
कसबे हलाल की जद्दो जहद
आपके नज़दीक कसबे हलाल बेहतरीन सिफ़त थी। जिस पर आप खुद भी अमल पैरा थे। आप रोज़ी कमाने को ऐब नहीं समझते थे और मज़दूरी को बहुत ही अच्छी निगाह से देखते थे। मोहद्दिस देहलवी का बयान है कि हज़रत अली (अ.स.) ने एक दफ़ा कुएं से पानी खींचने की मज़दूरी की और उजरत के लिये फ़ी डोल एक ख़ुरमे का फ़ैसला हुआ। आपने 16 डोल पानी के खींचे और उजरत ले कर सरवरे कायनात स. की खिदमत में हाजिर हुए और दोनों ने मिल कर तनावुल (खाया) फ़रमाया। इसी तरह आपने मिट्टी खोदने और बाग़ में पानी देने की भी मज़दूरी की है। अल्लामा मुहिब तबरी का बयान है कि, एक दिन हज़रत अली (अ. स.) ने बाग़ सींचने की मज़दूरी की और रात भर पानी देने के लिये जौ की एक मिक़दार (मात्रा) तय हुई। आपने फ़ैसले के अनुसार सारी रात पानी दे कर सुबह की और जौ (एक प्रकार का अनाज) हासिल कर के आप घर तशरीफ़ लाये | जौ फ़ात्मा ज़हरा स. के हवाले किये। उन्होंने उस के तीन हिस्से कर डाले और तीन दिन के लिये अलग अलग रख लिया। इसके बाद एक हिस्से को पीस कर शाम के वक़्त रोटियां पकाईं इतने में एक यतीम आ गया, और उसने मांग लीं। फिर दूसरे दिन रोटियां तय्यार की गईं, आज मिस्कीन ने सवाल किया, और सब रोटियां दे दी गईं, फिर तीसरे दिन रोटियां तय्यार आज फ़कीर ने आवाज़ दी, और सब रोटियां फ़कीर को दे दी गईं। अली (अ.स.) और उनके घर वाले तीनों दिन भूखे ही
रहे। इसके इनाम में ख़ुदा ने सूरा हल अताः नाजिल फ़रमाया (रियाज़ुन नज़रा जिल्द 2 पृष्ठ 237) बाज़ रवायत में है कि सूरा हल अता के बारे में इसके अलावा दूसरे अन्दाज़ का वाकैया मिलता है।
हज़रत अली (अ.स.) अख़लाक़ के मैदान में
आप बहुत ही ख़ुश अख़लाक़ थे। उलेमा ने लिखा है कि आप रौशन रू और कुशादा पेशानी रहा करते थे। यतीम नवाज़ थे। फ़कीरों में बैठ कर ख़ुशी महसूस करते थे। मोमिनों में अपने को हक़ीर और दुश्मनों में अपने को बा रोब रखते थे। मेहमानों की खिदमत खुद किया करते थे। कारे ख़ैर में सबक़त करते थे। जंग में दौड़ कर शामिल होते थे। हर मुस्तहक़ की इमादाद करते थे। हर काफिर के क़त्ल पर तकबीर कहते थे। जंग में आपकी आंखे ख़ून के मानन्द होती थीं। इबादत खाने में इन्तेहाई ख़ुज़ु व ख़ुशु की वजह से बेहिस मालूम होते थे। हर रात को वह हज़ार रकअत नवाफिल अदा करते थे। अपने बाल बच्चों के साथ घर के कामां में मदद करते थे। घर में इस्तेमाल होने वाला सारा सामान ख़ुद बाज़ार से ख़रीद कर लाते थे। अपने कपड़ों में ख़ुद पेवन्द लगाते थे। अपनी और रसूले अकरम स. की जूती ख़ुद टांकते थे। हर रोज़ दुनिया को तीन तलाक़ देते थे। वह गुलाम अपनी मज़दूरी से ख़ुद ख़रीद कर आज़ाद करते थे। (जन्नातुल खुलूद ) किताब अरजहुल मतालिब
पृष्ठ 201 में है कि हज़रत अली (अ.स.) हुज़ूरे अकरम स. की तरह कुशादा हंसने वाले और ख़ुश तबआ थे और मिज़ाह (मज़ाक़) भी फ़रमाया करते थे।
हज़रत अली (अ.स.) खल्लाक़े आलम की नज़र में
1. ख़ल्ला आलम ने खिलक़ते कायनात से पहले नूरे अलवी को नूरे नब्वी स. के साथ पैदा किया।
2. फिर मसजूदे मलाएक क़रार दिया।
3. फिर जिब्राईल का उस्ताद बनाया।
4. फिर अम्बिया के साथ अपनी तरफ़ से मददगार बना कर भेजा। (हदीसे क़ुदसी
व मीनल मगाहि पृष्ठ 19 ईरान में छपी)
5. अपने मख़सूस घर, ख़ाना ए काबा में अली (अ.स.) को पैदा किया।
6. इस्मत से बहरावर फ़रमाया ।
7. आपकी मोहब्बत दुनिया वालों पर वाजिब क़रार दी।
8. रसूले अकरम स. का खुद जां नशीन बनाया ।
9. मेराज में अपने हबीब से उन्हीं के लहजे में कलाम किया।
10. हर इस्लामी जंग में उनकी मदद की।
11. आसमान से अली (अ.स.) के लिये ज़ुल्फिकार नाजिल फ़रमाई |
12. अली (अ.स.) को अपना नफ़्स क़रार दिया ।
13. इल्मे लदुन्नि से मुम्ताज़ किया।
14. फ़ात्मा स. के साथ अक़द का खुद हुक्म दिया।
15. मुबल्लिगे सूरा ए बराअत बनाया ।
16. मद अली (अ.स.) में कसीर ( काफ़ी तादाद में ) आयात नाजिल फ़रमाईं ।
17. अली (अ.स.) ने इन्तेहाई सबरो ज़ब्त दे कर रसूल स. के बाद फ़ौरी तलवार उठाने से रोका।
18. उनकी नस्ल से क़यामत तक के लिये इमामत क़रार दी।
19. क़सीम अल नारो जन्नतः बनाया (जन्नत और दौज़ख़ को बांटने वाला)।
20. लवाएल हम्द का मालिक बनाया ।
21. और साकिये कौसर क़रार दिया।




