चौदह सितारे पार्ट 49

आपकी इल्मी मरकजीयत

अल्लामा इब्ने अबिल हदीद, अल्लामा इब्ने शहरे आशोब, अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई और अल्लामा अरबली तहरीर फ़रमातें हैं कि अशरफुल उलूम, उल इलाहियात है और यह हज़रत अली (अ.स.) ही के कलाम से एकतेबास किया गया है और आप ही इसकी इब्तेदा और इन्तेहां हैं। अक़ाएद के एतेबार से इस्लाम में मुख़्तलिफ़ फिरके हैं इन्में मोतज़ला भी है। इस फिरके का बानी वासिल इब्ने अता है जो अबु हाशिम का शार्गिद था और वह अपने बाप मौहम्मद बिन हन्फिया का शार्गिद था और मौहम्मद हज़रत अली के शार्गिद थे। दूसरा फिरका अशअरिया है जो अबुल हसन अशअरी की तरफ़ मन्सूब है और वह शार्गिद था अबु अली जबाई का जो मशाएख़ मोतज़ला से था। इसकी इन्तेहा भी हज़रत अली तक क़रार पाती है । तीसरा फिरक़ा इमामिया व ज़ैदिया है। इसका हज़रत की तरफ़ मन्सूब होना बिल्कुल वाज़ेह है।

इस्लामी उलूम में इल्में फिक्हा भी है और इस्लाम का हर फिरका व मुजतहिद हज़रत ही का शार्गिद है। चुनान्चे अहले सुन्नत में चार फिरके हैं। मालकी, हन्फ़ी, शाफ़ेई और हम्बली। मालकी फिरके के बानी इमामे मालिक शार्गिद थे रबीअतुल
राई के और वह शार्गिद थे अकरेमा के और वह शार्गिद थे इब्ने अब्बास के और वह शार्गिद थे हज़रत अली (अ.स.) के। दूसरे फिरके हन्फ़ी के बानी इमामे अबू हनीफ़ा थे, वह शार्गिद थे इमामे मौहम्मद बाक़र (अ.स.) के और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के और वह शार्गिद थे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के और इमाम आबिद (अ.स.) शार्गिद थे इमाम हुसैन (अ.स.) के और वह शार्गिद थे हज़रत अली (अ.स.) के। तीसरे फिरके के बानी इमाम शाफ़ेई शार्गिद थे इमाम मौहम्मद के और वह शार्गिद थे इमाम अबू हनीफ़ा के चौथे फिरके के बानी इमाम अहमद बिन हम्बल शार्गिद थे, इमाम शाफ़ेई के इस तरह उनका फिरका भी हज़रत अली (अ.स.) का शार्गिद हुआ। इसके अलावा सहाबा के फ़ुक़हा हज़रत उमर व अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास थे, और दोनों ने इल्में फिक्हा हज़रत अली (अ.स.) से ही सीखा। इब्ने अब्बास का शार्गिदे हज़रत अली (अ.स.) होना तो वाज़ेह और मशहूर है, रहे हज़रत उमर तो उनके बारे में भी सब को इल्म है कि बकसरत मसाएल में जब उनकी अक़्लो फ़हम और राह चारो तदबीर बन्द हो जाया करती थी तो वह हज़रत अली (अ.स.) की तरफ़ रूजु करते और हज़रत अली (अ.स.) से ही मुश्किल कुशाई की दरख्वास्त किया करते थे और अकसर ऐसा भी अपने अलावा दीगर सहाबा की भी मुश्किल कुशाई अली (अ.स.) से कराया करते थे। उनका बार बार लौला अली लहका उमर अगर अली (अ.स.) न होते तो उमर हलाक हो जाता, कहना और यह फ़रमाना कि ख़ुदा वह वक़्त न लाये कि मैं किसी हुआ है कि

इल्मी मुश्किल में मुब्तिला हो जाऊँ और अली (अ.स.) मौजूद न हों। इसके अलावा यह कहना कि जब अली (अ.स.) मस्जिद में मौजूद हों तो कोई फ़तवा देने की जुरअत न करे। यह साबित करता है कि हज़रत उमर की फिक़ही हद हज़रत अली (अ. स.) की मुन्तही होती है। हज़रत अली (अ.स.) ही वह हैं जिन्होने उस औरत के मुक़दमे में मुनसेफ़ाना फ़तवा दिया जिसने छः (6) महीने में बच्चा जना था और जिना कार हामला औरत के मामले में तय फ़रमाया था जिसके रजम का फ़तवा हज़रत उमर दे चुके थे।

इस्लामी उलूम में तफ़सीरे क़ुरआनी का इल्म भी है। यह इल्म भी हज़रत अली (अ. स.) से हासिल किया गया है। जो शख़्स तफ़सीर की किताबें देखे उसे आसानी से इस दावे की सेहत मालूम हो जाऐगी क्यों कि तफ़सीर के मतालिब ज़्यादा तर हज़रत अली (अ.स.) और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ही से मन्कूल हैं और अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास का शार्गिदे अली (अ.स.) होना मशहूर व मारूफ़ है। लोगों ने अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास से एक दफ़ा पूछा कि हज़रत अली (अ.स.) के इल्म के मुक़ाबले में आपका इल्म कितना है? फ़रमाया जितना एक बहरे ज़ख़्ख़ार के मुक़ाबले में एक छोटा क़तरा हो सकता है। इस्लामी उलूम में इल्मे तरीक़त व हकीक़त और उसूले तसव्वुफ़ भी है और तुमको मालूम होना चाहिये कि इस फ़न के जुमला उलेमा व माहेरीन अपने को हज़रत की तरफ़ ही मन्सूब करते हैं और हज़रत ही तक अपने सिलसिले को मुन्तही क़रार देते हैं। इसकी सराहत उन लोगों
भी की है जो फिरक़ाए सूफ़ीया के इमाम और पेशवा माने गये हैं। जैसे शिब्ली, जुनैद, सिरी, अबू यज़ीद बस्तामी, मारूफ़ करख़ी, सूफ़ी ख़रक़ा, सूफ़ी को अली (अ. स.) का ही शेआर क़रार देते हैं।

उलेमा अरबिया मे इल्मे नुजूम भी है। दुनिया के माहेरीन को इल्म है कि इस इल्म के बानी हज़रत अली (अ.स.) हैं। आप ही ने इस इल्म की ईजाद की है। आप ही ने इसके क़वाएद व ज़वाबित मदून फ़रमाये हैं। आप ने इस इल्म के उसूल व जवामे की तालीम अबू अल अस्वद देली को दी और उसके क़वानीन तरतीब देने का तरीका सिखाया हज़रत ने जो मुख़्तसर और जामे उसूल बताये उनमें कलाम, कलमा और एराब थे। आप ने कहा कि कलाम, इल्मे फ़ेल, हरफ़ को कहते हैं और कलमा मारेफ़ा और नुक़रा होता है और एराब, रफ़े नसब हजर और जज़्म में मुन्क़सिम होता है। हज़रत के इन मुख़्तसर उसूल व ज़वाबित को आपके मोजेज़ात में शुमार करना चाहिये । (शरह इब्ने अबिल हदीद, जिल्द 1 पृष्ठ 7, व मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 98 व कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 54 मनाकिब जिल्द 2 पृष्ठ 67)

इसके अलावा इल्म अल किरअत, इल्म अल फ़राएज़, इल्म अल कलाम, इल्म अल खिताबत, इल्म अल फ़साहत व बलाग़त, इल्म अल शेर, इल्म अल उरूज वल क़वाफ़ी, इल्म अल अदब, इल्म अल किताबत, इल्म ताबीरे ख़्वाब, इल्म अल फ़लसफ़ा, इल्म अल हिन्दसा, इल्म अल नुजूम, इल्म अल हिसाब, इल्म अल तिब, इल्मे मन्तिक अल तैर वग़ैरा में आपको इन्तेहाई कमाल हासिल था। ( मनाकिब जिल्द 2 पृष्ठ 67) और इल्मे लदुन्नी, इल्मे अल ग़ैब में भी आपको यदे तूला हासिल था। ( नुरूल अबसार पृष्ठ 760 व अजहुल पृष्ठ 213)

इब्ने शहरे आशोब ने मनाकिब में हज़रत अली (अ.स.) के सौते नाकूस की तफ़सीर बयान फ़रमाने की तफ़सील लिखी है और अल्लामा मौहम्मद बाक़र ने दमुस साकेबा के पृष्ठ 141 पर इब्ने अबिल हदीद के हवाले से 33, बड़ी सतरों पर मुश्तमिल हज़रत का एक निहायत फ़सीह व बलीग़ ऐसा खुतबा नक़ल किया है जिसमें लफ़्ज़े अलिफ़ नहीं है।

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