चौदह सितारे पार्ट 39


हुलिया मुबारक

आपका रंग गंदुमी, आखें बड़ी सीने पर बाल, क़द मियाना, दाढ़ी बडी और दोनों शानें कोहनिया और पिंडलियां पुर गोश्त थीं, आपके पांव के पठ्ठे ज़बरदस्त थे शेर के कंधो की तरह आपके कंधों की हड्डियां चौड़ी थीं। आपकी गरदन सुराही दार और आपकी शक्ल बहुत ही ख़ूबसूरत थी। आपके लबों पर मुस्कुराहट खेला करती थी, आप खिज़ाब नहीं लगाते थे। ‘

आपकी शादी ख़ाना आबादी आपकी शादी 2 हिजरी में हुज़ूरे अकरम की दुख़्तर नेक अख़तर हज़रत फ़ात्मा ज़हरा स. से हुई । आपके घर में लौंडी, गुलाम और खिदमतगार न थे। बाहर का काम आप खुद और आपकी वालेदा मोहतरमा करती थीं और उमूरे ख़ाना दारी के फ़राएज़ जनाबे फ़ात्मा ज़हरा स. अंजाम देती थीं, हो

सकता है कि यह रिश्ता आम रिश्तों की हैसियत से देखा जाए, लेकिन दर हक़ीक़त इसमें एक अहम क़ुदरती राज़ छुपा हुआ है और उसका खुलासा इस तरह हो सकता है कि इस पर ग़ौर किया जाए कि हुज़ूरे अकरम स. का इरशाद है कि, अली (अ.स.) के अलावा फ़ात्मा स का सारी दुनियां में रहती दुनियां तक कफ़ो नहीं हो सकता। (नूरूल अनवार) फिर फ़रमाते हैं कि मुझे ख़ुदा ने हुक्म दिया है कि मैं फ़ात्मा स. की शादी अली (अ.स.) से करूं और इसी सिलसिले में इरशाद फ़रमाते हैं कि हर नबी की नस्ल उसके सुल्ब से होती है लेकिन मेरी नस्ल सुल्बे अली से क़रार दी गयी है। (सवाएके मोहर्रेका, पृष्ठ 74 ) इनत माम अक़वाल को मिलाने के बाद यह नतीजा निकलता है कि अली (अ.स.) और फ़ात्मा स का रिश्ता नस्ले नबूवत की बक़ा और दवाम के लिये क़ायम किया गया है। यही वजह है कि लोग पैग़ामे रिश्ता दे कर कामयाब नहीं हो सके। जिनकी बुनियाद नजासते कुफ़ पर इस्तेवार हुई और जिनकी इन्तेहा गन्दगिऐ निफ़ाक़ पर हुई ।

सरदारी और सयादते अली (अ.स.) की सिफ़ते जाती हैं सरवरे कायनात स. से इत्तेहादे जाती और इश्तेराके नूरी की बिना पर हज़रत अली (अ.स.) की सयादत मुसल्लम है जो मदाररिजे करम हुज़ूरे अकरम स. को नसीम हुए उन्हीं से मिलते जुलते हज़रत अली (अ.स.) को भी मिले। सयादत जिस तरह सरवरे कायनात स. के लिये जाती है उसी तरह हज़रत अली (अ.स.) के लिये भी है। हाफिज़ अबू नईम ने हुलयतुल औलिया में लिखा है कि ग़दीर के मौके पर ख़ुतबे से फ़राग़त के बाद

जब अमीरुल मोमिनीन हुज़ूरे अकरम स. के सामने आये तो आपने फ़रमायाः ऐ मुसलमानों के सरदार और ऐ परहेज़गारों के इमाम तुम्हें जानशीनीं मुबारक हो। इस इरशादे रसूल स. पर इज़हारे ख्याल करते हुए अल्लामा मौहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई ने मुतालेबुल सुऊल में लिखा है कि हज़रत की सयादते मुसलेमीन और इमामत मुत्तक़ीन जिस तरह सिफ़ते जाती हैं। खुदा ने अपना नफ़्स क़रार दे कर, रसूल स. ने अपना नफ़्स फ़रमा कर अली (अ.स.) की शरफ़े सयादत को बामे ऊरूज पर पहुंचा दिया क्योकि जिस तरह असलिये नबविया में नफ़से नबूवत मशारिक है, उसी तरह असलिये सयादत में भी नफ़्स शरीक है। इस लिये हुज़ूरे अकरम स. हज़रत अली (अ.स.) को सय्यदुल अरब, सय्यदुल मोमेनीन, सय्यदुल मुसलेमीन फ़रमाया करते थे। (मतालिबुल सवेल, पृष्ठ 56, 57 ) और हज़रत फ़ात्मा स. को सय्यदुन्निसा अल आलेमीन और उनको फ़रज़न्दों को सय्यदे शबाबे अहले जन्ना के अलफ़ाज़ से याद किया करते थे, मालूम होना चाहिये कि अली (अ.स.) और फ़ात्मा स. की बाहमी मनाकहत व मज़ावेहत (शादी) ने सिफ़ते सयादत को दायमी फ़रोग़ दे दिया यानी जो बनी फ़ात्मा स हैं उनका दरजा और है और जो दीगर औलादे अली (अ.स.) हैं जो बतने फ़ात्मा स ( फ़ात्मा स. के पेट) से पैदा उनकी हैसियत और है क्यों कि बनी फ़ात्मा सिलसिलाए नस्ले नहीं हुए ज़मानत हैं। नबूवत की

माँ की वफ़ात

आपकी वालेदा माजेदा जनाबे फ़ात्मा बिन्ते असद ने 1 बेसत में इज़्हारे इस्लाम किया। आप 1 हिजरी में शरफ़े हिजरत से मुशर्रफ़ हुईं। 2 हिजरी में आपने अपने नूरे नज़र को रसूल स. की लख़्ते जिगर से बियाह दिया और 4 हिजरी में इन्तेक़ाल फ़रमा गईं। आपकी वफ़ात से हज़रत अली (अ.स.) बेहद मुतास्सिर हुए और आपसे ज़्यादा रसूले अकरम स. को रन्ज हुआ। रसूले करीम स. हज़रत अली (अ.स.) की वालेदा को अपनी माँ फ़रमाते थे और उनके वहां जा कर रहते थे। इन्तेक़ाल के बाद आपने क़ब्र खोदने में ख़ुद हिस्सा लिया। अपनी चादर और अपने कुरते को शरीके कफ़न किया और क़ब्र में लेट कर उसकी कुशदगी का अन्दाज़ा किया।

(कंज़ुल आमाल जिल्द 6 पृष्ठ 7, फ़ुसूले महमा, पृष्ठ 15 व असाबा जिल्द 8 पृष्ठ 160 व अज़ालतूल ख़फ़ा जिल्द 1 पृष्ठ 215)

आपके वालिदे माजिद का इन्तेक़ाल

आपके वालिदे माजिद अबुल ईमान हज़रत अबू तालिब (अ.स.) 535 ई0 में बमक़ामे मक्का पैदा हु और वहीं पले बढ़े, आपकी बुनियाद दीने फितरत पर थी । (उमहातुल आइम्मता पृष्ठ 143) आपने हज़रत अली (अ.स.) को हिदायत की थी कि

रसूल स. का साथ न छोड़ना । ( तारीख़े कामिल, जिल्द पृष्ठ 60 ) आप ही की हिदायत से हज़रत जाफ़रे तय्यार ने हुज़ूरे अकरम स. के पीछे नमाज़ पढ़ना शुरू की थी । ( असाबा जिल्द 7 पृष्ठ 113)

हज़रत अब्दुल मुत्तालिब के इन्तेक़ाल के वक़्त 578 ई0 में जब कि रसूले करीम स. की उम्र आठ साल की थी, आपने उनकी परवरिश अपने जिम्मे ले ली और 45 साल की उम्र तक महवे खिदमत रहे। इसी उम्र में ग़ालेबन 594 ई0 में आपने रसूले करीम स. की शादी जनाबे ख़दीजा के साथ कर दी औ ख़ुतबाए निकाह ख़ुद पढ़ा।

(असनिल मतालिब पृष्ठ 34, मिस्र में छपी, तारीख़े ख़मीस मोवाहेबुल दुनिया )

आपका इन्तेक़ाल 15 शव्वाल 10 बेसत में 80 साल की उम्र में हुआ। आपके इन्तेक़ाल से हज़रत अली (अ.स.) को बेइन्तेहा रंज हुआ और रसूल अल्लाह स. भी बे हद मुताअस्सिर हुए। आपने इन्तेहाई ताअस्सुर की वजह से इस साल का नाम आमुलहुज़्न रखा। हज़रत अबू तालिब को इस्लामी उसूल पर दफ़न किया गया । (तारीख़े ख़मीस, सीरते हलबिया)

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