चौदह सितारे पार्ट 52

मुशकिल कुशा की मुशकिल

कुशाई एक रवायत में है कि एक दिन हज़रत अली (अ.स.) मदीने की एक गली से गुज़र रहे थे, नागाह आपकी निगाह अपने एक मोमिन पर पड़ी देखा कि उसे एक शख़्स बुरी तरह गिरफ़्त में लिये हुए है। हज़रत उसके क़रीब गये और उस से पूछा यह क्या मामेला है? उस मोमिन ने कहा, मौला मैं इस मर्दे मुनाफिक़ के एक हज़ार सात सौ (1700) दीनार का क़जदार इसने मुझे पकड़ रखा है और इतनी मोहलत भी नहीं देता कि मैं यहाँ से जा कर कोई बन्दोबस्त करूं | हज़रत ने फ़रमाया कि तू ज़मीन की रूख़ कर और जो पत्थर वग़ैरह इस वक़्त तेरे हाथ आयें उन्हें उठा ले। चुनान्चे उसने ऐसा ही किया, जब उसने उठा कर देखा तो वह सब सोने के थे।

हज़रत ने फ़रमाया कि इसका क़र्ज़ा अदा करने के बाद जो बचे उसे अपने काम में ला। रावी कहता है कि दूसरे दिन जिब्राईल के कहने से हज़रत रसूले करीम स. ने इस वाक़े को असहाब के मजमे में बयान फ़रमाया ।

एक मशलूल की शिफ़ा याबी

अब्दुल्लाह बिन अब्बास का बयान है कि एक रोज़ नमाज़े सुब्ह के बाद हज़रत रसूले करीम स. मस्जिदे मदीना में बैठे हुए सलमान, अबूज़र मिक़दाद और हुज़ैफ़ा से महवे गुफ़्तुगू थे कि नागाह मस्जिद के बाहर एक गुलगुला उठा, शोर सुन कर लोग मस्जिद के बाहर गये, तो देखा कि चालीस आदमी खड़े हैं जो मुसल्लाह हैं और उनके आगे एक निहायत ख़ूबसूरत नौजवान शख़्स हैं। हुज़ैफ़ा ने रसूले ख़ुदा को हालात से आगाह किया, आपने फ़रमाया कि उन लोगों को मेरे पास लाओ। वह आ गये, तो हज़रत ने फ़रमाया कि अली बिन अबी तालिब को बुला लाओ । हुज़ैफ़ा गये, अमीरुल मोमेनीन ने फ़रमाया कि ऐ हुज़ैफ़ा मुझे इल्म है कि एक गिरोह क़ौमे आद से आया है, मुझे उनकी हाजत भी मालूम है। उसके बाद आप हाजिरे खिदमते रसूले करीम ( स.व.व.अ.) हुए। आं ने हज़रत अली (अ.स.) से उनका सामना कराया। हज़रत अली (अ.स.) ने उस मरदे ख़ूबरू से कहा कि ऐ हज्जाज बिन खल्जा बिन अबिल असफ़ बिन सईद बिन मम्ता बिन अलाक़ बिन वहब बिन सअब बता तेरी क्या हाजत है। उसने जब अपना नाम और पूरा शजरा सुना तो
हैरान रह गया और कहा कि हुज़ूर मेरे भाई को शिकार का बड़ा शौक है। उसने एक दिन जंगल में शिकार खेलते हुए एक जानवर के पीछे घोड़ा डाला और उस पर तीर चलाया, इसके फ़ौरन बाद उसका निस्फ़ बदन शल हो गया। बड़े इलाज किये मगर कोई फ़ायदा न हुआ, आपने फ़रमाया कि उसे मेरे सामने ला । वह एक ऊँट पर लाया गया। हज़रत ने उसे हुक्म दिया कि उठ बैठ चुनान्चे वह तन्दरूस्त हो कर उठ बैठा। यह देख कर वह और उसके क़बीले के सत्तर हज़ार (70,000) नुस मुसलमान हो गये।

वफ़ाते रसूल स. के बाद अली (अ.स.) का ख़ुतबा

किताब नहजुल बलाग़ाह जिल्द 1 पृष्ठ 432 प्रकाशित मिस्र में है बुजुरगाने असहाबे मौहम्मद स. ने जो हाफिज़े क़ुरआन व सुन्नते नबवी थे जान लिया था कि मैं कभी एक साअत के लिये भी फ़रमाने ख़ुदा और रसूल स. दूर नहीं हुआ और पैग़म्बरे अकरम स. की ख़ातिर कभी अपनी जान की परवा नहीं की । जब दिलेरों ने राहे फ़रार इख़्तेयार की और बड़े बड़े पहलवान पीछे हट आये, इस शुजाअत और जवां मरदी के बाएस जो ख़ुदा ने मुझे अता की है मैंने जंग की और रसूले ख़ुदा स. की क़ब्ज़े रूह इस हालत में हुई कि आपका सरे मुबारक मेरे सीने पर था। इनकी जान मेरे ही हाथों पर बदन से जुदा हुई। चुनान्चे मैंने अपने हाथ ( रूह निकलने के बाद) अपने चेहरे पर मले। मैंने ही आं हज़रत स. के जसदे अतहर को गुस्ल दिया और फ़रिश्तों ने मेरी इस काम में मदद की । पस बैते नबवी और उसके एतराफ़ से गिरयाओ जारी की सदा बलन्द हुई। फ़रिश्तों का एक गिरोह जाता था तो दूसरा आ जाता था। उनकी नमाज़े जनाज़ा का हमहमा मेरे कानों से जुदा नहीं हुआ यहां तक कि आपको आख़री आराम गाह में रख दिया गया। पस आं हज़रत की हयात व ममात में उनसे मेरे मुक़ाबले में कौन सज़ावार था। जो कोई इसका अदआ करता है वह सही नहीं कहता ।

(तरजुमा नहजुल बलागा, रईस अहमद जाफ़री जिल्द 1 पृष्ठ 1200 प्रकाशित लाहौर)

इसी किताब के पृष्ठ 1303 पर है कि मेरे माँ बाप आप पर क़ुरबान ऐ रसूले ख़ुदा स. आपकी वफ़ात से नबूवत ऐहकामे इलाही और अख़बारे आसमानी का सिलसिला मुनÇता हो गया। जो दूसरे पैग़म्बारों की वफ़ात पर कभी नहीं हुआ था। आपकी ख़ुसुसियत यगानगत यह भी थी कि दूसरी मुसीबतों से आपने तसल्ली दे दी क्यों कि आपकी मुसीबत हर मुसीबत से बालातर है और दुनिया से रहलत फ़रमाने की बिना पर आपको यह उमूमियत व ख़ुसूसियत हासिल है कि आपके मातम में तमाम लोग यकसां दर्दमन्द और सीना फिग़ार हैं।

24 Zilhajj Yaum E Mubahila


_Jab Aayat e Mubahila (Surah Ale Imaran 3:61) Nazil Hui, “Aao Ham Apne Beto Ko Bulaye Tum Apne Beto Ko Aur Ham Apni Aurato Ko (Bulaye) Aur Tum Apni Aurato Ko Aur Ham Apni Jaano Ko Bulaye Aur Tum Apni Jano Ko”._

*_To Rasulallahﷺ Ne Maula Aliع, Sayeda Fatema Zahraس, Imam Hassanع Aur Imam Husainع Ko Bulaya Aur Kaha, “Aye Allahﷻ, Ye Mere Ahlebait Hai”._*

*_Reference :-_*
*_📚Sahih Muslim:- Hadith No.6220_*

_24 जिल्हज ईद ए मुबाहिला क्या है ?_

*_कुरआन ए पाक मे ऐसी कई आयत है जो पंजतन पाकع की शान मे नाजिल हुई, लेकिन अफ़सोस मिंबरों से सिर्फ 1400 सालो से वजू के फराइज हि बताए जा रहे है कभी शान ए पंजतन पाकع शाने अहलेबैतع नहीं बताई गई, और हमने कभी जानने की कोशिशे भी नहीं की, बस सुनी सुनाई बातो को सब कुछ समझ लिया, कभी खुद तहकीक करने की कोशिश नहीं की,_*

_24 जिल्हज को क्या हुआ था तुम खुद जानो कोई नहीं बताएगा, पंजतन पाक के नाम से तो सांप सुंघ जाता है अहलेसुन्नत के ओलमा को, और रही बात शियाओ की तो शियाओ ने ठेका नहीं लिया है पंजतन पाकع की शान ओ अजमत बताने का,_

*_बेदम यही तो पाँच है मक़सूद ए क़ायनात_*
*_खैरुन्निशाش हुसैनع ओ हसनع मुस्तफाﷺ अली۴._*

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنْفُسَنَا وَأَنْفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَلْ لَعْنَتَ اللَّهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

*_पैग़म्बरﷺ इल्म के आ जाने के बाद भी अगर लोग तुम से (ईसा के बारे में) कट हुज्जती करें तो उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने फ़रज़न्द (बेटों को बुलाएं, तुम अपने बेटों को बुलाओ), हम अपनी औरतों को बुलाएं तुम अपनी औरतों को बुलाओ और हम अपने नफ़्सों (जानों) को बुलायें तुम अपनी नफ़्सों (जानों) को बुलाओ फिर ख़ु़दा की बारगाह में (सब मिलकर) दुआ करें और झूठों पर ख़ु़दा की लाअनत क़रार दें_*

_📗सूरह आले इमरान : आयत 61-62-63_

मुबाहिला

नज़रान के ईसाई और उनके बड़े बड़े आलिम (पादरी)  आका हुज़ूर (सल्लालाहु व अलैहि वसल्लम) से discussion डिबेट करने के लिए आये  के किसका दीन हक़ पर है 

आका हुज़ूर ने दलाईल पेश किए तौहीद व दीन-ए-हक़ के और उनके अक़ाईद में  क्या क्या कमियाँ हैं   वो समझ तो गये लेकिन मानने को तैयार ना थे 

तब अल्लाह की तरफ़ से हुक्म हुआ -सुरह “आले इमरान” आयात नंबर 61

तर्जुमा- “आप कह दें – आओ, हम अपने बेटों को बुलाते हैं और तुम अपने बेटों को बुलाओ, हम अपनी बेटियों को बुलाते हैं और तुम अपनी बेटियों को बुलाओ, हम अपने नफ्सों को बुलाते हैं और तुम अपने नफ्सो को बुलाओ फिर दोनों फरीक अल्लाह से दुआ करें कि जो झूठा हो उसपर अल्लाह की लानत हो-

फिर ताज़दार-ए-मदीना आका व मौला  अपने अहले बैत को लेकर चले मुबाहिला करने

बेटे हसनैन-ए-करीमैन   हज़रत हसन मुज़्तबा और हज़रत हुसैन

बेटी ख़ातून-ए-जन्नत   फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा)

और नफ़्स और जान    अली अल मुर्तज़ा

जब नज़रान के एक बुजुर्ग ईसाई पादरी ने  इन पाक पंजतन मुक़द्दस हस्तियों को आते देखा तो मुबाहिले से ही फरारी इख़्तियार कर ली बिना मुबाहिला किए ही फ़रार हो गये-

24 ज़िल्हिज