चौदह सितारे पार्ट 70

अहदे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) में इमाम हसन (अ.स.) की इस्लामी खिदमात

तवारीख़ में है कि जब हज़रत अली (अ.स.) को पच्चीस बरस की ख़ाना नशीनी के बाद मुसलमानों ने ख़लीफ़ाए ज़ाहिरी की हैसियत से तसलीम किया और उसके बाद जमल, सिफ़्फ़ीन और नहरवान की लड़ाईयां हुईं तो हर एक जेहाद में इमाम हसन (अ.स.) अपने वालिदे बुज़ुर्गवार के साथ साथ ही नहीं रहे बल्कि बाज़ मौक़ों पर जंग में आपने कारहाय नुमायां भी किये। सैरुल सहाबा और रौज़ातुल पृष्ठ में है कि जंगे सिफ़्फ़ीन के सिलसिले में जब अबू मूसा अशअरी की रेशा दवानियां उरयां हो चुकीं तो अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ने इमाम हसन (अ.स.) और अम्मारे यासीर को कूफ़ा रवाना फ़रमाया। आपने जामए कूफ़ा में अबू मूसा के अफ़सून को अपनी तक़रीर के तिरयाक़ से बे असर बना दिया और लोगों को हज़रत अली (अ. स.) के साथ जाने पर आमादा किया। अख़बार अल तवाल की रवायत की बिना पर नौ हज़ार छः सौ पचास ( 9650) का लशकर तय्यार हो गया।

मुर्रेख़ीन का बयान है कि जंगे जमल के बाद जब आयशा मदीने जाने पर आमादा न हुईं तो हज़रत अली (अ.स.) ने इमामे हसन (अ.स.) को भेजा और उन्होंने समझा बुझा कर मदीने रवाना किया चुनान्चे वह इस सई मम्दूह में कामयाब हो गये। बाज़ तारीखों में है कि इमाम हसन (अ. स.) जंगे जमल व सिफ़्फ़ीन में अलमदारे लशकर थे और आपने मोहायदए तहकीम पर दस्तख़त फ़रमाये थे और जंगे जमल व सिफ़्फ़ीन और नहरवान में भी सई बलीग़ की थी। फ़ौजी कामों के अलावा आपके सिपुर्द सरकारी मेहमान ख़ाने का इन्तेज़ाम और शाही मेहमानों की मदारात का काम भी था। आप मुक़दमात के फ़ैसले भी करते थे और बैतुल माल की निगरानी भी फ़रमाते थे।

हज़रत अली (अ.स.) की शहादत और इमाम हसन (अ.स.) की बैयत

मर्रेख़ीन का बयान है कि इमाम हसन (अ.स.) के वालिदे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (अ.स.) के सरे मुबारक पर बा मक़ामे मस्जिदे कूफ़ा 19 रमज़ान, 40 हिजरी बा वक़्ते सुबह अमीरे माविया की साज़िश से अब्दुल रहमान इब्ने मुल्जिम मुरादी ने ज़हर में बुझी हुई तलवार लगाई। जिसके सदमे से आपने 21 रमज़ानुल मुबारक 40 हिजरी बा वक़्ते सुबह शहादत पाई। इस वक़्त इमाम हसन (अ. स.) की उम्र 38
साल 6 यौम की थी। हज़रत अली (अ.स.) की तदफ़ीन व तकफ़ीन के बाद अब्दुल्लाह अब्ने अब्बास की तहरीक से बक़ौल इब्ने असीर क़ैस इब्ने सआद इबादा अन्सारी ने इमामे हसन (अ.स.) की बैयत की और उनके बाद तमाम हाज़ेरीन ने बैयत कर ली जिनकी तादाद 40,000 ( चालीस हज़ार) थी। यह वाकेया 21 रमज़ान 40 हिजरी यौमे जुमा का है। किफ़ाएतुल अस्र अल्लामा मजलिसी में है कि इस वक़्त आपने एक फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा पढ़ा। जिसमें आपने हम्दो सना के बाद 12 इमामों की खिलाफ़त का ज़िक्र फ़रमाया और इसकी वजाहत की कि आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने फ़रमाया है कि हम में हर एक या तलवार के घाट उतरेगा या ज़हरे दग़ा से शहीद होगा। इसके बाद आपने ईराक़, ईरान, खुरासान, हिजाज़ और यमन व बसरा वग़ैरा के अम्माल की तरफ़ तवज्जो की और अब्दुल्ला इब्ने अब्बास को बसरा का हाकिम मुक़र्रर फ़रमाया । माविया को ज्योही ख़बर पहुँची तो बसरे के हाकिम इब्ने अब्बास मुक़र्रर कर दिये गये हैं तो उसने दो जासूस रवाना किये, एक क़बीलए हमीर, कूफ़े की तरफ़ और दूसरा क़बीलए क़ीन का बसरे की तरफ़ । इसका मक़सद यह था कि लोग इमाम हसन (अ.स.) से मुनहरिफ़ हो कर मेरी तरफ़ आ जायें लेकिन वह दोनों जासूस गिरफ़्तार कर लिये गये और उन्हें बाद में क़त्ल कर दिया गया।

हक़ीक़त है कि जब ऐनाने हुकुमत इमाम हसन (अ.स.) के हाथों में आई तो ज़माना बड़ा पुर आशोब था। हज़रत अली (अ.स.) जिनकी शुजाअत की धाक सारे
अरब में बैठी हुई थी दुनियां से कूच कर चुके थे। उनकी दफ़ातन शहादत ने सोये हुये फ़ितनों को बेदार कर दिया था और सारी ममलकत में साज़िशों की खिचड़ी पक रही थी। ख़ुद कूफ़े में अशअस इब्ने क़ैस, उमर बिने हरीस, शीस इब्ने रबई वग़ैरा खुल्लम खुल्ला बर सरे अनाद और आमादए फ़साद नज़र आते थे। माविया नेजा बजा जासूस मुक़र्रर कर दिये थे जो मुसलमानों में फूट डलवाते और हज़रत के लश्कर में इख़्तेलाफ़ो इफ़तेराक़ का बीज बोते थे। उसने कूफ़े के बड़े बड़े सरदारों से साज़िशी मुलाक़ातें कीं और बड़ी बड़ी रिश्वतें दे कर उन्हें तोड़ लिया। बेहारूल अनवार में एल्लश्शराए के हवाले से मन्कूल है कि माविया ने उमर बिने हरीस, अशअस बिने क़ैस, हजर इब्नुल हजर शीश इब्ने रबई के पास अलाहेदा अलाहेदा यह पैग़ाम भेजा कि जिस तरह हो सके हसन इब्ने अली को क़त्ल करा दो, जो मनचला यह काम कर गुज़रेगा उसे दो लाख दिरहम नगद इनाम दूँगा और फ़ौज की सरदारी अता करुगां और अपनी किसी लड़की से शादी कर दूंगा। यह इनाम हासिल करने के लिये लोग शबो रोज़ मौके की तलाश में रहने लगे। हज़रत को इत्तेला मिली तो आपने कपड़ों के नीचे जिरह पहनना शुरू कर दी। यहां तक की नमाज़े जमाअत पढ़ाने के लिये बाहर निकलते तो ज़िरह पहन कर निकलते थे। माविया ने एक तरफ़ तो ख़ुफ़िया तोड़ जोड़ किये, दूसरी तरफ़ एक बड़ा लशकर ईराक़ पर एक बड़ा हमला करने के लिये भेज दिया। जब हमला आवर लश्कर हुदूदे ईराक़ में दूर तक आगे बढ़ आया तो हज़रत ने अपने लशकर को हरकत करने का
हुक्म दिया। हजर इब्ने अदी को थोड़ी सी फ़ौज के साथ आगे बढ़ने के लिये फ़रमाया। आपके लश्कर में भीड़ भाड़ तो ख़ासी नज़र आने लगी थी मगर सरदार जो सिपाहीयों को लड़ाते हैं कुछ तो माविया के हाथ बिक चुके थे, कुछ आफ़ियत पोशी में मसरूफ़ थे। हज़रत अली (अ.स.) की शहादत ने दोस्तों के हौसले पस्त कर दिये थे और दुशमनों को जुरअतो हिकमत दिला दी थी।

मुर्रेख़ीन का बयान है कि माविया 60,000 ( साठ हज़ार) की फ़ौज ले कर मक़ामे मकसन में जा उतरा, जो बग़दाद से दस फ़रसख़ तकरीत की जानिब अवाना के क़रीब वाक़े है । इमाम हसन (अ.स.) को जब माविया की पेश क़दमी का इल्म हुआ तो आपने भी एक बड़े लशकर के साथ कूच कर दिया और कूफ़े से साबात में जा पहुँचे और बारह हज़ार की फ़ौज क़ैस इब्ने साअद की मातहती में माविया की पेश क़दमी रोकने के लिये रवाना कर दिया फिर साबात से रवाना होते वक़्त आपने एक ख़ुतबा पढ़ा जिसमें आपने फ़रमाया कि, “ लोगों तुमने इस शर्त पर मुझ से बैयत की है कि सुलह और जंग दोनों ही हालातों में मेरा साथ दोगे। मैं ख़ुदा की क़सम खा कर कहता हूँ कि मुझे किसी शख़्स से बुग़ज व अदावत नहीं है, मेरे दिल में किसी को सताने का ख़्याल नहीं है। मैं सुलह को जंग से और मोहब्बत को अदावत से कहीं बेहतर समझता हूं।

लोगों ने हज़रत के इस खिताब का मतलब यह समझा कि हज़रत इमाम हसन (अ. स.) अमीरे माविया से सुलह करते की तरफ़ माएल हैं और खिलाफ़त से दस्त
बरदारी करने का इरादा दिल में रखते हैं। इसी दौरान में माविया ने इमाम हसन (अ.स.) के लशकर की कसरत से मुतास्सिर हो कर यह मशवेरा अमरे आस कुछ लोगों को इमाम हसन (अ.स.) के लशकर में और कुछ को क़ैस इब्ने साअद के लशकर में भेज कर एक दूसरे के खिलाफ़ प्रोपेगन्डा करा दिया। इमाम हसन (अ.स.) के लशकर वाले साज़िशयों ने क़ैस के मुताअल्लिक़ यह शोहरत देनी शुरू की कि उसने माविया से सुलह कर ली है और क़ैस बिने साअद के लशकर में जो साज़िशी घुसे हुए थे उन्होंने तमाम लशकरयों में चर्चा कर दिया कि इमाम हसन (अ. स.) ने माविया से सुलह कर ली है। इमाम हसन (अ. स.) के दोनों लशकरों में इस ग़ल्त अफ़वा हके फैल जाने से बग़ावत और बद गुमानी के जज़बात उभर निकले। इमाम हसन (अ.स.) के लश्कर का वह उन्सर जिसे पहले ही से शुबह था कि माएल ब सुलह हैं यह कहने लगा कि इमाम हसन (अ. स.) भी अपने बाप हज़रत अली (अ.स.) की तरह काफ़िर हो गये हैं। बिल आखिर फ़ौजी आपके ख़ैमे पर टूट पड़े आपका कुल असबाब लूट लिया। आपके नीचे से मुसल्ला तक खींच लिया। दोशे मुबारक पर से रिदा भी उतार ली और बाज़ नुमाया क़िस्म के अफ़राद ने इमाम हसन (अ.स.) को माविया के हवाले कर देने का प्लान तय्यार किया। आखिर कार आप इन बद बख़्तों से मदाएन के गर्वनर साअद या सईद की तरफ़ रवाना हो गये। रास्ते में एक ख़वारजी ने जिसका नाम बा रवायतुल अख़बारूल तवाल पृष्ठ 393, जराह बिने कैसा था, आपकी रान पर कमी गाह से एक ऐसा
ख़न्जर लगाया जिसने हड्डी तक महफ़ूज़ न रहने दी। आपने मदाएन में मुक़ीम रह कर इलाज कराया और अच्छे हो गये। तारीख़े कामिल जिल्द 3, पृष्ठ 161, तारीख़े आइम्मा पृष्ठ 333, फ़तेहुलबारी ।

माविया ने मौक़ा ग़नीमत जान कर 20,000 ( बीस हज़ार) का लश्कर अब्दुल्लाह इब्ने अमिर की क़यादत व मातहती में मदाएन भेज दिया। इमाम हसन (अ. स.) उससे लड़ने के लिये निकलने ही वाले थे कि उसने आम शोहरत कर दी कि माविया बहुत बड़ा लश्कर ले कर आ रहा है। मैं इमाम हसन (अ. स.) और उनके लश्कर से दरख़्वास्त करता हूं कि मुफ़्त में जान न दें और सुलह कर लें। इस दावते सुलह और पैग़ामे ख़ौफ़ से लोगों के दिल बैठ गये, हिम्मते पस्त हो गईं और इमाम हसन (अ.स.) की फ़ौज भागने के लिये रास्ता ढूंढने लगी ।




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