चौदह सितारे पार्ट 88

हुर बिन यज़ीदे रियाही

सुबह का वक़्त गुज़रा दोपहर आई, लशकरे हुसैनी बादया पैमाई कर रहा था कि नागाह एक साहाबिये हुसैन (अ.स.) ने तकबीर कही। लोगों ने वजह पूछी, उसने जवाब दिया कि मुझे कूफ़े की सिम्त ख़ुरमे और केले के दरख़्त जैसे नज़र आ रहे हैं। यह सुन कर लोग यह ख़्याल करते हुए कि इस जंगल में दरख़्त कहां, उस तरफ़ ग़ौर से देखने लगे, थोड़ी देर में घोड़ों की कनौतियां नज़र आई, इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि दुश्मन आ रहे हैं। लेहाजा मंज़िले जुख़राब या जूहसम की तरफ़ मुड़ चले। लश्करे हुसैनी ने रूख़ बदला और लश्करे हुर ने तेज़ रफ़्तारी इख़्तेयार की। बिल आखिर सामने आ पहुँचा और ब रवायते लजामे फ़रस पर हाथ डाल दिया। यह देख कर हज़रते अब्बास (अ. स.) आगे बढ़े और फ़रमाया तेरी माँ तेरे ग़म में बैठे। मातरीद क्या चाहता है? (मातईन पृष्ठ 183) ” “

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि चूंकि लश्करे हुर प्यास से बेचैन था इस लिये साक़िये क़ौसर के फ़रज़न्द ने अपने बहादुरों को हुक्म दिया कि हुर के सवारों और सवारी

के जानवरों को अच्छी तरह सेराब कर दो। चुनान्चे अच्छी तरह सेराबी कर दी गई। उसके बाद नमाज़े जौहर की अज़ान हुई । हुर ने इमाम हुसैन (अ.स.) की क़यादत में नमाज़ अदा की और बताया कि हमें आपकी गिरफ़्तारी के लिये भेजा गया है और हमारे लिये यह हुक्म है कि हम आपको इब्ने ज़ियाद के दरबार में हाज़िर करें। इमाम हुसैन (अ. स.) ने फ़रमाया कि मेरे जीते जी यह ना मुम्किन है कि मैं गिरफ़्तार हो कर ख़ामोशी के साथ कूफ़े में क़त्ल कर दिया जाऊं। फिर उसने तन्हाई में राय दी कि चुपके से रात के वक़्त किसी तरफ़ निकल जायें। आपने उसकी राय को पसन्द किया और एक रास्ते पर आप चल पड़े। जब सुबह हुई तो फिर हुर को पीछा करते देखा और पूछा कि अब क्या बात है? उसने कहा मौला किसी जासूस ने इब्ने ज़ियाद से मुखबिरी कर दी है। चुनान्चे अब उसका हुक्म यह आ गया है कि मैं आप को बे आबो गियाह जंगल (जहां पानी और साया न हो) में रोक लूँ। गुफ़्तुगू के साथ साथ रफ़्तार भी जारी थी कि नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) के घोड़े ने क़दम रोके, आपने लोगों से पूछा कि इस ज़मीन को क्या कहते हैं? कहा गया करबला आपने अपने साथियों को हुक्म दिया कि यहीं पर डेरे डाल दो और यहीं खेमे लगा दो क्यो कि क़ज़ा ए इलाही यहीं हमारे गले मिलेगी। ” “

(नूरूल अबसार पृष्ठ 117 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 257, तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 307, कामिल जिल्द 4 पृष्ठ 26, अबुल फ़िदा जिल्द 2 पृष्ठ 201 व दमए साकेबा पृष्ठ 330, अख़बारूल

तवाल पृष्ठ 250, इब्नुल वरदी जिल्द 1 पृष्ठ 172, नासिक जिल्द 6 पृष्ठ 219 बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 286)

करबला में वुरूद

2 मोहर्रमुल हराम 61 हिजरी यौमे पंज शम्बा को इमाम हुसैन (अ. स.) वारिदे करबला हो गये। (नूरूल ऐन पृष्ठ 46, हयवातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51 मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 250, इरशादे मुफीद व दमए साकेबा पृष्ठ 321 ) अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी और अल्लामा अरबली का बयान है कि जैसे ही इमाम हुसैन (अ.स.) ने ज़मीने करबला पर क़दम रखा ज़मीने करबला ज़र्द हो गई और एक ऐसा गुबार उठा जिससे आपके चेहरा ए मुबारक पर परेशानी के आसार नुमाया हो गये। यह देख कर असहाब डर गये और जनाबे उम्मे कुलसूम रोने लगीं। (कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 69 व रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 301)

साहेबे मख़ज़ल बुका लिखते हैं कि करबला के फ़ौरन बाद जनाबे उम्मे कुलसूम ने इमाम हुसैन (अ.स.) से अर्ज़ कि भाई जान यह कैसी ज़मीन है कि इस जगह हमारा दिल दहल रहा है । इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया बस यह वही मक़ाम है जहां बाबा जान ने सिफ़्फ़ीन के सफ़र में ख़्वाब देखा था यानी यह वह जगह है जहां हमारा ख़ून बहेगा । किताब माईन में है कि इसी दिन एक सहाबी ने एक बेरी के दरख़्त से मिसवाक के लिये शाख़ काटी तो उससे ख़ूने ताज़ा जारी हो गया ।

इमाम हुसैन (अ.स.) का ख़त अहले कूफ़ा के नाम

करबला पहुँचने के बाद आपने सब से पहले एतमामे हुज्जत के लिये एहले कूफ़ा के नाम कैस इब्ने मसहर के ज़रिये से एक ख़त इरसाल फ़रमाया, जिसमें आपने तहरीर फ़रमाया था कि तुम्हारी दावत पर मैं करबला तक आ गया हूँ। क़ैस ख़त लिये जा रहे थे कि रास्ते में गिरफ़्तार कर लिये गये और उन्हें इब्ने ज़ियाद के सामने कूफ़े ले जा कर पेश कर दिया गया। इब्ने ज़ियाद ने ख़त मांगा क़ैस ने बा रवायते चाक कर के फेंक दिया और बा रवायते इस ख़त को खा लिया। इब्ने ज़ियाद ने उन्हें ताज़याने (कोड़े) मार कर शहीद कर दिया। ( रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 301, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 66 )

उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद का ख़त इमाम हुसैन (अ.स.) के नाम अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) के करबला पहुँचने के बाद, हुर ने इब्ने ज़ियाद को आपके करबला पहुँचने की ख़बर दी। उसने इमाम हुसैन (अ.स.) को फ़ौरन एक ख़त इरसाल किया जिसमें लिखा कि मुझे यज़ीद ने हुक्म दिया है कि मैं आप से उसके लिये बैएत ले लूँ, या क़त्ल कर दूं। इमाम हुसैन (अ.स.) ने इस ख़त का जवाब न दिया । अल क़ायमन यदह और ” “
उसे ज़मीन पर फेंक दिया। (मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 257 व नूरूल अबसार पृष्ठ 117) इसके बाद आपने मोहम्मद बिन हनफ़िया को अपने करबला पहुँचने की एक ख़त के ज़रिये से इत्तेला दी और तहरीर फ़रमाया कि मैंने ज़िन्दगी से हाथ धो लिया है और अन्क़रीब उरूसे मौत से हमकनार हो जाऊंगा । (जिलाउल उयून पृष्ठ 196)


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