” अर्ज़ की अल्ला हुम्मा सलता गुलामसकीफ़ ख़ुदाया इन पर क़बीला ए सक़ीफ़ के एक गुलाम ( मुख़्तार ) को मुसल्लत कर के उन्हें ज़ुल्म आफ़रीनी का मज़ा चखाए ।

1. अल्लामा इब्ने क़तीबा लिखते हैं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) ने इरशाद ८८ फ़रमाया अन लस्तुम बराज़ैन बारूहल इराक़ फ़ातिर कूनी लाज़हबा अल्ल सिनदह ” तुम अगर मेरे इराक़ पहुँचने पर राज़ी नहीं हो तो मुझे छोड़ दो मैं सिन्ध (हिन्द ) चला जाऊँ। तफ़सील के लिये देखें, मुख्तारे आले मोहम्मद प्रकाशित लाहौर 12 मना ।

जनाबे हुर की आमद

इमाम हुसैन (अ.स.) के मवाएज़ का असर सिर्फ़ हुर पर पड़ा। उन्होंने इब्ने साद के पास जा कर आख़री इरादह मालूम किया फिर अपने घोड़े को ऐड़ दी और इमाम (अ.स.) की खिदमत में हाज़िर हो गए। ( तारीख़े तबरी) इसके बाद घोड़े से उतर कर इमाम हुसैन (अ.स.) की रक़ाब को बोसा दिया। ( रौज़ातुल अहबाब ) इमाम ने हुर को माफ़ी दे कर जन्नत की बशारत दी । ( तबरी) दमउस साकेबा पृष्ठ 330 में है हुर के साथ इसका बेटा भी था। हमीद इब्ने मुस्लिम का बयान है कि उमरे साद ने लश्करे हुसैनी पर सब से पहले तीर चलाया। इसके बाद तीरों की बारिश शुरू हुई। रौज़तुल अहबाब में है कि जनाबे हुर को क़सूर इब्ने कनाना और इरशाद कि
मुफ़ीद में है कि अय्यूब मशरह ने एक कूफ़ी की मदद से शहीद किया। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों किताब ” बहत्तर सितारें ” मोअल्लेफ़ा हक़ीर प्रकाशित लाहौर ।

इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके असहाब व आइज़्ज़ा की अर्श आफ़रीं जंग

अल्लामा ईसा अरबली लिखते हैं कि जनाबे हुर की शहादत के बाद उमरे साद के लश्कर से दो नाबकार मुबारज़ तलब हुए जिनके नाम निसयान व सालिम थे। इनके मुक़ाबले के लिये इमाम हुसैन (अ.स.) के लश्कर से जनाबे हबीब इब्ने मज़ाहिर और यज़ीद इब्ने हसीन बरामद हुए और इन दोनों को चन्द हमलों में फ़ना के घाट उतार दिया। इसके बाद माक़िल इब्ने यज़ीद सामने आया । जनाबे यज़ीद इब्ने हसीन और बक़ौले मजलिसी बुरैर इब्ने ख़जीर हमादानी ने उसे क़त्ल कर डाला। फिर मज़ाहिम इब्ने हरीस सामने आया। उसे जनाबे नाफ़े इब्ने हिलाल ने क़त्ल कर दिया। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 71)

जंगे मग़लूबा

उमर इब्ने साद ने जनाबे हुसैनी बहादुरों की शाने शुजाअत देखी तो समझ गया कि इनसे इन्फ़ेरादी मुक़ाबला न मुम्किन है, लेहाज़ा इजतेमाई हमले का प्रोग्राम
बनाया और अपने चीफ़ कमाडण्र को हुक्म दिया कि कसीर तादाद में कमान अन्दाज़ों को ला कर यक बारगी तीर बारानी कर दो। जिसका नतीजा यह हुआ कि इमाम हुसैन (अ.स.) का तक़रीबन तमाम लश्कर मजरूह हो गया। 32 या 40 या 22 या 50 असहाब इसी वक़्त शहीद हो गए। (मुलाहेज़ा हो तफ़सील के लिये बहत्तर सितारें मोअल्लेफ़ा हक़ीर )

जंगे मग़लूबा के बाद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) अपने बहादुरों को ले कर जिनकी कुल तादाद 32 थी मैदान में निकल आए और इस बे जिगरी से लड़े कि लश्करे मुख़ालिफ़ के छक्के छूट गए। जिस तरफ़ हमला करते थे सफ़े साफ़ हो जाती थीं और हमले में बेशुमार दुश्मन मौत के घाट उतार दिए। इन भूखे प्यासे बहादुर शेरों ने लश्कर में ऐसी हल चल मचा दी, जिस से अफ़सरान तक के हाथ पांव फुला दिए। बिल आखिर लश्करे कूफ़ा के कमानीर उरवा बिन क़ैस ने उमर इब्ने साद को कहला भेजा कि जल्द लश्कर और ख़ुसूसन तीर अन्दाज़ भेजो क्यों कि इन थोड़े से अलवी बहादुरों ने हमारी दुरगत बना दी है। (तारीख़े कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 35 तबरी जिल्द 6 पृष्ठ 250 बेहारूल अनवार जिल्द 6 पृष्ठ 299 ) उमर इब्ने साद ने फ़ौरन 500 कमानदारों को हसीन इब्ने नमीर के हमराह उरवा बिन क़ैस की कुमक में भेज दिया। इन रूबाहों ने पहुँचते ही तीर बारानी शुरू कर दी और इसका नतीजा कि इमाम हुसैन (अ.स.) के कई बहादुर काम आ गए और तक़रीबन कुल के कुल प्यादा हो गए। इसी दौरान उमर इब्ने साद ने आवाज़ दी कि आग लगाओ यह हुआहम ख़मों को जलाऐंगें। यह देख कर इमाम हुसैन (अ.स.) ने शिम्र को पुकारा कि यह क्या बेहयाई की जा रही है। इतने में शबश इब्ने अरबी आ गया और उसने हरकते नाशाइस्ता से बाज़ रखा। (बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 299)

मुवरिख इब्ने असीर और अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि दौराने जंग में नमाज़े ज़ौहर का वक़्त आ गया तो अबू सुमामा समदी या सैदावी ने खिदमते इमाम हुसैन (अ.स.) में अर्ज़ कि मौला अगरचे हम दुश्मनों में घिरे हुए हैं लेकिन दिल यही चाहता है कि नमाज़े ज़ोहर अदा कर ली जाए। इमाम (अ.स.) ने अबू समामा को दुआ दी और नमाज़ का तहय्या फ़रमाया। तीर चूंकि मुसलसल आ रहे थे इस लिये जुहैर इब्ने क़ैन और साद इब्ने अब्दुल्लाह इमाम हुसैन (अ.स.) के सामने खड़े हो कर तीरों को सीनों पर लेने लगे। यहां तक कि इमाम हुसैन (अ. स.) ने नमाज़ तमाम फ़रमा ली। मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि तलवारों और नेज़ों के ज़ख़्म के अलावा 13 तीर सईद के सीने में पेवस्त हो गए। नमाज़ तमाम हुई और जनाबे सईद भी दुनियां से रूखसत हो गए। (तारीख़े कामिल बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 299) जंगे मग़लूबा के बाद जो 32 असहाब बचे उनमें से बाज़ के मुख़्तसर हालात दर्ज ज़ैल किये जाते हैं।




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