यौमे ए आशूरा एक धोका है जो क़ातिलान ए हुसैन उम्मत को दे रहे हैं

यौमे ए आशूरा एक धोका है जो क़ातिलान ए हुसैन उम्मत को दे रहे हैं
#नासबियत
#LabbaikYaHussain
#हुसैनियत
1- अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास (र) से रिवायत है कि नबी (स) ने फ़रमाया कि आशूरा के दिन रोज़ा रखो और यहूदियों की इस तरह मुख़ालेफ़त करो कि इस से एक दिन पहले और एक दिन बाद भी रोज़ा रखो।

यह रिवायत हुज़ूर की निसबत से भी सनद के एतबार से ज़ईफ़ और मुनकर है। (नेलुल अवतार, अल शोकानी, जिल्द 4, पेज 289, तहक़ीक़ एसामुद्दीन अल सबा बती, नाशिर दारुल हदीस मिस्र, पहला एडीशन 1993 ई)

2- जो शख़्स आशूरा के दिन अपने अहल व अयाल पर फ़राख़ दिली से ख़र्च करेगा, अल्लाह तआला पूरा साल उसके साथ फ़राख़ दिली का मआमला करेंगा।

सऊदी अरब की तंज़ीम ‘‘अल जमीअतुल इलमिया अल सऊदिया लिल सुन्ना वा उलूमेहा” की वेबसाइट:

पर किसी ने इसी हदीस के बारे में सवाल पूछा है कि क्या यह हदीस सहीह है या नहीं? तनज़ीम ने वेबसाइट पर तफ़सील से जवाब देते हुए लिखा है कि यह हदीस रसूल अल्लाह (स) से मरवी नहीं है, वेबसाइट ने इमाम अहमद, इब्ने रजब, अक़ीली, हाफ़िज़, अबूज़र अतुर्राज़ी, दारे क़ुतनी, इब्ने तैमिया, इब्ने अब्दुल हादी, ज़हबी, इब्नुल क़य्यम और अलबानी के हवाले से लिखा है कि यह हदीस मनघड़त और झूठी है, ज़ियादा जानकारी के लिए यह लिंक मुलाहेज़ा हो।

3- जिस शख़्स ने आशूर के दिन रोज़ा रखा, अल्लाह तआला उसके लिए 60 साल के रोज़े और उनकी रातों के क़याम की इबादत लिख देंगा, जिसने आशूर के दिन रोज़ा रखा उसे 10 हज़ार फ़रिश्तों के अमल के बराबर अज्र मिलेगा, जिसने आशूर के दिन रोज़ा रखा उसे एक हज़ार हुज्जाज और उमरा करने वालों के अमल के बराबर सवाब हासिल होगा, जिसने आशूर के दिन रोज़ा रखा उसे 10 हज़ार शहीदों का अज्र मिलेगा, जिसने आशूर के दिन रोज़ा रखा अल्लाह तआला उसके लिए 7 आसमानें का तमाम अज्र लिख देंगा, जिस शख़्स के यहाँ किसी मोमिन ने आशूर के दिन रोज़ा इफ़तार किया तो गोया उसके यहाँ पूरी उम्मते मुहम्मद (स) ने रोज़ा इफ़तार किया, जिसने आशूर के दिन किसी भूके को पेट भरके खाना खिलाया तो उसने गोया उम्मते मुहम्मद (स) के तमाम फ़क़ीरों को खाना खिलाया, जिस शख़्स ने (इस दिन) किसी यतीम के सर पर हाथ फेरा तो उस (यतीम) के सर के बाल के बराबर उसके लिए जन्नत में एक दर्जा बुलंद किया जाएगा, इस पर सैय्यदना उमर ने अर्ज़ किया कि: ऐ अल्लाह के रसूल (स)! बिला शुभा, आशूर का दिन अता करके अल्लाह तआला ने हमें बड़ा ही नवाज़ा है, आपने फ़रमायाः अल्लाह तआला ने आसमानों, ज़मीन, पहाड़ों, तारों, क़लम और लौह की तख़लीक़ इसी दिन की है, इसी तरह जिब्रील, फ़रिश्तों और आदम की तख़लीक़ भी इसी यौमे आशूर को की है, सैय्यदना इब्राहीम की विलादत भी इसी दिन हुई है, इन्हें आग से भी इसी दिन बचाया, सैय्यदना इस्माईल को क़ुर्बान हो जाने से भी इसी दिन बचाया (तो फिर मुसलमान 10 ज़िलहिज्जा को ईद उल अज़हा क्यों मनाते हैं?) फ़िरऔन को भी इसी दिन दरया में डुबोया (इसको हम तहक़ीक़ से साबित कर चुके हैं कि यह ग़लत है) सैय्यदना इद्रीस को भी इसी दिन उठाया, उनकी पैदाइश भी उसी दिन हुई थी, हज़रत आदम की लग़ज़िश भी इसी आशूर को मुआफ़ फ़रमाई (जनाबे आदम (अ) के ज़माने में तो कोई कलेंडर ही न था? तो कैसे मालूम हुआ के आशूर का दिन था) दाऊद (अ) की लग़ज़िश भी इसी दिन मुआफ़ फ़रमाई, हज़रत सुलेमान को बादशाहत भी इसी दिन अता की थी, मुहम्मद (स) की विलादत भी आशूर के दिन हुई थी (तो फिर 12 रबी उल अव्वल को ईदे मीलाद उल नबी क्यों मनाया जाता है?) अल्लाह अपने अर्श पर भी इसी दिन मुस्तवी हुआ और क़यामत भी आशूर ही के दिन बरपा होगी।

क़ारेईन! देखा आपने, आशूर के दिन के लिए बनी उमय्या के यज़िदी दरबारी हदीस साज़ों ने सारी मुनासबतें घड़ डालीं ताकि नबी (स) के चहीते नवासे हज़रत इमाम हुसैन (अ) की दिलसोज़ शहादत और इसकी तासीर की तरफ़ से लोगों की तवज्जोह हट जाए और बनी उमय्या बड़े आराम से हुकूमत करते रहें, यह इतनी मनसूबा बंद तूलानी रिवायत किसी भी तरह दरायत पर पूरी नहीं उतरती है, इसी लिए इस रिवायत के बारे में अहले सुन्नत के मशहूर आलिम इमाम जौज़ी फ़रमाते हैं कि: यह बिला शुबहा मनघड़त रिवायत है, इमाम अहमद बिन हंबल ने इसके एक रावी “हबीब बिन अबी हबीब” को रिवायते हदीस के बाब में झूठा क़रार दिया है, इब्ने अदी का उसी के बारे में कहना है कि वह हदीसें घड़ा करता था, अबू हातम भी फ़र

माते हैं कि यह रिवायत बिल्कुल बातिल और बेबुनियाद है। (अल मोज़ूआत, इब्ने जौज़ी, जिल्द 2, पेज 203, नाशिर मुहम्मद अबद हुसैन, साहिबे अल मकतबा तुल सलफ़िया मदीना, पहला एडीशन 1996 ई)

4- जिस शख़्स ने मोहर्रम के इब्तेदाई 9 दिन के रोज़े रखे अल्लाह तआला उसके लिए आसमान में मीलों लंबा चौड़ा एक ऐसा गुंबद बनाएगा जिस के चार दरवाज़े होंगे।

यह रिवायत भी जाली और झूठी रिवायतों में से है। (अल मोज़ूआत इब्ने जौज़ी, जिल्द 2, पेज 193)

इसके अलावा आशूर की फ़ज़ीलत के बारे में और भी बहुत सी मनघड़त हदीसों की निशानदेही की गई है जिनको हम इख़्तसार की वजह से नक़्ल नहीं कर रहे हैं।

ख़ुदावंदे आलम तमाम मुसलमानों को क़ुरआन और रसूल स. की इतरत के दामन से लिपटाए रखे। (आमीन)

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