
बैत को इज़्ज़त व करामत अता फ़रमाई है । ( मुसनदे इमाम रज़ा पृष्ठ 32 मतबुआ मिस्र 1341 हिजरी )
जनाबे इब्राहीम का इमाम हुसैन (अ. स.) पर क़ुरबान होना
उलेमा का बयान है कि एक रोज़ हज़रत रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) इमाम हुसैन (अ.स.) को दाहिने ज़ानू पर और अपने बेटे जनाबे इब्राहीम को बायें जानू पर बिठाये हुए प्यार कर रहे थे कि नागाह जिब्राईल नाज़िल हुए और कहने लगे इरशादे ख़ुदा वन्दी है कि दो में से एक अपने पास रखो। पैग़म्बरे इस्लाम (स.व.व.अ.) ने इमाम हुसैन (अ.स.) को इब्राहीम पर तरजीह दी और अपने फ़रज़न्द इब्राहीम को हुसैन (अ.स.) पर फ़िदा कर देने के लिये कहा । चुनान्चे इब्राहीम अलील हो कर तीन यौम में इन्तेक़ाल कर गये। रावी का बयान है कि इस वाक़िये के बाद से जब इमाम हुसैन (अ.स.) आं हज़रत ( स.व.व.अ.) के सामने आते थे तो आप उन्हें आगोश में बिठा कर फ़रमाते थे कि यह वह है जिस पर मैंने अपने बेटे इब्राहीम को क़ुरबान कर दिया है। (शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 व तारीख़े बग़दाद जिल्द 2 पृष्ठ 204)
हसनैन (अ.स.) की बाहमी ज़ोर आज़माई
इब्नल ख़शाब शेख़ कमालउद्दीन और मुल्ला जामी लिखते हैं कि एक मरतबा इमाम हसन (अ.स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) कमसिनी के आलम में रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) की नज़रों के सामने आपस में ज़ोर अज़माई करने और कुश्ती लड़ने लगे। जब बाहम एक दूसरे से लिपट गए तो रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) ने इमाम हसन (अ.स.) से कहना शुरू किया, हां बेटा “ हसन बगीर, हुसैन रा ” हुसैन को गिरा दे और चीत कर दे। फ़ात्मा ( स.व.व.अ.) ने आगे बढ़ कर अर्ज़ कि बाबा जान आप तो बड़े फ़रज़न्द की हिम्मत बढ़ा रहे हैं और छोटे बेटे की हिम्मत अफ़ज़ाई नहीं करते। आपने फ़रमाया कि ऐ बेटी यह तो देखो जिब्राईल खड़े हुए हुसैन से कह रहे हैं “ बगीर हसन रा ” ऐ हुसैन तुम हसन को गिरा दो और चित कर दो। (शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 व रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 239 नूरूल अबसार पृष्ठ 114 प्रकाशित
मिस्र)
ख़ाके क़दमे हुसैन (अ.स.) और हबीब इब्ने मज़ाहिर
अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं कि एक दिन रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) एक रास्ते से गुज़र रहे थे आपने देखा कि चन्द बच्चे खेल रहे हैं। आप उनके क़रीब गए और उनमें से एक बच्चे को उठा कर अपनी आगोश में बैठा लिया और आप उसकी पेशानी के बोसे देने लगे। एक साहबी ने पूछा, हुज़ूर इस बच्चे में क्या
ख़ुसूसियत है कि आपने इस दर्जा क़द्र अफ़ज़ाई फ़रमाई है? आपने इरशाद फ़रमाया कि मैंने इस एक दिन इस हाल में देखा कि यह मेरे बच्चे हुसैन के क़दमों की ख़ाक उठा कर अपनी आंखों में लगा रहा था। बाज़ हज़रात का बयान है कि वह बच्चा आं हज़रत ने जिसको प्यार किया था उसका नाम हबीब इब्ने मज़ाहिर था । (रौज़तुल शोहदा )
पिसरे मुर्तज़ा, इमाम हुसैन — कि चूँ ऊला न बूदा दर कौनैन
मुस्तफ़ा ऊरा कशीदा बदोश — मुर्तज़ा, पर वरीदा दर आग़ोश
अक़्ल दर बन्द अहदो पैमाईश — बूदा जिब्राईल, महद जुम्बानिश
इमाम हुसैन (अ.स.) के लिये हिरन के बच्चे का आना
किताब कनज़ुल गराएब में है कि एक शख़्स ने सरवरे काएनात ( स.व.व.अ.) की ख़िदमत में एक बच्चे आहू (हिरन) हदिये में पेश किया। आपने उसे इमाम हसन (अ.स.) के हवाले कर दिया क्यों कि आप बर वक़्त हाज़िरे खिदमत हो गये थे। इमाम हुसैन (अ.स.) ने जब इमाम हसन (अ.स.) के पास हिरन का बच्चा देखा तो अपने नाना से कहने लगे, नाना जान आप मुझे भी हिरन का बच्चा दीजिए। सरवरे कायनात (स.व.व.अ.) इमाम हुसैन (अ.स.) को तसल्ली देने लगे लेकिन कमसिनी का आलम था फ़ितरते इंसानी ने इज़हारे फ़ज़ीलत के लिये करवट ली और इमाम हुसैन (अ. स.) ने ज़िद करना शुरू कर दिया और क़रीब था कि रो पड़ें,
नागाह एक हिरन को आते हुए देखा गया जिसके साथ उसका बच्चा था। वह आहू (हिरन) सीधा खिदमत में आया और उसने बा ज़बाने फ़सीह कहा, हुज़ूर मेरे दो बच्चे थे एक को सय्याद ने शिकार कर के आपकी खिदमत में पहुँचा दिया और दूसरे को मैं इस वक़्त ले कर हाज़िर हुआ हूँ। उसने कहा मैं जंगल में था कि मेरे कानों में एक आवाज़ आई जिसका मतलब यह था कि नाज़ परवरदा ए रसूल (स.व.व.अ.) बच्चा ए आहू के लिये मचला हुआ है जल्द से जल्द अपने बच्चे को रसूल (स.व.व.अ.) की खिदमत में पहुँचा । हुक्म पाते ही मैं हाज़िर हुआ हूँ और हदिया पेशे ख़िदमत है। आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने आहू को दुआ ए ख़ैर दी और बच्चे को इमाम हुसैन (अ.स.) के हवाले कर दिया। (रौज़तुल शोहदा जिल्द 1 पृष्ठ 220)
इमाम हुसैन (अ. स.) सीना ए रसूल ( स.व.व.अ.) पर
सहाबिये रसूल (स.व.व.अ.) अबू हुरैरा रावी ए हदीस का बयान है कि, मैंने अपनी आंखों से यह देखा कि रसूले करीम ( स.व.व.अ.) लेटे हुए हैं और इमाम हुसैन (अ.स.) निहायत कमसिनी के आलम में उनके सीना ए मुबारक पर हैं। उनके दोनों हाथों को पकड़े हुए फ़रमाते हैं, ऐ हुसैन तू मेरे सीने पर कूद चुनान्चे इमाम हुसैन (अ.स.) आपके सीना ए मुबारक कूदने लगे उसके बाद हुज़ूर ( स.व.व.अ.) ने इमाम हुसैन (अ.स.) का मूंह चूम कर ख़ुदा की बारगाह में अर्ज़ कि ऐ मेरे पालने वाले मैं इसे बेहद चाहता हूँ, तू भी इसे महबूब रख। एक रवायत में है कि हज़रत
इमाम हुसैन (अ.स.) आं हज़रत ( स.व.व.अ.) का लोआबे दहन और उनकी ज़बान इस तरह चूसते थे जिस तरह कोई खजूर चूसे। (अरजहुल मतालिब पृष्ठ 359, पृष्ठ 361, इस्तेआब जिल्द 1 पृष्ठ 144, असाबा जिल्द 2 पृष्ठ 11 कंजुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 104, कंजुल अल हक़ाएक़ पृष्ठ 59)
हसनैन (अ.स.) में ख़ुशनवीसी का मुक़ाबला
रसूले करीम (स.व.व.अ.) के शहज़ादे इमाम हसन (अ. स.) और इमाम हुसैन (अ.स.) ने एक तहरीर लिखी फिर दोनों आपस में मुक़ाबला करने लगे कि किसका ख़त अच्छा है। जब बाहमी फ़ैसला न हो सका तो फ़ात्मा ज़हरा ( स.व.व.अ.) की खिदमत में हाज़िर हुए। उन्होंने फ़रमाया अली (अ.स.) के पास जाओ। अली (अ. स.) ने कहा रसूल अल्लाह से फ़ैसला कराओ। रसूले करीम ने इरशाद किया, ऐ नूरे नज़र इसका फ़ैसला तो मेरी लख़्ते जिगर फ़ात्मा ही करेगी उसके पास जाओ। बच्चे दौड़े हुए फिर मां की खिदमत में हाज़िर हुए। मां ने गले लगा लिया और कहा ऐ मेरे दिल की उम्मीद तुम दोनों का ख़त बेहतरीन है और दोनों ने बहुत ख़ूब लिखा है लेकिन बच्चे न माने और यही कहते रहे मादरे गेरामी दोनों को सामने रख कर सही फ़ैसला दीजिये। मां ने कहा अच्छा बेटा, लो अपना गुलू बन्द तोड़ती हूँ उसके दाने चुनो, फ़ैसला ख़ुदा करेगा। सात दानों का गुलू बंद टूटा, ज़मीन पर दाने बिखरे, बच्चों ने हाथ बढ़ाए और तीन तीन दानों पर दोनों ने
क़ब्ज़ा कर लिया और एक दाना जो रह गया उसकी तरफ़ दोनों के हाथ बराबर से बढ़े। हुक्मे ख़ुदा वन्दे आलम हुआ जिब्राईल दानों के दो टुकड़े कर दो। एक हसन (अ.स.) ने ले लिया और एक हुसैन (अ.स.) ने उठा लिया। मां ने बढ़ कर दोनों के बोसे लिये और कहा क्यों बच्चों मैं न कहती थी कि तुम दोनों के ख़त अच्छे हैं और एक की दूसरे के ख़त पर तरजीह नहीं है। ( ख़ासेतुल मसाएब पृष्ठ 335) क़ारी अब्दुल वुदूद शम्स लखनवी खलफ़ मौलवी अब्दुल हकीम उस्ताद मौलवी शेख़ अब्दुल शकूर मुदीर अल नजम पाटा नाला लखनऊ, भारत, अपने एक क़सीदे में लिखते हैं।
दोनों भाई एक दिन, मादर से यह कहने लगे।
आप फ़रमाएं कि लिखना किसको बेहतर आ गया
। ।
सात मोती रख के फ़रमाया, कि जो ज़ाएद उठाये |
एक मोती, दो हुआ, हिस्सा बराबर हो गया ।।




