चौदह सितारे पार्ट 75

हज़रत इमाम हसन (अ. स.) की शहादत

मुर्रेखीन का इत्तेफ़ाक़ है कि इमाम हसन (अ. स.) अगर सुलह के बाद मदीने में गोशा नशीन हुए थे लेकिन अमीरे माविया आपके दर पाए आज़ार रहे। उन्होंने बार बार कोशिश की किसी तरह इमाम हसन (अ.स.) इस दारे फ़ानी से मुल्के जावेदानी को रवाना हो जायें और इससे इनका मक़सद यज़ीद की खिलाफ़त के लिये ज़मीन हमवार करना थी । चुनान्चे उसने आपको पांच बार ज़हर दिलवाया लेकिन अय्यामे हयात बाक़ी थे ज़िन्दगी ख़त्म न हो सकी। बिल आखिर शाहे रोम से एक ज़बरदस्त क़िस्म का ज़हर मगंवा कर मोहम्मद इब्ने अशअस या मरवान के ज़रिये से जोदा बिन्ते अशअस के पास अमीरे माविया ने भेजा और कहला दिया कि जब इमाम हसन शहीद हो जायेंगे तब हम तुझे एक लाख दिरहम देंगे और तेरा अक़द अपने बेटे यज़ीद के साथ कर देंगे। चुनान्चे इसने इमाम हसन (अ.स.) को ज़हर दे कर हलाक कर दिया। (तारीखे मरऊजुल ज़हब मसूदी जिल्द 2 पृष्ठ 303 व मक़ातिल अल तालेबैन पृष्ठ 51, अबू अल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 183, रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 7, हबीबुल सैर, जिल्द 2 पृष्ठ 18, तबरी पृष्ठ 604, इस्तेयाब जिल्द 1 पृष्ठ 144)

मफ़स्सिरे क़ुरान साहिबे तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी रक़म तराज़ हैं कि इमाम हसन (अ.स.) मुसालेह माविया के बाद मदीने में मुस्तकिल तौर पर फ़रोकश हो गये थे। आपको इत्तेला मिली की बसरे में रहने वाले मुहिब्बाने अली (अ.स.) के ऊपर चन्द ऊबाशों ने शब खूं मार कर इनके 38 आदमी हलाक

कर दिये। इमाम हसन (अ.स.) इस ख़बर से मुतास्सिर हो कर बसरे की तरफ़ रवाना हो गये। आपके हमराह अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास भी थे। रास्ते में बा मुक़ामे मूसली साअद मूसली जो जनाबे मुख़्तार इब्ने अबी उबैदा सक़फ़ी के चचा थे वहां क़याम फ़रमाया। इसके बाद वहां से रवाना हो कर वह दमिश्क से वापसी पर जब आप मूसल पहुंचे तो बइसरारे शदीद एक दूसरे शख़्स के वहां मुक़ीम हुए और वह शाख़्स माविया के फ़रेब में आ चुका था और माल व दौलत की वजह से इमाम हसन (अ.स.) को ज़हर देने का वायदा कर चुका था। चुनान्चे दौराने क़याम में उसने तीन बार हज़रत को खाने में ज़हर दिया लेकिन आप बच गये । इमाम के महफ़ूज़ रह जाने से इस शख़्स ने माविया को ख़त लिखा कि तीन बार ज़हर दे चुका हूं मगर इमाम हसन हलाक नहीं हुए। यह मालूम कर के माविया ने ज़हरे हलाहल इरसाल किया और लिखा कि अगर इसका एक क़तरा भी दे सका तो यक़ीनन इमाम हसन हलाक हो जायेंगे। नामाबर ज़हर और ख़त लिये हुए आ रहा था कि रास्ते में एक दरख़्त के नीचे खाना खा कर लेट गया इसके पेट में ऐसा दर्द उठा कि वह बरदाश्त न कर सका नागाह एक भेड़िया बरामद हुआ और उसे ले कर रफू चक्कर हो गया । इत्तेफ़ाक़न इमाम हसन (अ.स.) के एक मानने वाले का उस तरफ़ से गुज़र हुआ। उसने नाक़ा ख़त और ज़हर से भरी हुई बोतल हासिल कर ली और इमाम हसन (अ.स.) की खिदमत में पेश किया । इमाम हसन (अ. स.) ने उसे मुलाहेज़ा फ़रमा कर जा नमाज़ के नीचे रख लिया। हाज़ेरीन ने वाक़ेया

दरयाफ़्त किया। इमाम ने बताया । साअद मोसली ने मौक़ा पर वह ख़त जा नमाज़ के नीचे से निकाल लिया जो माविया की तरफ़ से इमाम के मेज़बान के नाम से भेजा गया था। ख़त पढ़ कर साद मोसली आग बबूला हो गया और मेज़बान से पूछा क्या मामेला है? उसने ला इल्मी ज़ाहिर की मगर उसके उज़्र को बावर न किया गया उसको ज़दो क़ोब किया गया यहा तक कि वह हलाक हो गया। उसके बाद आप मदीने रवाना हो गये ।

मदीने में उस वक़्त मरवान बिन हकम वाली था उसे माविया का हुक्म था कि जिस सूरत से हो सके इमाम हसन (अ. स.) को हलाक कर दे। मरवान ने एक रूमी दल्लाला जिस का नाम अल्यसूनिया था, को तलब किया और उससे कहा कि तू जोदा बिन्ते अशअस के पास जा कर उसे मेरा यह पैग़ाम पहुँचा दे कि अगर तू इमाम हसन (अ.स.) को किसी सूरत से शहीद कर देगी तो तुझे माविया एक हज़ार दीनारे सुर और पचास खिलअते मिस्री अता करेगा और अपने बेटे यज़ीद के साथ तेरा अक़द कर देगा और उसके साथ साथ सौ दीनार नक़द भेज दिये। दल्लाला ने वायदा किया और जोदा के पास जा कर उस से वायदा ले लिया। इमाम हसन (अ. स.) उस वक़्त घर में न थे और बमुक़ामे अक़ीक़ गये हुए थे इस लिये दल्लाला को बात चीत का अच्छा ख़ासा मौक़ा मिल गया और जोदा को राज़ी करने में कामयाब हो गयी। अल ग़रज़ मरवान ने ज़हर भेजा और जोदा ने इमाम हसन (अ.स.) को शहद में मिला कर दे दिया। इमाम (अ.स.) उसे खाते ही बीमार हो गये

और फ़ौरन रोज़ाए रसूल (स.व.व.अ.) पर जा कर सेहत याब हुए। ज़हर तो आपने खा लिया लेकिन जोदा से बदगुमान भी हो गये। आपको शुब्हा हो गया जिसकी वजह से आपने उसके हाथ का खाना पीना भी छोड़ दिया और यह मामूल मुक़र्रर कर लिया कि हज़रते क़ासिम की मां या हज़रत इमाम हुसैन (अ. स.) के घर से खाना मंगवा कर खाने लगे। थोड़े अरसे बाद आप जोदा के घर तशरीफ़ ले गये उसने कहा मौला हवाली मदीना से बहुत उम्दा ख़ुरमें आये हैं हुक्म हो तो हाज़िर करूं आप चुंकि ख़ुरमे बहुत पसन्द करते थे। फ़रमाया ले आ। वह खुरमें जहर आलूद ख़ुरमें ले कर आई और पहचाने हुए खुरमें छोड़ कर खुद साथ खाने लगी। इमाम ने एक तरफ़ से खाना शुरू किया और वह दाने खा गये जिनमे जहर था। उसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) के घर तशरीफ़ लाये और सारी रात तड़प कर बसर की। सुबह को रौज़ा ए रसूल (स.व.व.अ.) पर जा कर दुआ मांगी और सेहतयाब हुए। इमाम हसन (अ.स.) ने बार बार इस क़िस्म की तकलीफ़ उठाने के बाद अपने भाइयों से तबदीलीए आबो हवा के लिये मूसल जाने का मशविरा किया और मूसल के लिये रवाना हो गये। आपके हमराह हज़रत अब्बास (अ.स.) और चन्द हवा ख़्वाहान भी गये। अभी वहां चन्द यौम न गुज़रे थे कि शाम से एक नाबीना भेज दिया गया और उसे एक ऐसा असा दिया गया जिसके नीचे लौहा लगा हुआ था जो ज़हर में बुझा हुआ था। उस नाबीना ने मूसल पहुँच कर इमाम हसन (अ.स.) के दोस्तदारान में से अपने को ज़ाहिर किया और मौक़ा पा कर

उनके पैर में अपने असा की नोक चुभो दी। ज़हर जिस्म मे दौड़ गया और आप अलील हो गये। जर्राह इलाज के लिये बुलाया गया, उसने इलाज शुरू किया। बीना ज़ख़्म लगा कर रू पोश हो गया था। चौदह दिन के बाद जब पन्द्रहवे दिन वह निकल कर शाम की तरफ़ रवाना हुआ तो हज़रते अब्बास अलमदार (अ.स.) की नज़र उस पर जा पड़ी। आपने उससे असा छीन कर उस के सर पर इस ज़ोर से मारा कि सर शिग़ाफ़ता हो गया और वह अपने कैफ़रो किरदार को पहुँच गया। उसके बाद जनाबे मुख़्तार और उनके चचा साद मोसली ने उसकी लाश जला दी । चन्द दिनों बाद हज़रत इमाम हसन (अ.स.) मदीनाए मुनव्वरा वापस तशरीफ़ ले गये।

मदीना मुनव्वरा में आप अय्यामें हयात गुज़ार रहे थे कि अल सोनिया दल्लाला ने फिर मरवान के इशारे पर जोदा से सिलसिला जुम्बानी शुरू कर दी और ज़हरे हलाहल उसे दे कर इमाम हसन (अ.स.) का काम तमाम करने की ख़्वाहिश की। इमाम हसन (अ. स.) चूंकि उससे बदगुमान हो चुके थे इस लिये उसकी आमदो रफ़्त बन्द थी। उसने हर चन्द कोशिश की लेकिन मौक़ा न पा सकी। बिल आखिर शबे 28 सफ़र 40 ई0 को वह उस जगह जा पहुँची जिस मक़ाम पर इमाम हसन (अ.स.) सो रहे थे। आपके क़रीब हज़रत ज़ैनब व उम्मे कुलसूम सो रही थीं और आपकी पाती कनीज़े महवे ख़्वाब थीं । जोदा उस पानी में ज़हरे हलाहल मिला कर ख़ामोशी से वापस आईं जो इमाम हसन (अ. स.) के सराहने रखा हुआ था। उसकी

वापसी के थोड़ी देर बाद ही इमाम हसन (अ.स.) की आंख खुली, आपने जनाबे जैनब को आवाज़ दी और कहा कि ऐ बहन मैंने अभी अभी अपने नाना, अपने पदरे बुज़ुर्गवार और अपनी मादरे गेरामी को ख़्वाब में देखा है। वह फ़रमाते थे कि ऐ हसन तुम कल रात हमारे पास होगे। उसके बाद आपने वज़ू के लिये पानी मांगा سر और ख़ुद अपना हाथ बढ़ा कर सराहने से पानी लिया और पी कर फ़रमाया कि ऐ बहन ज़ैनब so milti b mila j) खुड़ ज़ यह हा हाय यह कैसा पानी है जिसने मेरे हल्क़ से नाफ़ तक टुकड़े टुकड़े कर दिया है। उसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) को इत्तेला दी गई वह आये दोनों भाई बग़ल गीर हो कर महवे गिरया हो गये। उसके बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने चाहा कि एक कूज़ा पानी खुद पी कर इमाम हसन (अ.स.) के साथ नाना के पास पहुँचें । इमाम हसन (अ.स.) ने पानी के बरतन को ज़मीन पर पलट दिया वह चूर चूर हो गया। रावी का बयान है कि जिस ज़मीन पर पानी गिरा था वह उबलने लगी थी । अल ग़रज़ थोड़ी देर के बाद इमाम हसन (अ.स.) को ख़ून की क़ै आने लगी। आपके जिगर के सत्तर टुकड़े तख़्त में आ गये। आप ज़मीन पर तड़पने लगे। जब दिन चढ़ा तो आपने इमाम हुसैन (अ.स.) से पूछा कि मेरे चेहरे का रंग कैसा है ? कहा सब्ज़ है। आपने फ़रमाय कि हदीसे 66 ” मेराज का यही मुक़तज़ा है। लोगों ने पूछा कि यह हदीसे मेराज क्या है? फ़रमाया कि शबे मेराज मेरे नाना ने आसमान पर दो क़स्र एक ज़मर्रूद को एक याकूत को देखा तो पूछा कि ऐ जिब्राईल यह दोनों क़स किस के लिये हैं? उन्होंने

अर्ज़ कि एह हसन के लिये और दूसरा हुसैन के लिये। पूछा दोनों के रंग में फ़र्क़ क्यो है? कहा हसन ज़हर से शहीद होंगे और हुसैन तलवार से शहादत पायेंगे। यह कह कर आप हुसैन (अ. स.) से लिपट गये और दोनों भाई रोने लगे और आपके साथ दरो दीवार भी रोने लगे।

उसके बाद आपने जोदा से कहा अफ़सोस तूने बड़ी बेवफ़ाई की लेकिन याद रख तूने जिस मकसद के लिये ऐसा किया है उसमें कामयाब न होगी । उसके बाद आपने हुसैन (अ.स.) और बहनों से कुछ वसीयतें कीं और आंखें बन्द फ़रमा ली। फिर थोड़ी देर के बाद आंख खोल कर फ़रमाया ऐ हुसैन मेरे बाल बच्चें तुम्हारे सुपुर्द हैं फिर आंख बन्द फ़रमा कर नाना की खिदमत में पहुँच गये। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलेहै राजेऊन

इमाम हसन (अ.स.) की शहादत के फ़ौरन बाद मरवान ने जोदा को अपने पास बुला कर दो औरतों और एक मर्द के साथ माविया के पास भेज दिया। माविया ने उसे हाथ पैर बंधवा कर दरियाए नील में यह कह कर डलवा दिया कि तूने जब इमाम हसन (अ.स.) के साथ वफ़ा न की तो यज़ीद के साथ क्या वफ़ा करेगी। ( रौज़ातुल शोहदा पृष्ठ 220 ता 235 प्रकाशित बम्बई 1285 ई0 व जिकरूल अब्बास पृष्ठ 50 प्रकाशित लाहौर 1956 ई0)

1. आलमा इब्ने अबी शैबा (रह.): उन्होंने अपनी किताब “मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा” में लिखा है कि जादा बिन्त अल-अशअथ ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर दिया था।
2. आलमा इब्ने असाकिर (रह.): उन्होंने अपनी किताब “तारीख इब्ने असाकिर” में लिखा है कि जादा बिन्त अल-अशअथ ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर दिया था।
3. आलमा इब्ने कसीर (रह.): उन्होंने अपनी किताब “तफसीर इब्ने कसीर” में लिखा है कि जादा बिन्त अल-अशअथ ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर दिया था।
4. आलमा इब्ने हजर हैतमी (रह.): उन्होंने अपनी किताब “सवाईक अल-मुह्रिका” में लिखा है कि जादा बिन्त अल-अशअथ ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर दिया था।
5. आलमा मुहम्मद इब्ने अली अल-शैखानी (रह.): उन्होंने अपनी किताब “फतह अल-कदीर” में लिखा है कि जादा बिन्त अल-अशअथ ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को जहर दिया था।