चौदह सितारे पार्ट 89

दूसरी मोहर्रम से नवी मोहर्रम तक के मुख़्तसर वाक़यात दूसरी मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी

को आप करबला में वारिद हुए। आपने अहले कूफ़ा के नाम ख़त लिखा। आपके नाम इब्ने ज़ियाद का ख़त आया, इसी तारीख़ को आपके हुक्म से नहरे फ़रात के किनारे खेमे स्ब किये गये । (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 69 व शहीदे आज़म पृष्ठ 111 ) हुर ने रोका और कहा कि फ़ुरात से दूर ख़ेमे नस्ब कीजिए । (नूरूल ऐन पृष्ठ 46) अब्बास इब्ने अली (अ.स.) को गुस्सा आ गया। (शहीदे आज़म जिल्द 2 पृष्ठ 371) इमाम हुसैन (अ. स.) ने गुस्से पर क़ाबू किया और बक़ौल अल्लामा असफ़राईनी 3 या 5 मील के फ़ासले पर ख़ेमे नस्ब किये गये । ( नूरूल ऐन पृष्ठ 46 ) नस्बे ख़्याम के बाद अभी आप इसमें दाखिल ने हुए थे कि चंद अशआर आपकी ज़बान पर जारी हुए। जनाबे ज़ैनब ने ज्यों ही अशआर को सुना इस दर्जा रोईं कि बेहोश हो गईं। इमाम (अ.स.) रूख़सार पर पानी छिड़ कर होश में लाये। (लहूफ़ पृष्ठ 106 आसारतुल अहज़ान पृष्ठ 36) फिर आले मोहम्मद (स.व.व.अ.) दाखिले खेमा हुए। उसके बाद 60 हज़ार दिरहम

पर 16 मुरब्बा मील ज़मीन ख़रीद कर चंद शरायत के उन्हीं को हिबा कर दी। (कशकोल बहाई पृष्ठ 91 ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 144 )

तीसरी मोहर्रमुल हराम

यौमे जुमा को उमर इब्ने साअद 5, 6 बक़ौल अल्लामा अरबली 22,000 ( बाईस हज़ार सवार) व पियादे ले कर करबला पहुँचा और उसने इमाम हुसैन (अ. स.) से तबादलाए ख़्यालात की ख़्वाहिश की। हज़रत ने इरादा ए कूफ़े का सबब बयान फ़रमाया। उसने इब्ने ज़ियाद को गुफ़्तुगू की तफ़सील लिख दी। और यह भी लिखा कि इमाम हुसैन (अ.स.) फ़रमाते हैं कि अगर अब अहले कूफ़ा मुझे नहीं चाहते तो मैं वापस जाने को तैयार हूँ । इब्ने ज़ियाद ने उमर बिन साद के जवाब में लिखा कि अबा जब कि हम ने हुसैन को चुंगल में ले लिया है तो वह छुटकारा चाहते हैं। ” “” लात हीना मनास यह हरगिज़ नहीं होगा। इन से कह दो कि यह अपने तमाम आईज़्ज़ा व अक़रेबा समैत बैअते यज़ीद करें या क़त्ल होने के लिये आमादा हो जायें। मैं बैअत से पहले उनकी किसी बात पर गौर करने के लिये तैयार नहीं हूँ। ( नासिख़ व रौज़तुल शोहदा ) इसी तीसरी तारीख़ की शाम को हबीब इब्ने मज़ाहिर क़बीला ए बनी असद में गये और उनमें से 90 जांबाज़ इमदादे हुसैनी के लिये तैयार किये। वह उन्हें ला रहे थे कि किसी ने इब्ने ज़ियाद को इत्तेला कर दी।

उसने 400 (चार सौ) का लश्कर भेज कर उस कुमक को रूकवा दिया। (नासेखुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 235)

चौथी मोहर्रमुल हराम

को इब्ने ज़ियाद ने मस्जिदे जामा में ख़ुत्बा दिया जिसमें उसने इमाम हुसैन (अ.स.) के खिलाफ़ लोगों को भड़का दिया और कहा कि हुक्मे यज़ीद से तुम्हारे लिये ख़ज़ानों के मुंह खोल दिये गये हैं। तुम उसके दुश्मन इमाम हुसैन (अ.स.) से लड़ने के लिये आमादा हो जाओ। उसके कहने से बेशुमार लोग आमादा ए करबला हो गये और सब से पहले शिम्र ने रवानगी की दरख्वास्त की । चुनान्चे शिम्र 4000 ( चार हज़ार ) इब्ने रकाब को दो हज़ार (2000) इब्ने नमीर को चार हज़ार (4000) इब्ने रहीना को तीन हज़ार (3000) इब्ने हरशा को दो हज़ार (2000) सवार दे कर करबला रवाना कर दिया। (दमएस साकेबा पृष्ठ 322)

पाँचवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे यकशम्बा को शीश इब्ने रबी को चार हज़ार (4000 ) उरवा इब्ने क़ैस को चार हज़ार (4000) सिनान इब्ने अनस को दस हज़ार ( 10,000) मोहम्मद इब्ने अशअस को एक हज़ार (1000) अब्दुल्लाह इब्ने हसीन को एक हज़ार का लश्कर दे कर रवाना कर दिया। (नासिख़ल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 233 दमउस साकेबा पृष्ठ 322)
छठी मोहर्रमुल हराम

यौमे दोशम्बा को ख़ूली इब्ने यज़ीद असबही को दस हज़ार (10,000) इब्नुल हुर को तीन हज़ार (3000) हज्जाज इब्ने हुर को एक हज़ार (1000) का लशकर दे कर रवाना कर दिया गया। इनके अलावा छोटे बड़े और कई लश्कर इरसाल करने के बाद इब्ने ज़ियाद ने उमर इब्ने साद को लिख कर भेजा कि अब तक तुझे अस्सी हज़ार का कूफ़ी लश्कर भेज चुका हूँ इनमें हेजाज़ी और शामी शामिल नहीं हैं। तुझे चाहिये कि बिना हिला हवाला हुसैन को क़त्ल कर दे। ( नासिख़ल जिल्द 6 पृष्ठ 233, दमए साकेबा पृष्ठ 322 जिलाउल ऐन पृष्ठ 197 ) इसी तारीख़ को खूली इब्ने यज़ीद ने इब्ने ज़ियाद के नाम एक ख़त इरसाल किया जिसमें उमर इब्ने साद के लिये लिखा कि यह इमाम हुसैन (अ. स.) से रात को छुप कर मिलता है और इनसे बात चीत किया करता है। इब्ने ज़ियाद ने इस ख़त को पाते ही उमरे साद के नाम एक ख़त लिखा कि मुझे तेरी तमाम हरकतों की इत्तेला है, तू छुप कर बातें करता है। देख मेरा ख़त पाते ही हुसैन पर पानी बन्द कर दे और उन्हें जल्द से जल्द मौत के घाट उतारने की कोशिश कर ।

(नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 236, अख़बारूल तौल पृष्ठ 256 तबरी जिल्द 1 पृष्ठ 212 अलबराता व अनहातिया जिल्द 8 पृष्ठ 175)
सातवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे सह शम्बा उमर इब्ने हजाज को पाँचसो सवारों समैत नहरे फ़ुरात पर इस लिये मुक़र्रर कर दिया कि इमाम हुसैन (अ.स.) के खेमों तक पानी न पहुँच पाए । (तारीख़े तबरी जिल्द 1 पृष्ठ 313 व नासिख़ल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 236) फिर मज़ीद अहतीयात के लिये चार हज़ार (4000) का लशकर दे कर हजर को एक हज़ार (1000) का लशकर दे कर शीस इब्ने रवी को रवाना किया गया। ( मक़तल मख़निफ़ पृष्ठ 32 ) और पानी की बन्दिश कर दी गईं। पानी बन्द होने के बाद अब्दुल्लाह इब्ने हसीन ने निहायत करीह लफ़्ज़ों में ताना ज़नी की । ( नूरूल ऐन पृष्ठ 31 ) जिससे इमाम हुसैन (अ.स.) को सख़्त सदमा पहुँचा । (तज़किरा पृष्ठ 121 ) फिर इब्ने हौशब नेताना ज़नी की जिसका जवाब हज़रत अब्बास (अ. स.) ने दिया । ( अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 8) आपने ग़ालेबन ताना ज़नी के जवाब में खेमे से 19 क़दम के फ़ासले पर जानिबे क़िबला एक ज़र्ब तीशा से चश्मा जारी कर दिया । ( मक़तले अवाम पृष्ठ 78 व आसम कूफ़ी पृष्ठ 266) और यह बता दिया कि हमारे लिये पानी की कमी नहीं है लेकिन हम इस मुक़ाम पर मोजिज़ा दिखाने के लिये नहीं आए बल्कि इम्तेहान देने आए हैं।

आठवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे चार श्म्बा की शब को खेमा ए आले मोहम्म्द (अ. स.) व आले मोहम्मद (स.व.व.अ.) से पानी बिल्कुल गाएब हो गया। इस प्यास की शिद्दत ने बच्चों को बेचैन कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने हालात को देख कर हज़रत अब्बास (अ.स.) को पानी लाने का हुक्म दिया। आप चन्द सवारों को ले कर तशरीफ़ ले गये और बड़ी मुश्किलों से पानी लाये। वज़लका समीउल अब्बास सक्क़ा इसी सक्काई वजह से अब्बास (अ.स.) को सक़्क़ा कहा जाता है। (अख़बारूल तवाल पृष्ठ 253, जिलाउल ऐन पृष्ठ 198 व दमए साकेबा पृष्ठ 323) रात गुज़रने के बाद जब सुबह हुई तो यज़ीद इब्ने हसीन सहराई ने ब इजाज़त इमाम हुसैन (अ. स.), इब्ने साद को फ़हमाईश की लेकिन कोई नतीजा बरामद न हुआ । इसने कहा यह कैसे हो ” सकता है कि हुसैन को पानी दे कर हुकूमते ” रै ” छोड़ दूँ। (नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 3 पृष्ठ 338) इमाम शिब्ली लिखते हैं कि इब्ने हसीन और इब्ने साद की गुफ़्तुगू के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने खेमे के गिर्द ख़न्दक़ खोदने का हुक्म दिया। ( नूरूल अबसार पृष्ठ 117) इसके बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) को हुक्म दिया कि कुएं खोद कर पानी बरामद करो। आपने कुआं तो खोदा लेकिन पानी न निकला । ( मक़तल अबी मख़नफ़ पृष्ठ 27 )

नवीं मोहर्रमुल हराम

यौमे पंज शम्बा की शब को इमाम हुसैन (अ. स.) और उमरे साद में आख़री गुफ़्तुगू हुई। आपके हमराह हज़रत अब्बास (अ. स.) और अली अकबर (अ.स.) भी थे। आप ने गुफ़्तुगू में हर क़िस्म की हुज्जत तमाम कर ली । (दमए साकेबा पृष्ठ 323) नवीं की सुबह को आपने हज़रत अब्बास (अ.स.) को फिर कुंआ खोदने का हुक्म दिया लेकिन पानी बरामद न हुआ । ( नासिख़ुल तवारीख़ जिल्द 6 पृष्ठ 245) थोड़ी देर के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने बच्चों की हालत के पेशे नज़र फिर हज़रत अब्बास (अ.स.) से कुआं खोदने की फ़रमाईश की। आपने सई बलीग़ शुरू कर दी । जब बच्चों ने कुंआ खुदता हुआ देखा तो सब कुज़े ले कर आ पहुँचे। अभी पानी निकलने न पाया था कि दुश्मन ने आ कर उसे बन्द कर दिया। फ़हर बत अतफ़ाले ख़्याम दुश्मन को देख कर बच्चे ख़मों में जा छुपे । फिर थोड़ी देर बाद हज़रत अब्बास (अ.स.) ने कुंआ खोदा वह भी बन्द कर दिया गया। हत्ताहफ़रा अरबन यहां तक कि चार कुंए खोदे और पानी हासिल न कर सके। ब रवाएते पांचवीं मरतबा ने पानी बरामद हुआ। सकीना ने कुज़ा भरा और दुश्मन के ख़ौफ़ से खेमे की तरफ़ भागीं तनाबे खेमा में पांव उलझे और आप गिर पड़ीं पानी जाता रहा और दुश्मन ने कुंआ बन्द कर दिया, सकीना प्यासी की प्यासी रहीं । (खुलासेतुल मसाएब पृष्ठ 112 प्रकाशित नवल किशोर पृष्ठ 1876) इसके बाद इमाम हुसैन (अ. स.) एक नाक़े पर सवार हो कर दुश्मन के क़रीब गए और अपना ताअर्रुफ़ कराया लेकिन कुछ न बना । (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 70) मुर्रेख़ीन लिखते हैं कि नवीं तारीख़ को शिम्र कूफ़ा वापस

गया और उसने उमरे साद की शिकायत कर के इब्ने ज़ियाद से एक सख़्त हुक्म हासिल किया जिसका मक़सद यह था कि अगर हुसैन (अ. स.) बैअत नहीं करते तो उन्हें क़त्ल कर के उनकी लाश पर घोड़ें दौड़ा दें और अगर तुझ से यह न हो सके तो शिम्र को चार्ज दे दे हम ने उसे हुक्मे तामील हुक्मे यज़ीद दिया है। ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 306 व दम ए साकेगा पृष्ठ 323) इब्ने ज़ियाद का हुक्म पाते ही इब्ने साद तामील पर तैय्यार हो गया, इसी नवीं तारीख़ को शिम्र ने हज़रत अब्बास (अ. स.) और उनके भाईयों को अमान की पेशकश की उन्होंने बड़ी देर से उसे ठुकरा दिया। (जिलाउल उयून पृष्ठ 198, तबरी पृष्ठ 237 जिल्द 6 ) तफ़सील के लिये मुलाहेजा हों ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 176 से 182 तक। इसी नवीं की शाम आने से पहले शि की तहरीक से इब्ने साद ने हमले का हुक्म दे दिया। इमाम हुसैन (अ. स.) खेमे में तशरीफ़ फ़रमा थे। आपको हज़रते ज़ैनब फिर हज़रते अब्बास (अ.स.) ने फिर दुश्मन के आने की इत्तेला दी। हज़रत ने फ़रमाया मुझे अभी निंद सी आ गई थी, मैंने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को ख़्वाब में देखा उन्होंने फ़रमाया कि अनका तरो ग़दा हुसैन तुम कल मेरे पास पहुँच जाओगे | ( दमए साकेबा 322) जनाबे जैनब रोने लगीं और इमाम हुसैन (अ.स.) ने हज़रते अब्बास से फ़रमाया कि भय्या तुम जा कर उन दुश्मनों से एक शब की मोहलत ले लो। हज़रत अब्बास तशरीफ़ ले गए और लड़ाई एक शब के लिये मुलतवी हो गई। (तारीख़े इस्लाम 272 प्रकाशित गोरखपुर

1931 ई0) जंग के रोकने की ग़रज़ क्या थी उसके लिये मुलाहेज़ा हो जिकरुल अब्बास पृष्ठ 186)

Allah Blessed Us with Life and Relationships

■ Allah Blessed Us with Life and Relationships

When we take a step back and reflect on our lives, we often get caught up in the daily hustle and overlook the countless blessings Allah ﷻ has bestowed upon us. Every breath we take, every heartbeat, and every small or big thing in our lives is a sign of His mercy and power. One of the most significant blessings He has given us is the very gift of life itself. Think about it—our existence began from something as simple as a tiny drop of water, and from that humble beginning, He shaped us into who we are today.

More than just creating us, Allah ﷻ didn’t leave us to navigate life alone. He surrounded us with relationships—families, communities, and bonds that make life meaningful. Each person we are connected to plays a role in our lives, whether through blood relations or through in-laws, which expands the circle of people who share in our joys and struggles. These relationships are a source of love, support, and growth.

In His infinite wisdom and power, Allah ﷻ gave us these bonds to make life more fulfilling and to teach us lessons in patience, compassion, and gratitude. No matter how complex or vast the world is, our ties with others keep us grounded. These connections remind us that we are not isolated beings but part of something bigger—a grand design that Allah ﷻ has carefully crafted.

The verse beautifully sums this up:

وَ هُوَ الَّذِیْ خَلَقَ مِنَ الْمَآءِ بَشَرًا فَجَعَلَهٗ نَسَبًا وَّ صِهْرًا ؕ وَ كَانَ رَبُّكَ قَدِیْرًا

“And He is the One Who created man from (a sperm drop resembling) water, and made for him (kinship by) lineage and in-laws. And your Lord is All-Powerful.” (25:54)

This verse highlights how Allah ﷻ, in His might, not only brought us into existence but also blessed us with the beautiful structure of family and relationships that shape our journey through life. It is a reminder that everything we are, and all that we have, is a result of His power and mercy.

Let us always remember these blessings and express our gratitude to Allah ﷻ, who in His infinite power, created us and gave us the gift of belonging and connection.

𝑰𝒏 𝒕𝒉𝒆 𝒈𝒓𝒂𝒗𝒆, 𝒕𝒉𝒆 𝒅𝒆𝒄𝒆𝒂𝒔𝒆𝒅 𝒘𝒊𝒍𝒍 𝒃𝒆 𝒒𝒖𝒆𝒔𝒕𝒊𝒐𝒏𝒆𝒅 𝒂𝒃𝒐𝒖𝒕  𝑰𝒎𝒂𝒎.

Ibn Hajar al-asqalani
𝑰𝒃𝒓𝒂𝒉𝒊𝒎 𝒊𝒃𝒏 𝒁𝒊𝒚𝒂𝒅 𝒂𝒍-𝑺𝒖𝒃𝒍𝒂𝒏𝒊 𝒏𝒂𝒓𝒓𝒂𝒕𝒆𝒅:  “ʿ𝑰𝒃𝒃𝒂𝒅 𝒊𝒃𝒏 ʿ𝑰𝒃𝒃𝒂𝒅 𝒕𝒐𝒍𝒅 𝒎𝒆 𝒕𝒉𝒂𝒕 𝒉𝒆 𝒂𝒑𝒑𝒓𝒐𝒂𝒄𝒉𝒆𝒅 𝒀𝒖𝒏𝒖𝒔 𝒊𝒃𝒏 𝑲𝒉𝒂𝒃𝒂𝒃 𝒂𝒏𝒅 𝒒𝒖𝒔𝒕𝒊𝒐𝒏𝒆𝒅 𝒂𝒃𝒐𝒖𝒕 𝒕𝒉𝒆 𝒉𝒂𝒅𝒊𝒕𝒉 𝒓𝒆𝒍𝒂𝒕𝒆𝒅 𝒕𝒐 𝒕𝒉𝒆 𝒕𝒐𝒓𝒎𝒆𝒏𝒕 𝒐𝒇 𝒕𝒉𝒆 𝒈𝒓𝒂𝒗𝒆. 𝒀𝒖𝒏𝒖𝒔 𝒊𝒃𝒏 𝑲𝒉𝒂𝒃𝒂𝒃 𝒑𝒓𝒐𝒄𝒆𝒆𝒅𝒆𝒅 𝒕𝒐 𝒏𝒂𝒓𝒓𝒂𝒕𝒆 𝒕𝒉𝒆 𝒉𝒂𝒅𝒊𝒕𝒉 𝒂𝒏𝒅 𝒕𝒉𝒆𝒏 𝒓𝒆𝒎𝒂𝒓𝒌𝒆𝒅, ‘𝑻𝒉𝒆𝒓𝒆’𝒔 𝒂 𝒑𝒂𝒓𝒕𝒊𝒄𝒖𝒍𝒂𝒓 𝒔𝒕𝒂𝒕𝒆𝒎𝒆𝒏𝒕 𝒕𝒉𝒂𝒕 𝒕𝒉𝒆 𝑵𝒂𝒘𝒂𝒔𝒊𝒃  𝒉𝒂𝒗𝒆 𝒄𝒐𝒏𝒄𝒆𝒂𝒍𝒆𝒅 .’ 𝑰 𝒂𝒔𝒌𝒆𝒅, ‘𝑾𝒉𝒂𝒕 𝒊𝒔 𝒊𝒕?’ 𝑯𝒆 𝒓𝒆𝒑𝒍𝒊𝒆𝒅, ‘𝑰𝒏 𝒕𝒉𝒆 𝒈𝒓𝒂𝒗𝒆, 𝒕𝒉𝒆 𝒅𝒆𝒄𝒆𝒂𝒔𝒆𝒅 𝒘𝒊𝒍𝒍 𝒃𝒆 𝒒𝒖𝒆𝒔𝒕𝒊𝒐𝒏𝒆𝒅 𝒂𝒃𝒐𝒖𝒕 𝒕𝒉𝒆𝒊𝒓 ‘𝒘𝒂𝒍𝒊’ (𝑰𝒎𝒂𝒎 ). 𝑰𝒇 𝒕𝒉𝒆𝒚 𝒓𝒆𝒔𝒑𝒐𝒏𝒅  ‘𝑨𝒍𝒊, 𝒕𝒉𝒆𝒚 𝒘𝒊𝒍𝒍 𝒃𝒆 𝒔𝒂𝒗𝒆𝒅.'”
Sunni source:Tahdhib al-Tahdhib,Volume 11,page 439