
💫 *(सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम के बुनियादी रावी)*
🏴 *कातिल की दिफा (बचाव) करने वाला भी कातिल*
⭐ *सय्यिदना इब्राहीम नखई ताबई बयान करते थेः “अगर (बिल्फ़र्ज़) मैं कातिलाने सय्यिदना हुसैन में शामिल होता, और (बिलफ़र्ज़) मेरी बख़्शिश भी हो जाती, और (बिलफ़र्ज़) मुझे जन्नत में भी दाखिला नसीब हो जाता, तो फिर भी मुझे इस बात से शर्म आती कि मैं रसुलुल्लाह ﷺ के पास से गुज़रूं और आपकी नज़र मुझ पर पड़े (कि सय्यिदना हुसैन के क़ातिलों में शामिल था)।”*
📚मौजुमल कबीर लिल तबरानी 2760
इस हदीस को शेख जुबैर अली ज़ई ने मिश्कात- उल- मसाबिह किताब में बाब फ़ज़ाइल ए सहाबा में सहीह कहा है।
वज़ाहत- *हज़रत हुसैन की शहादत पर सहाबा की नदामत का आलम ये है कि रसूलुल्लाह ﷺ से नज़र मिलाने में शर्मिंदगी है मगर आज के बेशर्म अहले नासबी खुल्लम खुल्ला यज़ीद कातिल से वफादारी निभाते हुए बचाव में बयान देते है। यज़ीद की बादशाहत के तख्त के लिए खानदाने रिसालत, रसूल के फूल और खुशबू को कुचला गया हो उसे अमीरूल मोमिनीन कहां जाए। जिस तरह शराब और ब्याज का काम करने वाला और लिखा पढ़ी करना हराम है यानि मुजरिम है, मफ़हुम ए हदीस जिसने किसी का नाहक कत्ल किया उसने सारी कायनात और मखलूक का कत्ल किया बराबर है उसी तरह कातिल की दिफा बचाव करने वाला मुजरिम है। आज के जाहिल लोग किसकी वफादारी निभा रहे है हज़रत हम्ज़ा का कलेजा चबाने वालों का इस शर्त में ईमान कुबूल किया गया था कि रसूलुल्लाह ﷺ के सामने कभी नहीं आयेंगे।*
*मुकदमा उसका लड़ो जो होज़ ए कौसर में मिलेगे जिनके इशारे में नाना रसूलुल्लाह ﷺ शफाअत कराएंगे।*

