चौदह सितारे पार्ट 60

हिन्दुस्तान में इस्लाम सब से पहले

हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ.स.) के ज़रिये से पहुँचा इलाक़ए सिन्ध से आले मौहम्मद स का खुसूसी इलाक़ा व राबेता

यह ज़ाहिर है कि हज़रते रसूले करीम स. के बाद इस्लाम की सारी जिम्मेदारी अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली बिन अबी तालिब (अ. स.) पर थी जिस तरह सरकारे दो आलम अपने अहदे नबूवत में ता बा हयाते जाहेरी इस्लाम की तब्लीग़ करते रहे और उसे फ़रोग़ देने में तन, मन, धन की बाज़ी लगाए रहे इसी तरह उनके बाद अमीरूल मोमेनीन ने भी इस्लाम को बामे ऊरूज तक पहुँचाने के लिये जेहदे मुसलसल और सई पैहम की और किसी वक़्त भी उसकी तब्लीग़ से ग़फ़लत नहीं बरती, यह और बात है कि ग़ज़बे इक्तेदार की वजह से दारए अमल वसी न हो सका और हलक़ाए असर महदूद हो कर रह गया । ताहम फ़रीज़े की अदायगी इमामत की ख़ामोशी फिज़ा में जारी रही यहां तक की इक़तेदार क़दमों में आया और मिन्हाजे नबूवत पर काम शुरू हो गया तबलीग़ के महदूद हलके वसी हो गये। इमामत ख़िलाफ़त के दोश बदोश आगे बढ़ी और इस्लाम की रौशनी मुमालिके ग़ैर

में पहुँचने लगी। हिन्दोस्तान जो कुफ़्रो इल्हाद और ग़ैर उल्लाह की परस्तिश का मरक़ज़ और मलजा व मावा था अमीरुल मोमेनीन ने दीगर मुमालिक के साथ साथ वहां भी इस्लाम की रौशनी पहुँचाने का अज़मे मोहकम कर लिया और थोड़ी सी जद्दो जेहद के बाद वहां इस्लाम की किरन पहुँचा दी और ज़मीने हिन्द को इस्लामी ताबन्दगी से मुनव्वर कर दिया ।

इमामुल मुवर्रेख़ीन अबू मौहम्मद, अब्दुल्लाह बिने मुस्लिम इब्ने क़तीबा दीनवरी अपनी किताबुल माअर्रिफ़ के सफ़ा 95 प्रकाशित मिस्र 1934 ई0 मे लिखते हैं इस्लाम सिन्ध हिन्दुस्तान में सब से पहले अमीरल मोमेनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) के अहद में पहुँचा इस पर बहुत से वाकियात शाहिद हैं। हज नामा कलमी सफा 34 में है कि अमीरल मोमेनीन (अ. स.) ने सन् 38 हिजरी में नाजिर बिन दावरा को सरहादाते सिन्ध की देख भाल के लिये रवाना किया। यह रवानगी बज़ाहिर अपने मक़सद के लिये राह हमवार करने की खातिर थी और यह मालूम करना मक़सूद था कि हिन्दोस्तान में क्यों कर दाखिला हो सकता है। इसी मक़सद के लिये इस से क़ब्ल अहदे उस्मानी में अब्दुल्लाह बिन आमिर इब्ने करेज़ को मुक़र्रर किया गया था। मुवरिख़ बिलाज़री लिखते हैं कि वह सफ़रुल हिन्द की तरफ़ दरयाई मुहिम पर रवाना हुये। ग़रज़ यह थी कि इस मुल्क के हालात से आगाही हासिल हो। अब्दुल्लाह बिन आमिर ने हकीम बिन जिब्तुल अदवी की सरदारी में एक दस्ता समुन्दर के रास्ते रवाना किया। वह बलुचिस्तान और सिन्ध

के मशरिक़ी इलाक़े को देख कर वापस आये तो अब्दुल्लाह ने उनको उस्मान बिन अफ़ान के पास भेज दिया कि जो कुछ देखा है जा के सुना दे, उस्मान ने पूछा उस मुल्क का क्या हाल है, कहा मैंने उस मुल्क को चल फिर कर अच्छी तरह देख लिया है। उस्मान ने कहा मुझ से उसकी कैफियत बयान करो। हकीम बिन जबला ने कहाः वहां पानी कम, फल रद्दी, चोर बेबाक, लशकर कम हो तो ज़ाया जायेगा, बहुत हो तो भूखों मरेगा। यह सुन कर उन्होंने कहा, ख़बर दे रहे हो या हजो कर रहे हो। बोले ऐ अमीर, ख़बर दे रहा हूं। यह सुन कर उन्होंने लशकर कशी का ख़्याल तर्क कर दिया।

(तरजुमा फ़तहुल बलदान बेलाज़री लिल्द 2 सफ़ा 613)

हज़रत उस्मान जिनका मक़सद मुल्क पर क़ब्जा करना और फ़तुहवात की फ़ेहरिस्त बढ़ाना था, वहां के हालात सुन कर ख़ामोश हो गये और सिन्ध वग़ैरा की तरफ़ बढ़ने का ख़्याल तर्क कर दिया लेकिन हज़रत अमीरुल मोमेनीन (अ. स.) जिनका मक़सद फ़तूहात की फ़हरिस्त मुरत्तब करना न था बल्कि दीने इस्लाम फ़ैलाना था, उन्होंने नासाज़गार हालात के बवजूद आगे बढ़ने का अज़म बिल जज़्म कर लिया और 39 हिजरी में हज़रत अली (अ.स.) ने हारिस बिन मुर्रा अब्दी को सिन्ध पर क़ाबू हासिल करने के लिये भेजा । इसी सन् में सिन्ध फ़तेह हुआ। यह हज़रत अली (अ.स.) का कारनामा है कि सिन्ध अली बिन अबी तालिब अ.स. के

हाथो फ़तेह हुआ और हुकूमते इस्लामिया पहले पहल उन्हीं के हाथों क़ायम हुई। (तारीख़े सिन्ध दारूल मुस्न्नेफ़ीन आज़म गढ़ 1947 ई0)

अल्लाम बिलाज़री अल मुतावफ्फा 279 लिखते हैं कि आखिर 38 हिजरी या अव्वल 39 हिजरी में हारिस बिन मुर्रा अब्दी ने अली बिन अबी तालिब रजी अल्लाह अनहा से इजाज़त ले कर बा हैसियत मुतव्वा सरहदे हिन्द पर हमला किया। फ़तेहयाब हुये, कसीर ग़नीमत हाथ आई, सिर्फ़ लौंडी गुलाम ही इतने थे की एक दिन में एक हज़ार तक़सीम किये गये। हारिस और उनके अक्सर असहाब अरज़े क़ैक़ान मे काम आये सिर्फ़ चन्द जिन्दा बचे | यह 42 हिजरी का वाकेया है। (तरजुमा फ़तहुल बलदान बिलाज़री जिल्द 2 सफ़ा 613 प्रकाशित कराची)

मुवर्रिख़ जाकिर हुसैन का बयान है कि साहेबे रौज़तुल सफ़ा लिखते हैं कि हिन्दोस्तान में क़ासिम की मातहती में एक मोतदबेह फ़ौज रवाना की गई, जो 38 हिजरी के अवाएल में सिन्ध की फ़तूहात में मसरूफ़ हुई। उसने चन्द मक़ामाते सिन्ध पर क़ब्ज़ा किया। क़ासिम के बाद 38 हिजरी के आखिर में या 39 हिजरी के शुरू में हारिस बिन मर्रा अब्दी एक दूसरी फ़ौज के साथ दारूल खिलाफ़ा से रवाना किया गया और उसने इन मुमालिक में बहुत से मुमालिक फ़तेह किये। बहु से हिन्दू गिरफ़्तार किये गये और कसीर माले ग़नीमत हाथ आया जो बराहे रास्त दारूल ख़िलाफ़ा को रवाना किया गया, और एक दिन में एक हज़ार लौंडी
गुलाम ग़नीमत के माल में तक़सीम किये गये हारिस बिन मुर्रा मुद्दत तक इन बिलाद पर क़ाबिज़ रहे ।

(तारीख़े इस्लाम जिल्द 3 सफ़ा 222 प्रकाशित देहली 1331 हिजरी )

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