चौदह सितारे पार्ट 82

इमाम हुसैन (अ.स.) की गर्दे क़दम और जनाबे अबू हुरैरा

कौन है जो जनाबे अबू हुरैरा के नाम से वाक़िफ़ न हो आप ही वह हैं जिन पर साबिक़ की हुकूमतों को बड़ा एतमाद था और आप पर एतमाद की यह हद थी कि माविया ने जब अमीरल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के खिलाफ़ हदीसें गढ़ने की स्कीम बनाई थी तो उन्हीं को इस स्कीम का रूहे रवां क़रार दिया था। (मीज़ान अल बक़रा इमाम शेरानी पृष्ठ 21) आप को हज़रत अली (अ.स.) से अक़ीदत भी थी आप नमाज़ हज़रत अली (अ.स.) के पीछे पढ़ते थे और खाना माविया के दस्तरख़्वान पर खाते थे। आप फ़रमाते थे कि इबादत का लुत्फ़ अली (अ.स.) के साथ और खाने का मज़ा माविया के साथ है।

मुख़ तबरी का बयान है कि एक मय्यत में इमाम हुसैन (अ. स.) और जनाबे अबू हुरैरा ने शिरकत की और दोनों हज़रात साथ ही चल रहे थे। रास्ते में थोड़ी देर के लिये रूक गये तो अबू हुरैरा ने झट रूमाल निकाल कर हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के पाये मुबारक और तूतियों से गर्द झाड़ना शुरू कर दिया। इमाम हुसैन (अ.स.) ने फ़रमाया ऐ अबू हुरैरा ! तुम यह क्या करते हो, मेरे पैरों और जूतियों से गर्द क्यों झाड़ने लगे? आपने अर्ज़ कि दाअनी मिनका फ़लो या लम अलनास 66 मिनका मा अलमलहमलूक अला अवा तक़ाम ” ” मौला मुझे मना न किजीये, आप इसी क़ाबिल हैं कि मैं आपकी गर्दे क़दम साफ़ करूं। मुझे यक़ीन है कि अगर
लोगों को आपके फ़ज़ाएल और आपकी वह बढ़ाई मालूम हो जाय जो मैं जानता हूँ ” तो यह लोग आपको अपने कंधों पर उठाये फिरें (तारीख़े तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 19 तबअ मिस्र)

इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़ुर्रियते नबी में होना

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) और हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के ज़ुर्रियते नबी में होने पर आयते मुबाहेला गवाह है। रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) ने अब अना की तामील व तकमील हसनैन (अ.स.) ही से की थी । यह उनके फ़रज़न्दाने रसूल होने की दलीले मोहकम हैं जिसके बाद किसी एतराज़ की गुन्जाईश नहीं रहती। आसिम बिन बहदेला कहते हैं कि एक दिन हम लोग हज्जाज बिन युसूफ़ के पास बैठे हुए थे कि इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़िक्र आ गया। हज्जाज ने कहा उनका ज़ुर्रियते रसूल (स.व.व.अ.) से कोई ताअल्लुक नहीं। यह सुनते ही यहिया बिन यामर ने कहा “ कुन्बत अहिय्या अल अमीर अमीर यह बात बिल्कुल गलत है और झूठ है वह यक़ीनन जुर्रियते रसूल (स.व.व.अ.) में से हैं। यह सुन कर उसने कहा कि इसका सुबूत क़ुरआने मजीद से पेश करो। अवला क़तलनका क़तलन वरना ” ” ” ” तुम्हें बुरी तरह क़त्ल करूंगा। यहिया ने कहा क़ुरआन मजीद में है। व मन ज़ुर्रियते दाऊदो सुलैमान व ज़करया व यहिया व ईसा ” इस आयत में ज़ुर्रियते **** आदम में हज़रते ईसा भी बताये गये हैं जो अपनी मां की तरफ़ से शमिल हुये हैं।
बस इसी तरह इमाम हुसैन (अ.स.) भी अपनी मां की तरफ़ से ज़ुर्रियते रसूल (स.व.व.अ.) में हैं। हज्जाज ने कहा यह सही है लेकिन मजमें में तुमने मेरी तक़ज़ीब (बे इज़्ज़ती ) की है लेहाज़ा तुम्हें शहर बदर किया जाता है। इसके बाद उन्हें खुरासान भेज दिया । ( मुस्तदरिक सहीहीन जिल्द 3 पृष्ठ 164)

करमे हुसैनी की एक मिसाल

८८ इमाम फ़ख़रुद्दीन राज़ी तफ़सीरे कबीर में ज़ेरे आयत अल आदम अल असमा पाता ” कुल्लेहा ” लिखते हैं कि एक एराबी ने खिदमते इमाम हुसैन (अ. स.) में हाज़िर हो कर कुछ मांगा और कहा कि मैंने आपके जट्टे नामदार से सुना है कि जब कुछ मांगना हो तो चार क़िस्म के लोगों से मांगों। 1. शरीफ़ अरब से, 2. करीम हाकिम से, 3. हामिले कुरआन से, 4. हसीन शक्ल वाले से मैं आपमें यह जुमला सिफ़ात इस लिये मांग रहा आप शरीफ़े अरब हैं। आपके नाना अरबी हैं। आप करीम हैं क्यों कि आपकी सीरत ही करम है। क़ुरआने पाक आपके घर में नाज़िल हुआ है। आप सबीह व हसीन हैं। रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) का इरशाद है कि जो मुझे देखना चाहे वह हसन व हुसैन को देखे । लेहाज़ा अर्ज़ है कि मुझे अतीये से सरफ़राज़ फ़रमाईये। आपने फ़रमाया कि जद्दे नामदार ने फ़रमाया है कि अल मारूफ़ बे क़दरे अल मारफ़ते ” मारफ़त के मुताबिक़ अतिया देना चाहिये। तू मेरे सवालात का जवाब दे, 1. बता सब से बेहतर अमल क्या है? उसने कहा अल्लाह “
पर ईमान लाना। 2. हलाकत से नजात का ज़रिया क्या है? उसने कहा अल्लाह पर 66 भरोसा करना। 3. मरद की ज़ीनत क्या है? कहा इल्म मय हिल्म ” ऐसा इल्म जिसके साथ हिल्म हो, आपने फ़रमाया दुरूस्त है। उसके बाद आप हंस पड़े। वरमी बिल सीरते इल्हे ” “” और एक बड़ा कीसा उसके सामने डाल दिया। (फ़ज़ाएल उल ख़मसते मिन सहायसित्ता जिल्द 3 पृष्ठ 268)

इमाम हुसैन (अ.स.) की एक करामत

तबाक़ात इब्ने सआद जिल्द 5 पृष्ठ 107 में है कि जब इमाम हुसैन (अ.स.) मदीने से मक्के जाने के लिये निकले तो रास्ते में इब्ने मतीह मिल गये । वह उस वक़्त कुआं खोद रहे थे। पूछा मौला कहां का इरादा है? फ़रमाया मक्के जा रहा हूँ, शायद मेरा आख़री सफ़र हो । यह सुन कर उन्होंने अर्ज़ की मौला इस सफ़र को मुलतवी कर दिजीए। फ़रमाया मुम्किन नहीं है। फिर बात ही बात में उन्होंने अर्ज़ कि मैं कुआं खोद रहा हूँ। अकसर इधर पानी खारा निकलता है। आप दुआ कर दें पानी मीठा हो और कसीर हो । आपने थोड़ा पानी जो उस वक़्त बरामद हुआ था ले कर चखा और उसमें कुल्ली कर के कहा कि इसे कुएं में डाल दो। चुनान्चे उन्होंने ऐसा ही किया । फ़जब वमही ” उसका पानी शीरीं (मीठा ) और कसीर हो गया। ” “
(अ. स.) की की नुसरत के लिये रसूले करीम इमाम हुसैन (अ.स.) ( स.व.व.अ.) का हुक्म

अनस बिन हारिस जो सहाबी ए रसूल और असहाबे सुफ़फ़ा में से में थे, का बयान करते है, मैंने देखा है कि हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) एक दिन रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) की गोद में थे और वह उनको प्यार कर रहे थे। इसी दौरान में ” फ़रमाया अन अम्बी हाज़ा यक़तेदा बारे ज़ैने यक़ाला लहा करबल फ़मन शोहदा ” ज़ालेका फ़ल यनसेरहा कि मेरा यह फ़रज़न्द ” हुसैन ” उस ज़मीन पर क़त्ल किया जायेगा जिसका नाम करबला है। देखो तुम में से उस वक़्त जो भी मौजूद हो उसके लिये ज़रूरी है कि उसकी मद्द करे।

रावी का बयान है कि असल रावी और चश्म दीद गवाह अनस बिन हारिस जो कि उस वक़्त मौजूद थे वह इमाम हुसैन (अ. स.) के हमराह करबला में शहीद हो गये थे।

(असदुल ग़ाबेआ जिल्द 1 पृष्ठ 123 व पृष्ठ 349, असाबा जिल्द 1 पृष्ठ 48, कन्जुल आमाल जिल्द 6 पृष्ठ 223, ज़ख़ायर अल अक़बा मुहिब तबरी पृष्ठ 146)




ज़मीन पर चलना और दुनिया से फ़ायदा उठाना हराम है 

हुज़ूर ने फ़रमाया अली के दुश्मन का ज़मीन पर चलना और दुनिया से फ़ायदा उठाना हराम है 

  अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदिअल्लाहो अन्हो रिवायत करते हैं

  हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेही वा सल्लम ने इरशाद फ़रमाया ऐ अली अल्लाह ने तुम्हारा निकाह फ़ातिमा से किया है इस निकाह का महेर ज़मीन को क़रार दिया है चुनांचे जो तुमसे बुग्ज़ रखते हुए ज़मीन पर चले तो उसका इस (ज़मीन) पर चलना हराम है

हवाला 📚📚👇👇
मुसनद अल फ़िरदोस 5/319