
इस्लाम पर अली (अ.स.) के एहसानात
इस्लाम पर अली (अ.स.) के एहसानात की फ़हरीस्त इतनी मुख़्तसर नहीं है कि हम उसे इस मुख़्तसर मजमूए हालात में लिख सकें। ताहम मुश्ते अज़ ख़र दारे लिख देते हैं।
1. दावते जुलअशीरा के मौके पर जिस जगह रसूले अकरम स. को तक़रीर करने का मौक़ा नहीं मिल रहा था। आपने ऐसी जुर्रत और हिम्मत का मुज़ाहेरा किया के पैग़म्बरे इस्लाम स. कामयाब हो गये और आपने इस्लाम का डंका बजा दिया।
2. शबे हिजरत फ़र्शे रसूल स. पर सो कर इस्लाम की किस्मत बेदार कर दी और जान जोखम में डाल कर ग़ार में तीन रोज़ खाना पहुँचाया।
3. जंगे बद्र में जबकि मुसलमान सिर्फ़ 313 ( तीन सौ तेरह) और कुफ़्फ़ार बेशुमार थे। आपने कमाले जुर्रत और हिम्मत से कामयाबी हासिल की।
4. जंगे ओहद में जब कि मुसलमान सरवरे आलम स को मैदाने जंग में छोड़ कर भाग गये थे, उस वक़्त आप ही ने रसूले अकरम स. की जान बचाई और इस्लाम की इज़्ज़त महफ़ूज़ कर ली थी।
5. कुफ़्फ़ार जिनके दिलों में बदले की आग भड़क रही थी, उमरो बिल अब्द वुद जैसे बहादुर को ले कर मैदान में आ पहुँचे और इस्लाम को चौलेंज कर दिया । पैग़म्बरे इस्लाम स. परेशान थे, और मुसलमानों को बार बार उभार रहे थे कि
मुक़ाबले के लिये निकलें लेकिन अली (अ.स.) के अलावा किसी ने हिम्मत न की । आखिर कार रसूल अल्लाह स. को कहना पड़ा कि आज अली (अ.स.) की एक ज़रबत इबादते सक़लैन से बेहतर है।
6. इसी तरह ख़ैबर में कामयाबी हासिल कर के आपने इस्लाम पर एहसान फ़रमाया।
7. मेरे ख्याल के मुताबिक़ हज़रत अली (अ.स.) का इस्लाम पर सब से बड़ा एहसान यह था कि, वफ़ाते रसूल स. के बाद दुख भरे वाकेयात और जान लेवा हालात के बावजूद आपने तलवार नहीं उठाई वरना इस्लाम मंजिले अव्वल पर ही ख़त्म हो जाता।
दुनिया हज़रत अली (अ.स.) की निगाह में
यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि हज़रत अली (अ.स.) दुनिया और दुनिया के कामों से हद दरजा बेज़ार थे। आपने दुनिया को मुखातिब कर के बारह कहा कि ऐ दुनिया जा मेरे अलावा और किसी को धोखा दे । मैंने तुझे तलाक़े बाइन दे दी है जिसके बाद रूजु करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि, एक दिन हज़रत अली (अ.स.) ने जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अन्सारी को लम्बी लम्बी सांस लेते हुए देखा तो पूछा ऐ जाबिर क्या यह तुम्हारी ठंडी ठंडी सांस दुनिया के लिये है? अर्ज़ की मौला, है । तो ऐसा ही आपने फ़रमाया । जाबिर सुनो
इन्सान की जिन्दगी का दारो मदार सात चीज़ो पर है और यही सात चीजें वह हैं जिन पर लज़्ज़तों का ख़ातमा है, जिनकी तफ़सील यह है 1. खाने वाली चीज़ें, 2. पीने वाली चीज़ें, 3. पहनने वाली चीजें, 4. लज़्ज़्ते निकाह वाली चीजें, 5. सवारी वाली चीज़ें, 6. सूंघने वाली चीज़ें 7. सुन्ने वाली चीजें
ऐ जाबिर, अब इनकी हक़ीक़तों पर गौर करो। खाने में बेहतरीन चीज़ शहद है, यह मख्खी का लोआबे दहन ( थूक ) है और बेहतरीन पीने की चीज़ पानी है, यह ज़मीन पर मारा मारा फिरता है। बेहतरीन पहनने की चीज़ दीबाज़ है, यह कीड़े का लोआब है और बेहतरीन मन्कुहात औरत है जिसकी हद यह है कि पेशाब का मक़ाम पेशाब के मक़ाम में होता है, दुनिया इसकी जिस चीज़ को अच्छी निगाह से देखती है वह वही है जो उसके जिस्म में सब से गंदी है। और बेहतरीन सवारी की चीज़ घोड़ा है जो क़त्लो किताल का मरकज़ है और बेहतरीन सूंघने की चीज़ मुश्क है जो एक जानवर के नाफ़ का सूखा हुआ ख़ून है। और बेहतरीन सुनने की चीज़ गिना (गाना) है जो बहुत बड़ा गुनाह है। ऐ जाबिर ऐसी चीज़ों के लिये आकिल क्यो ठंडी सांस ले? जाबिर कहते हैं कि इस इरशाद के बाद मैंने कभी दुनिया का ख़्याल तक न किया।
(मतालेबुल सूउल, पृष्ठ 191)

