
हिन्दोस्तान के लिये फ़तेह सिन्ध के बाद राह का हमवार हो जाना यक़ीनी था इसी लिये सिन्ध फ़तेह किया गया। फ़तेह सिन्ध के बाद अमीरल मोमेनीन हज़रत अली (अ.स.) के इस्लामी जद्दोजेहद के आसार तारीख में मौजूद हैं। मुवर्रिख मुल्ला मौहम्मद क़ासिम हिन्दू शाह फ़रीशता ज़ेरे उन्वान ज़िक्र बिनाए शहरे देहली लिखते हैं कि 307 ई0 में दादपत्ता राजपूत ने जो ताएफ़े तूरान से ताअल्लुक रखता था, कसबाए इन्द्र पत के पहलू में देहली की बुनियाद रखी फिर उनके आठ अफ़राद ने इस पर हुकूमत की फिर ज़वाले हुकूमते तूरान के बाद ताएफ़ चौहान की हुकूमत क़ाएम हुई। इस ताएफ़े के 6 छः अफ़राद ने हुकूमत की। उसके बाद सुल्तान शाहबुद्दीन गा ैरी ने उनके आखिरी बादशाह पिथवरा को क़त्ल कर दिया । फिर ऊमरे हुकूमत 588 ई0 में मुलूके गा ैर के आखिरी फ़रमारवा जुहाक़ ताज़ी पर बादशाह फ़रीदूँ का ग़ल्बा हो गया और ज़ुहाक़ के पोते या नवासे सूरी और साम उसके हमराह हो गये । एक अरसे के बाद इन दोनों को फ़रीदों की तरफ़ से अपनी
तबाही का वहम पैदा हो गया। चुनान्चे यह दोनों नेहा चन्द चले गये और हुकूमत क़ायम कर ली और फ़रीदूँ से मुक़ाबले शुरू कर दिया। बिल आखिर फ़रीदूँ ग़ालिब रहा और उन लोगों ने खिराज कुबूल कर के हुकूमत क़ायम रखी और जुर्रियत जुहाक़ इस मम्लेकत में यके बा दीगरे बुज़ुर्ग क़बीला यानी बादशाह होता रहा ।
(ता बवक़्ते इस्लाम नौबत बा शन्सब रसीद व ऊ दर ज़माने अमीरल मोमेनीन असद उल्लाहुल ग़ालिब अली बिन अबी तालिब (अ.स.) बूद व बर दस्ते आं हज़रत ईमान आवुरदा । मन्शूरे हुकूमते ग़ौर बख़्ते मुबारक शाह विलायत पनाह याफ़त (तारीख़े फ़रिशता जिल्द 1 सफ़ा 54 मक़ालए दोउम जिक्र बिनाए देहली व अहवाल मुलूक ग़ौर प्रकाशित नवल किशोर 1281 ई0)
यहां तक कि दौरे इस्लाम आ गया और नौबते शाही शन्सब तक आ पहुँची। इसका ज़माना अहदे अमीरल मोमेनीन हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ. स.) मे आया। उसने हज़रत अली (अ.स.) के हाथों पर ईमान क़ुबूल किया और मुसलमान हुआ और हुकूमते गा ैर का मन्शूर हज़रत शाह विलायत पनाह के हाथों पर बना । यही कुछ तबक़ाते नासरी मुसन्नेफ़ा अबू उमर मिनहाजउद्दीन उस्मान बिन मेराज उद्दीन प्रकाशित कलकत्ता 1864 ई0 जिक्रे सलातीन शन्सानिया के तबक़ए 7 सफ़ा 29 में भी है। तारीख़े इस्लाम जाकिर हुसैन के जिल्द 3 सफ़ा 222 में है कि शन्सब तुरकी नसब का था। मुवर्रिख़ फ़रिशते ने शाह शन्सब का नसब नामा यूँ तहरीर किया है। शन्सब बिन हरीक़ बिन नहीक़ इब्ने मयसी बिन वज़न बिन हुसैन
बिन बहराम बिन हबश बिन हसन बिन इब्राहीम बिन साद बिन असद बिन शाद बिन ज़हाक़ सफ़ा 541
औलादे शन्सब की अमले बनी उम्मया से बेज़ारी
मुल्ला मौहम्मद कासिम फ़हरशता लिखते हैं कि जिस ज़माने में बनी उम्मया ने यह अन्धेरा गरदी कर रखी थी कि अहले बैते रसूल ख़ुदा स. को तमाम मुमालिके इस्लामिया में मिम्बरों पर बुरा भला कहा जाता था और वह हुक्म बाजाहिर पहुँचा हुआ था मगर गा ैर में अहले ग़ौर मुरतकिब आँ अमरे शनीअ नशुदन्द अहले ग़ौर ने इस अमरे नामाकूल का इरतेक़ाब नहीं किया था। (और वह इस अमल में बनी उम्मया से बेज़ार थे) तारीख़े फ़रिशता सफ़ा 541
औलादे शन्सब की दुश्मनाने आले मौहम्मद स. से जंग
इसी तारीख़े फ़रिशता के सफ़ा 54 में है कि जब अबू मुस्लिम मरवज़ी ने बादशाहे वक़्त के खिलाफ़ खुरूज किया था और उसने औलादे शन्सब से मदद चाही थी तो उन लोगों ने दर क़त्ले आदाए अहले बैत तक़सीर न करद दुश्मनाने आले मौहम्मद स. के क़त्ल करने में कोई कमी नहीं की। इन तहरीरों से मालूम होता है कि अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के ज़रिये से इस्लाम के साथ साथ शिईयत भी हिन्दोस्तान में पहुँची थी क्यो कि औलादे शन्सब का तरज़े अमल शीईयत का आईना दार है।
होता है कि इस्लाम इस वक़्त से पहले में पहुँच चुका था। (मारिफ़ इब्ने क़तीबा सफ़ा 94 प्रकाशित मिस्र 1934 ई0 महीज़ उल अहज़ान सफ़ा 163)
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की एक जौजा का सिन्धी होना
इस्लाम के क़दीम तरीन मुवर्रिख़ इब्ने क़तीबा अपनी किताबे मआरिफ़ के सफ़ा 73 पर लिखता है कानत जौजातुल इमाम ज़ैनुल आबेदीन सिन्दिया व तवल्लुद तहा ज़ैद अल शहीद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) की एक बीवी सिन्धी थीं और उनसे हज़रत ज़ैद शहीद पैदा हुये। फिर इसी किताब के सफ़ा 94 पर लिखता है। ज़ैद बिन इमाम सज्जाद बिन इमाम हुसैन की कुन्नीयत अबुल हसन थीं और उनकी माँ सिन्धी थीं।
एक और जगह लिखता है जो बीवी इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को दी गई वह सिन्धी थीं। अब्दुल रज़्ज़ाक़ लिखते हैं कि ज़ैद शहीद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की जिस बीवी से पैदा हुये वह सिन्धी थीं।
(किताब ज़ैद शहीद पृष्ठ 5 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़)
इन जुमला हालात पर नज़र करने से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि सिन्ध (हिन्दोस्तान) में दीने इस्लाम हज़रत अली (अ.स.) के ज़रिये से पहुँचा और इसी के साथ साथ शीईयत की भी बुनियाद पड़ी थी नीज़ यह कि हज़रत इमाम हुसैन
(अ. स.) को सिन्ध के मुसलमानों पर भरोसा था। वह कूफ़ा व शाम के मुसलमानों पर सिन्ध के मुसलमानों को तरजीह देते थे। यही वजह है कि आपने कूफ़ा में इब्ने ज़ियाद और यज़ीद बिन माविया के लशकर के सरदार हुर बिन यज़ीद बिन माविया के लशकर के सरदार हुर बिन यज़ीदे रेयाही (जो बाद में हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के क़दमों में शहीद हो कर राहिये जन्नत हुये थे।) से यह फ़रमाया था कि मुझे सिन्ध चले जाने दो। इसके अलावा आपके फ़रज़न्द इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ. स.) ने एक बीवी सिन्ध की अपने पास रखी थी जिस से हज़रत ज़ैद शहीद पैदा हुए थे। यह तमाम उमूर इस अम्र की वजाहत करते हैं कि आले मौहम्मद स. को इलाक़ाए सिन्ध से दिलचस्पी और वह उसके बाशिन्दों को अच्छी निगाह से देखते थे और उन पर पूरा भरोसा करते थे।

