
इमाम हुसैन (अ.स.) की इबादत
उलेमा व मुवर्रेख़ीन का इत्तेफ़ाक़ है कि हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) ज़बरदस्त इबादत गुज़ार थे। आप शबो रोज़ में बेशुमार नमाज़ें पढ़ते और अनवाए अक़साम इबादत से सरफ़राज़ होते थे। आपने अच्चीस हज पा पियादा किए और यह तमाम हज ज़माना ए क़यामे मदीने मुनव्वरा में फ़रमाए थे। इराक़ में क़याम के दौरान आपको अमवी हंगामा आराइयों की वजह से किसी हज का मौक़ा नहीं मिल सका। (असद उल गाबा जिल्द 3 पृष्ठ 27 )
इमाम हुसैन (अ.स.) की सख़ावत
मसनदे इमामे रज़ा पृष्ठ 35 में है कि सख़ी दुनियां के सरदार और मुत्तक़ी आख़रत के लोगों के सरदार होते हैं। इमाम हुसैन (अ. स.) सख़ी ऐसे थे जिनकी मिसाल नहीं। उलमा का बयान है कि उसामा इब्ने ज़ैद सहाबिए रसूल (स.व.व.अ.) बीमार थे इमाम हुसैन (अ. स.) उन्हे देखने के लिये तशरीफ़ ले गये तो आपने महसूस किया कि वह बेहद रंजीदा हैं। पूछा ऐ मेरे नाना के सहाबी क्या बात है ? “वाग़माहो’ ‘ क्यों कहते हो? अर्ज़ कि मौला साठ हज़ार दिरहम का क़र्ज़ दार हूँ। आपने फ़रमाया घबराओ नहीं उसे मैं उसे अदा कर दूंगा। चुनान्चे आपने अपनी ज़िन्दगी में ही उन्हें क़रज़े के बार से सुबुक दोश फ़रमा दिया।
एक दफ़ा एक देहाती शहर में आया और उसने लोगों से दरयाफ़्त किया कि यहां सब से ज़्यादा सख़ी कौन है? लोगों ने इमाम हुसैन (अ. स.) का नाम लिया। उसने हाज़िरे ख़िदमत हो कर बा ज़रिये अशआर सवाल किया। हज़रत ने चार हज़ार अशरफ़ियां इनायत फ़रमा दीं। शईब ख़ज़ाई का कहना है कि शहादते इमामे हुसैन (अ.स.) के बाद आपकी पुश्त पर बार बरदारी के घट्टे देखे गये। जिसकी वजाहत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने यह फ़रमाई थी कि आप अपनी पुश्त पर लाद कर अशरफ़ियां और ग़ल्लों के बोरे बेवाओं और यतीमो के घर रात के वक़्त पहुंचाया करते थे। किताबों में है कि आपके एक ग़ैर मासूम फ़रज़न्द को अब्दुल रहमान सलमा ने सुरा ए हम्द की तालीम दी, आपने एक हज़ार अशरफ़ियां और एक हज़ार क़ीमती ख़लअतें इनायत फ़रमाई।
( मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 4 पृष्ठ 74)
इमाम शिब्लंजी और अल्लामा इब्ने मोहम्मद तल्हा शाफ़ेई ने नूरूल अबसार और मतालेबुस सूऊल में एक अहम वाक़ेया आपकी सिफ़ते सख़ावत के मुताल्लिक तहरीर किया है, जिसे हम इमाम हसन (अ.स.) के हाल में लिख आये हैं क्यों कि इस वाक़िये सख़ावत में वह भी शरीक थे।
इमाम हुसैन (अ.स.) का अम्रे आस को जवाब
एक मरतबा माविया, उमरो आस और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) एक मक़ाम पर बैठे हुए थे। उमरो आस ने पूछा क्या वजह है कि हमारे अवलाद ज़्यादा होती है और आप हज़रात के कम ? हज़रत ने उसके जवाब में एक शेर पढ़ा, जिसका तरजुमा यह है कि, कमज़ोर और ज़लील व हक़ीर चिड़यों के बच्चे ज़्यादा और शिकारी परिन्दे बाज़ और शाहीन वग़ैरा के बच्चे क़ुदरतन कम होते हैं। फिर उमरो आस ने पूछा कि हमारी मूंछों के बाल जल्दी सफ़ैद हो जाते हैं और आपके देर में, इसकी वजह क्या है? आपने फ़रमाया कि तुम्हारी औरते गन्दा दहन होती हैं, बा वक़्ते मक़ारबत उनके बुख़ारात से तुम्हारी मूछों के बाल सफ़ैद हो जाते हैं। फिर उसने पूछा कि इसकी क्या वजह है कि आप लोगों की दाढ़ी घनी निकलती है? आपने फ़रमाया कि इसका जवाब तो क़ुरआन में मौजूद है। उसके बाद आपने एक आयत पढ़ी, जिसका तरजुमा यह है। अच्छी ज़मीन से अच्छा सब्ज़ा उगता है और बुरी और ख़बीस ज़मीन से बुरी पैदावार होती है। (पारा 8 रूकू 14 ) उसके बाद माविया ने उमरो आस को मज़ीद सवाल करने से रोक दिया। तब आपने अरबी के शेर पढ़े, जिसका फ़ारसी में तरजुमा यह है।
श अरब न अज़ पैए कीं अस्त मुक्तजाए तबीअतश ईं अस्त (मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 4 पृष्ठ 75 व बेहार जिल्द 1 पृष्ठ 148)
हज़रत उमर की वसीयत कि सनदे गुलामी ए अहले बैत का नविशता मेरे कफ़न में रखा जाऐ
उल्माए अहले सुन्नत का बयान है कि एक दिन मंज़िले मनाख़रत में अब्दुल्लाह बिन उमर इमाम हसन (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) के सामने फ़ख़रो इफ़्तेख़ार की बातें करने लगे। यह सुन कर इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि तुम तो हमारे गुलाम जादे हो। इतनी बढ़ चढ़ कर क्या बातें कर रहे हो। इस पर अब्दुल्लाह बिन उमर रंजीदा हो कर अपने बाप के पास गये और इमाम हसन (अ. स.) ने जो कुछ कहा था उसे बयान किया। यह सुन कर हज़रत उमर ने फ़रमाया कि बेटा यह बात उन से लिख वा लो, अगर लिख दें तो मेरे कफ़न में रख देना। एक रवायत में है कि उन्होंने लिख दिया और हज़रत उमर ने वसीयत कर दी कि इसे उनके कफ़न में रखा जाय क्यों कि मोहम्मद (स.व.व.अ.) व आले मोहम्मद (अ.स.) की गुलामी बख़शिश का ज़रिया है।

