
अली (अ.स.) की शान में मशहूर आयात
1. आयए तत्हीर 2. आयए सालेह अल मोमेनीन 3. आयए विलायत 4. आयए मुबाहेला 5. आयए नजवा 6. इज़्ने वायता 7. आयए अतआम 8. आयए बल्लिग, तफ़सील के मुलाज़ा हों रूह अल क़ुरआन, मोअल्लेफ़ा हक़ीर लाहौर में छपा।
हज़रत अली (अ.स.) रसूले ख़ुदा की निगाह में
1. फ़ख़रे मौजूदात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स. ने अली (अ.स.) के काबा में पैदा होते ही मुँह में अपनी ज़बान दी।
2. अली (अ.स.) को अपना लोआबे दहन चूसाया ।
3. परवरिश व परदाख़्त खुद की।
4. दावते ज़ुलअशीरा के मौक़े पर जब कि अली (अ.स.) की उम्र 10 या 14 साल की थी।
5. दामादी का शरफ़ बख़्शा ।
6. बुत शिकनी के वक़्त अली (अ.स.) को अपने कन्धों पर सवार किया।
7. जंगे खन्दक़ में आपके कुल्ले ईमान होने की तस्दीक़ की ।
8. इल्मो हिक्मत से बहरा वर किया।
9. अमीरुल मोमेनीन का खिताब दिया ।
10. आपकी मोहब्बत ईमान और आपका बग्ज़ कुफ्र क़रार दिया।
11. अली (अ.स.) को अपना नफ़्स क़रार दिया।
12. शबे हिजरत आपने अपने बिस्तर पर जगह दी ।
13. आप पर भरोसा कर के फ़रमाया कि अमानतें वग़ैरा तुम अदा करना ।
14. अली (अ.स.) को मख़सूस क़रार दिया कि वह ग़ार मे खाना पहुँचाएं।
15. 18 जिल्हिज को आपकी खिलाफ़त का 1,24,000 (एक लाख चौबीस हज़ार )
असहाब के मजमे में ग़दीर ख़ुम के मक़ाम पर एलान फ़रमाया।
16. वफ़ात के करीब जांनशीनी की दस्तावेज़ लिखने की कोशिश की ।
17. आपकी मदहो सना में बेशुमार अहादीस फ़रमाईं।
18. आपको हुक्म दिया कि मेरे बाद फ़ौरी जंग न करना ।
19. मौक़ा हाथ आने पर मुनाफिकों से जंग करना ताके हुक्मे खुदा जाहद अल कुफ़्फ़ा रवल मुनाफ़ेक़ीन की तकमील हो सके जो कि मेरे लिये है।
अली (अ.स.) की शान में मशहूर अहादीस
1. हदीसे मदीने, 2. हदीसे सफ़ीना, 3. हदीसे नूर, 4. हदीसे मन्जिलत 5. हदीसे ख़ैबर 6 हदसे खन्दक़, 7 हदीसे तैर, 8 हदीसे सक़लैन 9. हदीसे ग़दीर | ‘ (तफ़सील के लिये अब्क़ातुल अनवार मुलाहेजा हो)
नक़्शे ख़ातमे रसूल स. और अली वली अल्लाह
इमामुल मोहसीन अल्लामा मौहम्मद बाक़िर मजलिसी, अल्लामा मौहम्मद बाक़र नजफ़ी, अल्लामा शेख़ अब्बास कुम्मी तहरीर फ़रमाते हैं कि रसूले करीम स. हज़रत अली (अ.स.) को एक नगीना दे कर मोहर कुन (नगीने पर नक़्श बनाने
वाले) के पास जो अंगूठियों के नगीनों पर कन्दा करता था भेजा और फ़रमाया कि इस पर मौहम्मद बिन अब्दुल्ला कन्दा करा लाओ। हज़रत अली (अ.स.) ने उसे कन्दा करने वाले को दे कर इरशादे रसूल स. के मुताबिक़ हिदायत कर दी। अमीरुल मोमेनीन (अ. स.) जब शाम के वक़्त उसे लाने के लिये गये तो उस पर मौहम्मद बिन अब्दुल्ला के बजाय मौहम्मद रसूल अल्लाह कन्दा था। हज़रत ने फ़रमाया कि मैंने जो इबारत बताई थी तुमने वह क्यो न कन्दा की। कन्दा करने वाले ने अर्ज़ की मौला, आप इसे हुज़ूर के पास ले जाइये फिर वह जैसा इरशाद फ़रमाऐगें वैसा किया जाऐगा। हज़रत ने उसे कुबूल फ़रमा लिया। रात गुज़री, सुबह के वक़्त वजू करते हुए देखा कि इस पर मौहम्मद रसूल अल्लाह स. के नीचे अली वली अल्लाह कन्दा है। आप इस पर गौर फ़रमा रहे थे कि जिब्राईल अमीन ने हाज़िर हो कर अर्ज़ कि हुज़ूर फ़रमाया गया है कि ऐ नबी। जो तुमने चाहा तुमने लिखवाया, जो मैने चाहा मैंने लिखवा दिया। तुम्हें इसमें तरदुद क्या है।
(बेहारूल अनवार, दमए साकेबा, सफ़ीनतुल बेहार, लिल्द 1 पृष्ठ 376 नजफ़े अशरफ़ में छपी)
नियाबते रसूल (स.व.व.अ.)
हर अक़्ले सलीम यह करने पर मजबूर है कि मनीब व मनाब में तवाफ़ुक़ होना चाहिये। यानी जो सिफ़ात नाएब बनाने वाले में हो, उसी किस्म की सिफ़तें नाएब बनने वाले में भी होनी चाहिये। अगर नाएब बनाने वाला नूर से पैदा हो तो जां
नशीन को भी नूरी होना चाहिये। अगर वह मासूम हो तो, उसे भी मासूम होना चाहिये। अगर उसे ख़ुदा ने बनाया हो तो, उसे भी ख़ुदा के हुक्म से ही बनाया गया हो। हज़रत अली (अ.स.) हज़रत मौहम्मद मुस्तफ़ा के जां नशीन थे, लिहाज़ा उनमें नवी का सिफ़ात का होना ज़रूरी था। यही वजह है कि जिन सिफ़ात के हामिल सरवरे कायनात थे, उन्हीं सिफ़ात से हज़रत अली (अ.स.) भी बहरावर थे।
जानशीन बनाने का हक़ सिर्फ़ ख़ुदा को है क़ुरआने मजीद के पारा 20, रूकू 7 10 में ब सराहत मौजूद है कि ख़लीफ़ा और जानशीन बनाने का हक़ सिर्फ़ ख़ुदा वन्दे करीम को है। यही वजह है कि उसने तमाम अम्बिया का तक़रूर खुद किया और उनके जानशीन को खुद मुक़र्रर कराया, अपने किसी नबी तक को यह हक़ नहीं दिया विह बतौर खुद अपना जांनशीन मुक़र्रर कर दे। न कि उम्मत को इख़्तेयार देना कि इजमा से काम ले कर मन्सबे इलाहिया पर किसी को फ़ाएज़ कर दे। और यह हो भी नहीं सकता था क्योंकि तमाम उम्मत ख़ताकार है। ख़ताकारों का इजमा न सवाब बन सकता है और न खातियों का मजमूआ मासूम हो सकता है और जानशीने रसूल स. का मासूम होना इस लिये ज़रूरी है कि रसूल मासूम थे। यही वजह है कि खुदा ने रसूले करीम स. का जांनशीन हज़रत अली (अ. स.) और उनकी 11 (ग्यारह ) औलाद को मुक़र्रर फ़रमाया । (यनाबिउल मोअद्दता पृष्ठ 93) जिसकी संगे बुनियाद दावते जुलअशीरा के मौक़े पर रखा और आयते विलायत और वाकिए तबूक़ (सही मुस्लिम जिल्द 2 पृष्ठ 272) से इस्तेहकाम पैदा
किया। फिर इज़ा फ़रग़ता फ़ननसब से हुक्मे निफ़ाज़ का फ़रमान जारी फ़रमाया और आयए बल्लिग़ के ज़रिये से ऐलाने आम का हुक्म नाफिज़ फ़रमाया।
चुनांचे रसूले करीम स. ने यौमे जुमा 18 जिल्हिज्जा 10 हिजरी को बामुक़ामे ग़दीर ख़ुम एक लाख चौबीस हज़ार (1,24,000 ) असहाब की मौजूदगी में हज़रत अली (अ.स.) की खिलाफ़त का ऐलाने आम फ़रमाया । ( रौज़ातुल सफ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 215) में है कि मजमे को एक जगह पर जमा करने के लिये जो ऐलान हुआ था वह हय्या अला ख़ैरिल अमल के ज़रिये से हुआ था। कुतुबे तवारीख़ व अहादीस में मौजूद है कि इस ऐलान पर हज़रत उमर ने भी मुबारक बाद अदा की थी जिसकी तफ़सील बाब 1 में गुज़री ।


