
ख़लीफ़ाए अव्वल को मिम्बरे रसूल (स. व. व.अ.) से उतरने का
हुक्म
अल्लामा इब्ने हसर और इमामे सियूती रक़मतराज़ हैं कि इमाम हसन (अ.स.) एक दिन मस्जिदे रसूल (स.व.व.अ.) से गुज़रे । आपने देखा कि हज़रत अबू बक्र
मिम्बरे रसूल (स.व.व.अ.) पर बैठे है आप से रहा न गया और आप मिम्बर के क़रीब तशरीफ़ ले जा कर फ़रमाने लगे जो ज्द गुग
मेरे बाप के मिम्बरे से उतर आओ, यह तुम्हारे बैठने की जगह नहीं है, यह सुन कर वह मिम्बर से उतर आये और इमाम हसन (अ.स.) को अपनी आगोश में बैठा लिया। (सवाएक़े मोहर्रेका पृष्ठ 105, तारीलख अल ख़ोल्फ़ा पृष्ठ 55, रियाजुन नज़रा पृष्ठ 128)
इमाम हसन (अ.स.) का बचपन और मसाले इल्मिया यह मुसल्लेमात से है कि हज़रात आइम्मा ए मासूमीन (अ.स.) को इल्मे लदुन्नी हुआ करता था। वह दुनिया में तहसीले इल्म के मोहताज नहीं हुआ करते थे। यही वजह है कि वह बचपन में ही ऐसे मसाएले इल्मिया से वाक़िफ़ होते थे जिनसे दुनिया के आम उलेमा अपनी ज़िन्दगी के आख़री उम्र तक बे बहरा रहते थे। इमाम हसन (अ. स.) जो ख़ानवादाए रिसालत की एक फ़र्द अकमल और सिलसिले असमत की एक मुस्तहकम कड़ी थे कि बचपन के हालात व वाक़ेयात देखे जायें तो मेरे दावे का सबूत मिल सकेगा।
पहला वाकिआ
मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब में ब हवाले शरह अख़बारे क़ाज़ी नोमान मरक़म है कि एक सायल हज़रत अबू बक्र की खिदमत में आया और उसने सवाल किया कि
मैंने हालाते अहराम में शुतर मुर्ग़ के चन्द अन्डे भून कर खा लिये हैं बताइये कि मुझ पर क्या कफ़्फ़ारा वाजिब उल अदा हुआ? सवाल का जवाब चूंकि उनके बस का न था, इस लिये अरके निदामत पेशानिये खिलाफ़त पर आ गया । इरशाद हुआ कि इसे अब्दुल रहमान बिन औफ़ के पास ले जाओ। जो उनसे सवाल दोहराया तो वह भी ख़ामोश हो गये और कहा कि इसका हल तो अमीरल मोमेनीन (अ.स.) कर सकते हैं। साएल हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में लाया गया। आपने साएल से फ़रमाया कि मेरे दो छोटे बच्चे जो सामने नज़र आ रहे हैं उनसे दरयाफ़्त कर ले। साएल इमामे हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हुआ और मसला दोहराया, इमामे हसन (अ.स.) ने जवाब दिया कि तूने जितने अन्डे खाए हैं उतनी ही ऊंटनियां ले कर उन्हें हामेला करा और उन से जो बच्चे पैदा हों उन्हें राहे ख़ुदा में हदियाए खाना काबा कर दे। अमीरल मोमेनीन (अ. स.) ने हंस कर फ़रमाया कि बेटा जवाब तो बिल्कुल सही है लेकिन यह तो बताओ कि क्या ऐसा नहीं है कि कुछ हमल ज़ाया हो जाते हैं और कुछ बच्चे मर जाते हैं। अर्ज़ कि बाबा जान बिल्कुल दुरुस्त है, मगर ऐसा भी तो होता है कि कुछ अन्डे भी ख़राब और गन्दे निकल जाते हैं। यह सुन कर साएल पुकार उठा कि एक मरतबा अपने अहद में सुलैमान बिन दाऊद ने भी यही जवाब दिया था जैसा कि मैंने अपनी किताबो में देखा है।
दूसरा वाकिआ
एक रोज़ अमीरल मोमेनीन (अ. स.) मक़ामे रहबा में तशरीफ़ फ़रमा थे और हसनैन (अ.स.) वहां मौजूद थे, नागाह एक शख़्स आ कर कहने लगा कि मैं आपकी रियाया और अहले बलद (शहरी) हूं। हज़रत ने फ़रमाया कि तू झूठ बोलता है, तू न तो मेरी रियाया में से है और न मेरे शहर का शहरी है, बल्कि तू बादशाहे रोम का फ़रसतादा है। तुझे उसने माविया के पास चन्द मसाएल दरयाफ़्त करने के लिये भेजा था और उसने मेरे पास भेज दिया है। उसने कहा या हज़रत आपका इरशाद बिल्कुल बजा है मुझे माविया ने पोशीदा तौर पर आपके पास भेजा है और इसका हाल ख़ुदा वन्दे आलम के सिवा किसी को मालूम नहीं है, मगर आप बा इल्मे इमामत समझ गये। आप ने फ़रमाया की अच्छा अब इन मसाएल के जवाबात इन दो बच्चों में से किसी एक से भी पूछ ले। यह इमाम हसन (अ.स.) की तरफ़ मुतवज्जे हो कर चाहता था कि सवाल करे कि इमाम हसन (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ शख़्स तू यह दरियाफ़्त करने आया है कि, 1. हक़ो बातिल में कितना फ़ासला है ?, 2. ज़मीन व आसमान तक कितनी मसाफ़त है?, 3. मशरिक व मग़रिब में कितनी दूरी है? 4. कास क़ज़ा क्या चीज़ है? 5. मख़नस किसे कहते हैं?, 6. वह दस चीज़ें क्या हैं जिनमें से हर एक को ख़ुदा वन्दे आलम ने दूसरे से सख़्त और फ़ाएक़ पैदा किया है?. ‘
सुन हक़ व बातिल में चार अंगुश्त का फ़र्क़ व फ़ासला है। अक्सर व बेशतर जो कुछ आंख से देखा है और जो कुछ कान से सुना व बातिल है । (आंख से देखा
हुआ यक़ीनी, कान से सुना हुआ मोहताजे तहक़ीक़) ज़मीन और आसमान के दरमियान इतनी मसाफ़त है कि मज़लूम की आह और आंख की रौशनी पहुँच जाती है। मशरिक़ व मग़रिब में इतना फ़ासला है कि सूरज एक दिन में तय कर लेता है और कौसे क़ज़ा असल में कौसे ख़ुदा है। इस लिये कि क़ज़ह शैतान का नाम है। यह फ़रावनी रिज़्क़ और अहले ज़मीन के लिये ग़र्क़ से अमान की अलामत है इस लिये अगर यह ख़ुश्की में नमूदार होती है तो बारिश के अलामात से समझी जाती है और बारिश में निकलती है तो ख़त्मे बारान की अलामात में से शुमार की जाती है। मुख़न्नस वह है जिसके मुताअल्लिक़ यह मालूम न हो कि वह मर्द है या औरत और जिसके जिस्म में दोनों के आज़ा हों। इसके हुक्म यह है ता हदे बुलूग़ इन्तेज़ार करे, अगर मोहतलिम हो तो मर्द और हायज़ हो और पिस्तान उभर आयें तो औरत। अगर इससे मसला हल न हो तो देखना चाहिये कि उसके पेशाब की धार सीधी जाती है कि नहीं, अगर वह सीधी जाती है तो मर्द वरना औरत। और वह दस चीजें जिनमें से एक दूसरे पर ग़ालिब व क़वी हैं वह यह हैं कि ख़ुदा ने सब से ज़्यादा सख़्त पत्थर को पैदा किया है मगर इस से ज़्यादा सख़्त लौहा है जो पत्थर को भी काट देता है, उससे ज़्यादा सख़्त क़वी आग है जो लोहे को पिघला देती है और आग से ज़्यादा सख़्त क़वी पानी है जो आग को बूझा देता है और इससे ज़्यादा सख़्त क़वी अब्र है जो पानी को अपने कंधों पर उठाए फिरता है और उससे ज़्यादा क़वी हवा है जो अब्र को उड़ाये फिरती
है और हवा से ज़्यादा सख़्त व क़वी फ़रिश्ता है जिसकी हवा महकूम है और उससे ज़्यादा सख़्त व क़वी मलकुल मौत है जो फ़रिशताए बाद की भी रूह क़ब्ज़ कर लेंगे और मलकुल मौत से भी ज़्यादा सख़्त व क़वी मौत है जो मलकुल मौत को भी मात डालेगी और मौत से भी ज़्यादा सख़्त क़वी हुक्मे ख़ुदा है। यह जवाबात सुन कर साएल फ़ड़क उठा।
तीसरी वाकिआ
हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ. स.) से मनकूल है कि एक मरतबा लोगों ने देखा कि एक शख़्स के हाथ में खून आलूदा छुरी है और उसी जगह एक शख़्स ज़ब्ह किया हुआ पड़ा है। जब उससे पूछा गया कि तूने उसे क़त्ल किया है तो उसने कहा हां। लोग उसे जसदे मक़तूल समेत जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की खिदमत में चले। इतने में एक शख़्त दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि इसे छोड़ दों, इस मक़तूल का क़ातिल मैं हूँ। उन लोंगों ने उसे भी साथ ले लिया और हज़रत के पास ले गये। सारा क़िस्सा बयान किया गया। आपने पहले शख़्स से पूछा कि जब तू इसका क़ातिल नहीं था तो क्या वजह है कि अपने को इस का क़ातिल बयान किया। उसने कहा मौला मैं क़स्साब गोसफ़न्द ज़ब्ह कर रहा था कि मुझे पेशाब की हाजत हुई। इस तरह ख़ून आलूदा छुरी लिये हुये उस ख़राबे में चला गया, वहां देखा की वह मक़तूल ताज़ा ज़िब्हा किया हुआ पड़ा है, इतने में
लोग आ गये और मुझे पकड़ लिया। मैंने यह ख़्याल करते हुये कि इस वक़्त जब कि क़त्ल के सारे क़राएन मौजूद हैं मेरे इन्कार को कौन बावर करेगा। मैंने इक़रार कर लिया। फिर आपने दूसरे से पूछा कि तू इसका क़ातिल है ? उसने कहा जी हा मैं ही उसे क़त्ल कर के चला गया था। जब देखा कि एक क़स्साब की ना हक़ जान चली जायेगी, तो हाज़िर हो गया। आपने फ़रमाया मेरे फ़रज़न्द हसन को बुलाओ वही इस मक़सद का फ़ैसला सुनायेंगे । इमाम हसन (अ. स.) आये सारा क़िस्सा सुना। फ़रमाया दोनों को छोड़ दो यह क़स्साब बे कुसूर है और यह शख़्स अगरचे कातिल है मगर उसने एक नफ़्स को क़त्ल किया तो दूसरे नफ़्स (क़स्साब ) को बचा कर उसे हयात दी और उसकी जान बचा ली, और हुक्मे क़ुरआन है कि ! 66 ” मन अययाहा फ़ाक़ानमा अहया अन्नास जमीअन जिसने एक नफ़्स की जान बचाई उसने गोया तमाम लोगों की जान बचाई। लेहाज़ा उस मक़तूल का ख़ून बहा बैतुलमाल से दे दिया जाये ।
चौथा वाकिआ
अली इब्ने इब्राहीम कुम्मी ने अपनी तफ़सीर मे लिखा कि शाहे रोम ने जब हज़रत अली (अ.स.) के मुक़ाबले में माविया की चीरा दस्तियों से आगाही हासिल की तो दोनों को लिखा कि मेरे पास एक एक नुमाइन्दा भेज दें। हज़रत अली (अ. स.) की तरफ़ से इमाम हसन (अ. स.) और माविया की तरफ़ से यज़ीद की
रवानगी अमल में आई। यज़ीद ने वहां पहुँच कर शाहे रोम की दस्त बोसी की और इमाम हसन (अ.स.) ने जाते ही कहा कि ख़ुदा का शुक्र है मैं यहूदी, नसरानी, मजूसी वग़ैरा नहीं हूँ बल्कि ख़ालिस मुसलमान हूँ। शाहे रोम ने चन्द तसवीर निकाली। यज़ीद ने कहा कि मैं इन में से एक को भी नहीं पहचानता और न बता सकता हूं कि यह किन हज़रात की शक्लें हैं। हज़रत इमाम हसन (अ.स.) ने, हज़रत आदम (अ.स.), हज़रत नूह (अ. स.), हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और शुऐब (अ.स.) व याहीया (अ.स.) की तसवीरें देख कर शक्लें पहचान लीं और एक तसवीर देख कर आप रोने लगे। बादशाह ने पूछा यह किसी तसवीर है ? फ़रमाया मेरे जद्दे नामदार की। इसके बाद बादशाह ने सवाल किया कि वह कौन से जान दार हैं जो अपनी मां के पेट से पैदा नहीं हुए? आपने फ़रमाया कि ऐ बादशाह, वह सात 7 जानदार हैं। 1. आदम, 2. हव्वा, 3. दुम्बाए इब्राहीम, 4. नाक़ा ए सालेह, 5. इबलीस, 6. मुसवी अज़दहा, 7. वह कव्वा जिसने क़ाबील की दफ़्ने हाबील की तरफ़ रहबरी की। बादशाह ने यह तबहुरे इल्मी देख कर बड़ी इज़्ज़त की और ताहएफ़ के साथ वापस किया।

