चौदह सितारे पार्ट 77

अबु अब्दुल्लाह हज़रत इमाम हुसैन (अ . स . )शहीदे कर्बला

हुसैन तूने तहे तेग़, वह किया सजदा ।

कि फ़ख़ करती है ताअत भी इस इताअत पर ।।

न अब्दियत को फ़क़त, इफ़्तेख़ार है मौला ।

उलूहियत भी है नाज़ां, तेरी इबादत पर ।।

साबिर थरयानी (कराची)

यूँही बस तीसरी शाबान को हुरमत चौगनी हो गई।

मुझे बारह पिला दे, पांचवां साक़ी हुआ पैदा ।।

न क्यों कर, ऐसे बेटे हों नाज़ां साक़ीए कौसर ।

निहां हैं जिसमें नौ कौसर यह वह इस्मत का है दरिया ||

हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) अबुल आइम्मा अमीरल मोमेनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) व सय्यदुन्निसां हज़रत फ़ात्मातुज़ ज़हरा (अ.स.) के फ़रज़न्द और पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा ( स.व.व.अ.) व जनाबे ख़दीजातुल कुबरा के नवासे और शहीदे मज़लूम इमाम हसन (अ.स.) के कुव्वते बाज़ू थे। आपको अबुल आइम्मातुस सानी कहा जाता है क्यों कि आप ही की नस्ल से नौ इमाम मुतावल्लिद हुए। आप भी अपने पदरे बुजुर्गवार और बरादरे आली वक़ार की तरह मासूम मन्सूस अफ़ज़ले ज़माना और आलिमे इल्मे लदुन्नी थे।

आपकी विलादत

हज़रत इमाम हसन (अ.स.) की विलादत के पचास रातें गुज़री थीं कि हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का नुक़ता ए वजूद बतने मादर में मुस्तक़र हुआ था। हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि विलादते हसन (अ.स.) और इस्तेक़रारे इमाम हुसैन (अ. स.) में तोहर का फ़ासला था। (असाबा नज़लुल अबरार वाक़ेदी) अभी आपकी विलादत न होने पाई थी कि बा रवायते उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते हारिस ने ख़्वाब में देखा कि रसूले करीम ( स.व.व.अ.) के जिस्म का एक टुकड़ा काट कर मेरी आग़ोश में रखा गया है। इस ख़्वाब से वह बहुत घबराई और दौड़ी हुई रसूले करीम (स.व.व.अ.) की खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ परदाज़ हुई कि हुज़ूर आज एक बहुत बुरा ख़्वाब देखा है। हज़रत ने ख़्वाब सुन कर मुस्कुराते हुए फ़रमाया कि यह ख़्वाब तो निहायत ही उम्दा है। ऐ उम्मुल फ़ज़ल इसकी ताबीर यह है कि मेरी बेटी फ़ात्मा के बतन से अन्क़रीब एक बच्चा पैदा होगा जो तुम्हारी आगोश में परवरिश पाऐगा। आपके इरशाद फ़रमाने से थोड़ा ही अरसा गुज़रा था कि खुसूसी मुद्दते हमल सिर्फ़ 6 माह गुज़ार कर नूरे नज़र रसूल (स.व.व.अ.) इमाम हुसैन (अ.स.) बातारीख़ 3 शाबान सन् 4 हिजरी बमुक़ाम मदीना ए मुनव्वरा बतने मादर से आग़ोशे मादर में आ गये। (शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 13 व अनवारे हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 43 बा हवालाए साफ़ी पृष्ठ 298, व जामए अब्बासी पृष्ठ 59 व बेहारूल अनवार व मिसबाहे तूसी व मक़तल इब्ने नम्मा पृष्ठ 2) वग़ैरा, उम्मुल फ़ज़ल का बयान है कि मैं हसबुल हुक्म इनकी खिदमत करती रही, एक दिन मैं बच्चे को ले कर आं हज़रत (स.व.व.अ.) की खिदमत में हाज़िर हुई। आपने आगोशे मोहब्बत में ले कर प्यार किया और आप रोने लगे मैंने सबब दरियाफ़्त किया तो फ़रमाया कि अभी अभी जिब्राईल मेरे पास आए थे वह बतला गए हैं कि यह बच्चा उम्मत के हाथों निहायत ज़ुल्मों सितम के साथ शहीद होगा और ऐ उम्मुल फ़ज़ल वह मुझे इसकी क़त्लगाह की सुखर् मिट्टी भी दे गये हैं। (मिशकात जिल्द 8 पृष्ठ 140 प्रकाशित लाहौर और मसनद इमाम रज़ा पृष्ठ 38 में है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने फ़रमाया देखो यह वाकेया फ़ात्मा (अ. स.) से कोई न बतलाए वरना वह सख़्त परेशान होंगी।

मुल्ला जामी लिखते हैं कि उम्मे सलमा ने बयान किया कि एक दिन रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) मेरे घर इस हाल में तशरीफ़ लाए कि आप के सरे मुबारक के बाल बिखरे हुए थे और चहरे पर गर्द पड़ी हुई थी। मैंने इस परेशानी को देख कर पूछा कि क्या बात है? फ़रमाया मुझे अभी अभी जिब्राईल ईराक़ के मुक़ामे करबला ले गये थे वहां मैंने जाय क़त्ले हुसैन (अ.स.) देखी है और यह मिट्टी लाया हूँ। ऐ उम्मे सलमा (अ.स.) इसे अपने पास महफ़ूज़ रखो, जब यह ख़ून आलूद हो जाय तो समझना कि मेरा हुसैन शहीद हो गया । (शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 174 )



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