
जन्नत से कपड़े और फ़रज़न्दाने रसूल (स.व.व.अ.) की ईद
इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ. स.) का बचपन है। ईद आने को है और इन असखियाये आलम के घर में नये कपड़े का क्या ज़िक्र पुराने कपड़े बल्कि जौ की रोटियां तक नहीं हैं। बच्चों ने मां के गले में बाहें डाल दीं। मादरे गेरामी मदीने के बच्चे ईद के दिन ज़र्क़ बर्फ़ कपड़े पहन कर निकलेंगे और हमारे पास नये कपड़े नहीं हैं। हम किस तरह ईद मनायेंगे। माँ ने कहा बच्चों घबराओ नहीं तुम्हारे कपड़े दरज़ी लायेगा। ईद की रात आई, बच्चों ने फिर मां से कपड़ों का तक़ाज़ा किया। माँ ने वही जवाब दे कर नौनिहालों को ख़ामोश कर दिया। अभी सुबह न हो पाई थी कि एक शख़्स ने दरवाज़े पर आवाज़ दी, दरवाज़ा खटखटाया, फ़िज़्ज़ा दरवाज़े पर गईं। एक शख़्स ने एक गठरी लिबास की दी। फ़िज़्ज़ा ने उसे सय्यदा ए आलम की खिदमत में पेश किया। अब जो खोला तो उसमें दो छोटे छोटे अम्मामे, दो क़बाऐं, दो अबाऐं ग़रज़ की तमाम ज़रूरी कपड़े मौजूद थे। माँ का दिल बाग़ बाग़ हो गया। वह समझ गईं कि यह कपड़े जन्नत से आये हैं लेकिन मुँह से कुछ नहीं कहा। बच्चों को जगाया कपड़े दिये। सुबह हुई, बच्चों ने जब कपड़ों के रंग की तरफ़ नज़र की तो कहा मादरे गेरामी यह तो सफ़ैद कपड़े हैं। मदीने के बच्चे रंगीन कपड़े पहने होंगे। अम्मा जान हमें रंगीन कपड़े चाहिये। हुज़ूरे अनवर (स.व.व.अ.) को इत्तेला मिली, तशरीफ़ लाये। फ़रमाया घबराओ नहीं तुम्हारे कपड़े अभी अभी रंगीन हो जायेंगे। इतने में जिब्राईल आफ़ताबा ( एक बड़ा और चौड़ा बरतन) लिये हुए आ पहुँचे। उन्होंने पानी डाला, मोहम्मद मुस्तफ़ा (स.व.व.अ.) के इरादे से कपड़े सब्ज़ और सुखर हो गये। सब्ज़ (हरा) जोड़ा हसन (अ. स.) ने पहना और सुख जोड़ा हुसैन (अ. स.) ने जैगे तन किया। माँ ने गले लगाया, बाप ने बोसे दिये, नाना ने अपनी पुश्त पर सवार कर के मेहार के बदले अपनी ज़ुल्फ़े हाथो में दे दीं और कहा मेरे नौनिहालों, रिसालत की बाग तुम्हारे
हाथ में है। जिधर चाहो मोड़ो और जहां चाहो ले चलो। (रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 189 बेहारूल अनवार) बाज़ उलेमा का कहना है कि सरवरे कायनात बच्चों को पुश्त पर बिठा कर दोनों हाथो पैरों से चलने लगे और बच्चों की फ़रमाईश पर ऊंट की आवाज़ मुंह से निकालने लगे। (कशफ़ुल महजूब)

गिरया ए हुसैनी और सदमा ए रसूल (स.व.व.अ.)
इमाम शिबलंजी और अल्लामा बदख़्शी लिखते हैं कि ज़ैद इब्ने ज़ियाद का बयान है कि एक दिन आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ख़ाना ए आयशा से निकल कर कहीं जा रहे थे, रास्ते में फ़ात्मा ज़हरा (अ.स.) का घर पड़ा। उस घर में से इमाम हुसैन (अ.स.) के रोने की आवाज़ बरामद हुई। आप घर में दाखिल हो गए और फ़रमाया ऐ फ़ात्मा “ अलम तालमी अन बक़ाराह यूज़ीनी ” क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हुसैन (अ.स.) के रोने से मुझे किस क़द्र तकलीफ़ और अज़ीयत पहुँचती है। ( नूरुल अबसार पृष्ठ 114 व मम्बए अहतमी जिल्द 9 पृष्ठ 201 व ज़ख़ाएर अल अक़बा पृष्ठ 123) बाज़ उलमा का बयान है कि एक दिन रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक मदरसे की तरफ़ से गुज़र हुआ। एक बच्चे की आवाज़ कान में आई जो हुसैन (अ.स.) की आवाज़ से बहुत ज़्यादा मिलती थी। आप दाखिले मदरसा हुए और उस्ताद को हिदायत की कि इस बच्चे को न मारा करो क्यों कि इसकी आवाज़ मेरे बच्चे हुसैन से बहुत मिलती है।
इमाम हुसैन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत पैग़म्बरे इस्लाम की यह हदीस मुसल्लेमात और मुतावातेरात में से है कि “ अल हसन वल हुसैन सय्यदे शबाबे अहले जन्नतः व अबु हुमा ख़ैर मिन्हमा ” हसन व हुसैन जवानाने जन्नत के सरदार हैं और उनके पदरे बुज़ुर्गवार इन दोनों से बेहतर हैं। (इब्ने माजा) सहाबी ए रसूल जनाबे हुज़ैफ़ा यमानी का बयान है कि मैंने एक दिन सरवरे कायनात ( स.व.व.अ.) को बेइन्तेहा ख़ुश देख कर पूछा, हुज़ूर इफ़राते मसर्रत की क्या वजह है? आप ने फ़रमाया ऐ हुज़ैफ़ा ! आज एक ऐसा मलक नाज़िल हुआ है जो मेरे पास इससे पहले नहीं आया था उसने मेरे बच्चों की सरदारिये जन्नत पर मुबारक बाद दी है और कहा है कि अन फातमा सय्यदुन ” ” निसाए अहले जन्नतः व अनल हसन वल हुसैन सय्यदे शबाबे अहले जन्नतः फ़ात्मा जन्नत की औरतों की सरदार और हसनैन जन्नत के मरदों के सरदार हैं । ( कन्जुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, तारीख़ुल खोलफ़ा पृष्ठ 132, असदउल गाबा पृष्ठ 12, असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 12, तिर्मिज़ी शरीफ़, मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 242, सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 114) इस हदीस से सियादते अलविया का मसला भी हल हो गया। क़तए नज़र इसके कि हज़रत अली (अ.स.) में मिसले नबी सियादत का ज़ाती शरफ़ मौजूद था और ख़ुद सरवरे कायनात ने बार बार आपकी सियादत की तसदीक सय्यदुल अरब, सय्यदुल मुत्तक़ीन, सय्यदुल मोमेनीन वग़ैरा जैसे अल्फ़ाज़ से फ़रमाई है। हज़रत अली (अ.स.) सरदाराने जन्नत इमाम हसन (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) से बेहतर होना वाज़ेह करता है कि आपकी सियादत मुसल्लम ही नहीं बल्कि बहुत बलन्द दरजा रखती है। यही वजह है कि मेरे नज़दीक जुमला अवलादे अली (अ.स.) सय्यद हैं। यह और बात है कि बनी फ़ात्मा के बराबर नहीं हैं।
इमाम हुसैन (अ.स.) आलमे नमाज़ में पुश्ते रसूल (स.व.व.अ.)
ख़ुदा ने जो शरफ़ इमाम हसन (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) को अता फ़रमाया है वह औलादे रसूल (स.व.व.अ.) के सिवा किसी को नसीब नहीं। इन हज़रात की ज़िक्र इबादत और उनकी मोहब्बत इबादत यह हज़रात अगर पुश्ते रसूल (स.व.व.अ.) पर आलमे नमाज़ में सवार हो जायें तो नमाज़ में कोई ख़लल वाक़े नहीं होता। अकसर ऐसा होता था कि यह नौनेहाले रिसालत पुश्ते रसूल (स. स.) पर आलमे नमाज़ में सवार हो जाया करते थे और जब कोई मना करना चाहता था तो आप इशारे से रोक दिया करते थे और कभी ऐसा भी होता था कि आप सजदे में उस वक़्त तक मशग़ले ज़िक्र रहा करते थे जब तक बच्चे आपकी पुश्त से ख़ुद न उतर आयें। आप फ़रमाया करते थे, ख़ुदाया मैं इन्हें दोस्त रखता हूँ तू भी इनसे मोहब्बत कर। कभी इरशाद होता था, ऐ दुनिया वालों ! अगर मुझे दोस्त रखते हो तो मेरे बच्चों से भी मोहब्बत करो। (असाबा पृष्ठ 12 जिल्द 2, मुसतदरिक इमाम हाकिम व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 223)


