
इमाम हसन (अ.स.) की सरदारीए जन्नत
आले मोहम्मद (अ.स.) की सरदारी मुसल्लेमात में से है, उलेमाए इस्लाम का इस पर इत्तेफ़ाक़ है कि सरवरे कायनात ( स.व.व.अ.) ने इरशाद फ़रमाया है: judi منهما خير انهما و شباب اهل الجنة سيدا والحسين
हसन (अ. स.) और हुसैन (अ. स.) जवानाने बहिश्त के सरदार हैं और उनके (अ.स.) वालिदे बुज़ुर्गवार यानी अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) इन दोनों से बेहतर हैं। जनाबे हुज़ैफ़ाए यमानी का बयान है कि मैंने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को एक दिन बहुत ही मसरूर पा कर अर्ज़ कि मौला आज इफ़राते शादमानी की क्या वजह है? इरशाद फ़रमाया कि मुझे आज जिब्राईल ने यह बशारत दी है कि मेरे दोनों फ़रज़न्द हसन (अ.स.) व हुसैन (अ.स.) जवानाने बेहिशत के सरदार हैं और उनके वालिद अली इब्ने अबी तालिब (अ. स.) उनसे बेहतर हैं। (कन्जुल आमाल जिल्द 7 पृष्ठ 107, सवाएक़े मोहर्रेका पृष्ठ 117 ) इस हदीस से इसकी भी वजाहत हो गई है कि हज़रत अली (अ.स.) सिर्फ़ सय्यद ही न थे बल्कि फ़रज़न्दाने सियादत के बाप थे।
जज़बार इस्लाम की फ़रावानी
मुर्रेख़ीन का बयान है कि एक दिन अबू सुफ़ियान हज़रत अली (अ.स.) की खिदमत में हाज़िर हो कर कहने लगा कि आप आं हज़रत ( स.व.व.अ.) से सिफ़ारिश कर के एक ऐसा मोहायदा लिखवा दीजिए जिसके रू से मैं अपने मक़सद में कामयाब हो सकूं। आप ने फ़रमाया कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) जो कह चुके हैं अब उसमें बाल बराबर फ़र्क़ न होगा। उसने इमाम हसन (अ. स.) से सिफ़ारिश की ख़्वाहिश की। आपकी उम्र अगरचे उस वक़्त सिर्फ़ 4 साल की थी लेकिन आप ने उस वक़्त ऐसी र्जुअत का सबूत दिया जिसका तज़किरा ज़बाने तारीख़ पर है। लिखा है कि अबू सुफ़ियान की तलब सिफ़ारिश पर आपने दौड़ कर उसकी दाढ़ी पकड़ ली और नाक मरोड़ कर कहा कलमा ए शहादत ज़बान पर जारी करो। तुम्हारे लिये सब कुछ है। यह देख कर अमीरुल मोमेनीन (अ. स.) मसरूर हो गये । ( मनाक़िबे आले अबू तालिब जिल्द 4 पृष्ठ 46)
इमाम हसन (अ.स.) और तरजुमानी वही
अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) का यह तरीका था कि आप इन्तेहाई कम सिनी के आलम में अपने नाना पर नाज़िल होने वाली वही मन अन अपनी वालेदा माजेदा को सुना दिया करते थे। एक दिन हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ बिन्ते रसूल मेरा जी चाहता है कि हसन को तरजुमानीए करते वही खुद पहुँचने का वक़्त बता दिया। एक दिन अमीरल मोमेनीन (अ. स.) हसन (अ.स.) से पहले दाखिले ख़ाना हो गये और गोशा ख़ाना में छुप कर बैठ गए। इमाम हसन हुए देखूं और सुनूं सय्यदा (स.व.व.अ.) ने इमाम हसन (अ.स.) के (अ. स.) हसबे मामूल तशरीफ़ लाये और मां की आगोश में बैठ कर वही सुनानी शुरू कर दी, लेकिन थोड़ी देर के बाद अर्ज़ कि, ” 66 या अमाह क़द तलजलज लेसानी व कुल बयानी लाअल सय्यदी यरानी ” मादरे गेरामी आज वही तरजुमानी में लुक़नत और बयाने मक़सद में रूकावट हो रही है मुझे ऐसा मालूम होता है कि जैसे मेरे बुजुर्ग मोहतरम मुझे देख रहे हों। यह सुन कर हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ. स.) ने दौड़ कर इमाम हसन (अ.स.) को आगोश में उठा लिया और बोसा देने लगे। (बेहारूल अनवार जिल्द 10 पृष्ठ 193)
हज़रत इमाम हसन (अ.स.) का बचपन में लौहे महफ़ूज़ का मुताले करना ।
इमाम बुख़ारी रक़म तराज़ हैं कि एक दिन कुछ सदक़े की खजूरें आईं हुई थीं इमाम हसन (अ.स.) इसके ढेर से खेल रहे थे और खेल ही के तौर पर इमाम हसन (अ.स.) ने दहने अक़दस में रख ली, यह देख कर आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने फ़रमाया, ऐ हसन क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है। ( सही बुखारी पारा 6 पृष्ठ 25)
हज़रत हुज्जतुल इस्लाम शहीदे सालिस काज़ी नूर उल्लाह शूशतरी फ़रमाते हैं कि इमाम पर अगरचे वही नाज़ील नहीं होती लेकिन उसको इल्हाम होता है और वह लौहे महफूज़ का मुतालेआ करता है जिस पर अल्लामा इब्ने हजरे असकलानी का
वह क़ौल दलालत करता है जो उन्होंने सही बुखारी की इस रवायत की शरह में लिखा है जिसमें आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने इमाम हसन (अ.स.) के शीरख़्वारगी के ” आलम में सदक़े की खजूर के मुंह में रख लेने पर ऐतेराज़ फ़रमाया था। कख़ ” कख़ अमा ताअलम अनल सदक़तः अलैना हराम थूकू थूकू क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम लोगों पर सदक़ा हराम है और जिस शख़्स ने यह ख़्याल किया कि इमाम हसन (अ.स.) उस वक़्त दूध पीते थे, आप पर अभी शरई पाबन्दी न थी आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने उन पर क्यों एतेराज़ किया। इसका जवाब अल्लामा असक़लानी ने अपनी फ़तेह अलबारी शरह सही बुखारी में दिया है कि इमाम हसन (अ. स.) और दूसरे बच्चे बराबर नहीं हो सकते। क्यों कि ” انا الحسن يتلالع لوح المحفوظ ” इमाम हसन (अ.स.) शीर ख़्वारगी के आलम में भी लौहे महफ़ूज़ का मुतालेआ किया करते थे। (हक़ाएकुल हक़ पृष्ठ 127)

