वो जवाब जिसने, साइंसदानों को हैरान कर दिया

वो जवाब जिसने, साइंसदानों को हैरान कर दिया –

बड़े-बड़े अखबारों में, मैगज़ीन में, इल्म से जुड़ी बातें, खोज, रिसर्च वगैरह छापी जाती हैं। रिसर्च पेपर, रिसर्च जर्नल भी पब्लिश किए जाते हैं, आजकल कई ऑनलाइन साइट्स भी हैं जो साइंस से जुड़ी रिसर्च या थ्योरी वगैरह पब्लिश करती हैं। पब्लिश करने वाली और रिसर्च को पूरा करने वाली एक टीम होती है जिसमें उस फन या इल्म के माहिरीन लोग होते हैं। लोग उनसे, उनके रिसर्च से मुताल्लिक़ सवाल भी करते हैं, जिसका जवाब भी वो रिसर्चर देतेपक्षी – विज्ञान (Ornithology), ये जीव विज्ञान (zoology) की एक शाखा (branch या stream) है, जिसमें परिंदों के बारे में पढ़ा और समझा जाता है। मैंने ये बुजुर्गों से सुना है की तकरीबन 20-30 साल पहले, परिंदों और उसके बच्चों के ऊपर किसी का रिसर्च पेपर छपा था, जिस में लिखने वाले साइंसदान ने कुछ बातों के साथ सवाल भी किया था और लोगों से गुज़ारिश की थी कि अगर किसी को इस बारे में इल्म हो तो वो फलाँ पते पर खत लिखकर ज़रूर बताए, साथ ही ये भी बताया था की उसकी टीम के तमाम रिसर्चर, बहुत खोजबीन करने के बावजूद भी जवाब नहीं ढूँढ सके ।

कई लोगों ने वो रिसर्च पेपर पढ़ा, उसकी इल्मी तहरीर को समझा और तारीफ़ भी की लेकिन किसी ने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया। कई दिनों के बाद उस साइंसदान को एक खत मिला, उसने पढ़ा और पढ़कर हैरान रह गया, फिर जवाब के मुताबिक उसने, परिंदों पर अपनी तहकीक जारी रखी और इस नतीजे पर पहुँचा की जवाब सही हैं। वो साइंस का इल्म रखने वाला इंसान, खुद ही खत लिखने वाले को ढूँढ़ते हुए पहुँचा और देखकर हैरान रह गया क्योंकि वो शख्स उसके तसव्वुर किए हुए शख्स से अलग था। साइंसदान को उम्मीद थी की कोई बड़ा रिसर्चर होगा लेकिन वो तो एक आम आदमी निकला। बहरहाल दोनों में बातचीत शुरू हुई तो खत लिखने वाले शख्स ने कहा, “मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा शख्स नहीं हूँ लेकिन कहीं मैंने आपका सवाल पढ़ा था और मैंने कोई जाती तौर पर तहकीक नहीं की लेकिन मैंने इमाम अली अलैहिस्सलाम के खुत्बों की एक किताब में ये ही सवाल पहले पढ़ा था जो इमाम अली अलैहिस्सलाम के दौर के किसी शख्स ने उनसे किया था और इमाम अलैहिस्सलाम ने उसका जवाब दिया था, मैंने बस ज्यों का त्यों लिखकर आपको भेज दिया । “, तो मेरे अपनों, आईम्मा ए अहलेबैत अलैहिस्सलाम को इल्म का वारिस उस खुदा ने बनाया है जो खालि ए अकबर है, ज़ाहिर सी बात है की अल्लाह के बनाए हुए वारिस ए इल्म का मुकाबला, दुनिया की कोई मख्लूक़ नहीं कर सकती। Ornithology के रिसर्चर के सवाल से जुड़ा वाक्या, मौला अली अलैहिस्सलाम के दौर में मिलता है, तो मैं वो ही वाक्या लिख रहा हूँ।

एक शख्स ने मौला अली अलैहिस्सलाम से सवाल किया, “या मौला ! कौनसे जानवर, बच्चे देते हैं और कौनसे जानवर अंडे देते हैं? “, मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “जो अपने बच्चों को दाना खिलाते हैं, वो अंडे देते हैं और जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, वो बच्चे देते हैं। जा एक साल जाकर तहकीक कर फिर मुझे आकर बताना ।”, वो शख़्स चला गया और एक साल बाद लौटा, इज़्ज़त देने की बाइस उसने सलाम किया और मौला के सामने झुककर अर्ज़ करने लगा, “या मौला! मैंने एक साल तक तहकीक की और आपकी बात को हर लिहाज़ से सही पाया।”, मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “जो दाने को यूँ ही साबुत निगल लेते हैं वो अंडे देते हैं और जो खाने को चबाकर खाते हैं, वो बच्चे देते हैं। जा एक साल जाकर तहकीक कर फिर मुझे आकर बता की मैंने तुझे सही जवाब दिया या गलत?”, वो शख्स दोबारा गया और एक साल बाद लौटा, अर्ज़ करने लगा, “या अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम! मैंने तहकीक की और आपकी दूसरी दलील को भी हर लिहाज़ से खरा पाया।”

मौला अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया, “नहीं, और सुन। जिनके कान अंदर की तरफ़ पोशीदा नज़र नहीं आते वो अंडे देते हैं और जिनके कान बाहर की तरफ़ हैं, वो बच्चे देते हैं। जा और इस पर फिर एक साल तहकीक कर और फिर मुझे बताना ।”, सवाल करने वाला शख्स, मौला अली अलैहिस्सलाम के कदमों में गिर गया और कहने लगा, “या मौला! मुझे आप पर यकीन है की आप जो बात कह रहे हैं वो हक़ है। मेरी जिंदगी अगर क़यामत तक बढ़ जाए और अगर मैं सारी ज़िंदगी भी आपसे ये एक ही सवाल करता रहूँ और आप हर बार एक नई दलील के साथ इल्म बताते रहें और मैं तहकीक करता रहूँ तो आपकी दलील और बात हर दफा सही ही निकलेगी।”

तो मेरे अपनों, ये वो सिलसिला ए मासूमीन है, जिसे अल्लाह ने अपने दीन की हिफाज़त के लिए ख़ल्क़ किया। आईम्मा ए अहलेबैत अलैहिस्सलाम को अल्लाह रब उल इज़्ज़त ने खुश्की और तरी का, ज़ाहिर और ग़ैब का और तमाम शय का इल्म अता किया। बेशक, आलिम ए अकबर तो सिर्फ़ मेरा अल्लाह है, जिसका इल्म जाती है और बाकी सबका इल्म अताई है लेकिन ये ज़हन में रखना चाहिए की अल्लाह ने वारिस ए इल्म मासूमीन को बनाया है लिहाज़ा उनके पास दूसरों की निस्बत बहुत ज्यादा इल्म है और हकीकी इल्म है। दूसरों से लिए इल्म में कमी, खामी या गलती हो सकती है लेकिन वारिस ए दस्तार ए नबी से मिले इल्म में शक की गुंजाइश बाकी नहीं रहती क्योंकि अल्लाह ने खुद ही इनमें इल्म को समा दिया है।

चौदह सितारे पार्ट 90



शबे आशूर

नवीं का दिन गुज़रा, आशूर की रात आई, इलतवाए जंग के बाद इमाम हुसैन (अ. स.) को जिस चीज़ की ज़्यादा फ़िक्र थी वह यह थी कि अपने असहाब को मौत से बचा लें। आपने रात के वक़्त अपने असहाब और रिश्तेदारों को जमा कर के फ़रमाया, इसमें शक नहीं कि तुम से बेहतर रिश्तेदार और असहाब किसी को नसीब नहीं हुए लेकिन देखो चूंकि यह सिर्फ़ मुझी को क़त्ल करना चाहते हैं इस लिये मैं तुम्हारी गरदनों से तौक़े बैएत उतारे लेता हूँ। तुम रात के अंधेरे में अपनी जाने बचा कर निकल जाओ, यह सुन्ना था कि हज़रते अब्बास, फ़रज़न्दाने मुस्लिम बिन अक़ील, मुस्लिम इब्ने औसजा, ज़ोहर इब्ने क़ैन, साद इब्ने अब्दुल्लाह खड़े हो गये और अर्ज़ करने लगे, मौला आपने यह क्या फ़रमाया, ” अरे लानत है उस ज़िन्दगी पर जो आपके बाद बाक़ी रहे (इब्न अल वर्दी जिल्द 1 ” पृष्ठ 173, इरशाद पृष्ठ 297 व दमए साकेबा पृष्ठ 324 जला उल उयून 199 इन्सानियत मौत के दरवाज़े पर पृष्ठ 72)

ख़ुत्बे के बाद आपने हज़रते अब्बास को पानी लाने का हुक्म दिया। आप 30 सवारों और 20 प्यादों समेत नहर पर तशरीफ़ ले गए और बड़ी देर जंग करने के बवजूद पानी न ला सके। (तज़किराए ख़्वास अल उम्मता पृष्ठ 141) उसके बाद इमाम हुसैन (अ. स.) मौक़ा ए जंग देखने के लिये मैदान की तरफ़ ले गये। वापसी में ख़ैमा ए जनाबे ज़ैनब में गए, जनाबे ज़ैनब ने पूछा भय्या आपने असहाब का इम्तेहान ले लिया है या नहीं? आपने इत्मिनान दिलाया। फिर हिलाल इब्ने नाफ़ए जनाबे ज़ैनब को मुतमईन किया । (दमए साकेबा पृष्ठ 325) जनाबे ज़ैनब से गुफ़्तुगू के बाद आपने फिर एक ख़ुत्बा फ़रमाया और आइज़्ज़ा व असहाब से मिस्ले साबिक़ कहा कि यह लोग मेरी जान चाहते हैं तुम लोग अपनी जाने न दो। यह सुन कर असहाब व रिश्तेदारो ने बड़ा दिलेराना जवाब दिया। (नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 227) इसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने असहाब को जन्नत दिखला दी । (वसाएले मुज़फ़्फ़री पृष्ठ 394 )

अल्लामा कन्तूरी लिखते हैं कि पानी न होने की वजह से खेमे में शदीद इज़तेराब पैदा हो गया और जनाबे ज़ैनब के गिर्द 20 लड़के और लड़कियां जमा हो कर फ़रयाद करने लगीं। (मातीं जिल्द 1 पृष्ठ 318) यह हालत बुरैर हमदानी को मालूम हो गई। वह कुछ साथियो को ले कर नहर पर पहुँचे। ज़बरदस्त जंग हुई। हज़रत अब्बास मदद को भेजे गए। चंद जाबाज़ काम आ गये। ग़ालेबन इसी मौके पर हज़रत अब्बास (अ.स.) के एक भाई अब्बास अल असग़र भी शहीद हुए हैं। (नासिख़ जिल्द 6 पृष्ठ 289 ) अल ग़र्ज़ बुरैर हमदानी बहुत मुश्किल से एक मश्क़ खेमे तक ले ही आये। बच्चे बेताबी की वजह से इस मश्क़ पर जा गिरें और मश्क़ का

मुंह खुल गया, पानी बह गया। बच्चों और औरतों के साथ बुरैर ने भी मुंह पीट लिया और इन्तेहाई हसरत और अफ़सोस के साथ कहा, हाय आले मोहम्मद (स.व.व.अ.) की प्यास न बुझ सकी । (मायतीन जिल्द 1 पृष्ठ 316) अल्लामा काशफ़ी लिखते हैं कि पानी की जद्दो जेहद की नाकामी के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने हुक्म दिया कि सब अपने अपने खेमों में जा कर इबादत में मशगूल हो जायें । ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312)

मुजाहेदीने करबला की आख़री सहर

इमाम हुसैन (अ.स.) और आपके अस्हाब व आईज़्ज़ा मशगूले इबादत हैं। सफ़ैद ए सहरी नमूदार होने को है। ज़िन्दगी की आख़री सुबह होने वाली है। नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) की आंख लग गई, आपने ख़्वाब में देखा कि बहुत से कुत्ते आप पर हमला आवर हैं और इन कुत्तों में ए अबलक़ मबरूस कुत्ता है जो बहुत ही सख़्ती कर रहा है। (दमए साकेबा पृष्ठ 326)

अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) को शिम्र ने शहीद किया है जो मबरूस था । (हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51)

काशफ़ी का बयान है कि जब सुबह का इब्तेदाई हिस्सा ज़ाहिर हो गया तो आसमान से आवाज़ आई या ख़लील उल्लाह अरक़बी, ऐ अल्लाह के बहादुर सिपाहियों तैय्यार हो जाओ, मौक़ा ए इम्तेहान और वक़्ते मौत आ रहा है। उसके

बाद सुबह हो गई। (रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 312, महीजुल एहज़ान पृष्ठ 102)

मज़हब ए इस्लाम हमें क्या सिखाता है?

*सवाल : मज़हब ए इस्लाम हमें क्या सिखाता है?*

जवाब :  इस्लाम एक ऐसा मज़हब है जो पूरी ज़िंदगी के लिए रास्ता दिखाता है ।और सीधा रास्ता दिखाता है । इसके प्रमुख सिद्धांत और शिक्षा निम्नलिखित हैं:

1. तौहीद (एकेश्वरवाद): इस्लाम सिखाता है कि अल्लाह एक है और उसी की इबादत की जानी चाहिए। अल्लाह के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं है।


2. रिसालत (पैग़ंबरी): इस्लाम यह विश्वास रखता है कि अल्लाह ने इंसानों को सही रास्ता दिखाने के लिए पैग़ंबर भेजे। हज़रत मुहम्मद (ﷺ) आखरी  पैग़ंबर हैं।


3. क़ुरान और हदीस: *इस्लाम की प्रमुख धार्मिक किताब क़ुरान है, जिसे अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद (ﷺ) पर नाज़िल किया। और हदीस में पैग़ंबर मुहम्मद (ﷺ) की कही और की गई बातें दर्ज हैं।


*4. इबादत : इस्लाम में पाँच फ़र्ज़ इबादतें  हैं:*

*तौहीद /शहाद: (ईमान की गवाही): अल्लाह को एक  मानना और हज़रत मुहम्मद (ﷺ) को उनका पैग़ंबर मानना* ।

*नमाज़ (सलात): दिन में पाँच बार अल्लाह की इबादत करना* ।

*रोज़ा : रमज़ान के महीने में सूरज* निकलने से लेकर डूबने तक रोज़ा रखना।

*ज़कात: माल का एक हिस्सा* मुसलमान गरीबों और ज़रूरतमंदों को देना।

*हज: ज़िंदगी में एक बार मक्का* की यात्रा करना, अगर आर्थिक रूप से संभव हो।
*5. अख़लाक़ (चरित्र): इस्लाम* अच्छे व्यवहार, इंसानियत, और न्याय पर ज़ोर देता है। यह सिखाता है कि हर इंसान के साथ बराबरी का सलूक किया जाए, चाहे वह किसी भी जाति* , धर्म, या पृष्ठभूमि का हो।

*6. सबर (धैर्य) और शुक्र (* कृतज्ञता): इस्लाम मुश्किल वक्त में सब्र रखने और अल्लाह की नेमतों पर शुक्र करने की तालीम देता है।
7 *. हराम और हलाल: इस्लाम* में कुछ चीज़ें मना (हराम) हैं, जैसे सूद, चोरी, झूठ बोलना, और शराब, जबकि कुछ चीज़ें हलाल (जायज़) हैं, जैसे ईमानदारी से मेहनत करके कमाई हुई रोज़ी।
इस्लाम का मकसद एक ऐसे समाज को बनाना है, जिसमें इंसानियत, भाईचारा, और नैतिकता का पालन हो, और लोग अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलकर एक नेक ज़िंदगी बसर करें।
और दुनिया में चैन सुकून पाए और मरने के बाद जन्नत में जाए।