माविया इब्ने अबू सुफ़ियान का तारीख़ी र्ताअरूफ़
अमी माविया के र्ताअरूफ़ और आपके किरदार की आईना दारी के लिये अगरचे सिर्फ़ यही कहना काफ़ी है कि आप हज़रत अली (अ.स.) इमाम हसन (अ. स.) अम्मारे यासिर, मालिके अशतर और उम्मुल मोमेनीन हज़रत आयशा बिन्ते अबी बक्र, मोहम्मद इब्ने अबी बक्र नीज़ अब्दुर्रहमान इब्ने ख़ालिद इब्ने वलीद वग़ैराहुम के मुसल्लेमुल सुबूत क़ातिल हैं जैसा कि तहरीर किया जा चुका है लेकिन इससे आपकी नस्ली हालात और आपके किरदार के दिगर पहलू रौशन नहीं होते इस लिये ज़रूरत है कि कुतबे मोतबर के हवाले से चन्द चीजें निहायत मुख़्तसर लफ़्ज़ों में पेश कर दी जाऐ। बनाबरी अर्ज़ है कि
1. नसायह काफ़िया पृष्ठ 95 व पृष्ठ 110 में है कि क़बीलाए कुरैश की इब्तेदा, क़सी इब्ने क़लाब से हुई जो औलादे क़अब इब्ने लवी से थे क़सी के चार बेटों में से एक का नाम अब्दुल मनाफ़ था । हाशिम और अब्दुल शम्स अब्दुल मनाफ़ के बेटे थे। हाशिम की ज़ुर्रियत से मोहम्मद व आले मोहम्मद ( स.व.व.अ.) में जो हाशमी कहलाते हैं और अब्दुल शम्स की तरफ़ मन्सूब हैं जो पसता क़द, चुन्धा, करंजा, बदशक्ल था जिसके चेहरे से शरारत व नहूसत नुमाया थी उमिया के मानी छोटी लौंडी के हैं। हस्सान बिन साबित ने इसके औलाद व अब्दुल शम्स होने से इन्कार किया है। देखो दीवाने हस्सान पृष्ठ 91,
2. अलहुर्रियत फील इस्लाम मुसन्नेफ़ा अबुल कलाम अज़ादा के पृष्ठ 26 में है कि खिलाफ़ते राशेदा के बाद बनू उमय्या का दौरे फ़ितना व बिदआत से शुरू होता है जिन्होंने निज़ामे हुकूमते इस्लामी की बुनियादं मुताज़लज़िल कर दीं।
3. ततहीर उल जिनान पृष्ठ 142 नसलहे काफ़िया पृष्ठ 106 में है कि आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने इरशाद फ़रमाया है कि हमारा सब से बड़ा दुशमन क़बीलाए बनी उमय्या है।
4. नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 148 में है कि क़बाएले अरब में सब से शरीर बनी उमय्या हैं।
5. तहरीरूल जेनान पृष्ठ 148 में है कि हर शै के लिये एक आफ़त है और दीने इस्लाम की आफ़त बनी उमय्या हैं।
6. तारीख़ उल ख़ुल्फ़ा पृष्ठ 8 और तफ़सीरे नैशा पुरी में है कि आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने ख़्वाब में देखा कि मिम्बर पर लंगूर कूद रहे हैं जिससे आपको बेइन्तेहां सदमा हुआ जिससे तसल्ली के लिये सूरए क़द्र नाज़िल हुआ जिसमें फ़रमाया गया है कि शबे क़द्र मुद्दते हुकूमत बनी उमय्या से बेहतर है।
7. रौज़तुल मनाज़िर बर हाशिया कामिल जिल्द पृष्ठ 85 में है कि शाजरा मलउना फ़िल क़ुरान से बुराद बनी उमय्या हैं।
8. तारीख़े आसम कूफ़ी पृष्ठ 242 में है कि अहदे जाहितयत में बनी उमय्या कि ग़िज़ा टिड्डी और मुरदार थी।
9. फ़तेहुलबारी इब्ने हजर असकलानी जिल्द 5 पृष्ठ 65 में है कि ज़माना जाहिलयत में फ़ाहेशा औरतें अपने मकानों पर पहचान के लिये झन्डे लगाए रहती थीं।
10. नसायहे काफ़िया पृष्ठ 110, समरतुल अवराक़ पृष्ठ 108, अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 188, इब्ने शहना जिल्द 2 पृष्ठ 134, एयर विंग पृष्ठ 48, तज़किराए ख़वास अल उम्मता पृष्ठ 117, तारीख़े आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 वग़ैरा में है कि मशहूर फ़ाहेशा औरतें जिनके मकानों पर झन्डे थे, वह चार थीं, 1. ज़रक़ा, 2. नाबेग़ा, उमरो आस की मां, 3. हमामा, अमीरे माविया की दादी, 4. हिन्दा, अमीरे माविया की मां और हिन्दा के मुताअल्लिक़ आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 में है कि यह तमाम ऐबों की ख़ज़ीना दार थीं।
11. तारीख़े खुल्फ़ा पृष्ठ 218 में है कि यह शायरा और बड़ी संग दिल थी । इसके एक शेर अहवाले मामून रशीद में दर्ज है जिसका तरजुमा यह है। हम ख़ूबसूरती में सितारए सुबह सादिक़ की बेटियां है। नर्म बिस्तरों पर हम किसी के साथ यूं मिलते हैं जैसे मुजामेअत करने वाला मस्त चकोर चांद के गिर्द घूमता है। ( मुतखेबुल लुगात व सराह )
13. नसाए पृष्ठ 83 में है कि हस्सान इब्ने साबित ने हिन्दा की ज़िना कारी अपने अशआर में बयान की है और आं हज़रत को सुनाया हज़रत ख़ामोश रहे। अशआर मुलाहेजा हो दीवाने हस्सान पृष्ठ 40 से 60 में।
14. इब्ने क़तीबा ने लिखा है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने उक़बा को मक़ामे सफ़ोरिया (शाम) का यहूदी फ़रमाया है।
15. निसाय काफ़िया पृष्ठ 110 में है कि उमय्या ने सफ़ोरिया की एक यहूदन लड़की से ज़िना किया था जिससे ज़कवान नामी लड़का पैदा हुआ था जिसकी कुन्नयत अबू उमरो मुक़र्रर की गई थी । यही अबू उमरो अक़बा का दादा है।
16. रौज़तुल अनफ़ असाबा व कामिल और हलबी में ज़कवान के गुलामे उमय्या लिखा है।
17. आग़ाफ़ी अबुल फ़रह असफ़हानी 488 तरजुमा मुसाफ़िर में है कि उमय्या के बाद ज़कवान ने अपनी मां से निकाह कर लिया था ।
18. अगाफ़ी अबुल फ़राह असफ़हानी निसाए काफ़िया हाशिया पृष्ठ 84 तज़किर सिब्ते अब्ने जौज़ी में है कि इसी अबू उमर का बेटा मुसाफ़िर था जो सख़ावत और जमाली शेर गोई में मशहूर था। हिन्दा का उस से मोअशेक़ा हो गया और उससे हामेला हो गई जब हमल ज़ाहिर हो गया तो उसने मुसाफ़िर से कहा कि तू किसी तरफ़ चला जा। चुनान्चे वह हीरा को चला गया। उसके बाद हिन्दा अबू सुफ़ियान के तसर्रुफ़ में आ गई। जब मुसाफ़िर को पता लगा तो उसने फ़ेराक़ में जान दे दी। मुसाफ़िर के चले जाने के बाद हिन्दा मक़ामे अजयाद की तरफ़ चली गई और
वहीं बच्चा जना|
19. सिब्ते इब्ने जोज़ी ने तज़किराए ख़वास अल उम्मता में लिखा है कि हज़रत ” आयशा ने उम्मे हबीबा ख़्वाहरे माविया को कहा, “ क़ातिल अल्लाह अब्नतुल ” राहता ख़ुदा लानत करे दुख़्तरे जने ज़िना कार पर और इमाम हसन (अ.स.) ने माविया को कहा, “❝ ” वक़द अलमत अल फ़राश्त लज़ी दलदत इलैहे मैं उस फ़र्श को जानता हूँ जिस पर तू पैदा हुआ है। उसके बाद इसकी तौज़ीह इब्ने जोज़ी ने यह की है 66 काला अल समीई वल हशाम इब्ने मोहम्मद अल कल्बी फ़ी किताब अल मुसम्मा बिल मसालिब वक़फ़त अला मानी क़ौल अल हसन माविया क़द अलिमतो अल फ़राशत लज़ी वलदत इलहै अन माविया कानाया अल अनाह मिन्नी अरबता मिन कुरैश ग़मारता इब्ने वलीद व मुसाफ़िर इब्ने अबी उमरो व अबी सुफ़ियान वल अब्बास व हूला कानू अन्दमा अबी सुफ़ियान व काना कुल यत्तहुम बेहिन्द ” यानी असमई और हश्शाम ने कहा है कि इमाम हसन (अ.स.) के क़ौल के यह मानी हैं कि, माविया, अबु सुफ़ियान, उमरो अब्बास और मुसाफ़िर चार आदमियों की तरफ़ मन्सूब है। ” अमा मुसाफ़िर बिन अबी उमरो फ़क़ाला अल कलबी आउम्मतुन नास अली अन माविया मिनहा ” कल्बी ने कहा ने कि जमहूर की राय थी कि माविया मुसाफ़िर इब्ने उमरो से है क्यों कि वही सब से ज़्यादा हिन्दा से मोहब्बत करता था। मसालिब इबने समआन में है कि पदरे हिन्दा ने इसका निकाह “ लोअदा ” माले कसीर अबू सुफ़ियान से किया ।
फ़ौज़अत माविया बाद सलासता अशहर निकाह के तीन माह बाद बत्ने हिन्दा से माविया पैदा हुआ। इसी लिये ज़महशरी ने रबीउल अबरार में माविया को चार यारी लिखा है। बरवायत हिन्दा का ताअल्लुक़ एक ख़ूब सूरत डोम से भी था जिसका नाम ” सब्बाह ” था। इसी से माविया का भाई अतबा इब्ने अबू सुफ़ियान पैदा ८८ ” हुआ। जैसा कि निसाए काफ़िया पृष्ठ 110 में है काला अल शआबी फ़क़द असा रसूल अल्लाह अबी हिन्दा यौमे फ़तेह मक्का बशी मन हाज़ा इमामे शाबी का बयान है कि हिन्दा की ज़िना कारी की तरफ़ आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने फ़तेह मक्का के दिन उस मौके पर इशारा फ़रमाया था जब वह बैयत करने आई थी। हिन्दा ने कहा कि मैं किस चीज़ पर बैयत करूं? हज़रत ने फ़रमाया कि तू उस चीज़ पर बैयत कर कि आज से ज़िना नहीं करेगी। उसने कहा कि हज़रत कहीं हुर्रा ” आज़ाद औरतें जिना करती हैं। ” ” मन्ज़र रसूल अल्लाह इला उमरे तबस्सुम यह सुन कर आपने हज़रत उमर की तरफ़ देख कर तबस्सुम फ़रमाया, मुलाहेज़ा हो। (माविया दायरतुल इस्लाह पृष्ठ 8)
अल्लामा मजलिसी हयातुल कुलूब जिल्द 2 पृष्ठ 437 पर लिखते हैं कि हज़रत उमर ज़मानए जाहिलयत के अमली शाहिद थे। इसी लिये रसूल अल्लाह (स.व.व.अ.) उनकी तरफ़ देख कर मुस्कुराए थे।
“
20. तमाम तवारीख़े इस्लाम में है कि इसी हिन्दा ने हज़रते हम्ज़ा को अपने एक आशिक़ हब्शी नामी से शहीद करा के उनका जिगर चबाना चाहा था और कान, नाक वग़ैरा काट कर अपने गले का हार बनाया था।
21. माविया का बाप जो अबू सुफ़ियान कहा जाता है वह बरवायत हयातुल ” ” हैवान तेली था।
22. आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 में है कि यह शराबी था।
23. हयातुल कुलूब और नहजुल बलाग़ाह जिल्द 2 पृष्ठ 131 में है कि अबू सुफ़ियान ने ब जब्रो इक़राह इस्लाम कुबूल किया था।
24. माविया दायरतुल इस्लाह पृष्ठ 14 में है कि माविया 17 या 22 साल क़ब्ले हिजरत हिन्दा के शिकम में पैदा हुआ।
25. नहजुल बलाग़ह जिल्द 2 पृष्ठ 19 में है कि हज़रत अली (अ.स.) ने माविया को नसीक़ फ़रमाया है जिसके मानी मुत्तिहमुन नसब है ।
26 जनातुल खुलूद में है कि माविया का क़द लम्बा और आंखें सब्ज़ थीं। 27 तारीख़ुल खुलफ़ा पृष्ठ 132 में है कि इसकी सूरत डरावनी है।
28. तारीख़े कामिल जिल्द 3 पृष्ठ 166 और निसाए काफ़िया पृष्ठ 21 में है कि मोहम्मद इब्ने अबी बक्र ने माविया को लईन इब्ने लईन कहा है।
29. उसने ग़लत तौर पर मशहूर किया कि अली (अ.स.) क़ातिले उस्मान हैं। (आसम कूफ़ी पृष्ठ 169)
30. निसाए काफ़िया पृष्ठ 53 व हुलयातुल औलिया पृष्ठ 144 में है कि उसने ग़लत शोहरत दी कि माज़अल्लाह अली (अ.स.) नमाज़ नहीं पढ़ते।
31. निसाए काफ़िया पृष्ठ 53 में है कि माविया के हुक्म से उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास के दो कमसिन बच्चे मां की गोद में ज़िब्ह किये गये।
32. आसम कूफ़ी पृष्ठ 307 में है कि माविया ने यमन और हिजाज़ में 30,000 ( तीस हज़ार) मुहिब्बाने अली (अ.स.) को क़त्ल किया।
33. निसाए काफ़िया पृष्ठ 61 में है कि माविया ने मालिके अशतर को ज़हर से शहीद करा दिया।
34. आसम कूफ़ी पृष्ठ 338 में है कि माविया ने मोहम्मद इब्ने अबी बक्र को गधे की खाल में सिलवा कर जलवा दिया।
35. इसी किताब में है कि जब हज़रत आयशा को इसकी ख़बर मिली तो बहुत रोईं और तहयात बद दुआ देती रहीं ।
36. निसाई काफ़िया पृष्ठ 62 में है कि हज़रत अली (अ.स.) को इसकी इत्तेला मिली तो बक़ा बक़आ शदीदन बहुत रोय।
37. निसाई काफ़िया पृष्ठ 58 में सीरते मोहम्मदिया पृष्ठ 577 में है कि हजर इब्ने अदी सहाब रसूले करीम ( स.व.व.अ.) मोहब्बते अली (अ.स.) में क़त्ल किये गये और अब्दुर्रहमान इब्ने हस्सान ज़िन्दा दफ़्न किये गये ।
38. निसाई काफ़िया पृष्ठ 43 में है कि उमर बिन हमक़ भी हुक्मे माविया से शहीद किये गये।
39. तबरी और निसाई काफ़िया पृष्ठ 52 में है कि माविया के एक आमिल समरता ने आठ हज़ार आदमियों को शहीद किया।
40. तारीख़े आसम पृष्ठ 334 व निसाए काफ़िया पृष्ठ 70 में है कि बसरे और कूफ़े में एक एक रात को पांच पांच सौ (500) मुहिब्बाने अली (अ.स.) क़त्ल किये गये।
41. तारीख़े कामिल इब्ने असीर जिल्द 3 पृष्ठ 133 में है कि माविया नमाज़ के हर कुनूत में हज़रत अली (अ.स.), इब्ने अब्बास, इमाम हसन (अ.स.), इमाम हुसैन (अ.स.) और मालिके अशतर पर लानत करता था।
42. निसाए काफ़िया पृष्ठ 170 में है कि माविया मोअल्लेफ़ुल कुलूब में था उसका कातिबे वही होना ग़लत है।
43. तारीख़े आसम पृष्ठ 46 में है कि माविया ने शोहदाय ओहद की क़ब्रों पर नहर जारी कराई और लाशों को दूसरी जगह दफ़्न करा दिया। लाशों के निकालने में एक बेलचा हज़रते हम्ज़ा के पैर में लग गया जिससे ख़ूने ताज़ा जारी हो गया । 44. मोलवी अमीर अली अपनी तारीखे इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) के तरके खिलाफ़त के बाद माविया हक़ीकत में ही बादशाहे इस्लाम बन गया। इस तरफ़ ज़माने के अजीबो ग़रीब इन्केलाब से हज़रते मोहम्मद मुस्तुफ़ा (स.व.व.अ.) के दुश्मानें ने उनकी औलाद का मौरूसी हक़ ग़ज़्ब कर लिया और बत परस्ती के हामी उन जनाब के मज़हब और सलतन्त के सरदार और पेशवा बन गये। दारूल खिलाफ़ा जो हज़रत अली (अ.स.) ने कूफ़े में मुक़र्रर किया था अब दमिश्क़ में मुन्तक़िल हो गया जहां माविया ईरानी और यूनानी शानो शौकत के साथ रहा करता था। वह अक्सर अपने दुश्मनों या मुख़ालिफ़ों का ज़हर या तलवार से काम तमाम कर देता था। रिश्तेदारी या खिदमते इस्लाम भी उसके सफ़्फ़ाक हाथों से बचा न सकती थी और फिर मुवरिख़ ओबसरन ने नक़ल किया है कि बनी उमय्या का अव्वल ख़लीफ़ा सियाना, मुताफ़न्नी और सफ़्फ़ाक था। अपना मतलब निकालने के लिये किसी जुर्म के इरतेक़ाब से न डरता था। जबर दस्त ग़नीम को हलाक करा देना उसके बायं हाथ का खेल था। पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे इमाम हसन (अ. स.) और मालिके अशतर को ज़हर से हालाक करा दिया। इसी तरह अब्दुल रहमान इब्ने ख़ालिद इब्ने वलीद को 45 हिजरी में ज़हर से तमाम करा दिया। (कामिल इब्ने असीर, तबरी, अबुल फ़िदा, रौज़ातुल सफ़ा, हबीब अल सैर) और उम्मुल मोमेनीन जनाबे आयशा को इस तरह ज़िन्दा गढ़े में दफ़्न कर दिया कि 56 हिजरी में आ कर एक मकान में गढ़ा खुदवा कर उसको ख़स पोश कर के आबनूस की कुर्सी बिछवाई और आयशा को दावत में बुलवा कर उस पर बिठाया, आयशा बैठते ही उस गढ़े में जा पड़ीं। माविया ने इस गढ़े को पत्थर और चूने से बंद करा दिया और मक्के की तरफ़ कूच कर गये । (हबीब उस सैर जिल्द 1 पृष्ठ 85, ओकली तारीख़े
इस्लाम रबीउल अबरार, अवाएल सियूती, कामिल अल सफ़ीना, हदीक़ा हकीम सनाई, मुनाक मुर्तज़वी)
45. 51 ई0 में हजर इब्ने अदी को जो निहायत मुत्तक़ी व परहेज़गार और इबादत गुज़ार थे और उनके छ हमराहियों को और उमर इब्ने हमक़ सहाबी को सिर्फ़ इस जुर्म में कि वह दोस्त दाराने अली (अ.स.) में से थे और जब माविया का गर्वनर कूफ़े के मिम्बर पर अली (अ.स.) पर लानत करता तो यह रोकते और अली (अ. स.) की हिमायत करते थे, क़त्ल करा दिया।
46. खानदाने बनी उमय्या को क़ुरआन में शजराए मलऊना फ़रमाया है। 47. उनको, अली (अ.स.) उनकी औलाद और उनके शियों से सख़्त दुश्मनी थी चुनान्चे माविया हज़रत अली (अ.स.) पर तबर्रा करता था। उसने 41 हिजरी में हुक्म दिया कि ममालिके महरूसा की मस्जिदों मे ख़तीब मिम्बर पर बैठ कर हज़रत अली (अ.स.) पर तबर्रा किया करें और यह रस्म 99 हिजरी तक जारी रही जब कि उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने ख़ुतबे में से इस तबर्रा को निकलवा कर आयए : jha Vig Jually الله ان يعمر
और ख़ुलफ़ाए अरबिया के नाम दाखिल कराये। मुलाहेज़ा हो, सही मुस्लिम, तिर्मिज़ी, मिनहाजुल सुन्नता, अक़्दुल फ़रीद, अबुल फ़िदा, कामिल इब्ने असीर, तबरी, तारीख़ अल खुलफ़ा, फ़तावाए अज़ीज़ी, तफ़रीह उल अहबाब, ख़साएस निसाई।
इमाम ग़ज़ाली (र.) लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) पर शितम व तबर्रा एक हज़ार माह तक जारी रहा। ( इसरारूल आलेमीन पृष्ठ 10 तबआ बम्बई) अल निसाएल काफ़िया के पृष्ठ 9 में है कि हज़रत अली (अ.स.) पर सत्तर हज़ार मिम्बरों पर सबबो शितम की जाती थी । माविया ने अबू हुरैरा, उमरे आस, मुग़ीरा इब्ने शेबा और उरवा इब्ने जुबैर को इस अम्र पर मामूर किया था कि अली (अ.स.) की मनक़सत में झूठी हदीसे तय्यार करें।
48. इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पृष्ठ 9 पर है, शियाने अली (अ.स.) के माल व मता ज़ब्त कर लिये गये वो क़त्ल किये गये और इस क़दर उन पर जुल्म किये गये कि कोई अपने को शिया न कह सकता था।
49. इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पृष्ठ 9, निसाए काफ़िया पृष्ठ 70, किताब अल फ़रख़ी में है कि माविया उमूरे दुनिया में इस क़द्र मुनहमिक रहता और अपनी हिम्मत तदबीर उमूरे दुनिया में इतनी मसरूफ़ करता कि और सब बातें उसके सामने हेच समझता था।
50. दिन में पांच मरतबा खाता था और आख़री दफ़ा सब से ज़्यादा खा कर कहता था ऐ गुलाम उठा ले खाते खाते थक गया मगर सेर नहीं हुआ। एक बछड़ा भून कर लाये वह एक ही मैदे की रोटी के साथ खा गया और साथ में चार मोटे मोटे गुर्दे। एक गर्म भेड़ का बच्चा और एक ठन्डे भेड़ का बच्चा और खजूरों से
अलग मुंह मीठा किया। इसके आगे सौ (100) रतल बाक़लानी रूतब रखा गया वह सब खा गया।
51. इमाम निसाई फ़रमाते हैं कि रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) ने उनके हक़ में बद दुआ की थी ला अशबा उल्लाह बतना ख़ुदा इसका पेट न भरे
52. माविया अपना मतलब निकालने में खूंरेज़ी के मुताअल्लिक़ परवाह न करता
53. ओकली लिखता है कि वह ज़क्र बर्क कपड़े पहनता और शानो शौकत से बसर करता और हमेशा शराब पीता था।
54. हसन बसरी कहते हैं कि माविया की चार बातें ऐसी हैं कि उनमें से एक ही उसकी हलाकत के लिये काफ़ी है। 1. अव्वल मुस्तहक़ीने खिलाफ़त को महरूम करके जबर दस्ती खिलाफ़त पर क़ब्ज़ा करना। 2, दूसरे यज़ीद को वली अहद बनाना जो बद अतवार, शराबी, हरीर पहनने वाला, गाना बजाना सुनने का शौकीन था। 3. तीसरे अबू सुफ़ियान के हरामी बेटे ज़ियाद को शरीयत के खिलाफ़ अपना भाई बनाना। 4. चौथे हजर और उनके असहाब पर ज़ुल्म करना और उनको क़त्ल कराना।
55. इमाम शाफ़ेई फ़माते हैं कि चार सहाबी ऐसे हैं जिनकी गवाही क़ाबिले क़ुबूल नहीं। माविया, उमरो आस, मुग़िरा, ज़ियाद । हकीक़त यह है कि इस्लाम की इन्हीं चार फ़ितना ग़रों ने कमर तोड़ी है।
56. मसूदी लिखता है कि अहले शाम माविया के फ़रमा बरदार और इताअत गुज़ार ऐसे थे कि जंगे सिफ़्फ़ीन को जाते हुए माविया ने जुमे की नमाज़ बुध को पढ़ा दी और लोगों ने पढ़ ली।
57. फिर मसूदी लिखता है कि बनी उमय्या के अहद में आम लोगों के इलाक़ में यह बात दाखिल हो गई थी कि सय्यद को सरदार न बनायें। बनी उमय्या बग़ैर आलिम होने के इल्म की बात कहते थे बिला तमीज़ फ़ाज़ील व मफ़ज़ूल और फ़ायदा नुक़सान के जो उनके आगे हो जाय उसकी मुताबेक़त कर लेते थे और हक़ो बातिल में तमीज़ न करते थे।
58. माविया 60 हिजरी में अलील हुआ और उसने यज़ीद से कहा कि जो कुछ मांगना हो मांग ले। उसने कहा हुकूमत चाहता हूँ ताकि उसके ज़रिये से जहन्नुम से नजात हासिल कर लूँ। उसने यज़ीद का मुंह चूम लिया और कहा मुझे मंजूर है | ( तारीखे कामिल)
चुनान्चे यह यज़ीद जैसे दुश्मने इस्लाम को ख़लीफ़ा बना कर रजब 60 हिजरी में राहीए दार उल बवार हो गया।
( तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 33 )
59. यह मुसल्लेमाते तारीख़ी में से है कि माविया के हक़ में कोई एक हदीस भी वारिद न हुई और उसके बिदआत बेशुमार हैं। ततहिरूल जिनान, मौज़ूआते मुल्ला अली क़ारी पृष्ठ 48 व फ़तेहुल बारी में है कि माविया के हक़ में कोई भी ख़बर सही वारिद नहीं यही वजह है कि सही बुख़ारी में उसके लिये कोई बाब नहीं किया गया।
60. मफ़रूदात इमाम राग़िब असफ़हानी में है कि हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया था कि माविया के गले में जब तब ईसाईयों की सलीब न पड़ेगी उसे मौत न आयेगी। चुनान्चे आख़री वक़्त नसरानी किरस्टान ने तावीज़े शिफ़ा के नाम से उसके गले में सलीब डाल दी। उसके बाद उसका इन्तेक़ाल हो गया । यक़ीन है कि माविया नसरानी व ईसाई महशूर होगा। क्यों कि यह अली (अ.स.) का दुश्मन और 66 उनको अज़ीयत देने वाला था, और हदीस में है कि मन अज़ी अलीयन बाएस यौमुल क़यामा यहूदिया ” जो अली (अ.स.) को अज़ीयत दे गा वह यहूदी या नसरानी मबऊस व महशूर होगा । निसाए काफ़िया, तारीख़ुल खुलफ़ा पृष्ठ 135 में है कि माविया ने चालीस साल हुकूमत की। 77 साल की उम्र पाई और 60 हिजरी इन्तेक़ाल किया और दमिश्क़ (शाम) में दफ़्न किया गया । (1)
मैं कहता हूँ कि माविया के जुमला अमल व किरदार के नताएज एक तरफ़ और उसका हज़रत अली (अ.स.) और इमाम हसन (अ.स.) का क़त्ल करना एक तरफ़ । यक़ीन करना चाहिये कि माविया की बख्शिश क़तअन दुश्वार नामुम्किन और मोहाल है।

